Thursday, June 25, 2009

पॉजिटिव सोच रखें, सफलता चूमेगी आपके कदम


अगर हमने पॉजिटिव सोच रखी तो हमारे निर्णय व कार्य दोनों सकारात्मक हो जाएंगे। अगर नहीं किया तो नकारात्मक इस पर बुरी तरह से हावी हो जाएगा। फिर हम पूरी तरह निगेटिव सोच से घिर जाएंगे। अगर हमारे अन्दर किसी भी तरह की नकरात्मकता का बोध है तो हमें विशेष रूप से अपनी सोच के प्रति सचेत रहना पड़ेगा। धीरे-धीरे नकारात्मक विचारों को कम करना होगा। इन्हें अपने मन से हटाना होगा, क्योंकि यही नकारात्मक विचार हमारे अन्दर निगेटिव एनर्जी भी उत्पन्न करते हैं। साथ ही गलत रास्ते पर चलने को विवश करते हैं।

जैसे-जैसे हम पानी को गर्म करते हैं और पानी का तापमान 100 डिग्री तक पहुंचता है तब पानी खौलने लगता है और फिर वाष्प बनकर उड़ जाता है। जैसे-जैसे पानी का तापमान कम होता जाता है तो पानी ठंडा भी होता जाता है। जीरो डिग्री आने तक पानी जमकर बर्फ में बदल जाता है। पानी की ये दोनों ही स्थितियां केवल डिग्री बदलने पर होती हैं। अक्सर हम लोग अपनी आपस की बातचीत में प्रतिशत का प्रयोग करते हैं जैसे कि हम कहते हैं कि हमारी यह बात सौ फीसदी सच है। हमारी इस कही हुई बात में झूठ का कोई प्रतिशत नहीं है। इसका अर्थ यह हुआ कि अगर इस बात में झूठ का प्रतिशत मिल जाए तो यह बात खरी नहीं होगी। इसी तरह से हमारे जीवन में जो कुछ भी होता है, सब प्रतिशत में होता है। केवल डिग्री के बदलने से ही हमारे जीवन में बदलाव आ जाता है। जैसे सुख आया साथ ही पीछे से दुख का भी कुछ प्रतिशत चला आया। यह कभी-कभी कम प्रतिशत में होते हुए भी सुख पर ज्यादा भारी पड़ जाता है। इस तरह जीवन की हर परिस्थिति में तथा हमारे व्यक्तित्व में भी इसका अहम असर रहता है। हमारे काम करने तथा सोचने का तरीका व हमारा व्यवहार सभी कुछ में प्रतिशत शामिल हो चुका है। जो भी चीज अगर परसेंटेज में कम हो गई तो वह कमजोर हो गई और जिसका परसेंटेज बढ़ गया, वह मजबूत हो गया।
हमारे सोचने के तरीके के भी दो पहलू हैं। एक है सकारात्मक और दूसरा नकारात्मक। अगर हमने पॉजिटिव सोच रखी तो हमारे निर्णय व कार्य दोनों सकारात्मक हो जाएंगे। अगर नहीं किया तो नकारात्मक इस पर बुरी तरह से हावी हो जाएगा। फिर हम पूरी तरह निगेटिव सोच से घिर जाएंगे। अगर हमारे अन्दर किसी भी तरह की नकरात्मकता का बोध है तो हमें विशेष रूप से अपनी सोच के प्रति सचेत रहना पड़ेगा। धीरे-धीरे नकारात्मक विचारों को कम करना होगा। इन्हें अपने मन से हटाना होगा, क्योंकि यही नकारात्मक विचार हमारे अन्दर निगेटिव एनर्जी भी उत्पन्न करते हैं। साथ ही गलत रास्ते पर चलने को विवश करते हैं। हमें देखना होगा कि हम अपने आप में कितने सकारात्मक हैं और कितने नकारात्मक। हम जीवन में किन-किन स्थिति में सकारात्मक निर्णय लेते हैं और कहां-कहां पर नकारात्मक हो जाते हैं। हमें उसी सकारात्मक को हमेशा अपलिट करना है। निगेटिव ऊर्जा पहले हमें ऐसा करने से रोकेगी, हमें थोड़ी कठिनाई होगी लेकिन थोड़े से प्रयास में हो जाएगा। धीरे-धीरे हर स्टेप्स में पॉजिटिव होते जाएं फिर किसी भी स्थिति में कठिनाई नहीं होगी। एक समय ऐसा आएगा, जब आपकी सकारात्मक सोच का लेवल व प्रतिशत बढ़ जाएगा और नकारात्मक का प्रतिशत कम होने लगेगा। आगे एक समय यह पूरी तरह से खत्म हो जाएगा, तब सकारात्मक सोच सौ फीसदी पर पहुंच जाएगी। फिर जीवन के किसी भी पल में तथा किसी भी निर्णय में हम पूरी तरह से सकारात्मक सोच व ऊर्जा से भरे होंगे।
जीवन की यही पॉजिटिव व निगेटिव ऊर्जा ही हमसे अच्छे व बुरे काम करवाती है। एक ही स्कूल के दो छात्र, दोनों क्वालीफाइड, टेलेंटेड व होनहार। परन्तु दोनों में एक के पास पॉजिटिव ऊर्जा थी, इसलिए वह सफल व प्रसिद्ध हुआ। वहीं दूसरा अपनी निगेटिव ऊर्जा के कारण प्रतिभा होने के कारण बावजूद गलत रास्ते में चला जाता है। एक अपना करियर बना लेता है, दूसरा अपना करियर खत्म कर लेता है। ऊर्जा की अपनी एक अलग दिशा होती है। तमाम लोग अच्छी योग्यता रखने के बावजूद निगेटिव सोच के कारण ही क्राइम की दुनिया में चले जाते हैं। वहीं सकारात्मक ऊर्जा वाला व्यक्ति सरकारी अधिकारी या सफल बिजनेसमैन बन जाता है। इसका उदाहरण तो हमारे सामने रामायण काल से ही है कि महापंडित रावण कई वेदों का ज्ञाता था। भगवान शिव की भी तमाम शक्तियां उसे प्राप्त थीं। इतनी योग्यता होने के बाद भी केवल अपनी नकारात्मक सोच व ऊर्जा के कारण ही उसने सीता माता का हरण किया। वह अपनी नकारात्मक जिद पर अड़ा रहा और अन्त में श्रीराम से युद्ध में मृत्यु को प्राप्त हुआ। उसके जीवन की सारी सकारात्मक सोच व ऊर्जा अंत में कम होती गई। जिससे उसका सकारात्मक पक्ष कमजोर हो गया और इस प्रकार वह गलत मार्ग पर चला गया। जब हम अपने जीवन के किसी भी हिस्से में पॉजिटिव होते हैं तो हमारे शरीर के अंदर की तमाम शक्तियां एकत्र होकर समग्र रूप से हमारे साथ होती हैं, जिससे हमारी ताकत कई गुना बढ़ जाती है। इसका उल्टा होने पर हमारा विश्वास हमेशा कमजोर बना रहता है। जिससे हम खुद ही अपनी चीज या टारगेट पाने के प्रति संदेह में रहते हैं। जैसा कि जानते हैं कि कोई भी अच्छा काम करने में कई लोग हमारा साथ देने लगते हैं, वहीं किसी भी गलत काम में हमारी अंतरआत्मा तक हमारे साथ नहीं होती।
हमारा जीवन सदैव एक सा नहीं रहता, हर पल बदलता रहता है। इसी के साथ ही हमारे नजरिये व सोच में भी बदलाव आता जाता है। हमें हर बदलते वक्त व सोच में बहुत सावधान रहना चाहिए। जीवन की हर स्थिति में अपने एटीट्यूट में हमेशा सकारात्मक रवैया ही अपनाएं, क्योंकि जीवन के हर कदम पर हमें दो चीजें दिखाई देती हैं। अच्छाई-बुराई, ईमानदारी-बेईमानी, झूठ-फरेब इन सबमें हमें सकारात्मक पहलू को अपनाकर उनको आत्मसात करना है और उसको सौ फीसदी तक ऊंचाई देनी है ताकि उसके दूसरे पहलू का अस्तित्व ही खत्म हो जाए। जिन व्यक्तियों ने अपने जीवन की हर स्थिति तथा अपने आचरण व व्यवहार में अच्छी बातों को अपनाया, वे जीवन के हर कदम पर सफल हुए और अपनी कामयाबी का झंडा बुलंद किया।

Saturday, June 20, 2009

मेहनत की दौलत से सब कुछ पाएं

जीवन में कोई भी व्यक्ति परफेक्ट नहीं है। वह हर पल कुछ न कुछ सीखता रहता है। कभी जीवन की किसी स्थिति से या कभी किसी व्यक्ति से। हम सब यहां पर अपने हर कदम से सीखते रहते हैं, यह जीवन सीखने का ही नाम है। काम करते रहते हैं, आगें बढ़ते रहते हैं और परिश्रम करने से पीछे नहीं हटते। वैसे तो परिश्रम करने की आदत हमारे बचपन काल से ही पड़ जाती है। पहले तो पढ़ाई लिखाई के दौरान मेहनत, बाद में नौकरी या रोजगार में कड़ी मेहनत। इसी परिश्रम से ही हमारे दिमाग में अपने टारगेट या लक्ष्य को पूरा करने के लिए आइडियाज या रास्ता मिलते रहते हैं, जो आगे चलकर हमारी मेहनत को कम भी कर देते हैं, जिसको हम वर्किंग स्मार्ट कहते हैं।



तीन दोस्त थे बचपन के। तीनों एक गांव में ही रहते तथा एक साथ ही पढ़ते थे। भगवान में तीनों की बहुत आस्था थी। वे हमेशा भगवान से अपने लिए अलग-अलग चीजों की मनोकामना किया करते थे। एक कहता कि हे भगवान मुझे ऐसी दुकान वा काम करवा दो जिससे कि मेरा भविष्य बन जाये तथा जीवन यापन ठीक तरह से चल सके। दूसरा कहता कि हे भगवान मुझे ऐसी नौकरी दिलवा दो ताकि पूरी जिंदगी शान से चलती रहे, जिसमें बढिय़ा मकान व गाड़ी भी हो। तीसरा दोस्त भगवान से कहता कि हे भगवान मुझे ऐसा कुछ नहीं चाहिए मुझे केवल काम करने की ऐसी शक्ति देना व मुझसे इतना परिश्रम कराना कि अपनी मेहनत के बलबूते पर मैं अपनी पहचान खुद बना सकूं।
ऐसा ही हुआ, आगे चलकर एक दोस्त ने दुकान कर ली व उससे खुश व पूरी तरह से संतुष्ट हो गया। दूसरे को नौकरी भी मिल गयी और उसका मकान भी हो गया। तीसरे दोस्त ने कड़ी मेहनत करके बड़ी फैक्ट्री कर ली। वह बहुत परिश्रमी था तथा मेहनत करना चाहता था। परिश्रमी होने के कारण उसके पास बड़ा मकान, कई गाडिय़ां व नौकर-चाकर सब कुछ हो गया। उसका खूब नाम हो गया। सब लोग उसको जानने लगे और वह पूरी तरह से सुखी व सम्पन्न हो गया। हम ईश्वर से जो मांगते हैं वह हमें मिलता भी है तो हम ईश्वर से छोटी चीज क्यों मांगे? जब मांगना ही है तो बड़ी चीज मांगें, मतलब पूरा पैकेज। इन्दिरा गांधी जी ने भी कहा है कि 'देयर इज नो सबस्टीट्यूट टू हार्ड वर्कÓ। अर्थात हार्ड वर्क के बिना कुछ भी नहीं होता, कठिन परिश्रम ही सफलता की कुंजी है। किसी भी कार्य की सफलता किए गए परिश्रम पर ही निर्भर करती है। हमारा प्रयास तथा हमारी मेहनत सम्पूर्ण होनी चाहिए। उसमें किसी भी तरह की कमी की गुंजाइश न हो। दूसरी बात हमारे परिश्रम करने में किसी भी तरह का हमारे मन में प्रलोभन व लालच भी नहीं होना चाहिए। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा भी है तुम केवल कर्म करो, फल की आशा न करो। यहां पर कर्म से उनका आशय परिश्रम से है। फल यानी लाभ की कोई अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए। मतलब हमें केवल परिश्रम करते रहना है उसमें अपनी ओर से कोई शर्त नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इसका जज या निर्णायक कोई और है। अगर तुम्हारी परफॉर्मेंस सौ प्रतिशत सही हुई तो ईश्वर के उपहार मिलना शुरू हो जाएंगे। एक तरह से देखा जाए तो पहले ईश्वर हम सबको मेहनत करना सिखाता है। कहीं हमसे कोई भूल-चूक व कसर न रह गयी हो, इसलिए समय-समय पर हमारी परीक्षा भी लेता रहता है। जब वह हर मामले में सन्तुष्ट हो जाता है तो हमें अपनी परीक्षा में पास कर देता है। शायद वह हर दशा व दिशा से निश्चिंत हो जाना चाहता है कि वह सफलता को जिन हाथों में सौंप रहा है वह वाकई इसके काबिल भी हैं या नहीं। कहीं सफलता किसी नौसिखिया के हाथ में तो नहीं जा रही है? क्या वह इसका पूरा रख-रखाव कर पायेगा? क्या वह इस सफलता को पचा पायेगा? हमारी पूरी मेहनत अर्थात यह पूरी प्रक्रिया केवल इन प्रश्नों के उत्तर का प्रमाण देने में ही लग रही है। केवल मात्र इच्छा होने से ही नहीं पहले सफलता के लिए काबिलियत भी होनी चाहिए, वह यह भी देखना चाहता है।
मान लिया जाए कि हम अगर किसी एक काम में असफल भी हुए तो इसका यह अर्थ नहीं कि हम पूरी तरह से असफल सिद्ध हो गए। वस्तुत: यह हमारा केवल एक प्रयास ही असफल हुआ है। हमारे तरीके में कोई कमी हो सकती है। हमको मालूम भी है कि निरंतर अभ्यास ही काम को सिखाता है। इस जीवन में कोई भी व्यक्ति परफेक्ट नहीं है। वह हर पल कुछ न कुछ सीखता रहता है। कभी जीवन की किसी स्थिति से या कभी किसी व्यक्ति से। हम सब यहां पर अपने हर कदम से सीखते रहते हैं, यह जीवन सीखने का ही नाम है। काम करते रहते हैं, आगें बढ़ते रहते हैं और परिश्रम करने से पीछे नहीं हटते। वैसे तो परिश्रम करने की आदत हमारे बचपन काल से ही पड़ जाती है। पहले तो पढ़ाई लिखाई के दौरान मेहनत, बाद में नौकरी या रोजगार में कड़ी मेहनत। इसी परिश्रम से ही हमारे दिमाग में अपने टारगेट या लक्ष्य को पूरा करने के लिए आइडियाज या रास्ता मिलते रहते हैं, जो आगे चलकर हमारी मेहनत को कम भी कर देते हैं, जिसको हम वर्किंग स्मार्ट कहते हैं। लक्ष्य प्राप्त करने के लिए वैसे हमारे पास हमेशा दो रास्ते होते हैं- एक तो परमानेंट होता है जिसमें हमारे मेहनत के स्टेमिना की पूरी परीक्षा देनी होती है। इसके बाद हमें जो सफलता मिलती है वह स्थायी होती है। यह रास्ता कठिन जरूर है, परन्तु पार कर जाने के बाद इससे आत्म विश्वास व आत्म गौरव की भी वृद्धि हेाती है, जबकि दूसरा रास्ता इसकी अपेक्षा आसान होता है, परन्तु उसमें स्थायित्व नहीं होता, क्योंकि यह केवल अपनी मेहनत के बल पर नहीं मिला होता है, इसलिए इसमें आत्म संन्तुष्टि का अनुभव नहीं होता है। कभी-कभी समय के साथ परिश्रम करते-करते बीच-बीच में हौसला टूटने सा लगता है। इसको भी हमें भरोसा देना होता है कि सफलता दूर सही पर हम अपनी मेहनत से उस तक जल्द पहुंच रहे हैं। यह हमारी मेहनत ही है कि यह पूरा रास्ता हम कितने समय में पूरा कर लें। मेहनत ही हमें मजबूत भी बनाती है तथा हमारी शारीरिक क्षमता भी इससे बढ़ती है। सफलता के मार्ग पर अनगिनत रोड़े, बाधाएं व रुकावटें भी मिलती हैं जो हमारी ताकत को आजमाती हैं। यानी सही मायनों में परिश्रम ही सच्ची दौलत है तथा इससे आत्मीय तथा भौतिक दोनों प्रकार के सुखों का अनुभव किया जा सकता है। इस दौलत को कमाकर हम इससे सब कुछ हासिल कर सकते हैं, फिर कुछ भी हमसे वंचित नहीं हेाता है। सब कुछ हमारी पकड़ में रहता है। जीवन के जिस क्षेत्र में हमने अपना लक्ष्य बनाया है, उसमें हमें नित्य ही नई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। फिर भी हम परिश्रम तथा इससे ही उपजे अदम्य साहस की बदौलत हंसते-हंसते इनका मुकाबला करते हुए जीत जाते हैं। परिश्रम से ही हम सफलता के शिखर पर बने रह सकते हैं क्योंकि सफलता के शिखर पर पहुंचना जितना मुश्किल है, उससे ज्यादा मुश्किल होता है उस शिखर पर बने रहना।

Saturday, June 13, 2009

खुद की खुद से पहचान का साधन है ध्यान


जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है व्यक्ति का रुझान पूजा व आस्था में बढऩे लगता है, क्योंकि अब मनुष्य लगभग अपनी हर आवश्यक जिम्मेदारी को धीरे-धीरे पूरी करता जाता है। अब उसे अपने लिए पर्याप्त समय आराम से मिल जाता है। खाली समय में पूजन पाठ साथ-साथ ध्यान में बैठने से उसे इस उम्र में भी अपने अन्दर असीम ऊर्जा व शक्ति का आभास व अनुभव होता रहता है।


पहले के समय में ऋषि मुनि संन्यासी या तपस्वी घने जंगलों में पहाड़ों पर या नदी किनारे अपनी साधना, तपस्या या ध्यान तथा तप योग के बल से अपनी शरीर की ऊर्जा को जाग्रत करते थे। गृहस्थ अवस्था से निकल कर आश्रम की ओर रुख करने वाले अधिकतर लोग सूनसान क्षेत्र या जंगल आदि की ओर ही जाया करते थे। अब ध्यान की अवस्था को पाने के लिए संन्यस्त रूप धारण करने की कोई अनिवार्यता नहीं रही। कोई भी मनुष्य अपनी पारिवारिक जिंदगी जीने के साथ ही ध्यान को उपलब्ध हो सकता है। इसके लिए उसे अपने परिवार को छोड़कर पहाड़ या जंगल की ओर जाने की आवश्यकता नहीं है। अब परिवार के बीच रहते हुए तथा नियमित कामकाज को करते हुए भी ध्यान को पाया जा सकता है।
ध्यान अपने आपको जगाने की बहुत पुरानी विद्या है। ध्यान से ही हमें आध्यात्मिक, शारीरिक, मानसिक लाभ व अलौकिक दिव्य दृष्टि का आभास होता है। इसके आभास मात्र से ही शरीर में नई ऊर्जा का संचार होना शुरू हो जाता है। ध्यान एक-लाभ अनेक ध्यान की प्रक्रिया एक ही है सबको एक ही तरीके से करना है ध्यान करने वाला चाहे कोई भी, हो किसी भी आयु वर्ग का हो, ध्यान करने की विधि सभी के लिए एक समान ही है। विद्यार्थियों को, नौकरी पेशा लोगों के लिए, घरेलू महिलाओं के लिए व बड़े बुजुर्गों को ध्यान की अवस्था प्राप्त करने के लिए सभी लोगों को केवल एक ही काम करना है परन्तु इसके लाभ सबको अपने-अपने काम व आयु वर्ग के हिसाब से मिलने लगते हैं। विद्यार्थियों के लिए नियमित रूप से ध्यान की प्रक्रिया करते रहने से ही किसी भी विद्यार्थी का मन एकाग्रचित्त होना शुरू हो जाता है, उसकी चंचलता धीरे-धीरे नियन्त्रित होने लगती है। मन अपने वश में होने लगता है। जब कोई छात्र या छात्रा अपने किसी भी विषय को तैयार करता है तो उसका पूरा मन उस विषय पर केन्द्रित होने लगता है, अब उसे याद करने तथा स्मृति में बनाये रखने में कोई परेशानी नहीं होती और आवश्यकता पडऩे पर कुछ भी विस्मृत सा नहीं होता बल्कि पल भर में ही सब कुछ स्पष्ट हो जाता है
ध्यान करने से ही पढऩे में रुचि भी आने लगती है। किसी भी विषय का पूरा का पूरा पन्ना मस्तिष्क में फोटो की तरह कैद हो जाता है और परीक्षा आदि के समय पर एक मिनट में ही वही पूरा पन्ना आंखों के सामने आ जाता है। छोटी-छोटी चीजों व नाम आदि को भी आसानी से याद में रखा जा सकता है। रोजगार नौकरी पेशा के लिए विद्यार्थी जीवन के बाद हर एक की जिंदगी में कुछ करने का सपना होता है। हर एक के सामने उसका बनाया हुआ उसका लक्ष्य दिखाई पड़ता है उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए अटूट मेहनत, धैर्य व साहस की अत्यन्त आवश्यकता होती है। ध्यान करने वाले व्यक्ति को इन सबसे निपटना अच्छी तरह आता है। उसमें लगन व मेहनत की कोई कमी नहीं होती और वह धैर्य व साहस का साथ कभी नहीं छोड़ता है क्योंकि ध्यान करने से ही सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा अपने आप बदलकर सकारात्मक होने लगती है। ऐसे में उसका लक्ष्य उसके पास आने लगता है चाहे कोई व्यक्ति नौकरी पाने के लिए प्रयास कर रहा हो या फिर व्यापार के किसी लक्ष्य पर उसका निशाना नहीं चूकता है क्योंकि ध्यान करने से ही किसी भी व्यक्ति के पास तमाम प्रकार की असीम शक्तियां एकीकृत होने लगती है। वह अपने अंदर से ही बलवान महसूस करने लगता है। उसके मन तथा कर्म के बीच में एक असीमित शक्तियों का संग्रह होता है और जब भी मन किसी भी कार्य के लिए सोचता है तो उसे शक्ति यहीं से मिलती है फिर मन आगे निर्भय होकर बढ़ता जाता है, किसी से नहीं डरता और जीत जाता है।
घरेलू महिलाओं के लिए घरेलू महिलाओं के काम काज पैसा कमाकर लाने वाले पुरुषों से कमतर नहीं आंके जा सकते हैं क्योंकि इन लोगों पर घर को संभालने की पूरी जिम्मेदारी होती है। परिवार की ऐसी बहुत सी स्थितियों में घर की औरतें ही निर्णय करती हैं और पुरुष इन पर विश्वास भी करते हैं। इनमें त्वरित निर्णय लेने की क्षमता का विकास भी ध्यान से ही आता है क्योंकि घर की एक महिला पर कई तरह की जिम्मेदारियां होती हैं, किसी की पत्नी है, किसी की मां है और किसी की बहू। इन सभी को अच्छी तरह से निभाने के लिए हमेशा सकारात्मक व अच्छी सोच के साथ पूरे परिवार की अच्छी तरह से देखभाल करनी होती है यह भी किसी चुनौती भरे काम से कम नहीं होता है तथा समूचे परिवार की उन्नति व प्रगति का आधार भी बनती है। ध्यान करने वाली महिलाओं को साहस व ऊर्जा की कोई कमी नहीं होती है तथा ध्यान उनके आध्यात्मिक विकास को तो बढ़ाता ही है तथा ध्यान से ही विकसित दिमाग के साथ-साथ शरीर भी स्वस्थ रहता है।
बड़े बुजुर्गों के लिए जैसे जैसे उम्र बढ़ती जाती है व्यक्ति का अपने आप रुझान ईश्वर की पूजा व आस्था में बढऩे लगता है क्योंकि अब मनुष्य लगभग अपनी हर आवश्यक जिम्मेदारी को धीरे-धीरे पूरी करता जाता है तथा अब उसे अपने लिए पर्याप्त समय आराम से मिलता जाता है। जिस पर ध्यान करने से मनुष्य आध्यात्म की ओर भी बढऩे लगता है। अब उसके खाली समय में पूजन पाठ के साथ साथ ध्यान में बैठने से उसे इस उम्र में भी अपने अन्दर असीम ऊर्जा व शक्ति का आभास व अनुभव होता रहता है। उम्र के बढऩे के साथ ही मनुष्य के अन्दर सक्रियता, चुस्ती व फुर्ती की कोई कमीं नहीं होती है। इस प्रक्रिया को लगातार करने से ही बढ़ती उम्र का दिमाग भी अच्छी तरह से सक्रिय रहने लगता है तथा किसी भी प्रकार की स्मरण शक्ति का नुकसान नहीं होता है। जैसा कि प्राय: देखा जाता है कि किसी भी व्यक्ति की उम्र बढऩे के साथ ही उसे याद रखने की क्षमता कम होती जाती है। अब ध्यान में बैठने से कोई भी समय बेकार नहीं जाता है हर पल आनन्द ही आनन्द, हर जगह रस ही रस क्योंकि यही जीवन का आखिरी पड़ाव है और यही जीवन का आखिरी चक्र है। ध्यान में मग्न होने से ही अब जीवन पूरा मस्ती में बीतता जाता है। ध्यान करने से अब वृद्धावस्था जीवन का बोझ नहीं बल्कि आनन्द का वो पड़ाव बन जाता है जिसमें हर पल मौज की लहरों में गुजरता है और कोई भी मनुष्य ध्यान करने से अपने जीवन के आखिरी हिस्से को पूरी तरह से सुखी, समृद्ध व सन्तुष्ट कर सकता है। ध्यान की अचूक प्रक्रिया को नियमित रूप से ही मनुष्य के किसी भी आयु वर्ग का जीवन सकारात्मक सरल व सफल बना सकता है। इसे हम घर, ऑफिस व दुकान कहीं पर भी, किसी भी समय कर सकते हैं, हम सब ध्यान की चाभी से ही वैभव के अनमोल खजाने को खोलकर अपना व्यक्तिगत तथा व्यावसायिक जीवन हर दृष्टि से महत्वपूर्ण बना सकते हैं।

Friday, June 5, 2009

बदलते लाइफ स्टाइल में दें विचारों को तरजीह


समय के साथ ही जिंदगी में भी बदलाव आया और अब मनुष्य को घर की रोटी में स्वाद नहीं मिल पाता। घर का खाना हमेशा स्वादिष्ट नहीं लगता। वह खाने में नया स्वाद ढूंढऩे लगता है। इस प्रकार मनुष्य ने नये स्वाद की तलाश में बड़े व महंगे होटल तथा रेस्टोरेन्ट की खोज कर डाली, जहां पर उसे रोटी के अलावा पिज्जा व स्वाद के अतिरिक्त स्टेटस भी साथ मिल जाता है।

महात्मा गांधी ने सादा जीवन तथा उच्च विचार पर जोर दिया। उन्होंने स्वयं अपने जीवन में भी सादगी अपनाकर हम सबके लिए प्रेरक बनाया। यह गांधी जी का मुख्य संदेश भी बना, जिसे उन्होंने हम सबसे भी अपने-अपने जीवन में अपनाने को कहा। हमने इसे अपनाया भी, परन्तु उनके द्वारा बताये गये अनुपात हमसे गड़बड़ हो गये। हमसे भूल यह हो गई कि हमने अपने जीवन को उच्च कर दिया और विचार हमारे सादा हो गये। हमने जीवन को हाइट दे दी और विचारों का मूल्य नहीं समझा। लिविंग का स्टैंडर्ड बढ़ा दिया और अपनी थिंकिंग को सिंपल कर दिया। फिर लाइफ का पूरा स्टाइल ही बदल गया और इस स्टाइलिश लाइफ में सोच और विचार की जैसे कोई जगह ही न रह गई हो। हर एक व्यक्ति की इतनी व्यस्ततम दिनचर्या हो गई कि उसमें सोचने और विचार करने का समय ही नहीं रह गया।
आदिकाल से अब तक मनुष्य को अपना तथा अपने परिवार का पेट पालने के लिए दो समय की रोटी का प्रबन्ध करना पड़ता था। आगे मनुष्य को रोटी, कपड़ा और मकान की व्यवस्था आवश्यक हो गई। जिसमें खाने को खाना, तन ढकने को कपड़ा तथा सर्दी-गर्मी व बरसात में सिर छिपाने के लिए छत का जुगाड़ करने में हर इंसान लग गया। समय के साथ ही जिंदगी में भी बदलाव आया और अब मनुष्य को घर की रोटी में स्वाद नहीं मिल पाता। घर का खाना हमेशा स्वादिष्ट नहीं लगता। वह खाने में नया स्वाद ढूंढऩे लगता है। इस प्रकार मनुष्य ने नये स्वाद की तलाश में बड़े व महंगे होटल तथा रेस्टोरेन्ट की खोज कर डाली, जहां पर उसे रोटी के अलावा पिज्जा व स्वाद के अतिरिक्त स्टेटस भी साथ मिल जाता है। अब आदमी का रुतबा अपने आप में बढऩे लगता है। पहले के समय में जहां कपड़े का इस्तेमाल केवल तन ढकने के लिए किया जाता था, अब यही कपड़े आदमी की पहचान बन गये। महंगे व ब्रांडेड कपड़े पहने लोग अलग से पहचाने जाने लगे। फैशनेबल व कीमती कपड़ों से लोगों की कीमत आंकी जाने लगी। अब सामने वाले व्यक्ति का हर एक व्यक्ति से व्यवहार करने का तथा मिलने-जुलने का तरीका भी बदल गया। बड़े लोग मकान की जगह महंगे-महंगे विदेशी पत्थरों से भव्य महल व कोठियों का निर्माण करने लगे। घूमने के लिए महंगी, लम्बी-लम्बी व आरामदायक चमचमाती गाडिय़ां सड़कों पर दौडऩे लगीं। खाना-पीना, घूमना-रहना सब कुछ अब स्टेटस सिंबल हो गया। इन सबसे हमारा पूरा लाइफ स्टाइल ही अलग हो गया। यहां से शुरू होती है आज के मानव की नयी कहानी। आज लगभग सभी लोग इस अन्धी प्रतियोगिता में शामिल हो गये। सभी लोग एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में शामिल होते जाते हैं। इन सभी की प्रतियोगिता अपने ही मित्र, रिश्तेदार या पड़ोसी से ही होती है एक दूसरे से अपने आपको कोई भी कम नहीं समझता है। ज्यादा खर्च करना, अब एक नया फैशन बन जाता है ज्यादा से ज्यादा खर्च कर अपने मित्रों, रिश्तेदारों तथा पड़ोसी को दिखाना, आकर्षित करना तथा उन पर अपना रौब बनाना ही शायद आज के आदमी के स्टेटस का एक अहम हिस्सा बन गया है। जिनके पास पैसा है, वाकई अमीर हैं उनके लिए कोई खास बात नहीं है। मुश्किल तो यह है कि जिनके पास पैसा नहीं है, वह इस प्रतियोगिता में हिस्सेदार बन गये हैं। दूसरे की बराबरी करने में अब उनको दिक्कत होने लगती है कि अब उनसे कैसे मुकाबला या बराबरी की जाए? फिर इन सबकी जिंदगी में इनके स्टेटस सिंबल को बचाने व बनाने के लिए बैंक का लोन दुबके पांव कब घुस आता है इस बात का पता ही नहीं चलता है। लोगों को अब अपना लाइफस्टाइल बढ़ाने के लिए लोन पर पैसा लेने की आदत पड़ जाती है। व्यक्ति अब उधार पैसे लेकर मकान बनाने लगता है, घूमने फिरने लगता है तथा सैर सपाटे के लिए चमचमाती गाडिय़ों का प्रयोग भी बेधड़क करता है। शुरुआती दौर तो ठीक होता है परन्तु कुछ ही समय बाद किस्तों की समय पर अदायगी उनके लिए एक नया सिर दर्द बन जाती है। अब किस्तें समय पर कैसे अदा करें इसलिए कभी-कभी दूसरा लोन लेना पड़ जाता है। जिंदगी की सारी खुशियां किस्तें अदा करने में लग जाती हैं। इस प्रकार हमारा सारा जीवन झूठे स्टेटस की बराबरी करने में लग जाता है। हमारी परेशानी की मूलवजह हमारे जीवन के दु:ख नहीं हैं बल्कि हमें ज्यादा दिक्कत सामने वाले की लाइफस्टाइल को देखकर होती है। इस कारण हम सबने अपने जीवन में असीमित फिजूलखर्च बढ़ा लिए हैं। इस कहावत पर भी ध्यान नहीं दिया कि जितनी चादर, उतने पांव। शायद हम आज के इस दौर में गांधी जी, लाल बहादुर शास्त्री, स्वामी विवेकानन्द, आचार्य बिनोवा भावे जैसी शख्सियतों के जीवन की सादगी को भूल गये, जिन्होंने अपने जीवन की रंगीनी तथा चकाचौंध से ज्यादा अपने विचारों को महत्व दिया। इसीलिए उनका सारा जीवन प्रसिद्धि के प्रकाश से जगमगा उठा। अगर सही मायनों में हम अपने जीवन का स्टाइल बदलना चाहते हैं तथा कुछ सिंबलिक काम करना चाहते हैं तो हमें निश्चित रूप से भौतिकवाद के साधनों से हटकर अपने अमूल्य विचारों को तरजीह देनी होगी।