Tuesday, September 29, 2009

रक्तदान को महादान बनाने के लिए जन जागरुकता जरूरी


कुछ प्रोफेशनल ब्लड डोनर्स ब्लड बैंक के वर्किग स्टाफ के साथ साठ-गांठ से हर महीने या दस-पंद्रह दिन में अपना खून बेचकर रुपए कमाते हैं। इन्हें लोगों की जान की कोई परवाह नहीं, ये सरकारी नियमों का माखौल उड़ाते हैं तथा खून का गंदा खेल कर रहे हैं।

रक्त-दान महादान कहा जाता है। रक्तदान करने वाला महान हो जाता है और रक्त पाने वाले को नया जीवन मिल जाता है। २२ सितंबर स्वैच्छिक रक्त दान दिवस के रूप में मनाया जाता है। देखा जाता है कि इस दिन अनेक समाजसेवी संस्थाएं या ब्लड बैंक स्वैच्छिक रक्त दान व जागरुकता शिविर का आयोजन करते हैं। इनका उद्ïदेश्य लोगों को रक्त दान के प्रति जागरूक करना और जरूरत मंद लोगों के लिए रक्त उपलब्ध कराना होता है। परंतु, कहीं न कहीं रक्त दान करनें से कमजोरी या किसी प्रकार की बीमारी हो जाने की गलतफहमी व भ्रांति अभी भी लोगों की सोच पर हावी है। इसके चलते अभी भी गरीब व किसी जटिल बीमारी से ग्रस्त मरीज को समय पर ब्लड सुलभ तरीके से उपलब्ध नहीे हो पाता।
जब कोई बीमार अस्पताल में रक्त की आवश्यकता व कमी से जिंदगी और मौत के बीच झूल रहा होता है तब उसका परिवार रक्त की व्यवस्था के लिए दर-दर भटकता फिरता है। ऐसे मौकों पर खास रिश्तेदार, करीबी, दोस्त और जिम्मेदार पड़ोसी भी मुंह फेरने लगते हैं। इस समय तीमारदार परिवार के लिए व्यक्ति की बीमारी से ज्यादा बड़ी समस्या हो जाती है कि किस तरह मरीज के लिए खून की तुरंत व्यवस्था की जाय? सरकारी या गैर सरकारी ब्लड बैंक भी ब्लड एक्सचेंज करके ही खून मुहैया कराते हैं। अत: किसी भी ब्लड बैंक से खून लेने के लिये ब्लड डोनर की आवश्यकता होती है। ऐसे समय में आसानी से कोई भी ब्लड देने के लिये तैयार नहीं होता है। एक-दो यूनिट ब्लड तो किसी भी तरह बिना किसी ब्लड डोनर के खरीदा भी जा सकता है, क्योंकि बगैर एक्सचेंज के एक यूनिट ब्लड की कीमत बहुत ज्यादा होती है। किसी भी जटिल बीमारी या स्थिति में जब ज्यादा ब्लड की आवश्यकता होती है तब डायरेक्ट खरीदना भी साधारण व्यक्ति या किसी पीडि़त परिवार के लिये आसान नहीं होता है। अब सवाल यह है कि इस समय अपने रिश्तेदार, मित्र या पड़ोसी खून देने से आखिर क्यों कतराते हैं? यह कैसी भ्रांति है कि हम किसी को खून देने से कमजोर या बीमार पड़ सकते हैं? जब कि हम यह अच्छी तरह जानते हैं तथा भली-भांति सहमत भी हैं और मेडिकल साइंस की रिपोर्ट भी यही कहती है कि एक स्वस्थ शरीर से एक यूनिट खून निकलने या किसी जरूरतमंद को दान करने से रक्तदाता के शरीर पर किसी भी तरह का दुष्प्रभाव नहीं देखा जाता बल्कि यह हमारे शरीर के तमाम पोषक तत्वों को और तंदुरुस्त करता है तथा शरीर पर किसी भी तरह की कमजोरी भी नहीं होती व कुछ ही दिनों में शरीर में रक्त फिर से तैयार हो जाता है। वही ब्लड डोनर तीन महीने के बाद अपनें शरीर से दुबारा ब्लड निकलवाने या डोनेट करने के योग्य व सक्षम हो जाता है।
स्वैच्छिक रक्तदान व जागरुकता अभियान के लिए सरकार करोड़ों रुपये हर साल खर्च करती है, परंतु इसका व्यापक रूप से प्रचार नहीं हो पा रहा है। शायद इसीलिए लोगों में रक्तदान के प्रति जागरुकता की विशेष कमी देखी जा रही है। आखिर गड़बड़ी कहां पर हो रही है यह भी देखने व समझने की बात है। रक्तदान से होने वाली किसी भी प्रकार की कमजोरी या बीमारी की भ्रामक भ्रांति को दूर करने के लिए स्वैच्छिक रक्तदान शिविर से अधिक रक्तदान जागरुकता पर जोर देना चाहिए तथा लोगों को रक्तदान से शरीर पर होने वाले लाभों को अच्छी तरह से समझाने का भी प्रयास चाहिए। इसी जागरुकता की कमी के कारण ही लोग स्वैच्छिक रूप से रक्त देने के लिए तैयार नहीं हो पा रहे हैं, जिसके कारण सरकारी या गैर सरकारी ब्लड बैंक में पर्याप्त मात्रा में रक्त का स्टाक नहीं हो पाता है। शायद इसीलिए ब्लड बैंक से मिलने वाले खून की कीमत बहुत ज्यादा होती है। किसी आकस्मिक घटना के समय गरीब व सामान्य आदमी के लिए खून की व्यवस्था कर पाना सहज नहीं है, क्योंकि कोई भी ब्लड बैंक बिना किसी ब्लड डोनर के खून नहीं देता है। रक्तदान जागरुकता की कमी के साथ कुछ प्रोफेशनल ब्लड डोनर्स ने अपने शरीर से खून निकलवाने का धंधा बना लिया है, ये लोग ब्लड बैंक के वर्किग स्टाफ के साथ साठ-गांठ से हर महीने या दस-पंद्रह दिन में अपना खून बेचकर रुपए कमाते हैं। इन स्टाफ को भी खून व रक्तदाता के किसी भी मानक व नियम-कानून की कोई चिंता नहीं होती। कई जगहों पर पाया गया है कि इन्हें लोगों की जान की कोई परवाह नहीं, ये सरकारी नियमों का माखौल उड़ाते हैं तथा खून का गंदा खेल कर रहे हैं। लोगों की जिंदगी से खेलकर गंदे व्यापार से ढेरों रुपया कमाना ही इनके जीवन का उद्देश्य बन गया है। आधारभूत बात यह है कि मुख्यत: कमी खून की नहीं बल्कि लोगों में जागरुकता की है। सरकार, समाजसेवी संस्थाएं व ब्लड बैेंक सभी लोग एकसाथ मिलकर रक्तदान जागरुकता अभियान व्यापक तरीके से करें। लोगों में रक्तदान में प्रति जागरुकता व उत्सुकता ही देश में होने वाली रक्त की अनुप्लब्धता को दूर कर सकती है, जब लोग खुद अपनी मर्जी व अर्जी से रक्तदान करने लगे व रक्त के दान का असली पुण्य समझे तब जाकर ही रक्तदान महादान कहलाएगा। -

Saturday, September 19, 2009

मस्ती की पाठशाला है पूरा मानव जीवन



जिंदगी हर एक बात पर हमें कुछ ना कुछ सिखाती है तथा आने वाला हर एक पल हमारे लिए एक नया अनुभव बन जाता है। आज के इस अर्थयुग में पैसा कमाने के लिये हमें अपने नौकरी-रोजगार में कई तरह की मुश्किलों आदि का सामना करना पड़ता है। व्यवसायिक प्रतियोगिता व प्रतिद्वंद्विता के दौर में अपनी क्षमता का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने का दबाव भी हम पर बना होता है, जिससे ही हम अपनी पहचान बना सकते हैं।

अपने स्कूल के दिनों में तो मौज-मस्ती सभी ने की होगी। उस समय न कोई चिंता और न कोई फिकर। उन दिनों न कोई भूतकाल होता है, और न ही कोई भविष्य। बस जो भी चल रहा होता है वही बच्चे जाते हैं। प्रत्येक बच्चा हर एक पल व हर एक क्षण को पूरी मस्ती के साथ जीता है। स्कूल में तो क ख ग का ज्ञान किताब से मिलता है, परंतु जिंदगी का क ख ग सीखने के लिये हमे जिंदगी की पाठशाला से रू ब रू होना पड़ता है। यह हमारे जीवन की ऐसी पाठशाला है जो कभी खत्म नहीं होती। इसमें हमें नित्य नये अध्याय सीखने को मिलते हैं। हम सब यहां स्टूडेंट की तरह होते हैं। आवश्यकता यहां पर भी वही है कि हम इस पाठशाला में भी पूरा मस्त होकर सीखें तो हमारी जिंदगी पूरी मस्ती की पाठशााला से कम नहीं लगेगी। हम सभी नेे स्कूल में मौज-मस्ती के साथ पढ़ाई की, फिर नौकरी-रोजगार की बात हो या घर-गृहस्थी का कोई भी पड़ाव, जिंदगी के हर कदम पर एक अलग तरह की मौज है तथा अनोखी मस्ती। अब सब कुछ हम पर निर्भर करता है कि हम इस जिंदगी की पाठशाला से कितना सीखकर उसका आनंद उठा पाते हैं। अगर हम अपने बचपन की ही बात करें तो आज भी हम अपने बचपन को याद कर प्रसन्न हो जाते हैं। उस जीवन में किसी भी तरह की कोई टेंशन नहीं और किसी भी बात का कोई झंझट नहीं दिखता था। यह शुरुआती फेज़ कितना आनंदमयी होता है, जिसमें हम सब बच्चे पूरी मस्ती में होकर अपने बचपन का लुत्फ उठाते हैं। स्कूली जीवन की पढ़ाई-लिखाई छूटने के बाद में हम नौकरी-पेशे आदि में आ जाते हैं। स्कूल के किताबी पाठ के बाद में अब हमें जिंदगी के वास्तविक व यर्थाथ अध्याय पढऩे पड़ते हैं। अभी तक हमने स्कूल में पढऩा-लिखना, लोक व्यवहार व नैतिकता आदि जो कुछ भी सीखा, वह सब कुछ हमें अपने जीवन में उतारना व ढालना होता है। एक तरह से देखा जाय तो स्कूल के बाद का हमारा यह जीवन बिल्कुल एक प्रायोगिक शिक्षा की तरह से है। जिस प्रकार कोई छात्र या छात्रा जब किसी प्रोफेशनल कोर्स की पढ़ाई पूरी कर लेने के बाद उसे कुछ समय इन्टर्नशिप करनी होती है। अगर हम ध्यान से अपने जीवन को देखें व जियें तो हमारे जीवन का यह पड़ाव भी पूरी मौज-मस्ती में जिया जा सकता है तथा बिना एक पल भी गंवाये हम इसका पूरा आनंद ले सकते हैं। जिंदगी हर एक बात पर हमें कुछ ना कुछ सिखाती है तथा आने वाला हर एक पल हमारे लिए एक नया अनुभव बन जाता है। आज के इस अर्थयुग में पैसा कमाने के लिये हमें अपने नौकरी-रोजगार में कई तरह की मुश्किलों आदि का सामना करना पड़ता है। व्यवसायिक प्रतियोगिता व प्रतिद्वंद्विता के दौर में अपनी क्षमता का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने का दबाव भी हम पर बना होता है, जिससे ही हम अपनी पहचान बना सकते हैं। ऐसे में एक बात का ध्यान रखना बहुत आवश्यक हो जाता है कि हम किसी भी काम को तनाव में रहकर नहीं कर सकते हैं। नौकरी व्यापार में कई तरह का दबाव, वर्क लोड व बॉस का प्रेशर इतना सब होने के बावजूद हमें खुद अपने काम में सौ प्रतिशत परिणाम की अपेक्षा होती है, क्योंकि अब सवाल हमारी परफॉर्मेन्स का बन जाता है। ऐसे में केवल एक ही रास्ता दिखाई देता है कि हम अपने काम में ही एन्जॉयमेंट ढूढ़े। आनंदमग्न होकर अपने काम में तल्लीन हो जाना ही सफलता की गारंटी बन जाता है। इसको इस उदाहरण से समझें कि कि अगर हम किसी तनाव में हैं या किसी समस्या से ग्रस्त हैं, और हम उससे निकलनें का हल खोज रहे हैं। परिणाम यह होता है कि अक्सर हल तो मिलता नहीं और इसके विपरीत हम अपना तनाव और बढ़ा लेते हैं। इसी समस्या पर किसी दूसरे व्यक्ति से राय या सलाह लेनें पर वह व्यक्ति हमको इसका हल तुरंत बता देता है, क्योंकि उसका दिमाग उस वक्त किसी तनाव में नही रहता। इसका अर्थ यही है कि जब हम कहीं पर उलझे हुए होते हैं तो हमारा दिमाग भी इसी भटकाव में धूमता रहता है तथा किसी भी स्थिति का बारीकी से विश्लेषण व आकलन नहीं कर पाता है। अगर हम भी ऐसी किसी स्थिति में किसी भी प्रकार का तनाव व दबाव का अनुभव न करें तो हम भी इसका हल व तरीका ढूढऩें में समर्थ व सफल हो सकेंगे। वैसे हमारी जिंदगी के भी कई रूप है क्योंकि हमारी जिंदगी कई स्टेप्स में चलती है बचपन से किशोरावस्था, युवावस्था व फिर वृद्धावस्था। इन सभी स्टेज में क्रमश: बहुत बदलाव देखा जाता है। देखते ही देखते कल का बच्चा युवा हो जाता है और फिर प्रबुद्ध व्यक्ति बन जाता है। जिंदगी के बीच रहकर तथा उसके बीच हॅसखेल कर हम सब कुछ सीखते चले जाते है। जीवन के हर दौर में अगर हम नाचते-गाते चलें तो फिर हमें जिंदगी का सही अर्थ मिल जाता है। बच्चों की पढ़ाई- लिखाई हो या घर-गृहस्थी की जिम्मेदारी, ऑफिस का काम हो या फिर नौकरी-रोजगार में परेशानी। सब कुछ केवल पार्ट ऑफ दि लाइफ है। यह सब केवल हिस्सा मात्र है, यही सब कुछ नहीं हो जाता है। परंतु हम अपनी समझ से इन्हीं को सबकुछ मानकर बेवजह ही परेशान हुआ करते हैं। जब कि यह हमने भी देखा है कि कोई भी परेशानी हमेशा नहीं रहती, कोई झंझट सदैव नहीं चलता। चलता है तो बस जीवन। हम किसी भी चीज को अपने सिर पर बोझ की तरह न लें। अगर हम इसे बोझ मान बैठे तो फिर जल्द ही थकने की संभावना हो जायेगी। जीवन यात्रा का रस कम हो सकता है। हम ऐसा समझें की यह सब ऐसी जिम्मेंदारियां है कि बस हमसे बन पड़ रही है, और हम करते जा रहे है। जो कुछ किया उसका कोई गुमान नहीं, जो भी नहीं कर पाये उसका भी कोई क्षोभ नहीं। फिकर केवल एक बात की होनी चाहिए कि हम अपनें जीवन के हर पड़ाव में कितना ज्यादा मस्त हो सकते हैं। जिस प्रकार बचपन की प्रारंभिक शिक्षा की बात करें तो आजकल बच्चों को पढ़ाई के तनाव से बचानें के लिये स्कूलों में प्ले ग्रुप सेशन होता है। जिसमें बच्चों में खेल की मस्ती के साथ पढऩे-लिखने की आदत डाली जाती है जिससे कि बच्चा पढ़ाई में एन्जॉय करे, बोझ समझ कर बोर न हो जाय। हमें चाहिए कि बाकी की जिंदगी को भी हम इसी तरह से जियें, जिंदगी की हर खुशी को हम सब साथ मिलकर सेलेबे्रट करें। जीवन को एक आनंद के उत्सव के रूप में समझे व जिंदगी के हर सबक को एन्जाय के साथ सीखते चलें।
ईश्वर नें हमें जो जीवन दिया है वह मस्त होकर जीने के लिये ही दिया है। उसमें झूम जाने व डूब जाने के लिये दिया है। अगर हम मस्त होकर जियें तो उसकी हर एक बात, जिंदगी के हर पल व रिश्ते का सही अर्थ आसानी से समझ सकते हैं। उसकी दी हुई हर सॉस में उसका अनुभव कर सकते हैं। फिर हमारा पूरा जीवन आनंद की मौजों से भरा-पूरा लगने लगता है। चाहे वह हमारा परिवार हो, रिश्ते हों या लोक व्यवहार सभी में हमें आनंद दिखेगा व असीम रस की फुहार भी दिखाई देंगी।

Thursday, September 10, 2009

देश-दुनिया में हर जगह पहचान हैं बेटियां


बेटे की जगह जन्म लेती है बेटियां।
कोमल, सहज व सहृदय होती हैं बेटियां॥
अब बेटे से कहीं कम नहीं है बेटियां।
हर घर का सम्मान है बेटियां॥
देश दुनिया में हर जगह पहचान है बेटियां।
स्वर्णिम दिशा में उडऩे का अरमान है बेटियां॥
न रोके इन्हें कोई, न लगाएं इनपे बेडिय़ां।
क्योंकि अब देश का स्वाभिमान हैं बेटियां॥

ज हर जगह नारी सशक्तिकरण की बात हो रही है। महिलाओं को आगे लाने व उनको बढ़ावा देने की योजनाओं पर काम किया जा रहा है। हो भी क्यों न, क्योंकि देश की आजादी के समय से ही कितने ही आंदोलनों व स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं ने अपनी जान की परवाह न करते हुए पुरुषों के साथ कन्धा से कन्धा मिलाकर संघर्ष किया। आज के इस कॉरपोरेट युग में भी महिलाओं की हिस्सेदारी व भागीदारी कम नहीं आंकी जा सकती। देश के विकास में इनके सराहनीय योगदान की अपेक्षा करना बेमानी होगी। देश की तरक्की के लिए हर एक महिला का जागरूक होना बहुत आवश्यक हो गया है। हमें भी देश के भविष्य के लिए महिलाओं की तस्वीर को और मजबूती से पेश करना होगा।
अब महिलाएं केवल घर के कामकाज तक सीमित नहीं रहीं। ये महिलाएं अब अपने घरों से निकल कर बड़े-बड़े ऑफिस संभाल रही हंै। प्रशासनिक स्तर से लेकर खेल, व्यापार, नौकरी, अंतरिक्ष, मीडिया तथा देश-विदेश हर जगह महिला, नारी व बेटियां अपने दम पर अपनी व देश की अमिट छाप छोडऩे में सफल रहीं। साधारण व घरेलू महिलाओं के लिए ऐसी समर्पित महिलाएं सदैव प्रेरणास्रोत व मार्ग प्रशस्ति का भी कार्य करती हैं। साधारण महिलाएं या छात्रा इनसे सबक लेकर अपनी जिंदगी में कुछ बनकर देश के लिए कुछ कर दिखाने का हौसला भी रखती हैं। महिलाएं आज भारतीय राजनीति का एक अहम व सशक्त हिस्सा बनती जा रही हैं। इसका एक उदाहरण हमारे सामने श्रीमती प्रतिभा पाटिल हैं जो आज भारत की राजनीति के सर्वोच्च शिखर पर देश की प्रथम महिला राष्ट्रपति के रूप में हैं। महिलाओं की राजनीति में भागीदारी बढ़ाने तथा उन्हें आगे लाने के लिए अभी केंद्र सरकार के केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक महत्वपूर्ण फैसला लिया, जिसमेंं महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए पंचायती चुनाव में ५० फीसदी आरक्षण की व्यवस्था कर दी। इससे महिलाओं को राजनीति में आने के ज्यादा से ज्यादा अवसर मिल सकेंगे तथा महिलाओं की दावेदारी तथा समग्र विकास और सशक्त तरीके से हो सकेगा।
इतना सब होने के बावजूद कहीं न कहीं कन्या भ्रूण हत्या देश के गौरव व स्वाभिमान को कलंकित सा करता जा रहा है। एक तरफ हम महिलाओं के योगदान से अभिभूत होकर गौरांवित महसूस करते हैैं, वहीं दूसरी ओर गर्भ कन्या को उसके जन्म लेने से पहले ही एक नारी की कोख में मारे दे रहे हैं। यह कितनी विडम्बना है कि एक नारी ही अपनी ही कुल के साथ कैसी दुश्मनी निकाल रही है? इतना ही नहीं एक पुरुष, जिसको एक नारी ने ही जन्म दिया है, केवल एक पुत्र की चाहत में उसी नारी के कन्या भ्रूण की हत्या उसके जन्म लेने से पहले कर दे रहे हंै। केवल एक बेटे की ललक आज समाज को देश के विकास में अपनी भागीदारी निभाने वाली बेटी का हत्यारा बना रही है। सच यह भी है कि आज की बेटी किसी बेटे से कम नहीं है। इसका मुख्य कारण वैचारिक संकीर्णता कहा जाए या फिर इसके पीछे और कोई खास वजह? इन सबके पीछे क्या कारण हैं? ये हमें देखने होंगे। यह हमारी सबकी सामाजिक जिम्मेदारी बन जाती है कि हम इस समस्या की मूल वजह को तलाशें व इसका हल खोजें। आज यह कन्या भ्रूण हत्या समाज में इतना संवेदनशील व वीभत्स रूप ले चुका है कि इसे संगीन अपराध की धाराओं में गिना जा रहा है। आज मनुष्य किसी कन्या को जन्म देने से इतना क्यों घबरा रहा है? क्यों इतना सहमा हुआ है? उसका डर समाज में बढ़ती हुई लड़कियों व महिलाओं के प्रति सामाजिक असुरक्षा की भावना से भी हो सकता है। क्योंकि आये दिन महिलाओं के साथ छेड़छाड़, शारीरिक शोषण, मार-पीट व बलात्कार जैसे क्रूर व जघन्य अपराध आम होते जा रहे हैं। कन्या भ्रूण हत्या का दूसरा बड़ा कारण लड़कियों के विवाह में दिए जाने वाले दान-दहेज की सामाजिक कुप्रथा भी कुछ कम जिम्मेदार नहीं है। समाज में उपजे इस वर्ग विशेष के बीच के अंतर की खाई, आपसी प्रतिद्वंद्विता तथा हीन भावना के डर से बचने के लिए भी मनुष्य ऐसे कठोर फैसले लेने पर कभी-कभी मजबूर हो जाता है।
ऐसा लगता है कि शायद अभी तक हमारी सरकारें ऐसे माता व पिता को अपने विश्वास में नहीं ले पाई हैं। उनको सामाजिक सुरक्षा व अधिकार का भरोसा नहीं दिला पाई हैं जिसके ही परिणामस्वरूप लोग सांसत में रहकर अभी तक अपनी धारणाओं में परिवर्तन लाने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं। जब तक हमारे समाज में व्याप्त इन बुराइयों का खात्मा नहीं होगा, लोग आश्वस्त नहीं होंगे। महिला सशक्तिकरण के बुनियादी पहलू पर हमारा प्रयास और मजबूत तब हो सकता है, जब हम महिलाओं को उन पर होने वाले किसी भी तरह के सामाजिक व घरेलू अत्याचार से मुक्त करवा दें। किसी भी नारी का जीवन एक बेटी से ही आरंभ होता है, इसलिए हर एक बेटी को जन्म लेने दें, उसे पलने दें तथा उसे आगे बढऩे से न रोकें। कहा गया है कि नारी दुर्गा का ही रूप है। नारी के कई रूप हैं। नारी के रूप में ही मॉ है, बहन है, पत्नी है व बेटी है। इनके रहने से ही हमारे घर का सम्मान है तथा इनकी उन्नति, प्रगति व सशक्त उपस्थिति हमारे देश का स्वाभिमान है।
बेटे की जगह जन्म लेती हं बेटियां।
कोमल, सहज व सहृदय होती हैं बेटियां॥
अब बेटे से कहीं कम नहीं है बेटियां।
हर घर का सम्मान है बेटियां॥
देश दुनिया में हर जगह पहचान है बेटियां।
स्वर्णिम दिशा में उडऩे का अरमान है बेटियां॥
न रोके इन्हें कोई, न लगाएं इनपे बेडिय़ां।
क्योंकि अब देश का स्वाभिमान हैं बेटियां॥

Saturday, September 5, 2009

अनमोल जीवन का समझें मोल


वेद-पुराण भी कहते हैं कि 36 करोड़ योनियों के बाद हमें मनुष्य का जीवन मिलता है। दुनिया में कितने ही छोटे-छोटे जीव जंतु, पशु-पक्षी सभी सांस लेते हैं। हमारे चारों ओर अनेक प्रकार का जीवन देखने को मिलता है। ईश्वर की बसाई गई इस दुनिया में कई तरह के प्राणियों का वास है। अगर हम बारीकी से इन सबका विश्लेषण व आकलन करें तो हम पाएंगे क्यों मानव जीवन को ही अनमोल व सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। अगर हम प्रकृति को देखें तो हमें सुंदर-सुंदर हरियाली दिखाई पड़ती है।

ईश्वर की विश्वव्यापी संरचना में सबसे सशक्त जीवन केवल मनुष्य को ही मिला है। वैसे तो जीवन सभी के पास है जीव-जंतु, पशु-पक्षी सभी श्वास लेते हैं। मनुष्य भी श्वास लेता है। परन्तु मनुष्य के पास अपनी बात व्यक्त करने के लिए सबसे मजबूत माध्यम है, उसकी बोलचाल की भाषा। वह बातचीत कर अपने विचार व्यक्त कर सकता है। यह विशेष योग्यता व क्षमता किसी दूसरे जीव-जंतु या पेड़-पौधे के पास नहीं है। इन सबसे अलग मनुष्य को एक और चीज बड़ी अद्भुत मिली और वह है विचारशील मस्तिष्क। मनुष्य किसी भी चीज को महसूस व समझने के अतिरिक्त सोच व विचार भी कर सकता है। उसका चिंतन सबसे महत्वपूर्ण है, जो मनुष्य को अन्य किसी भी जीवन से बहुत भिन्न व अद्वितीय कर देता है।
वेद-पुराण भी कहते हैं कि 36 करोड़ योनियों के बाद हमें मनुष्य का जीवन मिलता है। दुनिया में कितने ही छोटे-छोटे जीव जंतु, पशु-पक्षी सभी सांस लेते हैं। हमारे चारों ओर अनेक प्रकार का जीवन देखने को मिलता है। ईश्वर की बसाई गई इस दुनिया में कई तरह के प्राणियों का वास है। अगर हम बारीकी से इन सबका विश्लेषण व आकलन करें तो हम पाएंगे क्यों मानव जीवन को ही अनमोल व सर्वश्रेष्ठ कहा गया है। अगर हम प्रकृति को देखे तो हमें सुंदर-सुंदर हरियाली दिखाई पड़ती है, बड़े-बड़े पेड़ दिखाई देते हैं जो तेज हवा के झोंकों के साथ झूमते हुए हमसे अपनी भाषा में कुछ कहते नजर आते हैं। खुशबूदार बेल व फूलदार पौधे भी रंग-बिरंगे फूलों व अपनी महक से हम सबको अपनी ओर आकर्षित कर मन मोह लेते हैं। इसी से ही ये अपनी प्रकृति व स्वभाव को अभिव्यक्त करते हैं। उनमें अलग तरह का जीवन दिखाई पड़ता है। उनकी भाषा केवल उनकी खुशबू है। वे अपनी महक से ही हमसे बातचीत करते हैं। हम भी अपने घर-आंगन में फूलदार पौधों को लगाते हैं। खुशबूदार बेल रोपते हैं। फूल खिलने पर उनकी सुगंध चारों ओर फैलती है तो मन बहुत प्रसन्न हो उठता है तथा एक अलग तरह की शांति की अनुभूति होती है। ये सब फूल खूबसूरत दिखने के साथ अपनी मौन भाषा के साथ प्रेम व शांति का संदेश देते हैं क्योंकि फूल को प्रेम व शांति का प्रतीक भी कहा गया है।
पेड़-पौधे व फूलों में महसूस करने की अद्भुत क्षमता होती है। लगभग हमारी ही तरह, लेकिन उनकी अभिव्यक्ति का तरीका बहुत अलग है। जो जल्दी हर एक की समझ में नहीं आ सकता है। बिल्कुल उसी तरह जैसे कि किसी व्यक्ति को फूल व उसकी सुगंध का कोई असर नही पड़ता, जबकि दूसरा आदमी रंग-बिरंगे फूलों को देखकर व महक से अभिभूत होकर अपने को रोक नहीं पाता और पौधे के पास जाकर बैठ जाता है। पशु-पक्षी अपनी सांकेतिक भाषा से आपस में बातचीत कर लेते हैं, हमारे लिए यह केवल आवाज है लेकिन यह इनकी अपनी भाषा है। एक पक्षी या कोई चिडिय़ा अपनी आवाज से सैकड़ों चिडिय़ा अपने पास बुला लेती है, गाय या कोई जानवर अपने बच्चे को अपनी आवाज से अपने पास बुला लेती है। उनकी हर आवाज कुछ न कुछ कहती है। सभी पशु-पक्षियों की अपनी अलग आवाज है। ये आपस में बात करने के लिए इसी भाषा का प्रयोग करते हैं। यह बिल्कुल ऐसा ही है कि जैसे हम किसी ऐसी जगह जाते हैं, जहां की भाषा व बोली से हम अंजान है। वहां पर न हम बोल पाते हैं और न ही वहां की भाषा को समझ ही पाते हैं, लेकिन वहां के लोग अपनी भाषा में बातचीत करते हैं। हमें उनकी बातें समझ में नहीं आती केवल आवाज ही सुनाई पड़ती है। पशु-पक्षियों में महसूस करने की भी क्षमता होती है, वह हमारी तरह बीमार भी पड़ते हैं तथा इनको भी हमारी तरह दवा व मरहम की जरूरत पड़ती है। मनुष्य को मिली इस बड़ी सौगात की सबसे बड़ी बात यह है कि उसकी सोच व विचारशील दिमाग दोनों एक दूसरे को बढ़ाने का भी काम करता है।
अगर किसी व्यक्ति की सोच अच्छी, बड़ी व सकारात्मक हुई तो उसका दिमाग भी इसी तरह से बढ़ता जाता है फिर उसकी बु़िद्ध उसका और विस्तार कर देती है, धीरे-धीरे यह एक प्रक्रिया की तरह काम करने लगती है। मनुष्य इस मिले दुर्लभ जीवन के अवसर का लाभ उठा सकता है क्योंकि उसके पास समझने की शक्ति व समझदारी भी है, जो अन्य किसी भी जीवन को नहीं मिली। इसको अपना कर वह अपना जीवन महत्वपूर्ण बना सकता है क्योंकि व्यक्ति अपनी अनुभूति व अभिव्यक्ति से बहुत बलवान है। वैसे तो जीवन में बहुत झंझट हैं, लेकिन यह भी शाश्वत सच है कि यह मानव जीवन भी करोड़ों साल व असंख्य जीवन के झंझटों के बाद मिला है। हमारा जीवन दूसरे किसी भी जीवन से बहुत अलग व महान है क्योंकि हमारे पास दृष्टि, जीभ, विवेक, सोच, समझ व सहनशीलता सब कुछ है। अब सब कुछ हम पर निर्भर है कि हम ईश्वर के इस उपहार स्वरूप जीवन को कितना संभाल पाते हैं तथा अपनी बुद्धि, समझ व सहनशीलता को अपने जीवन में कितना उतार पाते हैं, जिससे कि हमारा यह अमूल्य जीवन तथा इस जीवन की कोई भी घड़ी व्यर्थ व निरर्थक न होने पाये। मानव जीवन देखा जाए तो कठिन भी है क्योंकि अपने इस जीवन में अपने साथ पारिवारिक जिम्मेदारी भी निभानी होती है, साथ ही कहीं से आपसी सामंजस्य भी न टूटने पाये यह भी देखना होता है। पशु-पक्षी व जीव-जंतु दूसरों की भावनाओं को नहीं समझ सकते, हमारे अंदर वह शक्ति है कि हम समझ सकते हैं तथा दूसरों की भावनाएं भी न आहत हो, यह भी ध्यान रखना पड़ता है। जिंदगी की तमाम जिम्मेदारियां कभी-कभी मुिश्कलें व झंझावात भी पैदा कर देते हैं। यह हमारे लिए बोझ नहीं बल्कि हमारा परीक्षण करती हैं और यथार्थ यही है कि जो इन सबको हंसते-मुस्कराते पार कर जाता है, वह अपने जीवन में सफल हो जाता है और उसका जीवन सार्थक हो जाता है। आज जितने भी लोग महान हुए, उनका जीवन भी बिल्कुल आसान नहीं रहा या उनके पास कोई झंझट या समस्या नहीं रही। भारत ऋ षियों व मुनियों का देश कहा जाता है। इन सभी ने मानव जीवन की श्रेष्ठता को जाना तथा इसके मूल्य को अच्छी तरह समझ कर अपने जीवन को सफल किया। इस धरती पर जन्मे कितने ही लोगों ने इस सबक को सीखा, वे जिंदगी की मुश्किलों से तनिक भी नहीं डरे बल्कि उन्होंने इन सबका सामना किया तथा अपने इस महत्वपूर्ण जन्म को कभी विफल नहीं होने दिया और अपने महानतम कार्यों से इस जीवन को और मूल्यवान कर दिया।