Friday, December 25, 2009

जिंदगी का पाठ पढ़ाती हैं किताबें




अच्छी किताबों को पढऩे मात्र से ही जीवन के किसी अंधेरे में रोशनी की तरह का सहारा मिलता है। किताबों को पढऩे से ही हमें आध्यात्म व संस्कृति का भी ज्ञान मिलता है। किताबों को निरंतर पढ़ते रहने से जीवन में हमेशा नई ऊर्जा शक्ति का भी अनुभव किया जा सकता है तथा ये हमारे जीवन को शोभायमान करती हैं।

किताबें क्या कुछ बयां नहीं करती! हमारे आस-पास कई तरह की किताबें पाई जाती हैं। किताब पढऩे के कई तरह के शौकीन होते हैं। कोई समय बिताने के लिए किताब पढ़ता है, कोई मनोरंजन के लिए किताब पढ़ता है। किसी की रुचि ज्ञानवद्र्धक किताबों में होती है, तो किसी को आध्यात्मिक किताबों में और किसी को विचार प्रेरक पुस्तकें पसंद हैं। हम सबकी रुचि व पसंद के अनुरूप हर एक विषय पर हजारों किताबें उपलब्ध हैं। इन्हीं किताबों से हमें जिंदगी के सार का पता भी चलता है और दुनिया-जहान का भी। जिंदगी के हर पड़ाव में किताबें ही सच्ची संगत की साथी रहती हैं। बचपन में स्कूली कोर्स से शुरूहुआ इन किताबों का सफर हमारी पूरी जिंदगी तक अनवरत बना रहता है, बस अध्याय-दर-अध्याय बदलते चले जाते हैं। पढ़ाई-लिखाई के समय की किताबें प्रारंभिक शिक्षा व ज्ञान प्रदान करती हैं तथा किसी भी विषय को भली-भांति जानने और समझने की प्रवृत्ति को भी पैदा करती हैं, फिर एक बार उसमें रुचि पैदा हो जाने पर हमें कोई एक विषय विशेष रूप से आकर्षित करता है। जिसे बार-बार पढऩे का मन करता है और कई-कई बार पढऩे के बाद भी मन में ऊब नहीं होती है। एक व्यक्ति खाली समय मिलने पर किताबें पढ़ता है और वहीं एक व्यक्ति उसमें रुचि होने के कारण समय निकाल कर किताब पढ़ता है। किताबें हमारे जीवन को सीख देती हैं व जीने का पाठ भी पढ़ाती हैं। अच्छी किताबों को पढऩे से कोई भी अपना जीवन संवार सकता है। मुख्यत: किताबें लेखकों के अपने निजी अनुभवों पर आधारित होती हैं जो पाठकों के लिए ज्ञान बांटने का काम करती हैं। कुछ किताबें केवल मनोरंजन के लिए पढ़ी जाती हैं और कुछ से जिंदगी के रहस्य को समझा जा सकता है। कुछ किताबें सिर्फ पढऩे ंके लिए होती हैं और किन्हीं किताबों के सार को अपनी जिंदगी में भी उतारा जाता है।
पुस्तकों के प्रेमी अपनी पसंद व रुचि की किताबों को अपने घरों-अलमारी में सजाकर भी रखते हैं, जिससे उनके पुस्तक प्रेमी होने का पता भी चलता है तथा वे विभिन्न विषयों पर आधारित दुर्लभ किताबों का अध्ययन करने के साथ उनके संकलन में भी विशेष रुचि रखते हैं। घरों से लेकर पुस्तकालयों व संग्रहालयों में लगभग सभी तरह की पुस्तकों का संग्रह रहता है। लोग इन वाचनालयों में जाकर भी अपनी रुचि के अनुसार पुस्तकों को पढ़ते हैं। आजकल लाइब्रेरियों के अलावा विश्व की दुर्लभ पुस्तकें कंप्यूटर या इंटरनेट पर भी खूब पढ़ी जाती हैं। विभिन्न पुस्तकों द्वारा ज्ञान और शिक्षा बटोरने की आज आधुनिक तकनीक भी विकसित हो चुकी है जिसका ज्यादातर उपयोग करके बहुत कुछ सीखा व समझा जा सकता है। किसी लेखक के किसी बिंदु पर लिख देने से वह एक विषय बन जाता है और ज्यादा विस्तृत जानकारी के साथ वर्णन करने से उस विषय पर किताब बन जाती है। कोई किताब कई वाल्यूम्स या भागों की होती है। किसी पुस्तक के सभी भागों को पढऩे से ही उसके महत्व व सार का पता चलता है। किताबें हमारी जिंदगी का वह केंद्र बिंदु हैं जहां से हम अपनी जिंदगी की पूरी परिभाषा सीखकर उसे अपनी निजी जिंदगी में प्रायोगिक रूप से ढालने का काम करती हैं। अब यह हमारे ऊपर निर्भर करता है कि अपने आस-पास मौजूद किताबों से कितना लाभ उठा पाते हैं अब तक जितने भी सफलतम व्यक्ति रहे हैं अधिकतर सबने इन्हीं किताबों से ही ज्ञान बटोरा तथा अपनी जिंदगी का अनुभव हमें अपनी किताब लिख कर दे गए। आज दुनिया की कई दुर्लभ व नामी विभूतियों ने अपनी पूरी जीवनी 'आत्मकथा' किताब के रूप लिख कर दे दी, जिनको पढ़कर ही हम उनके विलक्षण जीवन के अमूल्य क्षणों को जान व समझ पाते हैं। रामायण, महाभारत, गीता, कुरान, बाइबिल और वेद पुराण ये सब भी कभी लिखे गए और आज हम सबके बीच अमूल्य किताबों या संग्रह के रूप में मौजूद हैं। इन सबके अमर लेखकों की अलौकिक रचनाओं व अमूल्य कृतियों को पढ़कर हम अपनी जिंदगी का दु:ख-दर्द कम कर सकते हैं तथा सुख सागर के समंदर में आनंद की पराकाष्ठा तक जा पहुंचते हैं। अनजानी जिंदगी के अनजाने रास्तों पर चलने में यही किताबें हमारे लिए पथ-प्रदर्शक का भी काम करती हैं तथा हमारी जिंदगी में कुछ कर गुजरने के लिए प्रेरणा स्रोत भी बन जाती है। अच्छी किताबों को नियमित रूप से पढऩे से ये हमारे नजरिए को सदैव सकारात्मक रखती हैं, जिससे हमारा मस्तिष्क व विचार सकारात्मक रूप से हमेशा क्रियाशील बने रहते हैं। अच्छी किताबों को पढऩे मात्र से ही जीवन के किसी अंधेरे में रोशनी की तरह का सहारा मिलता है। किताबों को पढऩे से ही हमें आध्यात्म व संस्कृति का भी ज्ञान मिलता है। किताबों को निरंतर पढ़ते रहने से जीवन में हमेशा नई ऊर्जा शक्ति का भी अनुभव किया जा सकता है तथा ये हमारे जीवन को शोभायमान करती हैं। अच्छी किताबें हमारे जीवन में बहुमूल्य धरोहर की तरह हैं, ऐसी किताबों को मन व क्रम से पढऩा देवी-देवताओं की सच्ची आराधना के समान होती है और मन भी उसी भांति प्रफुल्लित होता है।

Saturday, December 19, 2009

सहभागिता से होगा समाज का विकास



समाज सेवा के लिए क्षेत्रीय स्तर पर भी बहुत सी सामाजिक व बिरादरी की संस्थाओं का गठन किया जाता है। इनमें से ही कुछ सामाजिक संस्थाएं निर्धन व असहाय गरीब परिवार की कन्याओं का सामूहिक विवाह, गरीब बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, स्वास्थ्य या उनके लिए वृद्धाश्रम बनवाने तथा दुखी व जरूरतमंदों को पैसे की मदद करने जैसे सराहनीय कार्यों के सदैव तत्पर रहते हैं।

कई लोगों के आपस में मिलने या जुडऩे पर ही समाज का निर्माण होता है। देश के इस वृहद व संपूर्ण समाज में विभिन्न सम्प्रदाय व जाति-बिरादरियों का सबका अपना अलग-अलग छोटा बड़ा समाज बना हुआ है। और इस तरह से अपने देश में कई प्रकार के छोटे या बड़े समाज पाए जाते हैं। इन सभी समाज को आपस में जोड़े रखने तथा महत्वपूर्ण कार्यों व दायित्वों का निर्वहन भी समाज की इन्हीं सामाजिक व बिरादरी की निजी संस्थाएं मिलकर बखूबी निभाती हैं। लगभग हर बिरादरी की अपनी संस्था कार्य कर रही है। जो सीधे तौर पर व्यक्तिगत रूप से लोगों से जुड़ाव का कार्य करती है। देश के विकास के लिए इन्हीं बिरादरी की या सामाजिक संस्थाओं की भागीदारी व योगदान आपेक्षित होता है।
कोई भी सामाजिक या बिरादरी का संगठन लोगों के लिए कुछ हितकर उद्देश्य लेकर ही अवतरित होता है। जिसकी आधारशिला मुख्यरूप से ज्यादा से ज्यादा लोगों को अपनी संस्था से जोड़े रखने में होती है, ताकि जरूरत के वक्त एक-दूसरे की हर संभव सहायता या लाभ पहुंचाया जा सके। समाज सेवा या बिरादरी के लोगों के हितार्थ काम करने के लिए क्षेत्रीय स्तर पर भी बहुत सी सामाजिक व बिरादरी की संस्थाओं का गठन किया जाता है। इनमें से ही कुछ सामाजिक संस्थाएं निर्धन व असहाय गरीब परिवार की कन्याओं का सामूहिक विवाह, गरीब बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, इनका पालन-पोषण, वृद्ध व असहाय लोगों के लिए दवा, स्वास्थ्य या उनके लिए वृद्धाश्रम बनवाने तथा दुखी व जरूरतमंद परिवारों को पैसे की मदद करने जैसे महत्वपूर्ण व सराहनीय कार्यों के सदैव तत्पर रहते हैं। अचानक किसी महामारी फैलने, अकाल या भयानक आपदा जैसी स्थितियों में सरकारी संगठनों के अलावा गैर सरकारी सामाजिक संगठन (एनजीओ) पीडि़तों की मदद के लिए क्रियाशील रहते हैं। इन सब कार्यों को संचालित करने व सबको लाभ पहुंचाने के लिए कुछ गैर सरकारी संगठनों को विदेशों से अनुदान भी मिल जाता है। वहीं पर क्षेत्रीय सामाजिक या बिरादरी की संस्थाओं को जनहितार्थ उद्देश्यों को फलीभूत करने के लिए अपने जानने वाले, व्यापारियों व उद्यमियों से मिलने वाले दान पर निर्भर रहना पड़ता है। ऐसी संस्थाओं को लोगों के बीच काम करने के लिए फंड इकट्ïठा करना, लाभप्रद कार्यक्रम चलाना औैर भारी भीड़ जमा करने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। फिर भी इन सबके ऊपर इन संस्थाओं के लिए काम करने वालों का उत्साह व जज्बा काबिल-ए-तारीफ होता है।
अब देखने वाली बात यह है कि अगर देश की जनसंख्या के आधार पर सामाजिक संगठन या संस्थाओं से जुड़े लोगों के आंकड़ों का प्रतिशत निकाला जाए तो यह निराशाजनक से बिल्कुल कम नहीं होगा कि अभी तक बढ़ी आबादी के लोग न तो किसी भी सामाजिक संगठन से जुड़े हैं और न ही अपनी बिरादरी की संस्था के ही सदस्य हैं। इनको अपनी या किसी अन्य सामाजिक संगठन से जुडऩा या सहभागिता करने में कोई रुचि नहीं दिखाई देती है। या फिर ऐसे लोग किसी भी संस्था से जुडऩे या उसके सदस्य बनने को कोई महत्व नहीं देते। इसका कारण यह भी हो सकता है कि आज के इतने व्यस्ततम माहौल में किसी भी व्यक्ति के पास मुश्किल से ही खाली समय मिल पाता है। किसी सामाजिक संस्था द्वारा आयोजित आपसी एकता, सामंजस्य व जनहित उद्देश्य के लिए किसी कार्यक्रम में अपनी सहभागिता हेतु समय अवश्य ही निकाला जाना चाहिए। ऐसे अवसर पर सम्मिलित होने से सबको एक सूत्र में पिरोने के साथ साथ सामाजिक एकता का संदेश भी दिया जाता है। जिसका सीधा लक्ष्य समाज के विकास के साथ देश को विकास की ओर ले जाना होता है। यह सच है कि समाज के विकास से ही देश का विकास हो सकता है। महात्मा गांधी ने भी कहा है कि किसी देश का विकास समाज के विकास पर ही निर्भर करता है। इसलिए सबसे पहले हमको अपने समाज को मजबूत करना होगा।
हमारे देश के अलग-अलग समाज छोटी-बड़ी नदियों की तरह हैं और इन समाज के जन साधारण व्यक्ति बिल्कुल किसी तालाब या पोखर की तरह होते हैं। फिर जब इन छोटे तालाबों का मिलन नदियों से होता है, और यही सब नदियां एक साथ मिलकर एक जगह समाहित होकर एक विशाल समुंदर के रूप में एक समृद्ध देश का निर्माण करती हंै। इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि सभी व्यक्तियों का समाज से और समाज का देश से आवश्यक तालमेल बनाया जाए। क्योंकि एक अकेले पोखर या नदी का अस्तित्व ज्यादा दिन तक नहीं रह पाता है। एक दिन ये सभी सूख जाते हैं।
किसी भी सामाजिक संस्था का गठन कई लोगों के द्वारा व कई लोगों के लाभ के लिए ही होता है। इन जनहितार्थ कार्यक्रम व सम्मेलन में लोगों की नि:स्वार्थ सेवा भावना व सहभागिता नितांत आवश्यक होती है। ऐसे में सरकार द्वारा मिलने वाला अनुदान व अन्य सहायता भी संस्था द्वारा किए गए जनहितार्थ व जन-उपयोगी कार्यक्रम पर आधारित होती है। सरकारी विभाग द्वारा जारी किए जाने वाले अनुदान व अनुशंसा भी ओर व्यापक तरीके से की जाय ताकि ऐसी संस्थाओं को और बढ़ावा मिल सके और अधिक से अधिक लोग इनसे जुड़कर लाभान्वित हों तथा देश व समाज की समृद्धि में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सकें।

Monday, December 14, 2009

जिंदगी में जीतने की जिद जरूरी



किसी भी काम में सफलता का संकल्प ले लेना और उसको अपने मन ही मन ठान लेना कि मैं इस काम को करूंगा और करके ही रहूंगा, यही हमारा स्वभाव किसी भी काम में सफलता या जीत के प्रति हमारे जिद्दीपन को दर्शाता है और इसी के सहारे हम कहीं पर भी अपनी जीत को दर्ज करा सकते हैं।
जीत किसको पसंद नहीं? कौन जीतना नहीं चाहता? चाहे खेल का मैदान हो या जंग का या फिर हो व्यवसायिक दुनिया की जंग, प्रतियोगिता या मुकाबला हर तरफ है। जीत के प्रयास में तो सभी होते हैं। लेकिन जीत उसी की होती है जिसमें जीतने की जिद होती है। जीत हासिल करने के लिए कोई भी व्यक्ति किसी भी प्रकार की कोर-कसर नहीं छोडऩा चाहता, लेकिन अंत में जीतता वही है जो जीत की सच्ची लगन से हमेशा ओत-प्रोत रहता है। किसी भी काम में जीत का और उस व्यक्ति में जीतने की जिद का आपस में गहरा संबंध होता है।
अगर हमारे मन में जीतने की लगन केवल एक बार लग गई, तो फिर इस लगन का मन में तब तक लगे रहना जरूरी हो जाता है जब तक जीत हासिल न कर ली जाय। यानी पूरा किला फतह न कर लिया जाय। खेल में, जंग में या फिर किसी भी मुकाबले में जो कोई भी शामिल होता है, उद्देश्य सभी का होता है उसको जीत जाना। देखने वाली बात यह भी है कि सिर्फ सोचने या चाहने मात्र से ही जीत हासिल नहीं हो जाती। इसके लिए बहुत कुछ कर गुजरना पड़ता है। इसमें जीत की लगन रूपी आग हमेशा अपने अंदर लगाये रखनी पड़ती है। निगाह यह भी रखनी पड़ती है कि किसी भी तरह से जीत मिलने तक इसकी लौ धीमी न पडऩे पाये। कभी-कभी जीत या सफलता का सफर लंबा होने के कारण हमारे जोश या उत्साह में कमी आने की संभावना तो हो जाती है, परंतु आत्मविश्वास की बुलंदी व मौजूदगी के कारण यह हमारे जीत के हौसले को नुकसान नहीं पहुंचा सकती है।
जीत जाना या सफल हो जाना किसी भी काम का सुखद परिणाम होता है। लेकिन, इसके लिए सबसे पहली आवश्यक बात यह हो जाती है कि इस ओर कदम बढ़ाना। केवल एक कदम रख देने से ही किसी काम की यात्रा प्रारंभ हो जाती है, और फिर हमारा हर एक कदम हमें सफलता के नजदीक ले जाता है। जब भी कभी हम किसी काम में आगे बढ़ते हैं तो एकाएक हमारे दिमाग में आशातीत सफलता की खुशी व कभी हार का डर भी डराने लगता है। आशान्वित सफलता की खुशी तो हमारा मनोबल व उत्साह बढ़ा देती है, परंतु हार का डर हमारे मन में बैठने मात्र से पूरे मन को हताश व निराश होने का खतरा बढ़ जाता है। इस कारण हमारे बढ़ते हुए कदम पीछे होना शुरू हो सकते हैं। इसलिए हमें हमेशा इस बात से सचेत रहते हुए अपने मन को सकारात्मक व मजबूत करना है। जीत और हार किसी भी काम के दो परिणाम होते हैं। हममें से बहुत लोग किसी भी काम की शुरुआत केवल हार के डर से नहीं कर पाते हैं। उनमें हार का डर इस कदर हावी हो जाता है कि यह कोई भी काम शुरू करने नहीं देता है। देखा जाय तो अगर केवल एक बार हमारा मन जीत के प्रति आश्वस्त हो जाय और हार को अपने ख्याल से हटा दें, कुल मिलाकर हार या असफल हो जाने को अपने ध्यान में से ही निकाल दिया जाय। तो फिर निश्चित ही एक स्थिति ऐसी आ जाएगी जब हम हार के डर की इस डरावनी स्टेज को पूरी तरह से पार कर चुके होते हैं। एक बार इस स्थिति से निकल जाने के बाद फिर हमें इसका डर दोबारा नहीं सताता है। क्योंकि अब हम जीत की ओर काफी आगे बढ़ चुके होते हैं। इसी तरह आजकल एक उत्पाद के विज्ञापन की पंचलाइन भी यही कहती है कि डर के आगे जीत है।
जिस तरह से हमारे अंदर और भी कई तरह की जिद पलती हैं और हम उन्हें पूरा करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। उसी तरह अपने जेहन में जीत की जिद को भी पालना बहुत जरूरी है। देखा जाए तो जैसे कोई बच्चा किसी भी चीज या खिलौने को लेने की अचानक जिद पकड़ लेता है। उसे लेने के लिए रोता है, अपने हाथ-पैर जमीन पर पटकना शुरू कर देता है और यहां तक जमीन पर लेट जाता है। वह अपनी जिद पूरी करवाने के लिए सब कुछ करता है और अंत में उसकी जिद पूरी की भी जाती है। कहा जाता है कि यह बहुत जिद्दी है, जिसकी भी जिद कर लेता है उसको आखिर लेकर ही रहता है। फलस्वरूप बच्चों की बचपन जैसी जिद हमें अपनी जिंदगी या करियर में भी रखनी आवश्यक होती है। जीत के लिए इसी जिद को अपना स्वभाव भी बनाना होगा। यही जिद हमको हमारे जीवन के कार्यों के सफलता के लिए ऊर्जा भी देती है तथा सफलता की ललक को भी दर्शाती है। हमारी व्यक्तिगत जिंदगी से लेकर कारोबार तक हर जगह हमेशा एक प्रतियोगिता का माहौल देखा जाता है। अब केवल साधारण तरीके से सफलता के प्रति उत्साहित रहने से सफलता की प्राप्ति सुनिश्चित नहीं की जा सकती है, जब तक जीत की चाहत दीवानगी की हद तक न चली जाय। हमारी हालत पूरी दीवानों की तरह से ही हो जानी चाहिए।
किसी काम में मिली आंशिक असफलता को कभी पूरी हार की संज्ञा नहीं देनी चाहिए क्योंकि यहीं पूरी बात खत्म नहीं हो गई। बल्कि इसको अपने रास्ते का एक अनुभव मानकर आगे और ज्यादा उत्साह के साथ प्रयास किया जाय। किसी भी काम में सफलता का संकल्प ले लेना और उसको अपने मन ही मन ठान लेना कि मैं इस काम को करूंगा और करके ही रहूंगा, यही हमारा स्वभाव किसी भी काम में सफलता या जीत के प्रति हमारे जिद्दीपन को दर्शाता है और इसी के सहारे हम कहीं पर भी अपनी जीत को दर्ज करा सकते हैं।

Friday, December 4, 2009

विचार से ही बदलती है जिंदगी



सफलता के लिए ठोस कार्य योजना व पूर्व समीक्षा के साथ कड़ी मेहनत की आवश्यकता होती है। जैसे किसी बीज को पहले रोपा या बोया जाए तो बीज धीरे-धीरे जमीन के अंदर अपनी जड़ें बनाना शुरू करता है। उसी तरह मस्तिष्क में आया विचार हमारे प्रयास से अंदर ही अंदर बड़ा होता जाता है। अब वह केवल भ्रूण नहीं रह जाता है।

कौन जानता है कि किस पल आने वाला विचार हमारी जिंदगी बदल कर रख देगा! हमारे क्रियाशील मस्तिष्क में हर वक्त नए-नए विचार आते और जाते रहते हैं। इनकी गति बहुत तीव्रगामी होती है। कभी-कभी ये श्रृंखलाबद्ध होते हैं और कभी-कभी इनका आपस में कोई तालमेल ही नहीं होता है। फिर भी किसी व्यक्ति की सफलता में आने वाले इन्हीं विचारों का आधारभूत योगदान होता है। हमारी पूरी की पूरी व्यक्तिगत व व्यवसायिक जिंदगी इन्हीं विचारों पर ही आधारित होती है। किसी एक विचार पर अमल कर के ही कोई व्यक्ति सफल हो जाता है और कोई असफल।
कोई एक विचार अपनी पैदाइश के समय पर बिल्कुल एक बीज या भ्रूण की तरह ही होता है। किसी बीज और फलदार या छायादार वृक्ष के बीच की दूरी व समय ही पूरी कार्य योजना व प्रक्रिया है। यह सब तुरंत नहीं हो जाता है, बल्कि इस बीच हमें ठोस कार्य योजना व पूर्व समीक्षा के साथ कड़ी मेहनत की आवश्यकता होती है। जैसे किसी बीज को पहले रोपा या बोया जाए तो बीज धीरे-धीरे जमीन के अंदर अपनी जड़ें बनाना शुरू करता है। उसी तरह मस्तिष्क में आया विचार हमारे प्रयास से अंदर ही अंदर बड़ा होता जाता है। अब वह केवल भ्रूण नहीं रह जाता है। जिस तरह से जब कोई बीज अंकुरित होकर बढऩा प्रारंभ करता है, वैसे ही हमारे विचार से ही जुड़ी सकारात्मक और नकारात्मक बातें जन्म लेना शुरू कर देती हैं। अब यह हमारा काम होता है कि हम अपने विचार को किसी भी नकारात्मक ऊर्जा से बचा कर उसको मजबूत स्थिति में रखें। जिस तरह से हम किसी बीज से बने नवजात पौधे की पूरी देखभाल व रख-रखाव के लिए उसके चारों ओर एक सुरक्षा घेरा बना देते हैं ताकि उस पौधे को कोई भी नष्ट न कर सके। हमारा यह प्रयास होता है कि अब टास्क या लक्ष्य का रूप ले चुके विचार पर किसी भी नकारात्मक ऊर्जा का असर अथवा प्रभाव न पड़ सके। अगर हम देखें तो दोनों को हम एक सी ही परवरिश देते हैं। धीरे-धीरे दोनों का रूप हमारे सामने बड़ा होता दिखाई पड़ता है। और फिर एक दिन वही एक नन्हा सा बीज हम सब के सामने बड़ा फलदार और छायादार वृक्ष बन कर खड़ा हो जाता है। अब हमारा विचार केवल एक विचार की तरह ही नहीं बल्कि एक सफलता के रूप में परिवर्तित हो जाता है।
एक सेकेंड के अंदर आने वाला कोई विचार ही हमारी पूरी जीवनगति को बदल कर रख सकता है। बशर्ते उस पर पूरा भरोसा रखा जाए तथा उसे पूरा मौका दिया जाए। आइन्सटीन व एडिशन जैसे वैज्ञानिकों के मस्तिष्क में एकाएक जो विचार कौंधा, वह अन्य दूसरों के लिए उतना भरोसेमंद नहीं रहा होगा जितना खुद उनके लिए था। आज तक जितने भी विज्ञान के अविष्कार या चमत्कार हुए, सब किसी न किसी के दिमाग के मूल्यवान विचार की ही उपज है। अगर ये सभी लोग अपने विचार को नजरअंदाज कर देते और असंभव या बेकार जान कर इस पर विश्वास न करते तो आज हम सबको बिजली की रोशनी, मोटर गाड़ी, तीव्रगामी यात्रा, सूदूर वार्ता व चलचित्र जैसी चीजों के नाम ही नहीं मालूम पड़ पाते। इसलिए हमें अपने आते जाते विचारों में से ही अमूल्य या सफलतादायी विचार को पहचानने में तनिक भी देर नहीं करनी चाहिए और समय रहते उसे अपनी कार्य योजना में भी ढाल लेना चाहिए। वैसे भी हमें अपनी व्यक्तिगत व व्यवसायिक जिंदगी के कई ऐसे मौकों पर अपने लक्ष्य को सफल बनाने के लिए तरह-तरह की स्कीमों पर काम करना पड़ता है। हमारे दिमाग में अनेक तरह के विचार व सुझाव आते रहते हैं। जिनमें से कुछ पर हम अमल भी करते हैं और हमें सफलता भी मिलती है तथा कुछ में असफल भी हो जाते हैं। इन्हीं विचारों पर ही हमारे काम करने की प्लानिंग स्टेटजी आधारित होती है और जो हमारी कार्य पद्धति भी बन जाती है। एक विचार किसी भी कार्य के लिए बहुत महत्वपूर्ण होता है क्योंकि इसी के अनुरूप चलने से हम सफलता के दरवाजे तक पहुंच सकते हैं। इस पूरी प्रक्रिया में हमें अपने विचार को पूरा पोषण देने की भी बहुत आवश्यकता होती है ताकि वह कहीं से भी अविकसित न रह जाय और उसका पूरा का पूरा फैलाव भी हो सके। जिस तरह से हम किसी पौधे को उर्वरक देते हैं और पौधा बड़ा होकर एक पेड़ बन जाता है। उसी प्रकार अपने दिमाग में जन्मे किसी विचार को पूरी सतर्कता व सकारात्मकता के पानी से सींचकर तथा उत्साह की खाद डालकर उसको पूरा विस्तार देते हैं ताकि कहीं से भी कोई कोर-कसर न रह जाए। अन्यथा हमारी जरा सी लापरवाही से बहुत नुकसान भी उठाना पड़ सकता है तथा हमारा पूरा उद्देश्य व परिश्रम असफल हो सकता है।
एक विचार तब तक विचार ही रहता है जब तक उस पर अमल न किया जाय, अमल करने के बाद वह सिद्ध व अमूल्य बन जाता है इसलिए हमारी जिंदगी में अच्छे विचारों को सहेजना बहुत आवश्यक हो जाता है। जरूरी यह भी है कि अपने मस्तिष्क में आने वाले अनगिनत विचारों मे से ही सही विचार का चयन कर उस पर पूरा भरोसा भी बना कर रखें और उसे पूरे विकास का माहौल देकर एक ठोस कार्य योजना के तहत सफल कर देने में कोई कसर न छोड़ें।