Saturday, April 24, 2010

जिंदगी में जरूरी है सच्चे साथियों का साथ




यूं तो जिंदगी के हर दौर में मित्रों का साथ मिलता है। स्कूल-कॉलेज के समय की दोस्ती, फिर कॅरियर व नौकरी-रोजगार के समय सहकर्मियों का साथ या पास-पड़ोस में रहने वाले हम उम्र साथियों के साथ मित्रता। इसी तरह एक दूसरे के साथ अपने सुख-दुख के अनुभव को साझा किया जाता है। इसी रास्ते हम अपनी दुख तकलीफें भी कम कर सकते हैं।


अच्छे मित्र बनाना जीवन में किसी कला से कम नहीं। कभी-कभी मित्रों के बिना जिंदगी बिल्कुल नीरस लगने लगती है। आपस में सहयोग लेने और देने का नाम भी दोस्ती है, जहां पर हम आपस में अपने दिल व मन की बात कर सकें। कहा जाता है कि अपना दुख-दर्द बांटने से हल्का हो जाता है। लेकिन, इसके लिए जरूरत होती है कुछ संगी-साथियों की। यूं तो जिंदगी के हर दौर में मित्रों का साथ मिलता है। स्कूल-कॉलेज के समय की दोस्ती, फिर कॅरियर व नौकरी-रोजगार के समय सहकर्मियों का साथ या पास-पड़ोस में रहने वाले हम उम्र साथियों के साथ मित्रता। इसी तरह एक दूसरे के साथ अपने सुख-दुख के अनुभव को साझा किया जाता है। इसी रास्ते हम अपनी दुख तकलीफें भी कम कर सकते हैं। किसी की मुसीबत के समय पर कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहने को तैयार रहते हैं। हर उम्र में दोस्ती के साथ वृद्धावस्था के समय भी दोस्ती महत्वपूर्ण होती है। जैसे-जैसे उम्र के साथ जिंदगी चलती जाती है-दोस्त भी मिलते व बदलते जाते हैं, लेकिन मित्रों की आवश्यकता पूरी जिंदगी होती है।
हमारी जिंदगी में पारिवारिक रिश्तों के अलावा दोस्ती का रिश्ता भी अहम होता हैै। इस रिश्ते को हम अपनी पसंद व आपसी आधार पर चुनते हैं। जिस पर किसी का कोई जोर, प्रभाव व दबाव नहीं होता है। नि:स्वार्थ भाव से करी गई दोस्ती ज्यादा लंबे समय तक चलती हैै। सच्ची दोस्ती का रिश्ता आपसी वैचारिक सामंजस्यता पर टिका होता है। यही व्यक्तिगत रिश्ता गहरा होने पर एक-दूसरे के दु:ख दर्द को बांट कर कम करने के काम आता है। सच्ची मित्रता का अर्थ ही है कि एक-दूसरे की वक्त जरूरत पडऩे पर खड़े होना। अंग्रेजी में एक कहावत भी है-'व्हेन फ्रेंड इन नीड, फ्रेंड इनडीड। प्राकृत रूप से भी यही पाया जाता है कि असली दोस्त की पहचान मुसीबत के समय पर ही होती है। समय बिताने के लिए, साथ में घूमने-फिरने, खाने-पीने व मौज उड़ाने के लिए दोस्तों की तो बड़ी फौज हो सकती है, परंतु सच्चे मित्र बहुत कम ही हो पाते हैं। क्योंकि मित्रता एक दूसरे को अच्छी तरह से समझने का भी नाम है। जिसमें सहनशीलता के साथ पारस्परिक समझदारी का होना भी अति आवश्यक होता है। बचपन के दोस्त, नौकरी या काम-धंधे के समय की दोस्ती के बीच से ही कोई हमसे इतना करीबी व दिली रिश्ता बन जाता है कि जिसके साथ हर पल बिताने का मन करता है। लेकिन समय के साथ कभी-कभी इन्हीं करीबी दोस्ती के रिश्ते नौकरी-रोजगार के चलते बिछुड़ भी जाते हैं। अक्सर व रोज मिलने वाले दोस्त अब कभी-कभी मिल पाते हैं। जिंदगी के साथ दोस्त भी बदलते जाते हैं, लेकिन दोस्ती होती रहती है।
आम पहचान के साथ कभी-कभी कोई व्यक्ति बहुत जल्दी ही करीबी हो जाता है, जिससे दिल जुडऩे लगता है। और एक समय यही अपना सच्चा मित्र कहलाता है। जब कभी मन में किसी तरह की दुविधा होने पर दिल पर एक बोझ की तरह से होता है मित्रों के बीच बात करने से मन हल्का हो जाता है। ऐसे में ही सच्चे दोस्त की दरकार पूरी होती है। जो आपकी बात को गहराई से समझ कर लोगों के बीच उपहास न उड़ाकर स्थितिवश उचित राय व सलाह भी दे। अक्सर जिंदगी के किसी मोड़ पर हम जब कभी दिग्भ्रमित से हो जाते हैं, इतना परेशान हो जाते हैं कि आगे का रास्ता तनिक भी नहीं सुझाई देता। फिर हमें एक ऐसे मित्र की जरूरत होती है जो हमें सही रास्ता दिखाए। यहां पर भी यही मित्र काम आता है जो अपने राय-मशवरे से समस्या का समाधान कर देता है। इसका मनोवैज्ञानिक कारण भी है कि जो व्यक्ति किसी समस्या से घिरा होता है, उसका मस्तिष्क हल खोजने में असहज व असमर्थ हो जाता है। वहीं मित्रों का तरीका किसी समस्या से ग्रसित न होने के कारण सहजता से तुरंत समाधान या हल करने का रास्ता भी ढ़ूंढ़ लेता है। दोस्तों व साथियों के सहयोग व सलाह से जिंदगी की तमाम अड़चनें व छोटी-बड़ी समस्याएं हल हुआ करती हैं। मौका सुख का हो या फिर दु:ख का सबसे पहले साझीदार पास के दोस्त ही होते हैं। जिनसे अक्सर का मिलना-जुलना होता है इन मित्रों को आपस की दिनचर्या से लेकर घर की छोटी-बड़ी बातों का पता रहता है। ऐसे सच्चे मित्रों के सहयोग व सलाह से जीवन की किसी परिस्थिति का सामना करना अपेक्षाकृत आसान हो जाता है। बचपन से शुरू हुई दोस्ती का सफर बुढ़ापे तक ताउम्र चलता रहता है। बुजुर्गियत की दोस्ती भी जीवन में बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। क्योंकि इस समय अक्सर लोग अपनी व्यस्ततम दिनचर्या व जिम्मेदारी से स्वतंत्र हो चुके होते हैं और गली-मोहल्ले के लोग सुबह-शाम एक दूसरे के हाल व खबर लिया करते हैं, व नित्य-प्रतिदिन के क्रिया-कलाप आपस में साझा किया करते हैं। खाली समय बिताने के साथ एक तरह से यही लोग सबसे करीबी सुख व दु:ख के साथी होते हैं। कुल मिलाकर दोस्ती में दूसरे के गम का ख्याल आते ही अपना गम कम मालूम पडऩे लगता है। क्योंकि एक गाने के प्रमुख भी बोल थे- दुनिया में कितना गम है, मेरा गम कितना कम है। औरों का गम देखा तो मैं अपना गम भूल गया।

Monday, April 19, 2010

देश के रत्न हैं सचिन और अमिताभ


एक तरफ फिल्मों के शहंशाह अमिताभ बच्चन तो दूसरी तरफ से सचिन तेंदुलकर को राष्ट्र मंडल खेलों के प्रचार-प्रसार के लिए उतारा जाय तो नि:संदेह यहां पर भी सफलता के कई रिकॉर्ड बन सकते हैं। दोनों भारत के दो ऐसे नगीने हैं जिनको ब्रांड एम्बेस्डर बनने का मौका देने से भारतीय ताज की चमक दूर देशों में भी जरूर दिखाई देगी।

भारत के लिए यह अपार हर्ष का मौका है कि पहली बार अपने देश को राष्ट्र मंडल खेलों को आयोजित करने का गौरव हासिल हुआ है। दिल्ली में इसी साल अक्टूूबर में अन्तर्राष्ट्रीय स्तर पर कॉमन वेल्थ गेम्स होने हैं। जिसके व्यापक प्रचार व प्रसार के लिए पूरे कार्यक्रम का ब्रंाड एम्बेस्डर नियुक्त किया जाना है। विज्ञापन बाजार के अनुसार विज्ञापन में लोकप्रिय व अच्छी साख वाले फिल्म स्टार, स्पोटर््स स्टार या मॉडल दिखाई पड़ते हैं। इनकी व्यापक लोकप्रियता के आधार पर ही कंपनियों इन्हें ब्रांड एम्बेस्डर नियुक्त करती हैं। बाजार की यह नई व ताजा गणित को देश की राज्य सरकारें भी अच्छी तरह समझ चुकी हैं, और इसी का परिणाम है कि कुछेक राज्य सरकारें अपने प्रदेश के समुचित विकास के लिए ब्रंाड एम्बेस्डर का चुनाव कर रही हैं। इसी क्रम में पिछले दिनों गुजरात सरकार अमिताभ बच्चन को अपने राज्य का ब्रांड एम्बेस्डर नियुक्त कर चुकी है। राष्टï्रकुल खेल के लिए मोदी सरकार की ओर से अमिताभ बच्चन के नाम की सिफारिश की गई। जिसमें कुछ विरोधाभास के साथ इसका फैसला कॉमनवेल्थ गेम के आयोजन समिति को करना है।
आज खेल और फिल्मी दुनिया जितना लोकप्रिय और कुछ नहीं। अधिकतर लोगों की रुचि क्रिकेट में है और इसी से उसके लोकप्रिय खिलाडिय़ों को विज्ञापन आदि के लिए अनुबंधित किया जाता हैैै। किसी भी कंपनी की व्यापक सफलता व दूर-दूर तक प्रचार-प्रसार का पूरा दारोमदार इन्हीं कलाकारों पर टिका होता है। विज्ञापन का पूरा बाजार कलाकार की लोकप्रियता पर ही आधारित होता है, इसीलिए कंपनियों की पहली पसंद भी वही होता है जिसकी पहुंच व लोकप्रियता दूर-दूर तक हो। ऐसे में राष्ट्र मंडल खेलों के लिए ब्रांड एम्बेस्डर के लिए अमिताभ बच्चन के नाम की सिफारिश को आयोजन समिति के अध्यक्ष सुरेश कलमाड़ी द्वारा ठुकराने की बात का कुछ प्रयोजन समझ से परे लगता है। आज किसी भी कंपनी या उत्पाद का विज्ञापन या प्रचार करवाने के लिए यही कंपनियां सबसे ज्यादा फिल्मी कलाकारों को ही अनुबंधित करते हैं, क्योंकि उनकी बनाई गई लोकप्रियता व साफ-सुथरी छवि पर अपना विश्वास जमा लेते हैं। यूं तो बहुत से ख्याति प्राप्त कलाकार विज्ञापन आदि में काम करते हैं, परंतु अगर इन सबकी लोकप्रियता के स्तर का सही-सही तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो अमिताभ की दर्शकों व प्रशंसकों के बीच बनाई गई मजबूत पैठ सभी पर भारी पड़ जाती है। उनके समकालीन अभिनेताओं से लेकर आज के युवा कलाकार सभी अमिताभ की योग्यता, कार्यक्षमता व ऊर्जा शक्ति का लोहा मानते हैं। वहीं फिल्मी दुनिया में प्रवेश करने वाले आगंतुक तमाम अभिनेता अमिताभ को अपना आदर्श मानते हैं। साथ ही सामाजिक व सांस्कृतिक कार्यक्रमों में इनकी सहभागिता व रुचि इनके गरिमामयी व्यक्तित्व को और भी महत्वपूर्ण बना देती है। इसी लिहाज से तमाम बड़ी-बड़ी कंपनियों ने अमिताभ बच्चन को विज्ञापन के लिए अपना ब्रांड एम्बेस्डर नियुक्त कर लिया, ताकि उनका प्रोडक्ट व प्रचार हर घर में आसानी से पहुंच सके। इसी तरह पल्स पोलियो अभियान के देश व्यापी प्रचार का जिम्मा भी अमिताभ बच्चन को ही दिया गया। मध्यप्रदेश के ग्वालियर जिले के ऐतिहासिक किले की ६०० साल से भी ज्यादा पुरानी गाथा को देश-विदेश से आने वाले पयर्टकों को अपनी सशक्त आवाज के बलबूते रू-ब-रू कराते आ रहे हैं। भारत इसी आधार पर भाजपा के वरिष्ठ नेता व भारतीय ओलंपिक संघ के अध्यक्ष वीके मेहरोत्रा ने अमिताभ बच्चन को कामॅनवेल्थ गेम्स के लिए प्र्रस्तावित किया तो आयोजन समिति के अध्यक्ष नें किसी खिलाड़ी को इसका ब्रांड एम्बेस्डर बनाने पर जोर दिया।
दूसरी तरफ, देखा जाय तो आज क्रिकेट सभी खेलों में लोकप्रिय खेल है। अपने यहां की हर आयु वर्ग का मन लुभावना खेल है। आज करोड़ों लोग क्रिकेट के दर्शक व प्रशंसक है। और उस पर सचिन तेंदुलकर की क्रिकेट तो अब तक बेमिसाल है, लोग सचिन के खेल के दीवाने हैं। हर कोई सचिन को खेलते हुए देखने का लुत्फ लेना चाहता है। सचिन का भी बहुत बड़ा दर्शक वर्ग है, देश-विदेश के दर्शकों के साथ उनके प्रतिद्वंदी भी इनकी कलात्मक बल्लेबाजी का इंतजार करते हैं। सचिन की बढ़ती हुई लोकप्रियता का भी उनके समकक्ष कोई सानी नहीं। क्योंकि अपने बीस साल के क्रिकेट कॅरियर के दौरान सचिन ने ना जाने कितने ही रिकार्ड की बराबरी की और ना जाने कितने ही नये कीर्तिमान रचे। लोकप्रियता के मामले में सचिन भी किसी से उन्नीस नहीं होंगे। एक तरफ फिल्मों के शहंशाह अमिताभ बच्चन तो दूसरी तरफ से सचिन तेंदुलकर को राष्ट्र मंडल खेलों के प्रचार-प्रसार के लिए उतारा जाय तो नि:संदेह यहां पर भी सफलता के कई रिकॉर्ड बन सकते हैं। दोनों भारत के दो ऐसे नगीने हैं जिनको ब्रांड एम्बेस्डर बनने का मौका देने से भारतीय ताज की चमक दूर देशों में भी जरूर दिखाई देगी।

'लिव-इन रिलेशनशिप', विसंगतियों भरा रिश्ता



वास्तविकता में इस रिश्ते की उपज पश्चिम के देशों से हुई है। आज की ज्यादातर युवा पीढ़ी आधुनिकता का पीछा कर रही है। जिस पर फिल्मी दुनिया की चकाचौंध व ग्लैमर ने भी इसमें अपना रंग चढ़ाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। सैफ अली खान की सलाम नमस्ते फिल्म का असर अब देश के मेट्रो शहरों से लेकर छोटे शहरों के युवाओं की जिंदगी में भी देखा जाना संभव है।

फिल्म अभिनेत्री खुशबू के विवाह पूर्व शारीरिक संबंध बनाये जाने के पक्ष में दिये गये एक वक्तव्य के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने उसकी बात को जायज बताते हुए इसे अपराध की सीमा से बाहर रख दिया। शीर्ष कोर्ट की विशेष पीठ ने कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप किसी भी दृष्टि से अपराध नहीं हो सकता है। मतलब वयस्क स्त्री-पुरुष बिना शादी के एक ही घर में पति-पत्नी की तरह रह सकते हैं और साथ ही उत्पन्न संतानें भी वैध होंगी। साथ ही इस तरह के रहन-सहन की विसंगतियों को भी भलीभांति देखना आवश्यक बन जाता है।
सन् २००५ में फिल्म अभिनेत्री खुशबू ने एक पत्रिका को दिये साक्षात्कार में शादी से पहले सेक्स संबंध बनाये जाने की पुरजोर वकालत की थी, जिसके विरोध में देशभर से तमाम याचिकाएं दाखिल हुईं। अंत में देश की शीर्ष अदालत ने समाज में इस नये रिश्ते के जन्म पर अपनी मुहर लगा दी, वहीं पर इस रिलेशनशिप को पहले से मानने वालों के रिश्तों को भी न्यायिक सुरक्षा मुहैया करा दी। लगभग दो दशक पहले जहां यह बात किसी के द्वारा सोची भी नहीं जा सकती थी कि समाज में कोई ऐसा भी रिश्ता हो सकता है जो केवल अपनी स्वतंत्रता, निजता व आपसी समझदारी से बिल्कुल किसी कॉन्टे्रक्ट की तरह से देखा व परखा जा सके। दुनिया में पति व पत्नी जितना करीबी रिश्ता दूसरा कोई नहीं है, जो आपसी समझबूझ व रजामंदी पर आधारित होता है। पहले के समय में विवाह के रिश्ते परिवार के बड़े-बूढ़े लोग आपस में ही देख व तय कर लिया करते थे। दूल्हे को दूल्हन का चेहरा शादी के मंडप पर ही दिखाई पड़ता था। फिर समय बदला, अपनी पसंद के लड़के या लड़की के साथ शादियां होने लगीं। अब अपने समाज में एक नया बदलाव आने जा रहा है, जो समाज के पारंपरिक विवाह की परिभाषा को पूरी तरह से बदल कर रख देगा। नये जमाने का वैवाहिक स्वरूप लिव-इन रिलेशनशिप के नाम से पहचाना जायेगा। जो पश्चिम के रंग में रंगा हुआ आधुनिक विवाह होगा। वास्तविकता में इस रिश्ते की उपज पश्चिम के देशों से हुई है। आज की ज्यादातर युवा पीढ़ी आधुनिकता का पीछा कर रही है। जिस पर फिल्मी दुनिया की चकाचौंध व ग्लैमर ने भी इसमें अपना रंग चढ़ाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। इसी मुद्दे पर बनी सैफ अली खान की सलाम नमस्ते फिल्म का असर अब देश के मेट्रो शहरों से लेकर छोटे शहरों के युवाओं की जिंदगी में भी देखा जाना संभव है। इस रिश्ते को भरपूर बढ़ावा देने के लिए इंटरनेट पर लिव-इन रिलेशनशिप की ढेरों साइटें खुली हुई हैं। इसमें रजिस्टे्रशन के साथ सदस्यों के फोटो-बायोडाटा एलबम सहित तमाम सामग्री हर वक्त मौजूद है। इसमें दो राय नहीं है कि इंटरनेट 'लिविंग टुगेदर' के लिए परफेक्ट मैचिंग कराने का एक बड़ा अधिकृत बाजार बन जायेगा।
हमारे समाज में होने वाले पारंपरिक विवाह ऐसी सामाजिक व्यवस्था है जिसके अन्तर्गत एक स्त्री और पुरुष को विवाह के गठबंधन में बांधा जाता है। परंतु आज आधुनिक बदलाव के चलते बड़ी होती युवा पीढ़ी इतनी समझदार या मेच्योर हो गई है कि अब वह अपने भविष्य की अच्छाई के लिए अपने जीवन साथी का चुनाव विवाह पूर्व हुए आपसी समझौते के आधार पर करेगी। जिंदगी में आने वाले तमाम अनापेक्षित जोखिमों का पूर्व आकलन करने में ये लोग कितने सक्षम होंगे, इसका पता नहीं। इनमें से ज्यादातर साथी पार्टनर में लिविंग मैनर्स, एटीट्यूड व फाइनेंशियल सिक्योरिटी आदि को ही मुख्य रूप से तव्वजो दिया जायेगा। ये सब काम एक छत के नीचे एक साथ रह कर किया जायेगा। भावावेश, इन्हीं सब नजदीकियों के बीच आपसी शारीरिक सम्पर्क या संबंध हो जाने से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। एक ओर जहां युवाओं में यौन उन्मुक्तता के प्रति स्वछंदता व स्वतंत्रता का विस्तार होगा, वहीं उनके सामाजिक स्तर में गिरावट आने की भी संभावना बढ़ जायेगी। इसी कॉन्ट्रेक्ट के बीच अगर गैर इरादतन किसी बच्चे की पैदाइश हो जाने या आपसी रजामंदी टूटने व अलगाव जैसी स्थिति में बच्चों के भविष्य के प्रति किसकी जवाबदेही सुनिश्चित करी जायेगी।
देखा जाये तो अभी तक अपने देश में होने वाले पारंपरिक विवाह से तलाक व बच्चों की परिवरिश जैसे मामलों का प्रतिशत न के बराबर है। फिर इस लिविंग टुगेदर से निकले हुए तलाकशुदा स्त्री या पुरुष अपने भविष्य के दूसरे जीवन साथी के लिए कितने भरोसेेमंद होंगे या फिर शादी के लिए दूसरा कॉन्ट्रेक्ट होगा। कुल मिलाकर लिव-इन रिलेशनशिप से बने इस नये वैवाहिक रिश्ते के फायदे और नुकसान की जांच-पड़ताल पूर्व में ही कर लेनी आवश्यक है। साथ ही यह भी देखना है कि ऐसे जोड़े अपनी जिंदगी और कॉन्ट्रेक्ट में अगर सफल भी हो गये तो क्या समाज से इन्हें विवाह जैसे पवित्र सामाजिक रिश्तों की बराबरी का दर्जा मिल पायेगा?

Sunday, April 4, 2010

सच्ची इबादत वही जो सब कुछ भुला दे



इबादत हो, पूजा हो या कोई अन्य काम। इस कदर मन लगाया जाए कि सिवाए उसके किसी और का जरा भी ख्याल न रहे। उसके सिवा सब कुछ भूल जाए। फिर किसी और चीज के होने का मतलब ही खत्म हो जाए। अर्जुन को जब चिडिय़ा की आंख भेदनी थी, तो उसका सारा ध्यान चिडिय़ा की आंख पर था।

एक मुसलमान शासक अपनी सीमा में सिपाहियों के साथ जंगल की तरफ जा रहा था। रास्ते में ही नमाज का समय हो गया। खुदा की इबादत करने के लिए वह रुका तथा जंगल में ही वह नमाज अदा करने लगा। इसी वक्त उसकी जानमाल पर से ही एक लड़की तेजी से भागती हुई निकल गई। उस समय तो उसने कुछ नहीं कहा, नमाज खत्म होते ही उसने अपने सिपाहियों को आदेश दिया कि- जो कोई भी अभी यहां से गुजरा है, जाओ उसे पकड़ कर मेरे सामने लाओ। थोड़ी देर में ही सिपाहियों ने उस लड़की को पकड़ कर उसके सामने हाजिर कर दिया। नमाजी शासक ने उस लड़की से पूछा- लड़की? तूने मेरी पाक इबादत में खलल डालने की जुर्रत कैसे की? क्या तू देख नहीं रही थी कि मै उस वक्त नमाज पढ़ रहा था? लड़की ने कहा -गुस्ताखी माफ हुजूर! लेकिन मुझे कुछ भी याद नहीं कि मैने आपकी पाक इबादत को जरा भी खराब किया हो। मैं कहां से गुजरी, इसका भी मुझे पता नहीं। वास्तव में, मेरे प्रेमी के आने का वक्त हो गया था मैंं तो केवल अपने प्रेमी से मिलने जा रही थी। इसके अलावा मुझे और कुछ याद नहीं आ रहा।
देखने वाली बात यह है कि खुदा की इबादत करने वाला और वह लड़की जो अपने प्रेमी से मिलने भागी जा रही थी, दोनों की स्थिति किसी हद तक बिल्कुल एक जैसी है। दोनों ही प्रेम में हैं। एक की इबादत का समय हो गया तो वह वहीं नमाज पढऩे लग गया। दूसरी ओर वह लड़की जो अपने प्रेमी से मिलने जाने के लिए बेसुधबुध भागती जा रही थी। दोनों की दीवानगी में थोड़ा फर्क जरूर है। प्रेमिका लड़की की अपने प्रेम के प्रति दीवानगी इस कदर हो जाती है कि वह इसके आगे सब कुछ भुला बैठती है। उसको केवल एक ही चीज याद रहती है कि किसी भी तरह से अपने प्रेमी के पास पहुंचना है। वहीं दूसरी ओर उस मुसलमान शासक की इबादत तो है, परंतु उसको और भी चीजें याद रहती हैं। वह प्रेमिका लड़की जब उस नमाजी शासक से कहती है कि मैं तो केवल एक इंसान की मोहब्बत में इस कदर पागल हो उठी कि मुझे किसी और चीज का जरा भी ख्याल नहीं रहा, मैं तो केवल अपने प्रेम को पाने के लिए ही भागी जा रही थी। आपकी मोहब्बत तो खुदा से है, और आप तो खुदा की पाक इबादत करने में मशगूल थे। माफ करियेगा, आपकी इबादत तो सबसे बढ़कर होनी चाहिए।
खुदा की इबादत हो, भगवान की पूजा या कोई अन्य काम। उसमें इस कदर मन लगाया जाय कि उसके अलावा किसी और का जरा भी ख्याल न रह जाय। स्थिति बिल्कुल वैसी ही हो कि उसके सिवा सब कुछ भुला दे। फिर किसी और चीज के होने का मतलब ही खत्म हो जाए। जब किसी भी काम में तन्मयता व प्रगाढ़ता इस कदर बढ़ती है तो अक्सर ऐसा ही होता है जैसा कि उस प्रेमिका लड़की के साथ हुआ। हम देखते हैं कि जब किसी भी काम में हमारा मन पूरी भाक्ति के साथ प्रयास करता है तब चूक होने का कोई मतलब ही नहीं रह जाता है। अर्जुन को जब चिडिय़ा की आंख को निशाना लगाना था, उस समय उनके समकक्ष और भी कई धनुर्धर मौजूद थे। परंतु, अर्जुन व उन सबके बीच में भी लगभग यही फर्क था। इसी कारण किसी को केवल पेड़ दिखा, किसी को डाल दिखी और किसी को चिडिय़ा भी दिखी। लेकिन, चिडि़य़ा की आंख केवल अर्जुन को ही दिखी। क्योंकि अर्जुन को आंख के सिवा कुछ और याद ही न रहा। अर्जुन ने किसी और चीज को ध्यान ही नहीं दिया। आंख के अलावा कुछ और याद ही नहीं रखा। हम अनुभव करें कि हमने अगर जीवन में पहले कभी इस तरह का प्रयास किया हो, जिसमें कार्य के सिवा किसी और की उपस्थिति ही न हो, और स्थिति यहां तक आती है कि वहां पर अपने होने का भी अर्थ न रहे। मन पूरी तरह से एक ही चीज में रम जाए। इस समय पूरे शरीर की सभी शक्तियां एकजुट हो जाती हैंै, और समग्र शक्ति का रूप ले लेती हैं। पूरे शरीर की ऊर्जा व तमाम शक्तियां एकीकृत होकर केवल एक जगह ही प्रयुक्त होती हैं। अपने अंदर एक ऊर्जा का चक्र निर्मित होता रहता है। फिर बाहर की आवाजों से, शोरगुल से या किसी की भी आवाजाही से अंदर का ध्यान भंग होने का जरा भी खतरा नहीं होता है। जिस तरह से समुद्र की भयंकर लहरें ऊपरी सतह पर कितना ही शोरगुल करती हैं, कितने ही उफान पर होती हैं। लेकिन, इन सबसे समुद्र की भीतरी सतह पर या गहराई में जरा भी फर्क नहीं पड़ता। अंदर से समुद्र बिल्कुल शांत रहता है। उसकी अंदरूनी शांति को ऊपरी लहरें जरा भी भंग नहीं कर पाती हैं। जब कोई भी बात अंदर से जुडऩे लगती है तो बाहरी चीजें भूल ही जाया करती हैं, गहराई में ले जाने से ही बाहरी अड़चनों से छुटकारा मिल सकता है। सच्चे अर्थों में वही पाक इबादत ही हो जाया करती है। प्रेमिका लड़की की बात को वह मुसलमान शासक बहुत अच्छी तरह से समझ गया था तथा अपनी नजरों में ही उसने अपने आपको उस लड़की के मुकाबले बहुत छोटा महसूस करने लगा और अपने लाव-लश्कर के साथ वहां से अपनी सल्तनत के लिए रवाना हो गया।

अच्छी यादों से बनाएं जिंदगी को हैप्पी



जिंदगी के हर पारिवारिक रिश्तों के लिए खुशनुमा यादों का होना बहुत आवश्यक है, क्योंकि हर एक की जिंदगी हर समय खुशहाल व आनंदित रह सके। इसी के साथ हमें अपने आज की बातों व अपने हर एक काम पर भी निगाह करनी बहुत जरूरी है कि जिससे आने वाले कल में कोई भी कटु याद हमारे जीवन का हिस्सा न बन सके।

समय धीरे-धीरे कब गुजर जाता है पता ही नहीं चलता। आज का समय व बातें कब यादों का रूप ले लेती हैं, बिल्कुल मालूम ही नहीं हो पाता है। इन सबका अंदाजा तब होता है जब हम उससे बहुत आगे निकल आ चुके होते हैं। उस समय का वर्तमान आज इतिहास बन जाता है। जिंदगी के चलते अक्सर यही इतिहास यादों के रूप में हमारे सामने आ खड़ा होता है। जिनमें से अच्छी यादें हमारी जिंदगी को ऊर्जा देती हैं, वहीं बुरी यादें हमारे जीवन को निराशा में भी बदल सकती हैं। इसलिए जरूरी है कि हम अभी से ही आने वाली जिंदगी के लिए अच्छी यादों का सामान जुटाना चालू कर दें।
पढ़ाई, नौकरी व रोजगार यह सब कुछ जिंदगी भर चलता है, इन्हीं सबके साथ हमारी यादें भी जुड़ी रहती हैं। पारिवारिक रिश्ते हों या फिर दोस्त-व्यवहारी, हर एक के साथ बिताया हुआ हर लम्हा एक समय केवल याद बन कर रह जाता है। बीते दिनों के ही कुछ क्षण अक्सर हमें याद आते हैं। इनमे से ही कुछ बातें सुनहरी यादें बन जाती हैं, जो हमें हंसाती हैं तथा जिससे जीवन में नई जान आ जाती है। ये यादें जीवन के तनाव को भी दूर कर देती हैं। वहीं दूसरी ओर दिल को खटकने वाली यादें भी होती हैं, जो जीवन की कुछ बातों की कटु यादों से दिल व मन दोनो दुखी हो जाते हैं। परिणाम स्वरूप जिंदगी कभी-कभी बेजान व निराश भी दिखने लगती है। जिंदगी की इस पूरी दौड़ में कभी भी सब कुछ एक सा नहीं रहता है। उस वक्त तो हम इस पर गौर नहीं करते हैं, परन्तु अनजाने में ही सब कुछ अपने आप रिकॉर्ड होता चला जाता है। समय बीत जाने पर यही सब बातें ही एक दिन यादें बनकर सामने आती- जाती हैं। अब बात हमारे ऊपर है कि हम अपने जीवन को किस तरह की यादें दे रहे हैं तथा आने वाली जिंदगी से किस तरह की यादें चाहते हैं? हम आज जो कुछ भी करते हैं वह सब आगे चलकर आने वाली यादों का ही हिस्सा है। अगर हम सुनहरी यादों की कल्पना करते हैं तो निश्चित रूप से ऐसी यादों का इंतजाम हमें अभी से ही करना पड़ेगा। बढ़ती हुई जिंदगी का बीती हुई जिंदगी से गहरा संबंध बना होता है। अक्सर जीवन के किसी मोड़ पर हम अपनी पिछली जिंदगी में चले जाते हैं। हमारी पूर्व की अनुभूति फ्लैश -बैक की तरह हमारी आंखों के सामने आ जाती है। कल की रंगों भरी जिंदगी कब यादों के रूप में काली सफेद छाया की तरह कैद होकर रह जाती है, इसका आभास समय बीत जाने पर ही हो पाता है। बचपन के खेल की यादें, पढ़ाई-लिखाई के समय की बातें या फिर किशोरपन का मस्त मौला जीवन: सब कुछ हमारे सामने किसी फिल्म के फ्लैश-बैक की तरह से हमारी आज की जिंदगी से जुड़ा रहता है और जीवन की पिछली तस्वीरें दिखाता चला जाता है। हम अपनी पिछली जिंदगी की अच्छी तस्वीरें देखकर तो खुश हो उठते हैं, वहीं कुछेक यादें हमें अंदर तक झकझोर भी जाती हैं। ऐसा होने पर मन अंदर से डरता भी है व बीते हुए कल पर अफसोस भी करता है, लेकिन आज इसका कोई इलाज भी नहीं होता है। ऐसी स्थिति में मन तनावग्रस्त व निराशावादी भी हो सकता है। एक फिल्म में बहुत अच्छी बात भी कही गई है कि- जब कभी अपने जीवन में उदास या परेशान हों तब अपनी पिछली जिंदगी के 'हैप्पी सीन याद करें तो झट से ही अपनी जिंदगी में एक नई ताजगी पाएंंगे। सच भी है कि जीवन की अच्छी यादें ही हमारे जीवन को उत्साह से भर देती हैं।
वास्तुशास्त्र की किताबों में भी घर में पूरे परिवार के लोगों का हंसता व मुस्कराता हुआ फोटो लगानेे की बात लिखी है। जिससे परिवार के सदस्यों के बीच एक सौहाद्र्रपूर्ण व खुशनुमा वातावरण देखने को मिलता है। खुशी के माहौल का पारिवारिक फोटो सभी सदस्यों के बीच नकारात्मक ऊर्जा को सकारात्मक दिशा देता है। ऐसे हंसते मुस्कराते चित्र पुरानी अच्छी यादें ताजा करने का काम करते हैं। जिससे निजी संबंधों में आपसी मतभेद व मनमुटाव की संभावना भी कम हो जाती है तथा आपस में मेलजोल भी बढ़ता है।
जीवन के हर पल में अच्छी अनुभूति करना बहुत जरूरी है। यही आगे चलकर हमारा अनुभव बन जाती है। आने वाली जिंदगी में बीते हुए दिनों से सबक लिया जा सकता है तथा जरूरत के समय इन्हीं अच्छी यादों के सहारे से जिंदगी को नई ऊर्जाभक्ति से भरा जा सकता है। बीते दिनों की यादों को भुलाना बहुत मुश्किल भरा काम भी होता है। हम अक्सर इस तरह की यादों को भूलने से भी नहीं भूल पाते हैं और मन हमेशा उसी में अटका सा रह जाता है। एक समय ऐसी अनचाही यादें हमारे जीवन के अमूल्य क्षणों को बर्बाद कर जीवन को नीरस कर देती हैं। इसलिए, आज इस बात की अहम जरूरत है कि हम अपने जीवन को कटु यादों से बचा कर रखें। जिंदगी के हर पारिवारिक रिश्तों के लिए खुशनुमा यादों का होना बहुत आवश्यक है, क्योंकि हर एक की जिंदगी हर समय खुशहाल व आनंदित रह सके। इसी के साथ हमें अपने आज की बातों व अपने हर एक काम पर भी निगाह करनी बहुत जरूरी है कि जिससे आने वाले कल में कोई भी कटु याद हमारे जीवन का हिस्सा न बन सके।