Thursday, July 8, 2010

देवों के भी देव हैं बाबा अमरनाथ बर्फानी


अमरनाथ बर्फानी की यात्रा शुरू हो चुकी है। साल-दर-साल बाबा के दरबार में पहुंचने वालों की तादात बढ़ती ही जा रही है। देश के कोने-कोने से लाखों श्रद्धालु एवं भोले के भक्तजन पवित्र गुफा में प्राकृतिक रूप से र्निमित शिव लिंग के दर्ान करने पहुंचते हैं। पुराणों में संस्मरण है कि एक बार मां पार्वती ने शिव जी से गले में पड़े नरमुण्ड माला डाले रहने तथा अमर होने का कारण व रहस्य जानने की उत्सुकता प्रकट की। भगवान शंकर भी अमर होने का रहस्य बताने को तैयार हो गये, परंतु उन्होंने पार्वती जी से एकान्त व गुप्त स्थान पर अमर कथा सुनने को कहा। जिससे कि अमर कथा को कोई भी जीव, व्यक्ति और यहां तक कोई पशु-पक्षी भी न सुन ले। क्योंकि जो कोई भी इस अमर कथा को सुन लेता, वह अमर हो जाता। इस कारण शिव जी पार्वती को लेकर किसी गुप्त स्थान की ओर चल पड़े। सबसे पहले भगवान भोले भांकर नें अपनी सवारी नन्दी को पहलगाम पर छोड़ दिया, इसीलिए बाबा अमरनाथ की यात्रा पहलगाम से शुरू करने का तात्पर्य या बोध होता है। आगे चलने पर शिव जी ने अपनी जटाओं से चन्द्रमा को चंदनवाड़ी में अलग कर दिया तथा गंगा जी को पंचतरणी में और गले में सर्पों को शेषनाग पर छोड़ दिया, इस प्रकार इस पड़ाव का नाम शेषनाग पड़ा। आगे की यात्रा में अगला पड़ाव गणेश टॉप पड़ता है, इस स्थान पर बाबा ने अपने पुत्र गणेश को भी छोड़ दिया था, जिसको महागुणा का पर्वत भी कहा जाता है। पिस्सू घाटी में पिस्सू नामक कीड़े को भी त्याग दिया। इस प्रकार महादेव ने अपने पीछे जीवनदायिनी पांचों तत्वों को भी अपने से अलग कर दिया। इसके बाद मां पार्वती संग एक गुप्त गुफा में प्रवेश कर गये। कोई व्यक्ति, पशु या पक्षी गुफा के अंदर प्रवेश कर अमर कथा को न सुन सके इसलिए शिव जी ने अपने चमत्कार से गुफा के चारों ओर आग प्रज्जवलित कर दी। फिर शिव जी ने जीवन की अमर कथा मां पार्वती को सुनाना शुरू किया। भाग्यवश कबूतर के एक जोड़े ने इस अमर कथा को कहीं चुपके से सुन लिया। अत: यह कबूतर का जोड़ा अजर व अमर हो गया। आज भी पवित्र गुफा के समीप यह कबूतर का जोड़ा किन्हीं भक्तों को दिखाई पड़ जाता है। और इस तरह से यह गुफा अमर कथा की साक्षी हो गई व इसका नाम अमरनाथ गुफा पड़ा। जहां गुफा के अंदर भगवान शंकर बर्फ के प्रकृति द्वारा निर्मित शिवलिंग के रूप में विराजमान हैं। पवित्र गुफा में मां पार्वती के अलावा गणेश के भी अलग से बर्फ से निर्मित प्रतिरूपों के भी दर्शन करे जा सकते हैं। इस पवित्र गुफा की खोज के बारे में पुराणों में भी एक कथा प्रचलित है कि एक बार एक गड़रिये को एक साधू मिला, जिसने उस गड़रिये को कोयले से भरी एक बोरी दी। जिसे गड़रिया अपने कन्धे पर लाद कर अपने घर को चल दिया। घर जाकर उसने बोरी खोली। वह आश्चर्यचकित हुआ, क्योंकि कोयले की बोरी अब सोने के सिक्कों की हो चुकी थी। इसके बाद वह गड़रिया साधू से मिलने व धन्यवाद देने के लिए उसी स्थान पर गया, जहां पर वह साधू से मिला था। परंतु वहां पर उसे साधू नहीं मिला, बल्कि उसे ठीक उसी जगह एक गुफा दिखाई दी। गड़रिया जैसे ही उस गुफा के अंदर गया तो उसने वहां पर देखा कि भगवान भोले शंकर बर्फ के बने शिवलिंग के आकार में स्थापित थे। उसने वापस आकर सबको यह कहानी बताई। और इस तरह भोले बाबा की पवित्र अमरनाथ गुफा की खोज हुई और धीरे-धीरे करते दूर-दूर से भी लोग पवित्र गुफा एवं बाबा के दर्ान को पहुंचने लगे। बाबा भोलेनाथ की यह पवित्र गुफा पहलगाम से ३८८८ मीटर या लगभग ४६ किमी. दूर है। हिन्दू धर्म में देवों के देव कहे जाने वाले भोले भंडारी की अमरनाथ यात्रा हिन्दी मास के आषाढ़ पूर्णमासी से श्रावण मास की पूर्णमासी तक होती है, जो अंग्रेजी माह जुलाई से अगस्त तक लगभग ४५ दिन तक चलती है। जम्मू-कश्मीर सरकार द्वारा पवित्र अमरनाथ गुफा के दर्शन हेतु जाने वाले सभी श्रद्धालुओं की जरूरतों एवं सुविधाओं की पूरी व्यवस्था की जाती है। अमरनाथ श्राइन बोर्ड द्वारा यात्रियों के लिए हर दो-तीन किलो मीटर की दूरी पर टॉयलेट, शेड, शेल्टर, प्राथमिक चिकित्सा व मेडिकल सुविधा भी सुलभ कराता है। अमरनाथ यात्रा के लिए सरकार हेलीकॉप्टर सुविधा भी उपलब्ध कराती है। यात्रियों के खाने-पीने के लिए देशभर से कई सेवा मंडल समितियां पूरे रास्ते नि:शुल्क लंगर की व्यवस्था भी करती हैं। श्रद्धालुओं की श्रद्धा इतनी अधिक होती है कि कहीं-कहीं पर दुर्गम रास्ता व सुरक्षा का तनिक भी खतरा महसूस नहीं होता। सरकार द्वारा नियुक्त सीआरपीएफ, भारतीय थल सेना व अद्र्धसैनिक बल के जवान चौबीस घंटे अपनी ड्यूटी में मुस्तैद रहते हैं और भोले के भक्तों को बाबा अमरनाथ बर्फानी के दर्शन कराते हैं। और बाबा के भक्त भी सुरक्षित भाव से बम-बम भोले जयघोष के साथ अपनी यात्रा पूरी करते जाते हैं।