Friday, January 29, 2010

आधुनिक दौर में अध्यात्म के मायने



देव गुरुओं की वाणी कर्णप्रिय लगती है वहीं पर इनकी नैतिकता, सदाचार व आपसी निष्पाप भाव की बातें सुनने से मन निर्मल होने लगता है। आध्यात्मिक बोध के पनपने से जब हम इसे अपने जीवन में उतारते हैं तो मन-मस्तिष्क से सारा बोझ खत्म मालूम पड़ता है तथा इस समय जीवन के असली अर्थ को समझा जा सकता है।

आज हम सब आधुनिक शैली से जी रहे हैं। जिंदगी की इस व्यस्ततम आपाधापी में थकान व कभी-कभी मन की अशांति का भी अनुभव होने लगता है। आधुनिकता भरे इस माहौल में आध्यात्मिकता का होना बहुत आवश्यक है। मन के आध्यात्मिक होने से दिन भर की थकावट, मन की बढ़ती बेचैनी से तो बचाव होता ही है, साथ ही नई ऊर्जा का संचार भी किया जा सकता है। इन सबका लाभ सत्संग, कीर्तन-भजन, आध्यात्मिक धर्म ग्रंथ व किताबों आदि को पढ़कर या किसी देवगुरु के सानिध्य में रहकर उठाया जा सकता है।
आधुनिक युग में आध्यात्मिक माहौल बनाना बहुत आवश्यक है। यह मानसिक स्थिरता के साथ चित्त की शांत अवस्था के लिए बहुत हितकर है। यह क्रिया अपनी दिन भर की भागमभाग दिनचर्या के कारण आई शारीरिक थकावट को दूर करती हैै। नई स्फूर्ति देने के साथ सकारात्मक विचारों का सृजन भी अध्यात्म से होता है। इसमें नियमित रूप से लिप्त होने पर जीवन की नकारात्मकता का भी हृास अपने आप होता जाता है तथा पॉजिटिव एनर्जी हमारे शरीर और मन-मस्तिष्क पर असर करना शुरू करती जाती है। हमारे चित्त में आध्यात्मिकता के बोध से ही हमारा जीवन प्रासंगिक हो सकता है। यह बहुत आवश्यक व शुरुआती अभ्यास है, फिर धीरे-धीरे इसकी संवेदनशीलता बढऩे से इसकी उपयोगिता व सार्थकता गहराई से समझी जा सकती है। हम सब इस तरह से है कि जैसे मान लें हमारा पूरा शरीर बिल्कुल एक मोबाइल की तरह से होता है और इसकी उपयोगिता व अर्थ तब ही होता है जब इसमें हृदय रूपी ठीक तरह से चार्जड बैटरी लगी हो। अगर किसी मोबाइल की बैटरी डिस्चार्ज है या पूरी तरह से चार्ज नहीं है तो इसका ज्यादा देर तक उपयोग नहीं किया जा सकता है और एक समय यह बेकार हो जाता है। जिस तरह से किसी भी बैटरी को नियमित रूप से प्रयोग में लाने के लिए उसकी चार्जिंग जरूरी होती है। उसी तरह हृदय या अपने चित्त की भी नियमित चार्जिंग बहुत आवश्यक होती है। जिससे ही हमें मन के आध्यात्मिक होने का बोध होता है तथा जीवन रस पूर्ण हो सकता है। उदाहरण के तौर पर तमाम मोबाइल रूपी मानव जीवन हमारे चारों ओर देखे जाते हैं। हिंदू, मुस्लिम, सिख व इसाई जिनमें प्रमुख रूप से हैं, और इन सभी के धार्मिक स्थल हमें अपनी पूरी धार्मिकता व आध्यात्मिकता का बोध कराते हैं तथा अपना सार पूर्ण अर्थ बताते हैं। मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे और चर्च इन सभी में हृदय व चित्त को पूरी तरह से चार्ज करने की क्षमता व गुणधर्म मौजूद रहता है। यहां पर भजन-कीर्तन, प्रार्थना व नमाज करने से हृदय व मन-मस्तिष्क को पूरा आराम भी मिलता है। इन धार्मिक स्थलों में नियमित रूप से आने जाने से हम अपनी हृदय रूपी बैटरी को फुल चार्ज कर सकते हैं। चार्ज न करने की लापरवाही या अनियमितता पाये जाने पर बैटरी की क्षमता व बैक-अप पर गहरा असर देखा जाता है। उसी प्रकार चित्त की संवेदनशीलता पर भी प्रभाव पड़ता है। जैसे कभी-कभी कोई बैटरी डीपली डिस्चार्ज हो जाने से उसे तुरंत उपयोग में नहीं लाया जा सकता। इसी प्रकार अंत:करण की असंवेदनशीलता से हम अपने धर्म व अध्यात्म के बारे में अनजान रहते हैं। ये सभी धार्मिक स्थल हमारे चित्त को अच्छी तरह से चार्ज करने व रखने में बहुत सक्षम होते हैं। किसी भी मोबाइल की बैटरी को पॉवरफुल होते हुए भी अपनी ताकत व मूल्य का तनिक भी अंदाजा नहीं होता जबकि हम अपने चिंतनशील मस्तिष्क से अपने अन्त:करण की आंतरिक शक्ति को पहचान सकते हैं तथा अपने अस्तित्व को अच्छी तरह से जान सकते हैं। हम अपने हृदय को अध्यात्मिक रखने के लिए धार्मिक ग्रंथ व किताबें भी हमें जीवन का सार समझाने की रसधार छोडऩे का काम करती हैं। जिस पर मन असीम आनंदित व प्रफुल्लित होता है। अपने समाज के विभिन्न धर्मों के ग्रंथ जैसे रामायण, गीता, बाइबिल, कुर्रान व गुरुग्रंथ साहिब आदि ग्रंथों को पढऩे से भी मन की अशांति को दूर किया जा सकता है तथा इनसे अपने जीवन के लिए प्रेरणा ली जा सकती है। देव गुरुओं की वाणी कर्णप्रिय लगती है वहीं पर इनकी नैतिकता, सदाचार व आपसी निष्पाप भाव की बातें सुनने से मन निर्मल होने लगता है। आध्यात्मिक बोध के पनपने से जब हम इसे अपने जीवन में उतारते हैं तो मन-मस्तिष्क से सारा बोझ खत्म मालूम पड़ता है तथा इस समय जीवन के असली अर्थ को समझा जा सकता है। इनके प्रेरक प्रसंग व प्रवचन पूरे अंत:करण को स्वच्छ व निर्मल करने की अपार क्षमता रखते हैं तथा ईश्वरीय ज्ञान का दरवाजा भी यहीं से खुलता है। देवगुरुओं के सानिध्य में रहते हुए इनमें ईश्वर, अल्लाह, जीसस व अपने इष्टदेव की देवमूर्ति व साक्षात छाया देखने को मिलती है तथा इनके अद्भुत चमत्कार भी समय-समय पर देखे जा सकते हैं। बढ़ती आधुनिकता के साथ अपने मन व हृदय को आध्यात्मिक बनाने के लिए हमें स्व प्रयास करने होंगे ताकि हम इस असीम भाक्ति व ऊर्जा से अछूते न रह जाए। धार्मिक स्थलों में जाने से या धार्मिक ग्रंथों को पढऩे से मन-मस्तिष्क में एक झुनझुनी सी होने लगे और शरीर में एक करंट सा दौडऩे लगे। हमारी हृदय की बैटरी चार्ज हो रही है। फिर इन सबको अपने जीवन में उतारने से या अपने देव गुरु के सानिध्य में रहकर अपने देव की झलक भी दिखने लगेगी व चमत्कार होते भी दिखेंगे।

Friday, January 22, 2010

सबसे बड़ा है मां-बाप का समर्पण



बच्चों की परवरिश से लेकर इनकी नौकरी, रोजगार में सफल होने तक अभिभावक अपना सर्वस्व जीवन बच्चों के भविष्य बनाने में हंसते-हंसते न्योछावर कर देते हैं। उद्देश्य केवल एक ही होता है कि किसी भी तरह बच्चे को मन वांछित सफलता मिल जाये तथा बच्चा किसी अच्छे काम-धंधे में लग जाये। पूरे परिवार की मेहनत रंग भी लाती है।

हर मां-बाप का सपना होता है कि बच्चा पढ़ लिख, बड़ा हो कर ऐसा काम करे कि उनका नाम हो। इसके लिए हर एक मां-बाप को भी बहुत मेहनत करनी पड़ती है तथा बड़ा कष्ट उठाना पड़ता है। तब जाकर कहीं वह स्थिति आती है कि बच्चा अपनी पढ़ाई-लिखाई अच्छी तरह से पूरी कर किसी अच्छी नौकरी व काम पाने के काबिल बन पाता है। लेकिन, अच्छे कॅरियर व तरक्की के लिए अक्सर लोगों को अपना शहर या घर मजबूरन छोडऩा भी पड़ जाता है।
नतीजन, घर से दूर जाकर बच्चा नाम तो खूब कर लेता है और पैसा भी ठीक-ठाक कमा लेता है, पर उम्र के इस पड़ाव में मां-बाप अकेले छूट जाते हैं तथा इस स्थिति में कभी-कभी बूढ़े हो चले माता-पिता एक-पर-एक एकाकी जीवन बिताने को भी मजबूर हो जाते हैं। यह भी मां-बाप की जिंदगी का ऐसा सच होता है कि अपने ऐश और आराम की परवाह किये बिना अपने बच्चों का भविष्य संवारना ही इनकी जिंदगी की सर्वोपरि प्राथमिकता होती है। इसके लिए माता-पिता अपने बच्चों के लिए क्या कुछ नहीं करते हैं। बच्चों की परवरिश से लेकर इनकी नौकरी, रोजगार में सफल होने तक अपना सर्वस्व जीवन बच्चों के भविष्य बनाने में हंसते-हंसते न्योछावर कर देते हैं। उद्देश्य केवल एक ही होता है कि किसी भी तरह बच्चे को मन वांछित सफलता मिल जाये तथा बच्चा किसी अच्छे काम-धंधे में लग जाये। पूरे परिवार की मेहनत रंग भी लाती है। लेकिन, संयोगवश ही कोई अपनी चाहत व पसंद का काम-धंंधा करके अपने माता-पिता व परिवार के साथ रह पाता है। नहीं तो, अक्सर यही होता है कि छोटे-छोटे शहरों में रहने वाले लोग अपने कॅरियर की बढ़त व तरक्की की ऊंची उड़ान के लिए बड़े शहरों का चुनाव करते हैं। क्योंकि छोटे शहरों में प्रतियोगात्मक सुविधाएं कम देखी जाती हैं। कभी-कभी परिस्थितिवश पोस्टिंग ही अपने घर से दूर शहर हो जाया करती है।
इस कारण माता-पिता घर में अकेले पड़ जाते हैं। पहले के समय में जब संयुक्त परिवार एक साथ रहा करते थे तब यह समस्या ज्यादा नहीं जान पड़ती थी। परंतु, अब एकल परिवार हो जाने तथा उसके बाद छोटे-छोटे परिवार होने के साथ इस बात का एहसास बढ़ता जा रहा है। आज जब किसी परिवार में एक या दो बच्चे ही हैं, लड़की की शादी हो जाने से वह अपने घर चली गई और लड़का घर से दूर शहर में नौकरी कर रहा है, ऐसी स्थिति में इन परिवारों के माता-पिता का अकेलापन देखने को मिलता है। कोई भी माता-पिता अपने बच्चे के सुंदर भविष्य के लिए शुरू से ही सपना देखने लगते हैं। इसकी पूरी तैयारी भी करते हैं तथा इस ओर कोई भी कोर-कसर छोडऩा नहीं चाहते। बच्चे के एक बार अच्छी तरह सेटल या किसी नौकरी में स्थापित होने के साथ राहत व संतुष्टि की सांस लेते हंै। तब जाकर माता-पिता अपनी जिम्मेदारी का पूरा निर्वहन समझते हैं। बच्चों का भविष्य संवारने में तो ये माता-पिता सफल हो जाते हैं व इनके बच्चे अच्छी तनख्वाह व पैसे बनाने में कामयाब भी हो जाते हैं लेकिन, मलाल केवल इस बात का होता है कि अपने बच्चे साथ में नहीं रह पाते हैं। अपने घरों से दूर शहर या विदेशों में रहने वाले ऐसे बच्चे बड़ी मुश्किल से अपने परिवार के संग रहकर खुशियां बांट पाते हैं।
आज के ऐसे प्रतिस्पर्धात्मक एवं गलाकाट प्रतियोगिता भरे दौर में अपने काम से ज्यादा समय तक छुट्टियां लेना संभव नहीं हो पाता है। यहां तक की बड़े-बड़े त्योहार की छुट्टियां इनके आवागमन या सफर में ही निकल जाने से पारंपरिक पर्वों या शुभ अवसरों पर भी अपने परिवार के संग होने में लाचार होते हैं। कभी-कभी साल दो साल बाद ही एक दूसरे के चेहरे को देख पाते हैं। ऐसी स्थितियों में चाह कर भी आने-जाने में लाचार बच्चे व असहाय मां-बाप एक दूसरे से अपनी खुशी फोन या मोबाइल पर बात कर बांट लेते हैं। मोबाइल या इंटरनेट से मैसेज भेजकर, नये साल, होली, या दीवाली जैसे बड़े त्योहारों पर ग्रीटिंग कार्ड भेजकर अपनी-अपनी खुशियां जाहिर कर लेते हैं। मां-बाप के अकेले रहने पर इनकी देखभाल, खाना-पीना, जरूरत का सामान, दवा या स्वास्थ्य सब कुछ कहीं हद तक घर के नौकरों पर ही टिका होता है। दोनों में से किसी के बीमार हो जाने पर दवा वगैरह का इंतजाम भी किसी तरह होता है। दोनों का एकाकी जीवन किसी तरह एक दूसरे के सहारे चला करता है। अपने तन्हां जीवन में अपने बच्चों की याद आने पर फोन या मोबाइल पर बतियाने के अलावा और कोई सहारा नहीं होता। इतना सब होने पर भी बच्चों की खुशी में ही इनकी खुशी देखी जाती है।
अपनी पूरी जिंदगी अपने बच्चों के नाम समर्पित कर देते हैं तथा उनसे सुख की कोई चाह भी नहीं देखी जाती है। बुढ़ापे में भी इनके चेहरे पर संतुष्टि का अहसास देखा जाता है। इन्हें किसी भी तरह का कोई मलाल नहीं व बच्चों के साथ न रह पाने का गम बच्चों की खुशी के आगे कोई मायने नहीं रखता। माता-पिता का पूरा समर्पण बच्चों के स्वर्णिम भविष्य में ही निहित होता है तथा ऐसा करके ही ये अपना जीवन सफल समझते हैं। ऐसे बच्चों को भी अपने मां-बाप को भूलने की भूल कतई नहीं करनी चाहिए।

Friday, January 15, 2010

आज की बचत से ही होगा सबका फायदा



छोटी-छोटी बचत या धन निवेश ही हमारे परिवार के भविशय में आने वाले तमाम खर्चे जैसे लड़कियों के शादी-ब्याह, घर, बच्चों की पढ़ाई-लिखाई या काम-धंधों में लगने वाली एक साथ पूंजी का एक मुफ्त समाधान कर देती है। आज की थोड़ी समझदारी व हामारा निवेश प्रबंधन ही आने वाली वृद्धावस्था में पैसे का सहारा व आराम का पूरा इंतजाम कर देती हैै।

पैसा सब कुछ नहीं रहा, परंतु पैसों की सबको हमेशा जरूरत रही। आज पैसे का ही हर तरफ बोलबाला है। क्योंकि पैसे के बगैर भी कुछ नहीं। आज जिंदगी व परिवार चलाने के लिए पैसे का ही अहम किरदार देखा जाता है। कोई पैसे का प्रयोग धर व परिवार के गुजारे के लिए करता है, तो कोई अपने ऐश और आराम के लिए। पैसे की ख्वाहिश सभी को होती है इसीलिए पैसा कमानें के लिए दिन-रात एक कर देते हैं। आज के समय में पैसा कमाना जितना मुश्किल है, उससे कहीं अधिक कठिन दिखता है पैसे को अपने भविष्य के लिए बचा कर रखना। क्योंकि अनाप-शनाप खर्च और बढ़ती महंगाई के अनुपात में कमाई के स्रोतों में कमी होती जा रही है। इसीलिए हमारी आज की एक आनुपातिक बचत ही कल हमारे बच्चों व परिवार को सुखी व समृद्ध रख सकने में अपना अहम किरदार निभायेगी। कहा जाता है कि खर्च करने की कोई आखिरी तादात नहीं होती, बस सिर्फ पैसा पास होना चाहिए। फिर भी अधिक से अधिक पैसा भी खर्चों के आगे कम ही हो जाता है, जबकि खर्चों की लिस्ट बढ़ती जाती है। ऐसे में बचत बहुत जरूरी है। फाइनेंशियल प्लानिंग का हिस्सा भी होता है कि हम मासिक खर्च की सूची बनाते समय ही अपने मासिक निवेश को तय करके उसको भी जरूरी खर्चों में रखें। अमूमन लोगों की यह प्लानिंग होती है कि सभी खर्चों के बाद ही वो किसी भी तरह के निवेश के बारे में सोचना शुरू करते हैं। इस प्रकार धन संचय का नंबर सबसे आखिर में आ पाता है। कहीं कहीं पर खर्चे पूरे नहीं हो पाते और बचत भी नहीं होती। हमारी आज की छोटी-छोटी बचत या धन निवेश ही हमारे परिवार के भविष्य में आने वाले तमाम खर्चे जैसे लड़कियों के शादी-ब्याह, घर, बच्चों की पढ़ाई-लिखाई या काम-धंधों में लगने वाली एक साथ पूंजी का एक मुफ्त समाधान कर देती है। आज की थोड़ी समझदारी व हमारा निवेश प्रबंधन ही आने वाली वृद्धावस्था में पैसे का सहारा व आराम का पूरा इंतजाम कर देती हैै। जहां तक आज की महंगाई में घर खर्च चलाना मुश्किल दिखाई पड़ता है, वहीं पर आने वाले दस बीस सालों में महंगाई की दर कहां तक पहुंच जायेगी। इस हिसाब से उस उम्र में पैसे का हिसाब-किताब व इंतजाम अभी से कर लेना सही निवेश साबित होगा। क्योंकि बुढ़ापे या ढलती उम्र में पैसा कमाना आसान नहीं होता है। किसी भी परिवार की सम्पन्नता भविष्य के लिए धन संचय में ही निहित होती है। आने वाला भविष्य हमारे जीवन का अहम हिस्सा होता है, जिस तरह से एक परिवार की सुख व समृद्धि आने वाले कल के लिए पैसे जोडऩे जैसी धन संचयन स्कीमों में निवेश करने से होती है। उसी प्रकार देश की आर्थिक प्रगति व अर्थव्यवस्था की रफ्तार भी कई तरह की स्कीमों में निवेश करने से ही होती है। देश में कई तरह की सरकारी व गैर सरकारी स्कीमों के तहत पैसा निवेश किया जा सकता है। जिसके अंतर्गत निवेशक को अपने जमा हुए पैसे के साथ अच्छा बोनस व जीवन संरक्षण या बीमा जैसी सुविधाएं भी सहज हो जाती है। इन सब स्कीमों से इकट्ठा हुआ धन देश के आर्थिक ढांचे को मजबूत करता है तथा यही पैसा सरकार की ओर से जनोपयोगी कार्यक्रमों या जनहितकारी क्रियाकलापों में लगाया जाता है। इसी धन से कई प्रकार की फैक्ट्रियों या कारखानों को लगाकर रोजगार का भी सृजन किया जाता है। किसी एक कम्पनी या कारपोरेट सेक्टर में धन के निवेश का अर्थ उसके व्यापार या उत्पादन बढऩे से होता है। इससे देश के उद्योगों को सीधे तौर पर बढ़ावा मिलता है तथा देश की आर्थिक प्रगति के साथ समाज में कई तरह के प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष लाभ देखे जाते हैं। कुल मिलाकर कम्पनी के साथ-साथ निवेशक दोनों फायदे में व लाभान्वित होते है तथा रोजगार भी सुलभ हो जाते हैं। इसी के तहत देश के प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह जी नें लोगों से निवेश बढ़ाने की अपील करी ताकि भारतीय औद्योगिक ढांचे तथा अर्थव्यवस्था को बढ़त मिल सके। सही भी है क्योंकि अक्सर देखा गया है कि विभिन्न कम्पनियों में लगाया गया पैसा ही देश की आर्थिक स्थिति को मजबूत करने के साथ विकास की गति को बढ़ाता है। बाजार कम्पनियों में पैसा जमा न करने या बाजार से पैसा खाली कर लेने से मंदी का असर देखा जाने लगता है। ऐसी स्थिति में बाजार का पैसा घरों की तिजोरियों में रखने में लोग ज्यादा सुरक्षित महसूस करते हैं। लगभग ज्यादातर निवेशकों की जब यही सोच होले लगती है तब उद्योगों के साथ अर्थव्यवस्था दोनों की हालत खराब होने लगती है। ऐसा ही एक उदाहरण अभी २००८ में देखा गया। इस साल शुरू हुई मंदी की मार से लोगों नें मार्केट से पैसा खाली कर लिया। हालत यह हो गई कि बाजार लगभग पूरी तरह से ध्वस्त सा हो गया। पूरे देश में रोजगार का भी संकट छाने लगा। इसका सीधा असर महंगाई पर भी पड़ा। पूरी अर्थव्यवस्था को जबरदस्त झटका लगा। कितने मुश्किल हालातों का सामना सबने किया और किसी तरह इन सब पर काबू पाया गया। आज की बचत अपने परिवार तथा देश दोनों के भविष्य को सुरक्षित व संरक्षित रखता है। किसी जरूरत या आकस्मिक समस्या के आ जाने पर यही बचाया गया पैसा ही हमारे तथा देश हित के काम आता है। अपनी रुचि व आवश्यकतानुसार निवेश के बेहतर विकल्प को चुना जा सकता है। सरकारी व गैर सरकारी बैंकों, डाकघरों से, सरकारी या निजी बीमा कम्पनियों या सीधे तौर पर बाजार में निवेश करके हम अपना भविष्य संवार सकते हैं।

Friday, January 8, 2010

आत्मसम्मान व स्वाभिमान के नाम पर अहं से बचें


आपसी अलगाव बढऩे व नजदीकी रिश्तों में दूरियां होने के साथ पूरा परिवार तो बिखरता ही है, साथ ही मन के अंदर भी कहीं न कहीं खालीपन व एकाकीपन महसूस किया जा सकता है। आत्म सम्मान व स्वाभिमान की बनाई गई सीमा रेखा एक समय ज्वलंत दरार के रूप में बन जाती है और अहंकार का दीपक प्रेम के जीवन को पूरी तरह से खोखला करता जाता है।
कभी खुशी कभी गम फिल्म के आखिर के एक सीन में अमिताभ बच्चन और शाहरुख खान एक दूसरे के गले लग कर खूब रोते हैं। पाश्चाताप के खूब आंसू बहाते हैं। बाप-बेटे का यह प्रेम-मिलाप हमें जीवन का अद्ïभुत संदेश देता है। पूर्व जीवन के किसी मोड़ में कुछ ऐसी स्थिति बन जाती है कि अपने स्वाभिमान को बनाए रखने के लिए अपनी कही हुई बात न मानने के लिए इन दोनों के रिश्तों के बीच बड़ी खाई अथवा दूरी बन जाती है और इस प्रकार बेटे को अपना घर मजबूरन छोडऩा पड़ जाता है। आज समाज में कई ऐसे उदाहरण सामने आ जाते है, जहां पर कुछ परिवारिक रिश्ते ऐसे ही आत्म सम्मान व स्वाभिमान की बलिदेवी पर न्योछावर हो जाते हैं तथा परिणाम स्वरूप नजदीकी रिश्तों के बीच बढ़ती हुई दूरियां तथा अकेलापन देखा जा सकता है। इस धरती पर जन्म के साथ हमें कई अनमोल रिश्ते भी मिलते हैं, जिनसे हमारा नजदीकी संबंध होता है। इन्हीं रिश्तों से ही मिलकर एक परिवार की नींव पड़ती है। समय के बदले हुए चक्र में एक आम आदमी का अधिकाधिक समय घर-ग्रहस्थी के लिए पैसा कमाने या रोजी-रोटी के बंदोबस्त में ही निकल जाता है। आज के ऐसे प्रतियोगी एवं व्यस्ततम दिनचर्या भरे माहौल में अपने परिवार के बीच व्यक्ति समय नहीं दे पाता है। जिस कारण भी कभी-कभी पारिवारिक एकता व मेल-मिलाप की समस्या बनती जाती है। आमतौर पर घर-परिवार के बीच किसी छोटी-बड़ी बात का हो जाना ज्यादा मायने नहीं रखती, परंतु किसी एक बात पर दृढ़ हो जाना किसी परिवार की सांमजस्यता के लिए बेहद खतरनाक है, वहीं पर आपसी रिश्तों में दूरी एवं दरार की भी संभावना अत्यधिक हो जाती है। नजदीकी व करीबी रिश्तों के बीच दूरियां बढऩे का कारण जरूरत से अधिक आत्म सम्मान व स्वाभिमान बचाने की आड़ में कब हम अहंकार की परिधि में जा पहुंचते हैं, इसका पता ही नहीं चल पाता है। एक समय का यही प्यारा लगने वाला आत्म सम्मान कब इन्हीं रिश्तों के बीच में कांटे की तरह चुभने लगता है तथा अहंकार के रूप में हमारे सामने आ खड़ा होता है। जब कि पारिवारिक रिश्ते आपसी प्रेम व सौहार्द की एक डोर से बंधे होते हैं, ऐसे रिश्ते प्यार की बौछार से सिंचित होकर मजबूत होते हैं और अगर इन्हें कहीं से स्वाभिमान के रूप में अहंकार का झूठा कीड़ा लग जाता है तो यह रिश्ते के पौधे को मुरझाने व कुम्हालने में ज्यादा वक्त भी नहीं लगता है। वस्तुत: परिवार की इमारत के मजबूत स्तंभ परिवार के सदस्य ही होते हैं। इनका आपसी मेल मजबूत होना आवश्यक इसलिए भी है क्योंकि पूरे परिवार की मान-मर्यादा भी इन रिश्तों की एकता पर ही निर्भर करती है। सिर्फ अहं के नाम पर रिश्तों में बिखराव व परस्पर टकराव देखा जाता है। रिश्तों के बीच बनती दूरियां एक साथ रह कर भी सभी लोग किसी एक बात पर एकमत व एकसाथ नहीं हो पाते हैं। घर परिवार के सबसे प्रमुख रिश्तों में सर्वप्रथम बाप-बेटे के रिश्ते के बीच एक जैसी सोच व विचारधारा का न हो पाना जेनरेशन गेप के नाम से जाना जाता है, परंतु आज अपनी ही जेनरेशन के रिश्तों के बीच उपजे विरोधाभास को क्या कहा जाय। पारिवारिक रिश्तों में पड़ती दरार को क्या नाम व संज्ञा दी जाए। इन रिश्तों में आपसी टकराव की मुख्य वजह को तलाशना व दुरस्त करना बहुत आवश्यक हो जाता है। अक्सर किसी की कही हुई बात को व्यक्ति अपने अहंकार के साथ जोड़ कर देखता है तथा अपने आत्मसम्मान व स्वाभिमान के खातिर कभी-कभी व्यक्ति उक्त बात को अपने पूरे जीवन गांठ की तरह बांध कर रखता है। फिर स्थिति यह हो जाती है कि सारे फैसले व निर्णय उसी बात के आधार पर होते जाते हैं। परिणाम स्वरूप एक दूसरे के बीच आपसी खिंचाव व दूरी बढऩा शुरू हो जाती है और दोनों के बीच सहजता भी खत्म होने लगती है। आपसी संपर्क व संबंध टूटने सा हो जाता है फिर प्रेम व सौहार्द की जगह केवल औपचारिकताएं मात्र ही शेष रह जाती हैं। आपसी अलगाव बढऩे व नजदीकी रिश्तों में दूरियां होने के साथ पूरा परिवार तो बिखरता ही है, साथ ही मन के अंदर भी कहीं न कहीं खालीपन व एकाकीपन महसूस किया जा सकता है। आत्म सम्मान व स्वाभिमान की बनाई गई सीमा रेखा एक समय ज्वलंत दरार के रूप में बन जाती है और अहंकार का दीमक प्रेम के जीवन को पूरी तरह से खोखला करता जाता है। अहंकारी व्यक्ति एक सख्त पेड़ की तरह खड़ा रहता है, जबकि अहंकार का अपना कोई अस्तित्व नहीं रहता है। यह केवल आत्मसम्मान व स्वाभिमान का प्रतिवर्तित व बदला हुआ नाम है, क्योंकि जब भी अपने सम्मान व स्वाभिमान की चाहत इस कदर बढ़ जाती है कि वहां से उसके अहंकार की झलक दिखाई देनी लगती है। परिवार में हर एक का मान-सम्मान बना रहना भी बहुत आवश्यक है इसके लिए जरूरी यह है कि हम अपने सामने ऐसी किसी भी स्थिति में केवल प्रेम को पकड़ कर रखें और अपने सम्मान व स्वाभिमान को अहंकार तक पहुंचने से हर हाल में रोकें। जीवन की किसी विषम स्थिति में भी अगर हम पूरे समर्पण के साथ एक बार अपने व्यवहार व सोच में नरमी व लचीलापन रखते हैं जो यहां पर बिल्कुल जादुई परिणाम मिलने की अपार संभावना हो जाती है कि सामने वाला भी तुरंत अपना सख्त रुख छोड़कर लचीला बन जाता है यहां पर सम्मान भी बना रहता है और अहंकार का बोध भी नहीं होता है। पारिवारिक बिखराव, मन मुटाव व नजदीकी रिश्तों में सबका आत्मसम्मान व स्वाभिमान सब कुछ अहंकार के तराजू में तौले जाने से बच जाएंगे।

Sunday, January 3, 2010

तब जाकर नया साल मुबारक होगा

नया साल हम सबके जीवन में उगते सूरज की किरणों के साथ नया सवेरा व नई कार्य-योजनाएं लेकर आता है। बीते साल की सफलताओं व असफलताओं के बीच हम आने वाले नये साल में नये लक्ष्यों के प्रति द्रढ़ संकल्पित होते है। नये साल में हम सब अपनी ठोस कार्य योजनाओं के अतिरिक्त अपने जीवन में विकास व अहम बदलाव के लिए ‘रेजोल्यूषन‘ भी बनाते है।


आज देष में फैली महॅगाई, भ्रश्टाचार, रोजगार, षिक्षा, उद्योगों व कृशि उत्पादन को बढ़ावा, बाल विकास पुश्टाहार कार्यक्रम का सफल क्रियान्वन के साथ जमीनीं समस्याओं जैसे बिजली, सड़क व पानी की आवष्यकता पूरित करनें की दरकार है। वर्श 2010 में सरकार व सरकारी मषीनीरियां भी अपनी ठोस कार्य योजनाओं को सख्ती से अमल में लानें के लिए एक ‘रेजोल्यूषन‘ के रुप में संकल्प लें तथा इस ओर सफल होनें के लिए प्रभावी कदम उठाना जरुरी होगा। इसमें कोई संदेह नहीं कि बीते वर्श 2009 में सफलता का सबसे ज्यादा परचम हमारे देष की महिलाओं व इनकी नई युवा पीढ़ी के नाम रहा। फैषन, ग्लैमर वकड़ी में जलवायु मनोरंजन से लेकर प्रषासनिक सेवा या विदेष सेवा तक, खेल के मैदान से लेकर देष की सीमा सुरक्षा तक, गली- नुक्कड़ से लेकर सत्ता के गलियारे तक पहुॅची महिलाओ नें हर जगह अपनी काबिलियत की अद्भुत मिषाल पेष करी। इसी परिवर्तन बिशय पर एक विष्व स्तरीय सम्मेलन में इकट्ठा हुए लोगों को 13 वर्शीय युग रत्ना श्रीवास्तव नें अपने विचारों से मंत्रमुंग्ध कर दिया। जलवायु परिवर्तन मुद्दे पर आयोजित कोपेनहेगन सम्मेलन में भारत के पक्ष में ज्यादा कुछ नहीं रहा, परंतु भारत व अमेरिका के साझे समझौते से फायदे की उम्मीद की जा सकती है। इसके आगे वर्श 2010 सरकार के लिए देष की आधारभूत समस्याओं से निपटने के लिए भरा हुआ है। देष के समुचित विकास में अनेक प्रकार के राश्ट्रीय मुद्दे व समस्याएं प्रगति के पहिये को आगे बढ़ने से रोक देते हैं। इन राश्ट्रीय मुद्दों मे सर्वोप्रमुख महॅगाई है जो आम जनता के जीवन को बद-हाल करती जा रही है। इस बढ़ती हुई भयावह महॅगाई में रोजमर्रा के धरेलू सामानों की आसमान छूती कीमतें निष्चित रुप से कृशि के धटते हुए उत्पादन से जुड़ी हंै। असंतुलित मौसम की मार से जहाॅ फसलें खराब व नश्ट हो जाती हैं वहीं किसान कर्ज में डूब जाता है। इस तरह से किसानों को भारी नुकसान उठाना पड़ता है तथा कृशि के कुल उत्पादन में भी गिरावट आती है। देष की बढ़ती हुई आबादी तथा इसकी तुलना में खराब फसलें तथा गिरता हुआ कृशि उत्पादन, यह सब माॅग के नियम को बुरी तरह से प्रभावित करता है। लागत ज्यादा, उत्पादन कम। माॅग ज्यादा, उत्पादन कम। फिर यही कारण बन जाता है मॅहगाई का। और इस प्रकार मॅहगाई का मुॅह सुरसा के मुॅह की तरह खुलता जाता है। दिन- प्रतिदिन बढ़ती महॅगाई ही कहीं हद तक भ्रश्टाचार को बढ़ावा देती है। हमारे यहाॅ की बिजली समस्या आज राश्ट्रीय स्तर की समस्या हो गई है। कोई भी ऐसा षहर नहीं बचा है जो बिजली की समस्या से न जूझ रहा हो। बिजली की समस्या में भी वही कारण सामने आता है जो किसानों व खेती के साथ हुआ। पिछले कई दषको से देष में कोई भी बिजली सयंत्र स्थापित नहीं हो सका। फलस्वरुप, बिजली के पर्याप्त उत्पादन की समस्या खड़ी हो गई। जबकि इसके विपरीत आबादी बढ़नें के साथ बिजली की खपत बहुत हद तक बढ़ गई। इसी कारण अधोशित बिजली कटौती व कम बिजली मिलने से जुड़ी तमाम अन्य समस्याएं सामने आने लगती है। जहाॅ बिजली कम मिलने लगी और उसके दाम ज्यादा होने लगे। बिजली उत्पादन में कमी होनें से औद्योगिक षहरों को भी पर्याप्त मात्रा में बिजली न मिल पाने से इसका सीधा असर उद्योग-धंधों पर पड़ना षुरु हो जाता है। फैक्ट्री प्रोडक्षन कम होना षुरु हो जाता है। इस तरह से धाटा सामने दिखाई देने लगता है। आवष्यकता व माॅग के अनुरुप उत्पादन न हो पाने की वजह से आपूर्ति प्रभावित होती है। जिसका असर रोजमर्रा काम आने वाले धरेलू सामानों की कीमत पर पड़ता है। इसी के साथ जरुरी वस्तुओं की जमाखोरी व कालाबाजारी भी चरम पर पहुॅच जाती है। इन्हीं सब के कारण आज आम आदमी के लिए आम जरुरत की चीजें उसकी पहुॅच से बहुत दूर होती जा रही हैं। षहरों में रहने वाली जनता हो या गाॅव के किसान सभी इन समस्याओं से परेषान दिखते है। खेती के पर्याप्त संसाधन न होनें के कारण अब किसान खेती करने के बजाय षहर की ओर नौकरी-रोजगार की तलाष में भटकता हुआ दिखाई देता है। जिससे भी कहीं न कहीं बेराजगारी का ग्राफ बढ़ जाता है। इन सब समस्याओं के चलते आम जनता को नया साल आखिर कैसे मुबारक र्होगा! यह सच है कि हमारे देष की प्रगति गाॅवों से जुड़ी है। इसलिए हमारे देष की सरकारों को प्रत्येक गाॅव के हर परिवार के प्रति उत्तम षिक्षा व मेडिकल व्यवस्था के लिए द्रढ़ संकल्पित हाना चाहिए साथ ही यह भी सुनिष्चित हो जाय कि हर परिवार का षिक्षा योग्य लड़का-लड़की स्कूल अवष्य जाय। गरीब व असहाय बच्चों की षिक्षा व अस्पताल हर गाॅव में सुलभ रुप से उपलब्ध हो सके तथा बाल विकास पुश्टाहार व सुपोशण जैसे कार्यक्रम निष्चित रुप से चलते रहें। नये साल की बधाई आम जनता को तब होगी जब हमारी सरकारें मॅहगाई को काबू करनें का संकल्प करें। वर्श 2010 में लोगों को आबाधित रुप से बिजली आपूर्ति की व्यवस्था व किसानों और फसलों के लिए हितकर योजनाओं के प्रति द्रढ़ संकल्पित होकर सफल हों। तब जाकर हर एक के लिए नया साल मुबारक होगा।