Monday, March 22, 2010

आसमानी सोच ही है सचिन का करिश्मा



सचिन अपनी उपलब्धि पर जिस बल्ले से रन जुटाते हैं, उसको देख सकते थे, उसे चूम सकते थे। जिस पिच पर वह रनों का पहाड़ खड़ा करते हैं, उस मिट्टी को छू सकते थे। लेकिन, उन्होंने ऐसा नहीं किया, इसके लिए उन्होंने आसमान ही क्यों चुना? निश्चित रूप से उनमें आसमान जैसी बड़ी सोच का नजरिया ही उन्हें इतना महान व संकल्पवान बना देता है।

चिन जब भी पिच पर कोई इतिहास रचते हैं तो आसमान की तरफ जरूर देखते हैं। जिससे आभास होता है कि वह भगवान का शुक्रिया अदा कर रहे हैं। किसी रिकॉर्ड की बराबरी करने या अपनी ही उपलब्धियों को और बड़ा करने और सफलता की नई ऊंचाइयों को छूने के लिए ही शायद सचिन हर बार खुले आसमान की तरफ देखकर और ऊंचा उठने की कोशिश करते हैं। यकीनन सचिन की सफलता की जो सीमा है वह स्काई इज लिमिट की तरह है। आज सचिन सफलता के ऐसे शिखर पर विराजमान हैं जहां से बड़े से बड़ा रिकॉर्ड भी उनके सामने बौना दिखाई पड़ता है। इन दो दशकों में सचिन का खेला हुआ हर मैच सफलता के नए सोपान गढ़ता हुआ उनकी सच्ची सफलता के पीछे छुपी हुई सकारात्मक सोच के राज को भी खोल देता है।
१६ साल की किशोर उम्र में बल्लेबाजी को उतरे मास्टर ब्लास्टर ने पहले ही अतर्राष्टï्रीय मैच में क्रिकेटपे्रमियों को अपना मुरीद बना लिया था, लेकिन तब किसी ने भी उनके इस बुलंदी पर पहुंचने की कल्पना नहीं की होगी। बीते 20 सालों में क्रिकेट खेलने के दौरान सचिन तेंदुलकर ने कितने ही पुराने रिकॉर्ड तोड़े व नये स्थापित किए। उनके द्वारा बनाए गए कीर्तिमान क्रिकेट इतिहास में एक बड़ी लकीर की तरह हैं। कहा जाता है कि युगों के बाद किसी खास चमत्कारिक महात्मा का जन्म होता है, उसी तरह सचिन रमेश तेंदुलकर भी आज क्रिकेट की दुनिया के किसी बड़े चमत्कारिक महात्मा से कम नहीं है। निश्चित रूप से क्रिकेट में इतने बड़े चमत्कार देखकर ऐसा लगता है कि सचिन ने पूरी दुनिया में क्रिकेट को चमकाने के लिए ही जन्म लिया है। सचिन आज समूची दुनिया में गौरव का नाम है, और अपने भारत देश के हर नागरिक को अपने इस सपूत पर गर्व करना अपने आप को सम्मान देने जैसा है। सचिन सचमुच भारत के अमूल्य रत्न हैं। अगर इस स्थिति में उनको भारत रत्न से सम्मानित करने की बात कही जा रही है तो सचिन इसके सच्चे पात्र भी हैं।
दो दशक के इतने बड़े क्रिकेट कैरियर के दौरान सचिन के बल्ले ने कितने ही बड़े से बड़े गेंदबाजों का सामना डटकर किया और हर बार रिकॉर्ड पर रिकॉर्ड और रनों का अंबार लगाने में उनका बल्ला कहीं भी नहीं चूका। इतना भर नहीं, सचिन आज भी बिना थकान व तनाव के नए से नए कीर्तिमान गढऩे के लिए मैदान में डटे हुए हैं। इन सबके पीछे छिपी हुई असली ताकत व ऊर्जा की बात करें तो पता चलता है कि सचिन के अंदर हर एक स्थिति को सकारात्मक ऊर्जा में बदलने की जादुई काबिलियत भी है। खुद सचिन कहते है कि मैं निराशा को सकारात्मक ऊर्जा में बदल देना चाहता हूं और पहले से ज्यादा संकल्पवान बनने में इसका इस्तेमाल करता हूं। जब सचिन हर बार अपनी उपलब्धि पर आसमान की और देखते हैं तो वह यही करते हैं। अपने संकल्प को पूरा करने के लिए ईश्ववर का धन्यवाद देते हैं तथा इसी के साथ एक और संकल्प भी लेते हैं। यह सब उनकी सकारात्मक सोच व क्रिकेट के प्रति सच्ची लगन का ही जादू है। सचिन अपने हर नायाब कारनामे के बाद आसमान की ओर देखते हैं। सचिन अपनी उपलब्धि पर जिस बल्ले से रन जुटाते हैं, उसको देख सकते थे, उसे चूम सकते थे। जिस पिच पर वह रनों का पहाड़ खड़ा करते हैं, उस मिट्टी को छू सकते थे। लेकिन, उन्होंने ऐसा नहीं किया, इसके लिए उन्होंने आसमान ही क्यों चुना ? निश्चित रूप से उनमें आसमान जैसी बड़ी सोच का नजरिया ही उन्हें इतना महान व संकल्पवान बना देता है। किताबें तो किसी पर भी लिखी जा सकती हैं, परंतु जिस तरह मर्यादा पुरुषोत्तम राम के लिए रामायण लिखी गई, उसी तरह आज सचिन क्रिकेट के राम से कम नहीं हैं। इसलिए अगर भविष्य में क्रिकेट की रामायण उन पर लिखी जाए तो यह भी कोई अचरज की बात नहीं होगी। आज क्रिकेट के एवरेस्ट पर खड़े सचिन का जादू उनके फैन्स के साथ धुरंधर खिलाडिय़ों के भी सिर चढ़कर बोल रहा है। कोई भी उनकी जादुई बल्लेबाजी का लुत्फ उठाने में पीछे नहीं रहना चाहता। ब्रायन लारा कहते हैं कि अगर उनके एक बेटा हो, तो वह उसे सचिन की तरह बनाना चाहते हैं। रिचड्र्स नि:संकोच कहते हैं कि क्रिकेट के खेल को नित नई ऊंचाइयों तक ले जाने वाले सचिन का खेल मैं पैसे खर्च करके भी देखना चाहूंगा। क्रिकेट के सबसे नौजवान महानायक सचिन की सकारात्मक सोच आज समाज में एक बहुत बड़ा संदेश देने का भी काम करती है। जहां पर अमूमन लोग थोड़ी सी मिली कामयाबी से ही संतुष्टï हो जाते हैं। एक या दो बड़ी सफलताओं तक ही सोच पाते हैं। फिर उनका एनर्जी लेवल कम होने लगता है क्योंकि बुद्धि और शरीर को आरामतलब बना देते हैं तथा बाकी की जिंदगी उन्हीं सफलताओं के सहारे चलाना चाहते है। ऐसी स्थिति में सचिन आज सबके सामने एक मिशाल की तरह से हैं। अपने बीस साला क्रिकेट कैरियर में सचिन हर साल व हर मैच में और ज्यादा तरोताजा व ऊर्जा से लबालब दिखते हैं। उन पर किसी भी तरह का तनाव व थकान का कोई नामो-निशान नहीं दिखाई पड़ता है।

Saturday, March 13, 2010

युवावस्था में ही भरें भविष्य की तस्वीर में रंग



आज ज्यादातर युवा सपनों को सिद्ध करने के लिए शॉर्टकट की तलाश में रहते हैं। कुछ लोगों की सोच ही बिना मेहनत के मंजिल तक पहुंच जाने की हो जाती है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या यह वाकई संभव है? अगर यह हो सकता तो सफलता के परिणाम को एक कठिन तपस्या या मेहनत का फल नहीं बताया जाता।

केश के गाये हुए एक गीत की लाइन थी- लड़कपन खेल में खोया, जवानी नींद भर सोया और बुढ़ापा देख कर रोया। यही किस्सा पुराना है। इसी बात को पहले कबीर दास जी भी ने भी अपने अंदाज में कहा था। आज दोनोंं की बात का आशय एक ही है। जीवन की सब अवस्थाओं में निर्णायक समय जवानी का ही है। मतलब कुछ कर दिखाने का समय। मेहनत करने का उचित अवसर। अगर यह सुनहरा मौका हमने गंवा दिया, शरीर में आलस्य छाने लगा और मेहनत करने से चूक गए तो आगे चलकर पछताने से भी कुछ नहीं हो पाएगा। क्योंकि इस उम्र में की गई मेहनत ही हमारी पूरी जिंदगी की तस्वीर बदल देती है।
बचपन तो मौज-मस्ती का ही समय होता है। यह जिंदगी का ऐसा पहला दौर है, जिसमें सभी बिना किसी तनाव के अपनी वास्तविक व निजी जिंदगी जीते हैं। दूसरे दौर में आते-आते जीवन के कुछ लक्ष्य निर्धारित हो जाते हैं- जिनमें नौकरी व रोजगार प्रमुख रूप से होते हैं। अब समय आ जाता है कड़ी मेहनत का। बिना कड़ी मेहनत के कुछ भी हासिल नहीं होता। यही वह अवसर होता है जब हमारे मन में किसी भी प्रकार का आलस्य न आने पाये और मन किसी भी शंका से ग्रसित न हो। यह सच है कि ये जिंदगी चुनौती भरी होती है। जिसमें हर कदम पर हमारा कड़ा इम्तिहान भी होता है, फिर भी हमें हर वक्त सजग रहते हुए निरंतर अपने लक्ष्य की और बढऩा होता है। इसलिए मेहनत करने से बचा नहीं जा सकता है, क्योंकि सफलता पाने का निरंतर प्रयास व मेहनत के अलावा दूसरा कोई विकल्प नहीं है। जिनके पास कुछ नहीं था, बस पाने की हसरत ही थी और मेहनत करने से पीछे नहीं हटे, उन्होंने सब कुछ पा लिया। सपना कोई भी हो, मेहनत ही हर जगह रंग लाती है।
आज ज्यादातर युवा सपनों को सिद्ध करने के लिए शॉर्टकट की तलाश में रहते हैं। कुछ लोगों की सोच ही बिना मेहनत के मंजिल तक पहुंच जाने की हो जाती है। लेकिन सवाल उठता है कि क्या यह वाकई संभव है? अगर यह हो सकता तो सफलता के परिणाम को एक कठिन तपस्या या मेहनत का फल नहीं बताया जाता। और जिन लोगों ने अपने अटूट परिश्रम के बल पर जो कुछ हासिल किया है वे सब मूर्ख सिद्ध हो गए होतेे। उन सबने बेकार ही इतनी मेहनत की। फिर तो कोई भी आसानी से आइंस्टीन या गैलीलियो बन जाता। मेहनत करना एक तरह से बेवकूफी भरा काम समझा जाता। सच में देखा जाय तो सफलता का कोई शॉर्टकट नहीं होता, क्योंकि कोई भी शॉर्टकट अपनाने से हमारे काम का रिजल्ट जरूर कटशॉर्ट हो सकता है। इसलिए मेहनत करने से डरने के बजाय अगर हम उसे अपने युवा जीवन में अपना लें तो इसी जीवन में हम सब कुछ हासिल कर सकते हैं।
अपनी युवा उम्र में केवल बैठे-बैठे किसी अवसर का इंतजार करना सुनहरा मौका गंवाने जैसा होता है। कभी-कभी सफलता हमसे कुछ दूर होती है और हमारी भूख को देखती है कि हमारे अंदर सफलता को पाने की कितनी चाहत है। जिसको पाने की ललक होती है, वह वहां तक पहुंच जाता है, किसी भी तरह। बहुत से लोग सफल हो जाते हैं, जो लोग वहां तक जाने की मेहनत नहीं कर पाते हैं, वो वहीं रह जाते हैं। हर एक को अपनी आलस्य की निंद्रा से हर हाल में जागना होगा, नहीं तो आने वाले समय के लिए देर हो जाएगी। जो कुछ हमने पीछे किया, उसका परिणाम आज दिखाई पड़ता है। जो कुछ भी आज कर रहे हैं, वैसा ही परिणाम आगे भी मिलेगा। अगर आज का बहुमूल्य समय किसी भी तरह से नष्ट या बर्बाद हो गया तो भविष्य में पछतावे के सिवा कुछ हासिल नहीं होगा। बुढ़ापे में किसी फसल का बीज बोना लगभग असंभव ही होता है। इसलिए अपने भविष्य की तस्वीर में रंग भरने की जरूरत अभी ही है। अपनी युवा जिंदगी में ही मेहनत करने से लोगों ने अपनी-अपनी मंजिलें पाई हैं। हर एक के युवा मन में जहां जिंदगी के सपने होते हैं वहीं उन्हें पूरा करने व यथार्थ में बदलने के लिए मेहनत करने की सामथ्र्य भी होता है। जरूरत होती है बस सिर्फ इच्छाशक्ति की। किसी भी सफलतम व्यक्ति के बारे में जानने पर अटूट मेहनत ही उसकी सफलता का राज होता है। जिसकी जिंदगी में आलस्य नहीं होता है, वहीं मेहनत होती है। दोनों एकसाथ नहीं रह सकते हंै। आलस्य के होने से जीवन हर प्रकार से दुखी रहता है तथा इससे सकारात्मक परिणाम नहीं देखे जाते, जबकि मेहनत करने से शरीर के साथ विवेक भी हर वक्त जागृत अवस्था में रहता है। शरीर के साथ बुद्धि का सुसुप्त अवस्था में होना अधिक हानिकारक होता है। इसलिए मेहनत करते रहने से दोनों ही सदैव जागे रहते हैं। इसके जागे रहने से ही हमारी जिंदगी की बढ़ती उम्र में कोई भी परेशानी पास नहीं आ पाती है। परिणाम स्वरूप हमें जिंदगी के पुराने किस्से को दोहराने से बचना है। जवानी की मेहनत से ही सफलताओं को अपने नाम कर लिया जाए। जिससे आने वाले समय में कुछ न कर पाने का मन में मलाल भी न रहे और बुढ़ापे में खुशियां भी बांटते चलें।

लालच जैसी बला से बचना जरूरी



अंगे्रजी में एक कहावत भी है, 'इल गॉट, इल स्पेंड। पैसा जैसे आता है, वैसे ही चला जाता है। किसी भी चीज की आवश्यकता से अधिक चाहत लालच बन जाती है और मन स्वार्थी बन जाता है। फिर किसी भी तरह से उसको हथियाने की मन में लालसा उठने लगती है। किसी के फायदे-नुकसान की किसी को कोई चिंता ही नहीं होती।

कहा गया है कि लालच बुरी बला है। किसी भी चीज का ज्यादा लालच अच्छा नहीं होता है। वैसे, जरूरत तो हर चीज की होती है। लेकिन काम चलाने के लिए। इसलिए नहीं कि पूरा फोकस ही उस ओर कर दिया जाए। आज पैसा कमाने की अंधी दौड़ में मनुष्य अपना पूरा जीवन पैसा इकट्ठा करने में लगा रहा है। जितना पैसा आता जा रहा है, उससे अधिक की चाहत बढ़ती जाती है। कभी-कभी पैसा तो पास में हो जाता है लेकिन अपने दूर हो जाते हैं। इसके अलावा, कम समय में अधिक पैसा कमाने की चाह भी कभी-कभी गलत रास्ते पर ले जाती है। पैसे के लिए आपसी छीना-झपटी, धोखाधड़ी व जालसाजी जैसे कृत्य लोगों को अपराध की ओर भी ले जाते हैं। यह सब जल्दी से जल्दी अमीर बन जाने की चाहत में होता जाता है।
इंसान को मानव जीवन की जो ईश्वरीय सौगात मिली है, उसमें पेट भरने को रोटी, तन ढंकने को कपड़ा और सिर छिपाने के लिए एक छत की जरूरत होती है। परंतु इन सबसे अलग हमने अपने आपको पैसे के मोह में इस कदर घेर लिया है कि पैसे की जरूरत दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। जहां तक इसका दूसरा रुख यह भी है कि इस आर्थिक युग में यही सब हमारी पहचान के चिह्नï जैसे भी बनते जा रहे हैंं। इसी कारण आज सारी भीड़ पैसे को पकडऩे के लिए एक तरफ भागी जा रही है। लगभग हर एक व्यक्ति इस दौड़ का हिस्सा बनता जा रहा है। सबके मन में अधिक से अधिक पैसा कमाने की चाहत ही लालच की पराकाष्ठा तक ले जाती है। आज सब रिश्ते-नाते व संबंधों में पैसे की ही सर्वोपरि प्रमुखता देखी जाती है तथा पैसा ही सर्वश्रेष्ठ समझा जा रहा है। इसी उद्देश्य के लिए ही लोग आज अपनों से दूर, घर को छोड़कर दूर-दराज शहरों में रहकर मशीन की तरह काम कर रहे हैं। देखा यह भी जाता है कि पैसा कमाने के चक्कर में लोग आपसी रिश्तों से दूर होते जाते हैं। उनके पास अपने परिवार के बीच रहने का समय ही नहीं मिल पाता है। परिवार के सभी सदस्यों का एक साथ हो पाना बहुत मुश्किल सा लगता है। अक्सर पैसा कमाने के अलावा और कुछ दिखाई ही नहीं देता है। किसी को भूख प्यास का कोई ख्याल ही नहीं रहता, रहता है तो सिर्फ पैसा इकट्ठा करने का। इसी तरह की एक प्रचलित एवं प्रेरक कहानी है राजा मिडास की। जिसको सोने का बहुत मोह था। वह अधिक से अधिक सोना इकट्ठा करना चाहता था। एक दिन उसकी इच्छा हुई कि काश! ऐसा हो जाए। वह जिसे छुए वही सोने का हो जाए, तो कितना अच्छा हो। आगे चलकर ऐसा ही हुआ। वह जिस किसी चीज को भी छूता, वह सोना बन जाता। वह यह सब देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ। अब उसके चारो ओर सोना ही सोना इकट्ठा होने लगा। उसको भूख लगी। जैसे ही उसने रोटी को छुआ। वह भी सोने की हो गई। पानी पीना चाहा। वह भी सोना हो गया। मिडास थोड़ा हैरान हुआ और परेशान होने लगा। इतने में उसे अपनी लड़की दिखाई दी। उसने उसे उठा कर गले लगाना चाहा। जैसे ही मिडास ने उसे छुआ वह भी सोने की हो गई। इस तरह से उसकी ज्यादा से ज्यादा सोना पाने की इच्छा पूरी हुई। अब उसके चारो ओर सोना ही सोना था। नहीं था तो रिश्ते-नाते, खाने को रोटी व पीने को पानी। लालची मिडास का तो यह हाल हुआ। पैसा कमाने की अपार लालसा में कहीं ऐसा न हो कि हमारे पास भी केवल पैसा ही रह जाए।
कम समय में अधिक से अधिक पैसा कमाने की होड़ में अक्सर गलत रास्ता भी अख्तियार कर लिया जाता है। अधिक पैसे का लालच अपराध की ओर भी ले जा सकता है। दूसरों को धोखा व चकमा देकर पैसा ऐंठ कर अपना काम बना लेने में भी लोगों का यह ध्येय भी रहता है कि पैसा किसी भी तरह से आना चाहिए। जल्दी से जल्दी अमीर बनने की ललक में अक्सर गुमराह हो जाते हैं, जहां पर संपदा तो तमाम होती है, लेकिन मन में शांति नहीं होती और न ही सुख का आनंद ही देखने को मिलता है। आजकल छोटे-बड़े शहरों में बढ़ती हुई लूट व चेन स्नेचिंग जैसी अपराधिक घटनाएं इस बात की गवाह हैं कि किशोर उम्र के लड़के इसमें आसानी सेे लिप्त हो जाते हैं फिर धीरे-धीरे यही बच्चे प्रोफेशनल क्रिमिनल बन जाते हैं। दूसरों से चालबाजी व दगाबाजी से कमाया गया धन भी ज्यादा समय तक रह नहीं पाता है। कहते हैं कि इस तरह से इकट्ठे किए गए पैसे के पांव भी बहुत तेज होते हैं। अंगे्रजी में एक कहावत भी है, 'इल गॉट, इल स्पेंड। पैसा जैसे आता है, वैसे ही चला जाता है। किसी भी चीज की आवश्यकता से अधिक चाहत लालच बन जाती है और इस तरह से मन में पैसे का लालच घर बनाता चला जाता है, तो मन भी स्वार्थी बन जाता है। फिर किसी भी तरह से उसको हथियाने की मन में लालसा उठने लगती है। किसी के फायदे-नुकसान की किसी को कोई चिंता ही नहीं होती। यही पैसे का लालची एवं लोभीपन किसी को कहां से कहां ले जाता है। वहां सब कुछ होता है, संपदा व वैभव के सभी साधन। नहीं होता है तो सिर्फ अपने लोग व अपनापन। लालच एक बीमारी की तरह से हमारे मन पर हावी होना शुरू हो जाता है, और मन पर अपना पूरा अतिक्रमण कर लेता है। हमें मिडास जैसा मन नहीं चाहिए। क्योंकि जिंदगी जीने के लिए रुपए पैसों के साथ रिश्ते-नाते व सगे संबंधियों का भी होना अति आवश्यक है।

हंसना-हंसाना ही है जिंदगी की बड़ी नियामत




हंसना एक मानसिक क्रिया भी है जो हमारे शरीर के साथ मस्तिष्क को भी आराम देती है तथा मन को तरोताजा रखती है। आज आम जिंदगी के बीच हंसी को ढं़ूढऩा बहुत आवश्यक है। उम्मीद करें कि तनाव भरी जिंदगी के बीच हंसने और हंसाने में जितने ज्यादा से ज्यादा पल निकल जाएं, ताकि जीवन हंसी खुशी बीतता चले।

किसी को हंसाना आसान काम नहीं है। इसके लिए बहुत मेहनत व कठिन अभ्यास की जरूरत होती है। किसी फिल्म के हास्य कलाकार, नाटक के कॉमेडी पात्र या फिर हो सर्कस के जोकर- सभी हंसी के दक्ष कारीगर होते हैं। इन सबकी हरकतें दिखने में तो एक बार बेवकूफी भरी दिखती हैं जिन पर हम सब हंसते और लोट-पोट होते हैं फिर भी इनको बेवकूफ समझते हैं। परंतु असली जिंदगी में ये हम सबसे ज्यादा होशियार व काबिल होते हैं जिनके करतबों पर हम सभी जोर-जोर से पेट पकड़कर हंसने को मजबूर हो जाते हैं। इन सबका एक ही लक्ष्य होता है कि किसी भी तरह से अपने दर्शकों को हंसाना और ये कामयाब भी होते हैं।आज की इस तनाव भरी जिंदगी में हंसते रहना जीवन में बड़ी नियामत की तरह से है।
ऐसा जरूरी भी नहीं है कि कोई भी कॉमेडी पात्र अपने कार्यक्रम के दौरान खुशी से ही भरा हो, क्योंकि जिंदगी की परिस्थिति व माहौल हमेशा अपने वश में नहीं होते हैं। इन सबके बावजूद, ऐसे कलाकारों में इतना प्रोफेशनलिज्म होता है कि इनके अंदर का गम व तनाव बाहर नहीं आ पाता है। ये सब बहुत चतुराई व बुद्धिमानी से सभी चीजों को ठीक कर देते हैं और बाहर केवल हंसी के फव्वारे ही छोड़ते हैं। छोटे-बड़े, रंगीन कपड़े व रंगे-पुते चेहरे इन सबके अंदर कलाकार की असली काबिलियत छिपी होती है। जिसे बाहर से देखकर हम इन पर हंसते हैं। दुनिया के महान नाटककार शेक्सपियर ने अपने एक नाटक में कॉमेडी पात्रों को हंसने वालों से ज्यादा होशियार व बुद्धिमान बताया है। कारण भी है क्योंकि किसी को हंसाने के लिए कई तरह की टेक्नीक व तरकीबों का बहुत ही चालाकी से प्रयोग किया जाता है, जो दिखने में तो बेवकूफी भरी हो सकती है और कलाकार बिल्कुल बुद्धू सा दिखता है। असलियत में वह अपनी बुद्धि के बल पर ही हम सबको हंसाता है।
एक तरह से देखा जाय तो जिंदगी की फिलॉसफी भी यही है कि जिंदगी बिना हंसी के अच्छी तरह से नहीं चल सकती है। आज की भागम-भाग व कभी-कभी उबाऊ दिनचर्या तनाव व परेशानियों के साथ-साथ चलती है। ऐसे में हंसी के कारणों व स्थितियों का हमें ही जुगाड़ व व्यवस्था करनी पड़ती है ताकि बाकी की जिंदगी बोझिल न हो जाए। तनाव भरे इस माहौल में हंसना भी कोई हंसी-खेल नहीं रह गया है। शायद इसीलिए जिंदगी को बोरियत से बचाने के लिए तरह-तरह के मनोरंजन जैसे फिल्मों या हास्य नाटकों से हम हंसी की तलाश करते रहे। आज इन हंसी के कार्यक्रमों की बड़ी गंभीरता से जरूरत समझी गई तथा इस तरह से तमाम टीवी चैनलों पर कई तरह के कॉमेडी शो पेश किए गए। ये सभी हास्य कार्यक्रम दर्शकों के बीच खासे पसंद किए गए। कॉमेडी शो आम दर्शकों की थकी-हारी जिंदगी में बिल्कुल ऊर्जावान टॉनिक का काम करती है तथा आदमी इस वक्त अपने सारे दुख-दर्द भूल जाता है। ये हंसी थोड़ी देर के लिए ही सही आम जिंदगी में नई ताजगी लेकर आती है। हंसना हमारे शरीर के अच्छे स्वास्थ्य के लिए भी बहुत उपयोगी औैर जरूरी है। हंसने से ही शरीर में खून की वृद्धि व दौड़ भी ठीक रहती है, जो एक अच्छे स्वास्थ्य की निशानी होती है। आज की लोकप्रिय योग विद्या में भी एक क्रिया हंसने की है। जिसको लोग तेज-तेज से हंसने के अभ्यास के साथ अपने जीवन मे अपना रहे हैं। अभी तक प्राप्त परिणामों से यह जाहिर भी हो चुका है कि हंसने के निरंतर अभ्यास से हमारे शरीर पर सकारात्मक असर पड़ता है।
यूं तो जिंदगी की कोई भी राह आसान नहीं होती है कि पूरे जीवन का सफर ऐसे ही पूरा हो जाय। अगर जिंदगी में हंसी का सहारा मिल सके तो जीवन में आने वाली तमाम दुश्वारियों का सामना करने में कोई दिक्कत नहीं होती। हंसते-हंसते ही जिंदगी के रास्ते को काटने की कला सीखने के साथ दूसरों को थोड़ी देर के लिए ही हंसाने में सफल हो जाएं, आज ऐसे प्रयास करने की आवश्यकता है। हंसने में तो बुद्धि का कोई इस्तेमाल नहीं होता है, जबकि दूसरों को अपनी चतुराई व बुद्धिमश्रा के बल पर ही हंसाया या लोटपोट किया जा सकता है। इसी हंसी की वजह से जिंदगी की बोरियत व बोझिलता भी खत्म होती है। इसी लिहाज से आज लगभग हर कार्यक्रम, सेमिनार, गंभीर वार्ताओं, भाषण या साधु- संतों के प्रवचनों के बीच हंसी की चुटकी छेड़ देने से थोड़ी देर के लिए ही सही वहां पर हंसी का माहौल देखा जाता है। हंसी को इन सबमें शामिल करने का मतलब है कि उपस्थिति श्रोताओं का मन लगा रहे तथा कार्यक्रम को बोरियत व उबाऊ होने से बचाया जा सके। किसी भी प्रोग्राम के बीच हंसी की फुलझड़ी छोड़ देने से लोगों का जुड़ाव बना रहता है। जहां तक सभी लोग लाफ्टर चैम्पियन नहीं होते फिर भी अपनी बात को समझाने के लिए हंसी का प्रयोग करते हैं। किसी बात को सीधे-सीधे समझाने के अलावा हंसी व गुदगुदी के सहारे भी बताया जा सकता है, जो श्रोताओं को आसानी से समझ में आ जाती है। किसी गंभीर बात का संदेश हास्य के साथ व्यंग के रूप में पिरोकर भी दिया जाता है जिससे बात हंसने-हंसाने के साथ सीधे श्रोताओं के दिलों तक पहुंचा दी जाती है। हंसना एक मानसिक क्रिया भी है जो हमारे शरीर के साथ मस्तिष्क को भी आराम देती है तथा मन को तरोताजा रखती है। आज आम जिंदगी के बीच हंसी को ढं़ूढऩा बहुत आवश्यक है। उम्मीद करें कि तनाव भरी जिंदगी के बीच हंसने और हंसाने में जितने ज्यादा से ज्यादा पल निकल जाएं, ताकि जीवन हंसी खुशी बीतता चले।

आंखों को भी चाहिए आफ्टर द ब्रेक



पारिवारिक समारोह या अन्य किसी अवसर पर देर रात तक जागने, रात्रि जागरण करने या अपनी आंखों से आवश्यकता से अधिक काम लेने पर अगले दिन यही आंखें समान्यतया काम करने में असहज हो जाती हैं। अपनी व्यस्ततम दिनचर्या से थोड़ा समय निकालकर आंखों को भी थोड़ा आराम देना जरूरी है।

खुली आंखों से दुनिया भर के काम चलते हैं। आंखें खोलकर ही हम सब इस दुनिया में रहते हैं, जहां पर हमारा मन काम करता है और अपनी आंखों को बंद करते ही अपने अंतर्मन की ओर प्रविष्ट हुआ जा सकता है। यहां पर किसी का कोई वास्ता नहीं रह जाता सिवाय अपने आपके। आंखों को बंद करके जहां आंखों को नई ऊर्जा मिलती है, वहीं अपने अंतर्मन में झांकने से ही कई निरुत्तर सवालों या समस्याओं का हल भी मिल जाता है।
दिन भर हम अपनी आंखों से ही काम लेते हैं। हमारे रोजमर्रा के कामकाज में, अपने दैनिक जीवन में, घर, ऑफिस या बाजार में अधिकाधिक रूप से प्रयोग आंखों का किया जाता है। कामकाज के दौरान, सैर-सपाटे, टीवी या कम्प्यूटर आदि से मनोरंजन के समय भी इन्हीं आंखों का ही पूरा इस्तेमाल किया जाता है। दिन भर की थकान मिटाने के लिए हम पूरे आराम के साथ बैठते या लेटते हैं, परंतु इस स्थिति में भी हमारी आंखें अक्सर खुली ही रहती हैं। आंखों को केवल सोते समय ही आराम मिल पाता है। आंखों को अपने काम से छुट्टी केवल रात को सोते वक्त ही मिल पाती है, जब हमारी आंखें बंद होती हैं। अब तो दुनिया भर में हुए कई शोधों में भी यह परिणाम निकला है कि आंखें भी थक जाती है। देखा जाता है कि अमूमन तौर पर एक आदमी लगभग १६ घंटे अनवरत अपनी आंखों से काम लेता है, जिससे आंखों में एक विशेष प्रकार की थकावट हो जाती है और इस थकावट से आंखों को आराम केवल सोने से ही मिलता है। जाहिर है कि आंखों को नई ऊर्जा व ताजगी सोने से ही मिलती है। सोते समय हमारी आंखें बंद होती हैं, इस समय इन आंखों की चार्जिंग हो रही होती है। एक बात अक्सर देखी जाती है कि पूरा समय सोने के लिए न मिल पाने के कारण अक्सर आंखों को भी दिक्कत होने लगती है व आंखें असहज महसूस करती हैं। इस बात का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि अपने किसी पारिवारिक समारोह या अन्य किसी अवसर पर देर रात तक जागने, रात्रि जागरण करने या अपनी आंखों से आवश्यकता से अधिक काम लेने पर अगले दिन यही आंखें समान्यतया काम करने में असहज हो जाती हैं। अपनी व्यस्ततम दिनचर्या से थोड़ा समय निकालकर आंखों को भी थोड़ा आराम देना जरूरी है। पांच या दस मिनट के अल्प समय के लिए ही अपनी आंखों को बंद करने से आंखों को पूरा आराम, नई ऊर्जा व ताजगी लाई जा सकती है।
पूरी दुनियादारी खुली आंखों से देखी जाती है। स्वयं के भीतर जाने के लिए आंखों को बंद करना पड़ता है। आंखों को बंद करने से मन के अंदर का दरवाजा खुल जाता है। मन का भीतरी मार्ग बंद आंखों से होकर गुजरता है। पलकों को बंद करते ही हमारा पूरा कनेक्शन बाहर से कट होकर अंदर से जुडऩे लगता है। फिर धीरे-धीरे आत्मविवेक की उत्पत्ति व अंतर्मन की खोज भी पूरी होती है। मात्र थोड़ी देर के लिए अपने क्रिया-कलापों के बीच आंख बंद कर लेने मात्र से ही अपनी आत्मशक्ति को भी विकसित किया जा सकता है। इस क्रिया को नियमित या लगातार करते रहने से अपने व्यक्तिगत या व्यवसायिक सभी तरह के अनसुलझे प्रश्नों या समस्याओं का अचूक हल व पता भी चल जाता है। बाहर की बेचैनी व मन की अशांति को भी यह विधि दूर करने में सहायक होती है। समस्या का त्वरित समाधान मिलने से ही मन का बोझ व तनाव दोनों ही खत्म हो जाते हैं। ईश्वर की आराधना हो या फिर योग और ध्यान की तपस्या सभी में बंद आंखों का ही काम होता है। जहां संसारिक कामों के लिए आंखों को खुला रखने की आवश्यकता होती है वहीं आत्मकेंद्रित होने के लिए अपनी आंखों को बंद करना पड़ता है। आत्मविवेचना भी आंखों को बंद कर अपने आप में झांककर ही की जा सकती है। प्रार्थना या योग व ध्यान के समय आंखों को बंद करने की सतत प्रक्रिया होने पर हमारा आंतरिक रिश्ता जुडऩे लगता है तथा यही क्रिया हमें धार्मिकता का पाठ भी पढ़ाती है। अपने काम के बीच-बीच में समय मिलने पर इस क्रिया को करने से ही बाहरी झंझट हमारे शरीर के भीतर कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाते हैं। आत्मबल विकसित होने से यही मार्ग हमें धर्म और अध्यात्म की गहराई में जाता है। जहां पर हमें अपने जीवन के अद्भुत खजानों के साक्षात्कार के साथ बड़े अनुभवों की भी सीख मिलती है।
आंखों को थोड़ी-थोड़ी देर के लिए बंद कर लेने से ही धर्म और अध्यात्म का रास्ता खुल जाता है। इस पर अग्रसर होकर ईश्वर की भक्ति को भी अपने अंदर और प्रबल किया जा सकता है। हमारी ध्यान या स्मरणशक्ति भी आंखों को बंद करने में ही आधारित होती है। कभी-कभी जब हम किसी बात को याद करना चाहते हैं या फिर किसी व्यक्ति के नाम को याद करना चाहते हैं, तब हमारी ऑखें प्राय: बन्द हो जाती हैं। यदि हमारी याददाश्त अच्छी है तो उस व्यक्ति का नाम या बात तुरंत ही हमारी जुबान पर आ जाता है। अपनी अति व्यस्ततम दिनचर्या के दौरान रोजाना कुछ समय निकालकर यह क्रिया मेमोरी लॉस से तो बचाती ही है साथ ही स्मरण शक्ति को बढ़ाकर कई गुना तीव्र और त्वरित कर देती है। थोड़ी-थोड़ी देर का ब्रेक देकर आंखों को आराम देना बहुत जरूरी है। इससे आंखों की रोशनी भी बढ़ेगी साथ ही साथ शरीर के भीतर आंतरिक उजाला भी फैलेगा।