हमारा पूरा व्यक्तित्व हमारी सोच से दिखाई पड़ता है। सोच और भावना में ज्यादा अंतर नहीं है क्योंकि किसी भी तरह की भावना का आधार हमारी सोच ही है। यहां जरूरी यह है कि हम अपने ऊपर कितना विश्वास रखते हैं अगर हमारे मन में विश्वास है और खुद पर पूरा भरोसा भी है तो निश्चित ही हमें किसी से भी डर नहीं लगेगा और विषम स्थिति का डट कर मुकाबला करेंगे।
जैसी सोच होगी, वैसी ही हमारी भावना भी होगी। हम जिस तरह से सोचते जाते हैं ठीक उसी तरह से हमारी भावना भी होती जाती है। अक्सर हम दूसरों के बारे में अपने ख्याल रखते हैं, उनका अनुमान लगाते हैं। ऐसे ही अपने बारे में भी sochatee हैं और इसी तरह अपने लिए भी एक भावना का निर्माण करते जाते हैं। इनमें से ही एक है- उच्च भावना तथा दूसरी हो जाती है- हीन भावना। इसी जगह अगर हम स्वयं में विश्वास भी जागृत करने में सफल हुए तो निश्चित ही अच्छी भावना के साथ आत्म विश्वास का भी विकास शुरू हो जाता है। हमारी सोच के ही दो पहलू हैं- उच्च व हीन भावना। अगर हम अपने जीवन में सकारात्मक हैं तथा आत्मविश्वास से भरे हुए हैं तो निश्चित ही हमारी भावना भी अपने बारे में उच्च की ही होगी। यदि हमारी सोच या भावना कमजोर हुई या फिर आत्मविश्वास की कमी हो,तो हम हीन भावना शिकार हो जाते हैं। आज जीवन के हर क्षेत्र में प्रतियोगिता चलती है और सभी प्रतिभागियों को अपना सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करना होता है। ऐसे में एक दूसरे की तुलना लाजिमी हो जाती है। मुकाबला तब और गंभीर हो जाता है जब एक व्यक्ति खुद अपनी बराबरी सामने वाले से करने लगता है। उदाहरण के तौर पर एक जगह दौड़ प्रतियोगिता शुरू होने वाली है। सभी प्रतिभागी स्टार्ट लाइन पर खड़े हुए हैं और सब अच्छे धावक भी हैं। सभी को विश्वास भी है कि वे प्रतियोगिता जीतेंगे। इसी बीच, एक अन्य प्रतियोगी आता है। वह आते ही अपनी लाइन पर खड़ा होकर तमाम तरीकों से एक्सरसाइज तथा अपनी बॉडी- लैंग्वेज व एक्साइटमेंट से अपना अति आत्मविश्वास दिखाने लगता है। यह सब देखकर अन्य प्रतिभागियों का आत्मविश्वास डगमगा जाता है तथा परिणामस्वरूप अन्य सभी प्रतियोगी उसके विश्वास के आगे स्वयं में हीन भावना का शिकार हो जाते हैं। यहां पर स्थिति यह होती है कि अपने आपको अन्य दूसरे के मुकाबले में छोटा व हीन समझने लगते हैं। ऐसे में खास बात यह होती है कि जहां आत्मविश्वास कमजोर पडऩे लगता है वहीं स्वयं का मन भी आत्मकुंठित होने लग जाता है, तत्पश्चात हीन भावना का असर हमारे पूरे व्यक्तित्व में दिखना शुरू हो जाता है। हमारा पूरा व्यक्तित्व हमारी सोच से दिखाई पड़ता है। सोच और भावना मे ज्यादा अंतर नहीं है क्योंकि किसी भी तरह की भावना का आधार हमारी सोच ही है। अगर हमारे मन में विश्वास है और खुद पर पूरा भरोसा भी है तो निश्चित ही हमें किसी से भी डर नहीं लगेगा तथा हम किसी भी विषम परिस्थिति से भी डट कर मुकाबला करने व उससे जीत जाने का हौसला हमेशा बनाये रखते हैं। फिर हमारी बराबरी चाहे किसी भी व्यक्ति से हो या चुनौती किसी भी स्थिति से, सबसे आगे निकल जाने व सफल होनें की पूरी गारंटी बन जाती है। सामने कोई भी हो अब किसी से कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि अपने आप में हमारी सोच मजबूत हो जाती है और आगे बढऩे का सामथ्र्य व साहस भी बन जाता है। यह सच है कि जब किसी व्यक्ति के मन में उच्च भावना व स्वयं में विश्वास जन्मने लग जाता है तब अंदर ही अंदर वह मजबूत इरादों वाला व्यक्ति दिखाई पडऩे लगता है। क्योंकि एक स्थिति तब आती है जब उसके करीबी मित्र, रिश्तेदार, सहकर्मी व जीवन की सभी स्थितियां उस पर भरोसा करने लगती हैं। धीरे-धीरे सभी लोग मेहरबान होना शुरू हो जाते हैं। और यहां तक कि इस व्यक्ति पर ईश्वर की असीम अनुकंपा भी होने लगती है, क्योंकि ईश्वर भी केवल उसी व्यक्ति पर भरोसा करता है जिस व्यक्ति का स्वयं पर भरोसा हो। किसी व्यक्ति की प्रगति व उन्नति का मार्ग भी उसकी सोच ही प्रशस्त करती है। आत्मविश्वासी व्यक्ति अपने कार्यक्षेत्र में निरंतर सफलता प्राप्त करते हुए आगे बढ़ता रहता है। किसी भी कार्य में सफल होने के लिए यह जरूरी हो जाता है कि हम अपने आपको मजबूत स्थिति में रखें। हम अपनी सोच व भावना को ऊपर उठायें व उसको इतनी ऊंचाई दें कि उससे अच्छे व सुंदर विचार जन्म लेना शुरू हो जाए। ऐसा होने पर हमारी सोच व भावना का हीन भावना से हर तरह का संपर्क टूट जायेगा। फिर ऐसी कोई भी स्थिति न होगी, जिससे हम हीन भावना का शिकार व इससे ग्रस्त हो सकें। एक बात और है कि किसी भी व्यक्ति की अन्य व्यक्ति से तुलना उसके बाहरी आकर्षण, महंगे कपड़े व बंगला-गाड़ी आदि से करने का कोई अर्थ नहीं है। यह तुलना तब सार्थक हो सकती है जब हम अपने विचारों, सोच व भावना के आधार पर करें। यह महत्वपूर्ण बात है कि हम अपने आपको कहीं से भी न तो हीन समझें और न ही हीन भावना रखें। यह बात हमें प्रारंभ से ही अपने अंतर्मन में ढालनी शुरू करनी है। हमें अपने मन को इतना मजबूत बिंदु बनाना है कि हर स्थिति में बड़ी सोच का जन्म हो। जिससे ही अच्छी व सुदृढ़ भावना का अवतरण तथा विकास संभव होगा। अच्छी सोच होने पर ही कुंठा भी नहीं होगी और न ही मन आत्मकुंठा का शिकार हो पायेगा। हमारी जिंदगी में सर्वप्रधान भावना ही है। इसके प्रबल होने से हम अपने जीवन के हर क्षेत्र में आसानी से सफल हो सकते हैं।
हमारी जिंदगी में सर्वप्रधान भावना ही है।-सही कहा..आभार इन विचारों का.
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