देव गुरुओं की वाणी कर्णप्रिय लगती है वहीं पर इनकी नैतिकता, सदाचार व आपसी निष्पाप भाव की बातें सुनने से मन निर्मल होने लगता है। आध्यात्मिक बोध के पनपने से जब हम इसे अपने जीवन में उतारते हैं तो मन-मस्तिष्क से सारा बोझ खत्म मालूम पड़ता है तथा इस समय जीवन के असली अर्थ को समझा जा सकता है।
आज हम सब आधुनिक शैली से जी रहे हैं। जिंदगी की इस व्यस्ततम आपाधापी में थकान व कभी-कभी मन की अशांति का भी अनुभव होने लगता है। आधुनिकता भरे इस माहौल में आध्यात्मिकता का होना बहुत आवश्यक है। मन के आध्यात्मिक होने से दिन भर की थकावट, मन की बढ़ती बेचैनी से तो बचाव होता ही है, साथ ही नई ऊर्जा का संचार भी किया जा सकता है। इन सबका लाभ सत्संग, कीर्तन-भजन, आध्यात्मिक धर्म ग्रंथ व किताबों आदि को पढ़कर या किसी देवगुरु के सानिध्य में रहकर उठाया जा सकता है।
आधुनिक युग में आध्यात्मिक माहौल बनाना बहुत आवश्यक है। यह मानसिक स्थिरता के साथ चित्त की शांत अवस्था के लिए बहुत हितकर है। यह क्रिया अपनी दिन भर की भागमभाग दिनचर्या के कारण आई शारीरिक थकावट को दूर करती हैै। नई स्फूर्ति देने के साथ सकारात्मक विचारों का सृजन भी अध्यात्म से होता है। इसमें नियमित रूप से लिप्त होने पर जीवन की नकारात्मकता का भी हृास अपने आप होता जाता है तथा पॉजिटिव एनर्जी हमारे शरीर और मन-मस्तिष्क पर असर करना शुरू करती जाती है। हमारे चित्त में आध्यात्मिकता के बोध से ही हमारा जीवन प्रासंगिक हो सकता है। यह बहुत आवश्यक व शुरुआती अभ्यास है, फिर धीरे-धीरे इसकी संवेदनशीलता बढऩे से इसकी उपयोगिता व सार्थकता गहराई से समझी जा सकती है। हम सब इस तरह से है कि जैसे मान लें हमारा पूरा शरीर बिल्कुल एक मोबाइल की तरह से होता है और इसकी उपयोगिता व अर्थ तब ही होता है जब इसमें हृदय रूपी ठीक तरह से चार्जड बैटरी लगी हो। अगर किसी मोबाइल की बैटरी डिस्चार्ज है या पूरी तरह से चार्ज नहीं है तो इसका ज्यादा देर तक उपयोग नहीं किया जा सकता है और एक समय यह बेकार हो जाता है। जिस तरह से किसी भी बैटरी को नियमित रूप से प्रयोग में लाने के लिए उसकी चार्जिंग जरूरी होती है। उसी तरह हृदय या अपने चित्त की भी नियमित चार्जिंग बहुत आवश्यक होती है। जिससे ही हमें मन के आध्यात्मिक होने का बोध होता है तथा जीवन रस पूर्ण हो सकता है। उदाहरण के तौर पर तमाम मोबाइल रूपी मानव जीवन हमारे चारों ओर देखे जाते हैं। हिंदू, मुस्लिम, सिख व इसाई जिनमें प्रमुख रूप से हैं, और इन सभी के धार्मिक स्थल हमें अपनी पूरी धार्मिकता व आध्यात्मिकता का बोध कराते हैं तथा अपना सार पूर्ण अर्थ बताते हैं। मंदिर, मस्जिद, गुरुद्वारे और चर्च इन सभी में हृदय व चित्त को पूरी तरह से चार्ज करने की क्षमता व गुणधर्म मौजूद रहता है। यहां पर भजन-कीर्तन, प्रार्थना व नमाज करने से हृदय व मन-मस्तिष्क को पूरा आराम भी मिलता है। इन धार्मिक स्थलों में नियमित रूप से आने जाने से हम अपनी हृदय रूपी बैटरी को फुल चार्ज कर सकते हैं। चार्ज न करने की लापरवाही या अनियमितता पाये जाने पर बैटरी की क्षमता व बैक-अप पर गहरा असर देखा जाता है। उसी प्रकार चित्त की संवेदनशीलता पर भी प्रभाव पड़ता है। जैसे कभी-कभी कोई बैटरी डीपली डिस्चार्ज हो जाने से उसे तुरंत उपयोग में नहीं लाया जा सकता। इसी प्रकार अंत:करण की असंवेदनशीलता से हम अपने धर्म व अध्यात्म के बारे में अनजान रहते हैं। ये सभी धार्मिक स्थल हमारे चित्त को अच्छी तरह से चार्ज करने व रखने में बहुत सक्षम होते हैं। किसी भी मोबाइल की बैटरी को पॉवरफुल होते हुए भी अपनी ताकत व मूल्य का तनिक भी अंदाजा नहीं होता जबकि हम अपने चिंतनशील मस्तिष्क से अपने अन्त:करण की आंतरिक शक्ति को पहचान सकते हैं तथा अपने अस्तित्व को अच्छी तरह से जान सकते हैं। हम अपने हृदय को अध्यात्मिक रखने के लिए धार्मिक ग्रंथ व किताबें भी हमें जीवन का सार समझाने की रसधार छोडऩे का काम करती हैं। जिस पर मन असीम आनंदित व प्रफुल्लित होता है। अपने समाज के विभिन्न धर्मों के ग्रंथ जैसे रामायण, गीता, बाइबिल, कुर्रान व गुरुग्रंथ साहिब आदि ग्रंथों को पढऩे से भी मन की अशांति को दूर किया जा सकता है तथा इनसे अपने जीवन के लिए प्रेरणा ली जा सकती है। देव गुरुओं की वाणी कर्णप्रिय लगती है वहीं पर इनकी नैतिकता, सदाचार व आपसी निष्पाप भाव की बातें सुनने से मन निर्मल होने लगता है। आध्यात्मिक बोध के पनपने से जब हम इसे अपने जीवन में उतारते हैं तो मन-मस्तिष्क से सारा बोझ खत्म मालूम पड़ता है तथा इस समय जीवन के असली अर्थ को समझा जा सकता है। इनके प्रेरक प्रसंग व प्रवचन पूरे अंत:करण को स्वच्छ व निर्मल करने की अपार क्षमता रखते हैं तथा ईश्वरीय ज्ञान का दरवाजा भी यहीं से खुलता है। देवगुरुओं के सानिध्य में रहते हुए इनमें ईश्वर, अल्लाह, जीसस व अपने इष्टदेव की देवमूर्ति व साक्षात छाया देखने को मिलती है तथा इनके अद्भुत चमत्कार भी समय-समय पर देखे जा सकते हैं। बढ़ती आधुनिकता के साथ अपने मन व हृदय को आध्यात्मिक बनाने के लिए हमें स्व प्रयास करने होंगे ताकि हम इस असीम भाक्ति व ऊर्जा से अछूते न रह जाए। धार्मिक स्थलों में जाने से या धार्मिक ग्रंथों को पढऩे से मन-मस्तिष्क में एक झुनझुनी सी होने लगे और शरीर में एक करंट सा दौडऩे लगे। हमारी हृदय की बैटरी चार्ज हो रही है। फिर इन सबको अपने जीवन में उतारने से या अपने देव गुरु के सानिध्य में रहकर अपने देव की झलक भी दिखने लगेगी व चमत्कार होते भी दिखेंगे।
dour koi bhi ho adhyaatm ka apna mahatv moujud rahtaa he.aapne ise vakai adhunik tarike se pesh kiya he.
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