Saturday, March 13, 2010

आंखों को भी चाहिए आफ्टर द ब्रेक



पारिवारिक समारोह या अन्य किसी अवसर पर देर रात तक जागने, रात्रि जागरण करने या अपनी आंखों से आवश्यकता से अधिक काम लेने पर अगले दिन यही आंखें समान्यतया काम करने में असहज हो जाती हैं। अपनी व्यस्ततम दिनचर्या से थोड़ा समय निकालकर आंखों को भी थोड़ा आराम देना जरूरी है।

खुली आंखों से दुनिया भर के काम चलते हैं। आंखें खोलकर ही हम सब इस दुनिया में रहते हैं, जहां पर हमारा मन काम करता है और अपनी आंखों को बंद करते ही अपने अंतर्मन की ओर प्रविष्ट हुआ जा सकता है। यहां पर किसी का कोई वास्ता नहीं रह जाता सिवाय अपने आपके। आंखों को बंद करके जहां आंखों को नई ऊर्जा मिलती है, वहीं अपने अंतर्मन में झांकने से ही कई निरुत्तर सवालों या समस्याओं का हल भी मिल जाता है।
दिन भर हम अपनी आंखों से ही काम लेते हैं। हमारे रोजमर्रा के कामकाज में, अपने दैनिक जीवन में, घर, ऑफिस या बाजार में अधिकाधिक रूप से प्रयोग आंखों का किया जाता है। कामकाज के दौरान, सैर-सपाटे, टीवी या कम्प्यूटर आदि से मनोरंजन के समय भी इन्हीं आंखों का ही पूरा इस्तेमाल किया जाता है। दिन भर की थकान मिटाने के लिए हम पूरे आराम के साथ बैठते या लेटते हैं, परंतु इस स्थिति में भी हमारी आंखें अक्सर खुली ही रहती हैं। आंखों को केवल सोते समय ही आराम मिल पाता है। आंखों को अपने काम से छुट्टी केवल रात को सोते वक्त ही मिल पाती है, जब हमारी आंखें बंद होती हैं। अब तो दुनिया भर में हुए कई शोधों में भी यह परिणाम निकला है कि आंखें भी थक जाती है। देखा जाता है कि अमूमन तौर पर एक आदमी लगभग १६ घंटे अनवरत अपनी आंखों से काम लेता है, जिससे आंखों में एक विशेष प्रकार की थकावट हो जाती है और इस थकावट से आंखों को आराम केवल सोने से ही मिलता है। जाहिर है कि आंखों को नई ऊर्जा व ताजगी सोने से ही मिलती है। सोते समय हमारी आंखें बंद होती हैं, इस समय इन आंखों की चार्जिंग हो रही होती है। एक बात अक्सर देखी जाती है कि पूरा समय सोने के लिए न मिल पाने के कारण अक्सर आंखों को भी दिक्कत होने लगती है व आंखें असहज महसूस करती हैं। इस बात का अंदाजा इससे भी लगाया जा सकता है कि अपने किसी पारिवारिक समारोह या अन्य किसी अवसर पर देर रात तक जागने, रात्रि जागरण करने या अपनी आंखों से आवश्यकता से अधिक काम लेने पर अगले दिन यही आंखें समान्यतया काम करने में असहज हो जाती हैं। अपनी व्यस्ततम दिनचर्या से थोड़ा समय निकालकर आंखों को भी थोड़ा आराम देना जरूरी है। पांच या दस मिनट के अल्प समय के लिए ही अपनी आंखों को बंद करने से आंखों को पूरा आराम, नई ऊर्जा व ताजगी लाई जा सकती है।
पूरी दुनियादारी खुली आंखों से देखी जाती है। स्वयं के भीतर जाने के लिए आंखों को बंद करना पड़ता है। आंखों को बंद करने से मन के अंदर का दरवाजा खुल जाता है। मन का भीतरी मार्ग बंद आंखों से होकर गुजरता है। पलकों को बंद करते ही हमारा पूरा कनेक्शन बाहर से कट होकर अंदर से जुडऩे लगता है। फिर धीरे-धीरे आत्मविवेक की उत्पत्ति व अंतर्मन की खोज भी पूरी होती है। मात्र थोड़ी देर के लिए अपने क्रिया-कलापों के बीच आंख बंद कर लेने मात्र से ही अपनी आत्मशक्ति को भी विकसित किया जा सकता है। इस क्रिया को नियमित या लगातार करते रहने से अपने व्यक्तिगत या व्यवसायिक सभी तरह के अनसुलझे प्रश्नों या समस्याओं का अचूक हल व पता भी चल जाता है। बाहर की बेचैनी व मन की अशांति को भी यह विधि दूर करने में सहायक होती है। समस्या का त्वरित समाधान मिलने से ही मन का बोझ व तनाव दोनों ही खत्म हो जाते हैं। ईश्वर की आराधना हो या फिर योग और ध्यान की तपस्या सभी में बंद आंखों का ही काम होता है। जहां संसारिक कामों के लिए आंखों को खुला रखने की आवश्यकता होती है वहीं आत्मकेंद्रित होने के लिए अपनी आंखों को बंद करना पड़ता है। आत्मविवेचना भी आंखों को बंद कर अपने आप में झांककर ही की जा सकती है। प्रार्थना या योग व ध्यान के समय आंखों को बंद करने की सतत प्रक्रिया होने पर हमारा आंतरिक रिश्ता जुडऩे लगता है तथा यही क्रिया हमें धार्मिकता का पाठ भी पढ़ाती है। अपने काम के बीच-बीच में समय मिलने पर इस क्रिया को करने से ही बाहरी झंझट हमारे शरीर के भीतर कोई नुकसान नहीं पहुंचा पाते हैं। आत्मबल विकसित होने से यही मार्ग हमें धर्म और अध्यात्म की गहराई में जाता है। जहां पर हमें अपने जीवन के अद्भुत खजानों के साक्षात्कार के साथ बड़े अनुभवों की भी सीख मिलती है।
आंखों को थोड़ी-थोड़ी देर के लिए बंद कर लेने से ही धर्म और अध्यात्म का रास्ता खुल जाता है। इस पर अग्रसर होकर ईश्वर की भक्ति को भी अपने अंदर और प्रबल किया जा सकता है। हमारी ध्यान या स्मरणशक्ति भी आंखों को बंद करने में ही आधारित होती है। कभी-कभी जब हम किसी बात को याद करना चाहते हैं या फिर किसी व्यक्ति के नाम को याद करना चाहते हैं, तब हमारी ऑखें प्राय: बन्द हो जाती हैं। यदि हमारी याददाश्त अच्छी है तो उस व्यक्ति का नाम या बात तुरंत ही हमारी जुबान पर आ जाता है। अपनी अति व्यस्ततम दिनचर्या के दौरान रोजाना कुछ समय निकालकर यह क्रिया मेमोरी लॉस से तो बचाती ही है साथ ही स्मरण शक्ति को बढ़ाकर कई गुना तीव्र और त्वरित कर देती है। थोड़ी-थोड़ी देर का ब्रेक देकर आंखों को आराम देना बहुत जरूरी है। इससे आंखों की रोशनी भी बढ़ेगी साथ ही साथ शरीर के भीतर आंतरिक उजाला भी फैलेगा।

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