असंतुलित पर्यावरण की मार से मौसम के सभी चक्र दुष्प्रभावित हो जाते हैं। समय पर सर्दी न पडऩे या पाला गिरने तथा प्रचुर मात्रा में समय पर बरसात न हो पाने से किसान नुकसान में आ जाता है। इन सबका खामियाजा हम सबको फिर महंगाई के रूप में देखना पड़ता है। क्योंकि आबादी व लागत के हिसाब से अनाज नहीं पैदा हो पाता, फलस्वरूप कीमतें बढ़ जाती हैं। पानी फसलों के लिए अमृत होता है।
पानी और हवा मनुष्य की खास जरूरतें हैं। इसके बिना किसी भी जीव का इस धरती पर जीना बहुत मुश्किल है। शुद्ध वातावरण व पर्यावरण हर जीव की प्रथम आवश्यकता है। बढ़ती हुई जनसंख्या के हिसाब से संसाधनों की सीमितता तो पर्यावरण असंतुलन की एक वजह है ही, इसके अलावा आम लोगों का गैर जिम्मेदाराना व लापरवाह रवैया भी कुछ कम नहीं। पर्यावरण को भाुद्ध व वातावरण को साफ-सुथरा बनाने के लिए सबकी पहल व सहभागिता बहुत आवश्यक है। आज देश के कई हिस्सो में लोग पानी की समस्या से जूझ रहे हैं। एक ताजा सर्वे के अनुसार जल संसाधन व स्रोतों में कमी आ रही है। अगर समय से न चेता गया तो आने वाले वर्षों में पानी के लिए त्राहि-त्राहि मच सकती है। जमीनें पूरी तरह से सूखती जा रही हैं, पर्याप्त मात्रा में पानी न मिल पाने के कारण नमी खत्म हो रही है। पानी का फिजूलखर्च तो काफी है, परंतु पर्याप्त मात्रा में जल संरक्षण कहीं नहीं दिखता। पर्यावरण के गड़बड़ाने से वर्षा भी प्रभावित होती है। वैसे, पानी की कमी को प्राकृतिक रूप से वर्षा पूरा कर देती थी, परंतु वनों के प्रति उदासीन रवैये से ही पेड़ घटते जा रहे हैं व जंगल खत्म होते जा रहे हैं। जबकि पेड़ वर्षा में सहायक होते हैं। पेड़ जहां हवा को शुद्ध करने का काम करते हैं, वहीं कई अमूल्य जड़ी व जीवन औषधियां भी इन्हीं जंगलों से मिलती हैं। देखा जाये तो वनों को संरक्षण देने से पानी की कमी को पूरा किया जा सकता है। दूसरी तरफ हमारे देश की फसलें व खेती भी पानी पर ही निर्भर रहती हैं। फसलों को पर्याप्त मात्रा में पानी न मिल पाने व बेमौसम की बरसात फसलों को खराब कर देती है, और कभी-कभी तो 'का वर्षा जब कृथिन सुखानी' जैसी कहावत देखने को मिलती है। असंतुलित पर्यावरण की मार से मौसम के सभी चक्र दुष्प्रभावित हो जाते हैं। समय पर सर्दी न पडऩे या पाला गिरने तथा प्रचुर मात्रा में समय पर बरसात न हो पाने से किसान नुकसान में आ जाता है। इन सबका खामियाजा हम सबको फिर महंगाई के रूप में देखना पड़ता है। क्योंकि आबादी व लागत के हिसाब से अनाज नहीं पैदा हो पाता, फलस्वरूप कीमतें बढ़ जाती हैं। पानी फसलों के लिए अमृत होता है, वनों के या पेड़ों के कम होने से वर्षा का मौसम भी डगमगा जाता है। इसलिए वन बचाओ अभियान और व्यापक होना चाहिए। साथ ही नये पेड़ों को लगाने व उनकी देखभाल की नैतिक जिम्मेदारी हर इंसान की बन जाती है। पानी तथा पेड़ दोनों बचाने जरूरी हैं क्योंकि किसी एक को न बचाने से पर्यावरण की पूरी शृंखला कमजोर होती है। गांवों से लेकर शहर तक का पर्यावरण व वातावरण में प्रदूषण फैला हुआ है। शहरों की सड़कों पर कहीं कारखानों की चिमनियों से या फिर माल ढोने वाले छोटे-बड़े वाहनों से उड़ता जहर उगलते धुएं से लोग पीडि़त हैं। सड़कों पर बढ़ती हुई पेट्रोल व डीजल चलित गाडिय़ों की तादात भी वायु के साथ ध्वनि प्रदूषण के लिए जिम्मेदार हैं। जहां शहरों में 'सेव इन्वायरनमेंट, सेव पीपल। क्लीन सिटी, ग्रीन सिटी। सेव वाटर सेव लाइफ जैसे स्लोगन प्रचार में तो आते हैं और लोगों की जागरुकता बढ़ाते हैं, परंतु इन सबका प्रायोगिक रूप से सामूहिक प्रयास व इस्तेमाल नाकाफी दिखता है। उदाहरण स्वरूप घरों से रोजाना निकलने वाला कूड़ा आसपास के वातावरण को दूषित करता है, जिससे अनेक प्रकार की की गंभीर बीमारियों का संक्रमण भी फैल सकता है। इसमें सबसे ज्यादा घातक होता है किसी भी तरह से नष्ट न होने वाला कूड़ा जिसमें प्रमुख तौर पर सबसे आजकल सबसे ज्यादा प्रयुक्त होने वाला है प्लास्टिक या पॉलीथिन। आज बाजारों में दुकानदारों के साथ उपभोक्ताओं को भी प्लास्टिक के थैलों में ज्यादा सहूलियत दिखाई पड़ती है। हर बाजार व दुकान में सामान पॉलीथिन के लिफाफों में दिया जाता है। आज मुश्किल से ही कोई जागरूक ग्राहक कपड़े का थैला लेकर बाजार जाता है। सब्जी हो या अन्य घरेलू रोजमर्रा का सामान सबकुछ प्लास्टिक के थैलों में बेचा व खरीदा जाता है। बात यह है कि एकबार प्रयुक्त होने वाले पॉलीथिन के यह लिफाफे किसी भी तरह से नष्ट नहीं हो सकते। गलती से इन्हें जला देने से वैज्ञानिक दृष्टि से इसका धुआं व गैस सैकड़ों सालों तक वातावरण को जहरीला बना देता है। जबकि निम्न स्तर की पॉलीथिन खाद्य पदार्थों के लिए बहुत नुकसानदेह होती है। कुल मिलाकर प्लास्टिक हमारे पर्यावरण को काफी नुकसान पहुंचाती है। पर्यावरण को दूषित करने वाले असली कारकों को पहचान कर उनको स्वस्थ वातावरण के लिए हटाने की प्राथमिकता ही देश के स्वस्थ विकास की सीढ़ी हो सकती है।
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