Thursday, December 2, 2010

लाइफ में लाइन ऑफ कन्ट्रोल का होना जरुरी


हर चीज की एक हद होती है। जब भी किसी चीज की हद या सीमा पार हो जाती है, तब स्थिति और भी तनावपूर्ण हो सकती है और नियंत्रण से बाहर भी। यही है जिंदगी की लाइन ऑफ कंटोल। जो हमारी जिंदगी की हर छोटी-बड़ी चीजों से सीधे जुड़ी होती है। धर-बाहर हर जगह हमें रोज इनसे दो-चार होना पड़ता है। हमारा और आपका रोज इनसे आमना-सामना होता है। बात चाहे कहीं की भी हो, कोई भी व्यक्ति इनसे बचने का अपवाद नहीं हो सकता है। हर एक व्यक्ति इनसे जूझता हुआ दिखाई देता है। कोई भी चीज इस एल ओ सी को पार कर दे और जीवन की तमाम परिस्थितयां उलट जाएं। या आउट ऑफ कन्ट्रोल हो जाएं, इससे पहले ही क्यों न एक जरुरी कदम उठाया जाय। किसी भी स्थिति से निपटने के लिए उस पर टेक कन्ट्रोल पहले ही कर लिया जाय, यानि की नियंत्रण के अंदर।
हर एक चीज की सीमा है। सीमा रेखा जैसे ही पार होती है, दिक्कतें वहीं से शुरु हो जाती हैं। यह बात किसी एक जगह की या फिर किसी व्यक्ति विशेष की नहीं है। यह वाकया किसी भी जगह व किसी के साथ भी हो सकता है। इसमें सभी लोग शामिल हैं, कोई भी इनसे अछूता नहीं है। बात चाहे किसी के धर की हो, जहां पर परिवार के कई सदस्य एकसाथ रहते हैं। परिवारिक रिश्तों के बीच भी अक्सर ऐसी अनचाही स्थितियां उत्पन्न हो जाती हैं, जिनसे तनाव होने की पूरी संभावना बन जाती है। इससे पहले कि पूरा माहौल अप्रिय हो जाय, हमें तुरंत सबकुछ नियंत्रण में करना होता है। यह कदम परिवार के हर एक रिश्ते व सदस्य के हित में एक विवेकपूर्ण प्रयास होता है। हम धर के बाहर भी ऐसी ही स्थिति का सामना अक्सर करते हैं- आफिस में अपने सहकर्मियों के साथ में, बॉस या उच्च अधिकारियों के बीच में व अन्य वार्तालाप या लोकव्यवहार को निभाने वक्त भी किसी को अपनी सीमा या हद को लांधना उचित नहीं कहा जा सकता है। किसी भी सामान्य या असामान्य धटना की एल ओ सी किसी भी तरह का नुकसान न कर दे, इस बात का भी ध्यान रखना अति आवश्यक हो जाता है। मामला धरेलू जिम्मेदारियों के निभानें का हो या फिर नौकरी-रोजगार में। नियंत्रण में सबकुछ हमको ही रखना पड़ता है, नही ंतो इसका खामियाजा भी हमको ही उठाना पड़ता है। अपनी रोजी-रोटी कमाने के बीच में ही कभी धरेलू समस्याएं भी आड़े आ जाती हैं, जो स्थिति को तनावपूर्ण कर सकती है। हमारी जिंदगी पर इनका कोई प्रतिकूल असर दिखे, इससे पहले ही यह जरुरी है कि हम इन पर काबू पा लें व स्थिति को नियंत्रण में कर लें। बच्चों की आदत में सुधार लाने के लिए भी उन पर नियंत्रण रखना होता है ताकि बच्चा कहीं बिगड़ ना जाय। धर बाहर हर जगह हमें ही इन सब चुनौतियों के बीच में ही अपनी जिम्मेदारियों का निर्वहन भी करना होता है।
अक्सर हमें यह एहसास होता है कि अब हमारे वश में कुछ भी नहीं रहा। सबकुछ हमसे पार हो गया। स्थिति तब और भी भयावह होने लगती है जब हम असहाय हो जाते हैं। इसी समय जरुरत होती है असल रुप में नियंत्रण रखने की। यह ऐसे होता है जैसे हम कोई गाड़ी चला रहे हों, और अचानक हमारी गाड़ी बहक जाती है। धबराहट में दुर्धटना भी हो सकती है। जबकि गाड़ी की रफतार को कम करके उसपर नियंत्रण रखा जा सकता है। ब्रेक लेकर गाड़ी को रोका जा सकता है, ताकि उसपर हमारा कन्ट्रोल बना रहे व किसी भी दुर्धटना से बचा जा सके। इसीलिए तादात, सीमा या हद को नियंत्रण रेखा कहा गया है। जैसे ही कोई यह नियंत्रण रेखा पार कर जाता है, वह तुरंत ही जोखिम वाले क्षेत्र में पहुंच जाता है और खतरे वहीं से शुरु हो जाते हैं। आदमी के लिए जीवन में स्वास्थय सबसे अमूल्य बताया गया है। इसलिए स्वास्थय के प्रति भी सचेत होकर नियंत्रण रखने की आवश्यकता होती है। बुरा खान-पान तो हमारंे शरीर के लिए नुकसानप्रद है ही, साथ ही तादात से ज्यादा अच्छा खाना-पीना भी सेहत के लिए ठीक नहीं होता है। क्योंकि सीमा के बाहर कुछ भी अच्छा नहीं होता है, वह अपना बुरा असर दिखाता ही है। मेडिकल साइंस भी यही कहती है कि शरीर, दिमाग व पेट सबकी अपनी क्षमता होती है, इनपर अत्यधिक बोझा डालने से यह अनुकूल परिणाम नहीं दे सकते हैं। जिसका उदाहरण ही हैं कि आजकल छोटी उम्र के लोग भी मोटापा, ब्लड प्रेशर व डायबिटीज जैसी बीमारियों से पीड़ित हैं।
अब आवश्यक है कि हम हर चीज की तादात को अच्छी तरह से समझें तथा उसकी सीमा को पहचानें। अमूल्य जिंदगी के किसी भी हिस्से को डेन्जर जोन में पहुंचने से पहले ही उसपर अपना नियंत्रण बना लें। क्योंकि शुरुआती तौर पर एक चिंगारी को केवल एक कप पानी डालकर बुझाया जा सकता है, नही ंतो इससे भड़की आग पर काबू पाना या नियंत्रण करना मुश्किल भरा हो सकता है।

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