Tuesday, May 12, 2009

मैं कौन हूं? जानिये अपने आपको

आज की भागती दौड़ती जिंदगी में हमें सभी चीजों की जानकारी है, सभी का ख्याल है, बस नहीं जानते तो अपने आप को

सभी का सपना होता है कि बड़े होकर हम क्या बनेंगे? डॉक्टर, इंजीनियर या फिर कलेक्टर। शुरुआती शिक्षा से लेकर किशोरावस्था तक आते-आते हर एक का कैरियर लगभग तय हो जाता है कि बड़ा होकर बच्चा किस क्षेत्र में अपना भविष्य बनाएगा, बड़े होकर हममें से ही कोई डॉक्टर, इंजीनियर, कलेक्टर, व्यापारी या फिर कोई सरकारी अधिकारी बन जाता है परन्तु जैसे-जैसे हम बड़े होते जाते हैं अपने आपको इस भीड़ में खोते चले जाते हैं। हम रोजी-रोटी कमाने के लिए किये गये काम व ओहदे में इस तरह तेजी से फंसते जा रहे हैं, कि हमें अपने आपकी कोई सुध ही नहीं हो पा रही है। हम सब इस व्यवसायिकता और प्रतिद्वंद्विता भरी जिंदगी में हर पल कुछ न कुछ हासिल करना चाहते हैं, लेकिन साथ ही साथ हम अपनी इंडिविजुएल्टी तथा आइडेंटिटी को भूलते जा रहे हैं।
एक आदमी पूरी दुनिया पर राज करना चाहता है। दूसरा आदमी दुनिया के बारे में सब कुछ पता लगाना चाहता है। उसे पूरी-पूरी तथा सही-सही जानकारी चाहिए, आज तकनीकी के इस युग में किसी के बारे में कुछ भी पता लगाना ज्यादा मुश्किल नहीं रहा। हम अपना सारा वक्त दूसरे को जानने में लगाए रहते हैं, कभी अखबार या पत्रिकाओं से जानकारी ढूंढ़ते हैं तो कभी कम्प्यूटर या इंटरनेट से। कोई हमसे कहीं पर भी मिला हम उससे उसके बारे में सबकुछ पूछते हैं कि वह कहां रहता है? क्या करता है? सब कुछ जानने में हमारी बहुत दिलचस्पी है। अपने आपको मिटाकर हम सबकुछ बनाने की कोशिश में हैं। अपने आपकी अनदेखी कर पूरे संसार को देखने का सपना देखते हैं। हमारा पूरा ध्यान तथा पूरा फोकस बाहर की ओर है, अपने बारे में हम अनजान बने हुए हैं और कुछ जानना भी नहीं चाह रहे हैं। हमारी ओरिजनल पर्सनैल्टी धीरे-धीरे खत्म सी होती जा रही है। हमारा पूरा इन्टेन्शन व अटेन्शन बाहरी जानकारी व सूचना को एकत्र करना है, जिससे कि हम दूसरों पर अपना रौब जमा सकें, हम बाहरी ज्ञान की ओर भागे जा रहे हैं। अनुभव की ओर हमारा कोई ध्यान नहीं है। ज्ञान और अनुभव एक ही सिक्के के दो पहलू हैं। अभी तक हमने ज्ञान का एक पहलू देखा और इससे ही चिपक कर रह गये, अगर हम इसे उलट दें तो हमें इसका दूसरा पहलू भी दिखाई दे जाएगा और वह है अनुभव का। ज्ञान जरूरी है, लेकिन इसमें अपना कुछ भी नहीं है। यह दूसरों पर ही आधारित है। अनुभव अपना है वह अपनी निजी संपत्ति है। इसका हम जैसे चाहें प्रयोग कर सकते हैं, इसमें सुख भी है। हम दूसरों के काम का, दूसरे व्यक्ति का पूरा निरीक्षण करते हैं लेकिन स्वयं का निरीक्षण करने से डरते हैं। दूसरों के बारे में हमसे कोई गलती नहीं होती है, हम सूक्ष्म से सूक्ष्म निरीक्षण व परीक्षण करने में पूरी तरह से दक्ष व योग्य हैं लेकिन जहां पर अपनी बात आती है तब हम अनजान बन जाते हैं। जबकि हमारे अंदर ही ज्ञान का अद्भुत व असीम खजाना भरा हुआ है, लेकिन उसके बारे में पूरी जानकारी नहीं है। बाहर तो हमें अच्छी तरह से मालूम है कि तेल, खनिज, सोना, चांदी कहां-कहां पाया जाता है परंतु अंदर के असली खजाने का हम पता नहीं लगा पा रहे हैं।
यही बात हमारे आपके साथ भी हो रही है। हमें अपने बारे में ही पूरी जानकारी नहीं है, कि हम क्या हैं। हमारे अन्दर क्या-क्या छिपा है? कितनी असीम शक्तियों, अपार सम्पदा तथा वैभव के मालिक हैं? इसका अंदाजा हम नहीं लगा पा रहे हैं। हम अपनी खोज ही नहीं कर रहे हैं। हमने अपने आपको इतना व्यस्त कर रखा है और हमारी दिनचर्या इतनी टाइट हो चुकी है कि हम अपने आपको एक मिनट भी फालतू नहीं रखते। अगर कभी हम खाली भी हुए तो हम टीवी या कम्प्यूटर गेम में उलझ गये। मोबाइल मिलाकर मित्रों या रिश्तेदारों से बतियाने लग गये या फिर इनटरनेट पर चैटिंग करने में जुट गये। हमें यह भी नहीं भूलना चाहिए कि हमें ईश्वर की असीम अनुकम्पा से यह दुर्लभ जीवन तो मिल गया परन्तु हम इस भौतिकवाद में उलझकर रह गये। बढ़ती व्यवसायिकता तथा नौकरी रोजगार में व्याप्त प्रतिद्वंद्विता के दौर में हम भागते जा रहे हैं और हमें अपने मूल मार्ग की याद ही नहीं आ पा रही है। हम अपना पूरा जीवन सारा समय अपने व्यवसाय व नौकरी रोजगार को दे रहे हैं। फिर भी हम वांछित सफलता के लिए परेशान से दिख रहे हैं। हम नकली खजाने को पकडऩा चाहते हैं। असली खजाना छोड़े जा रहे हैं, जबकि यह खजाना हमारे आपके पास ही है। बस केवल हमें इसके बारे में सही जानकारी जुटानी है। इसके लिए हमें अपने व्यस्ततम् लाइफ स्टाइल से कुछ समय नियमित रूप से निकाल कर स्वयं को देना होगा। स्वयं का चिंतन-मनन करना होगा। अपने आपको समय देने से हमें अपने बारे में सम्पूर्ण जानकारी मिल जाएगी। दिन का केवल आधा घंटा खाली निकालने से, ध्यान में बैठने से चमत्कारिक ऊर्जा शक्ति का सृजन होगा। स्मरण-शक्ति तथा मन की शक्ति को बल मिलेगा, जिससे हमारी अंतरात्मा की आवाज भी बुलंद होती जाती है, हमारा मन दृढ़ निश्चय करने लग जाता है। इस तरह से अपने आपमें विश्वास पनपने लगता है अगर हमें किसी को जीतना है चाहे वह युद्ध ही क्यों न हो, हम विरोधी की ताकत के आकलन के साथ ही अपनी ताकत का पहले आकलन करते हैं, ताकि किसी तरह की हार का सामना न करना पड़े। इसलिए सबसे पहले हमें अपने आपको जानना होगा। अपनी पहचान ढूंढऩी होगी।

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