Friday, May 29, 2009

जिंदगी के सफर में परेशानियों से घबराएं नहीं



सभी लोग अलग-अलग तरह से अपनी-अपनी यात्राएं कर रहे हैं। यात्रा पूरी करने पर ही हमें अपनी-अपनी मंजिल मिलनी है। रास्ते व साधन सबके अलग परन्तु मंजिल सबकी एक ही है। कब किसको मिलती है ये अलग बात है। कभी-कभी जब हम कोई यात्रा पर होते हैं तो रास्ते तथा साधन आदि में कुछ तकलीफ या कष्ट भी मिल सकता है। यात्रा समाप्त होने के बाद ये कष्ट ज्यादा देर तक नहीं रहते।

मनुष्य अपने पूरे जीवन काल में तमाम तरह की यात्राएं करता रहता है। कभी अकेले तो कभी परिवार के साथ कभी बिजनेस टूर तो कभी घूमने देशाटन आदि के लिए। वैसे देखा जाये तो हमारी पूरी जिंदगी ही संपूर्ण यात्रा है। हमारी इस जीवन यात्रा का टूर ऑपरेटर ऊपर वाला है और उसने पहले से ही जीवन की सभी यात्राएं, उनकी तिथियां तथा उनके साधन सुनिश्चित कर दिये हंै। हम सबकी अलग-अलग यात्राएं तय कर दी हैं। बचपन से ले कर किशोरावस्था तक की यात्रा, शिक्षा की यात्रा, नौकरी रोजगार की यात्रा फिर परिवार भरण पोषण में मनुष्य लगा रहता है। सबके साधन मात्र अलग-अलग हैं। सभी लोग अलग-अलग तरह से अपनी-अपनी यात्राएं कर रहे हैं। यात्रा पूरी करने पर ही हमें अपनी-अपनी मंजिल मिलनी है। रास्ते व साधन सबके अलग हो सकते हंै परन्तु मंजिल सबकी एक ही है। कब किसको मिलती है ये अलग बात है। कभी-कभी जब हम कोई यात्रा पर होते हैं तो रास्ते तथा साधन आदि में कुछ तकलीफ या कष्ट भी मिल सकता है। यात्रा समाप्त होने के बाद ये कष्ट ज्यादा देर तक नहीं रहते। उसी प्रकार जीवन की इस यात्रा में कई प्रकार के दुख व कष्ट आदि का सामना हो सकता है। हमें इन्हें टाइम बीइंग मानकर ध्यान नहीं देना चाहिये।
इस पूरी यात्रा के दौरान हमको अन्य सह यात्री भी मिल जाते हैं लेकिन हमारी किसी दूसरे के साथ किसी भी तरह की कोई प्रतिस्पर्धा नहीं होनी चाहिए, क्योंकि सबकी अपनी अलग यात्रा है। कोई हमारे साथ थोड़ी दूर तक चलता है और साथ छूट जाता है फिर नये मुसाफिर मिलते है, थोड़ा साथ निभाते हंै और चले जाते है। हम अपने ही पूरे परिवार के साथ होते हैं। परिवार में ही सब लोग अपनी अलग-अलग यात्रा पर होते हैं सबकी अपनी निजी यात्रा है। एक दूसरे से किसी का कोई लेना देना नहीं है। बचपन में पढ़ाई दौरान मित्रता, नौकरी रोजगार के समय की मित्रता, सब अलग-अलग साथी मिलते गये बिछुड़़ते गये परन्तु हम अपनी आगे की यात्रा में बढ़ते गये। कोई किसी तरह जीता है, कोई अलग तरीके से जीता है सबके जीने के तरीके अलग-अलग हो सकते हैं परन्तु लक्ष्य सबका एक ही है। सबको अपना जीवन जीना है। हमारा किसी के साथ कोई द्वन्द भी ठीक नहीं है। हम किसी पर अपनी सोच व जीने का तरीका लाद भी नहीं सकते। यह तो यूं था कि हमें जिन्दगी जीने के लिए रोजी रोटी का जुगाड़ व व्यवस्था करनी थी, रहने के लिए छत का इंतजाम करना था। हम इन्हीं दोनों की व्यवस्था करने में ही अपना सम्पूर्ण समय देने लगे। इसके बाद अपनी तिजोरियों को बढ़ाने लगे तथा अपनी कोठियां बनाने में लग गये तथा इन्हीं को अपना मूल उद्देश्य समझ बैठे।
जिस प्रकार भगवान श्री कृष्ण जी ने श्रीमद्भगवत गीता में अर्जुन को उपदेश देते हुये कहा कि तुम अपने साथ क्या लाये थे और अपने साथ क्या ले जाओगे? यह बहुत सार पूर्ण बात हमारे सम्मुख है हमें इस बात पर कोई संदेह नहीं और न ही कोई सवाल है फिर भी हम सब लोग दुकान, मकान, जमीन व जायदाद के चक्कर में फंसे हुये हैं। जब कोई दो बच्चे आपस किसी खिलौने के लिए लड़ते हैं, रोते हंै तथा शोर मचाते हैं तो हम उनसे कहते हैं कि क्या बच्चों की तरह खिलौने के लिए रो रहे हो, आपस में झगड़ रहे हो। हम यह जानते हैं तथा मानते हंै कि हम अपने साथ कुछ नहींं ले जाएंगे फिर भी व्यर्थ परेशान हो रहे हैं। ये इस प्रकार से हो रहा है कि जैसे ट्रेन में सफर के दौरान जब किन्हीं दो यात्रियों के बीच सीट को लेकर विवाद हो जाता है। वह भी इतनी कि नौबत मारपीट की भी आ जाती है। जबकि दोनों को अच्छी तरह मालूम है कि यात्रा समाप्त होने पर दोनों में से कोई भी अपने साथ सीट उखाड़ कर नहीं ले जायेगा, फिर भी हम लड़े जा रहे हंै। झगड़ा कर रहे हंै। वस्तुत: हम अपनी यात्रा के मजे को खराब कर रहे हैं। हम समझौता नहीं करते। हम इसको अपनी बपौती मानकर अपने आप को इसका मालिक बना बैठे हैं। हम सब अपनी यात्राएं अपने मजे के लिए तथा चित्त के आन्नद के लिए करते हंै परन्तु इस अमूल्य जीवन यात्रा का सच्चा स्वाद नहीं चख पा रहे हंै। हम भूल जाते हंै ंकि यह हमारी इंडिविजुवल यात्रा है। हमारी किसी के साथ कोई हिस्सेदारी नहीं और कोई बंटवारा भी नहीं है। कोई भी व्यक्ति किसी भी व्यक्ति का जीवन न तो बांट सकता है और न ही अपना जीवन किसी के साथ बंटा सकता है सबके पास अपना निजी जीवन है, जिसके पास जितना है उतना उसे जीना है तो क्यों न हम इस हंस कर जिएं और उल्लास मनाएं। यहां पर एक बात यह गड़बड़ हो गई की मनुष्य ने जीवन मिलने के बाद अपने अलग उद्देश्य बना लिए तथा अपने दूसरे लक्ष्य निर्धारित कर लिये उसका आध्यात्मिक दिशा से रुझान भी खत्म हो गया है। ऐसा भी नहीं कि उसे ईश्वर पर विश्वास न हो, परन्तु वह इतना महत्वाकांक्षी हो गया कि वह अपने मौलिक जीवन का उद्देश्य ही भुला बैठा।आज वह मानव इस भौतिकवाद के भ्रामक जाल में फंसता जा रहा है। अपने जीवन के अमूल्य क्षणों का सौदा करता जा रहा है। आज का मनुष्य बहुत बड़ा व्यवसायी हो गया है। एक क्षण में बहुत बड़े-बड़े सौदे व बिजनेस डील होती जा रही है लेकिन साथ ही साथ एक सबसे बड़ी भूल भी हो रही है कि आज व अभी का जो समय, क्षण, मिनट, सेकेंड व तारीख गुजर रही है वह हमको दोबारा इस जीवन में नहीं मिल पायेगी। यह अमूल्य समय हमारे जीवन में से ही कम होता जा रहा है और हम निरन्तर समाप्ति को ओर ही बढ़ रहे हैं। क्योंकि जिसका प्रारम्भ हो चुका है उसकी अन्त की प्रक्रिया भी शुरू हो जाती है। इसलिए हम जीवन का रस पान करने का कोई भी अवसर न चूकें बल्कि जीवन में ज्यादा से ज्यादा मौके खोजें जिनमें हम उन्मुक्त रूप से मस्त होकर अपनी पूरी निजता के साथ जी सकें। हमसे ऐसी कोई भूल भी नहीं होनी चाहिये कि बाद में हमे कुछ पछतावा या निराशा हो क्योंकि यह जीवन बहुत छोटा है और काम बहुत ज्यादा। कहीं कुछ जरूरी काम छूट न जाये। जिस प्रकार कुछ लोग यात्रा के दौरान हेड फोन या ईयर फोन लगाकर गाना सुनते हुये यात्रा का पूरा आन्नद लेते हंै उसी प्रकार हम भी जीवन यात्रा के समय ईश्वर का गुणगान, स्तुति तथा आध्यात्मिक बात भी करते चलें।
अपनी इस जीवन यात्रा की शुरूआत तो हमारे जन्म से ही शुरू हो गयी थी। शुरूआत तो हमें पता है लेकिन इसका अन्त कहां है इस बात का किसी को भी पता नहीं। बस हम सबको चलते जाना है अपनी इस पूरी यात्रा के दौरान हमें सजग व चैतन्य भी रहना है क्योंकि हमें किसी को भी नहीं मालूम कि हमारा आखिरी स्टेशन कब और कौन सा है? इसलिए पूरी तैयारी पहले ही कर ली जाये, सब काम निपटा कर बिल्कुल निश्चिंत होकर रहना है। कब आवाज आ जाये और छोड़ दें अपनी गाड़ी।

3 comments:

  1. बहुत ही प्रेरक और उम्दा रचना . आभार.

    ReplyDelete
  2. मैंने सुना है और समझा भी कि जिंदगी इतनी आसान नहीं है…
    मगर उसे सुलझा लेना ही रस है जीवन का…
    प्रेरक व उत्साहवर्धक लेख।

    ReplyDelete
  3. bahut hee prernaadaayak aalekh likhaa hai.....

    ReplyDelete