Sunday, May 24, 2009

बचपन का विस्तार है हमारा जीवन





बचपन में हमने जो खेल खेले, किताबें पढ़ीं, जितना भी अपनी संस्कृति के बारे में जाना, आज सब कुछ उसी का विस्तार ही है। हमने उसी में विकास किया है। हमारे बचपन काल के १२ साल बहुत सेंसबिल हैं। बचपन में बच्चे जो कुछ भी देखते हैं, पढ़ते हैं या किसी को करते हुए देखते हैं, तो वह उनके भीतर बहुत गहरे से जुड़ जाता है अक्सर किसी को पता ही नहीं चलता कि अंदर ही अंदर सब कुछ रिकॉर्ड हो रहा है।
हमारा आज का जीवन हमारे बचपन से कहीं न कहीं से जुड़ा हुआ है बहुत गहराई में जाने पर ही इसका पूरा रहस्य समझा जा सकता है। हम आज जो भी कर रहे हैं वह सब यूं ही नहीं हो रहा है, उसका संबंध हमारे बचपन से ही है। बचपन में हमने जो खेल खेले, किताबें पढ़ीं, जितना भी अपनी संस्कृति के बारे में जाना, आज सब कुछ उसी का विस्तार ही है। हमने उसी में विकास किया है। हमारे बचपन काल के १२ साल बहुत सेंसबिल हैं, हम जो कुछ भी देखते हैं, पढ़ते हैं या किसी को करते हुए देखते हैं, तो वह हमारे भीतर बहुत गहरे से जुड़ जाता है अक्सर किसी को पता ही नहीं चलता कि अंदर ही अंदर सब कुछ रिकॉर्ड हो रहा है।
अनजाने में ही हम बड़े होते-होते उसी की एक कॉपी की तरह बन जाते हैं। हमें किसी भी तरह का आभास नहीं होता कि हमने अपने बचपन में इसी का हिस्सा सीखा होता है। हम अब उसी को आगे बढ़ाये चले जा रहे हैं। इस संबंध में हुए कई शोधों में भी यही निष्कर्ष निकला कि कोई भी व्यक्ति जो भी कार्य करता है उसका उसके बचपन से गहरा संबंध होता है। फ्रायड ने भी इसी तरह का एक शोध किया, जिसमें उन्होंने कई बच्चों को अलग-अलग ग्रुप में रखा। किसी को डॉक्टर का परिवेश दिया तो किसी को इंजीनियर और किसी को क्रमिनल का। कुछ समय बाद देखा कि उन बच्चों में उसी तरह का रुझान था। बचपन में बच्चे जो कुछ भी देखते हैं उनके दिमाग में उसका सीधा असर पड़ता है। इसीलिए देखा जा सकता है कि प्राय: हम बच्चों के सामने कुछेक बातें नहीं करते, कुछ काम नहीं करते। हमें भी मालूम है कि कहीं अमुक बात या काम का बच्चे पर गलत असर न पड़े। इसीलिए पूर्वकाल में इस बात का पूरा ध्यान दिया जाता था। बच्चों को बचपन से ही अच्छे संस्कार के साथ संस्कृति की भी सीख दी जाती थी और बच्चा बड़े होने के साथ-साथ सुसंस्कारवान तथा सुसंस्कृत होता जाता था। वह पूर्वकालिक योग व ध्यान के प्रति भी अनजान न था, बल्कि बहुत गंभीर होता था। समय के साथ-साथ सब कुछ विस्तृत होता चला गया। एक चीज हमको मिली हुई थी, केवल उसे फैलाव देना होता था।
परन्तु आज के इस तकनीकी युग में बहुत कुछ बदल चुका है, यहां तक कि बच्चों के खेल खेलने के तरीके भी बदल गये। पहले के समय में कई बच्चे एक साथ कोई खेल खेला करते थे, जिससे उनके शरीर और दिमाग का विकास होता था तथा आपसी मेल-जोल भी बढ़ता था, परन्तु आज कम्प्यूटर, इंटरनेट से गेम खेलकर यह बच्चे अपना चिड़चिड़ापन बढ़ा रहे हैं। इससे उनका अकेलापन भी बढ़ रहा है। ये सब एक बीमारी की तरफ बढ़ रहे हैं। बच्चों में प्रारम्भ से ही ऊर्जा का विकास होना शुरू हो जाता है। जैसे-जैसे इसकी प्रक्रिया गहरी होती जाती है, मन में स्थिरता आती जाती है। बच्चों का चंचल मन अब सुदृढ़ व स्थिर होने लगता है। जैसे-जैसे बच्चे की उम्र बढ़ती जाती है इससे मिलने वाले परिणाम व लाभ भी गुणात्मक दिशा में बढ़ते जाते हैं।
अभी तक हमने देखा है कि अपना देश पूरे विश्व में आध्यात्मिक दिशा व उपलब्धियों के बारे में जाना जाता रहा है, योग, ध्यान संस्कृति हमारे देश की धरोहर की तरह है। यह अपने देश का सम्मान है पश्चिमी देशों ने यह कला हमारे यहां से ही सीखी है। वे पूरे विश्वास के साथ अपनाकर आध्यात्मिक क्षेत्र में भी अपना विकास कर रहे हैं। हमारे साथ यह विडम्बना नहीं होनी चाहिए कि हम ही इस पर विश्वास न करें। बच्चों का स्वर्णिम विकास एवं भविष्य आज हमारे ऊपर ही निर्भर है। पहले हमें इस बात पर विश्वास करके अपने आंगन में पल-बढ़ रहे बच्चों की रूचि भी इस तरफ बढ़ानी होगी उनके टैलेन्ट व ग्रैस्पिंग पावर को अनदेखा भी नहीं करनी चाहिए। हम यह भी नहीं भूलना चाहिए कि हम लोग आज जो भी कर रहे हैं वह सब हमने अपने बचपन में ही सीखा है तो आज बच्चों के बचपन के साथ कतई खिलवाड़ न करें। उनको उपयुक्त अवसर व साधन उपलब्ध कराकर उनके स्वर्णिम भविष्य की ओर भेजें क्योंकि किसी भी व्यक्ति का विकास उसके बचपन से जुड़ा है। समाज व्यक्तियों से और कई विकसित समाज के आपस में जुडऩे से ही देश का विकास होता है। बचपन एक कोरे कागज की तरह ही होता है उसमें कुछ भी लिखना बहुत आसान होता है, समय निकल जाने के बाद सब कुछ बहुत मुश्किल हो जाता है। जिस प्रकार एक कुम्हार कच्ची मिट्टी से जो भी चाहे वह बर्तन बहुत आसानी से बना लेता है वहीं एक बर्तन से दूसरा बर्तन बनाने के लिए उसे बहुत जटिल व उल्टी प्रक्रिया करनी पड़ेगी। उसी तरह बच्चों को कच्ची मिट्टïी समझें और उनका सही मायने में विकास होने दें।

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