Friday, June 5, 2009

बदलते लाइफ स्टाइल में दें विचारों को तरजीह


समय के साथ ही जिंदगी में भी बदलाव आया और अब मनुष्य को घर की रोटी में स्वाद नहीं मिल पाता। घर का खाना हमेशा स्वादिष्ट नहीं लगता। वह खाने में नया स्वाद ढूंढऩे लगता है। इस प्रकार मनुष्य ने नये स्वाद की तलाश में बड़े व महंगे होटल तथा रेस्टोरेन्ट की खोज कर डाली, जहां पर उसे रोटी के अलावा पिज्जा व स्वाद के अतिरिक्त स्टेटस भी साथ मिल जाता है।

महात्मा गांधी ने सादा जीवन तथा उच्च विचार पर जोर दिया। उन्होंने स्वयं अपने जीवन में भी सादगी अपनाकर हम सबके लिए प्रेरक बनाया। यह गांधी जी का मुख्य संदेश भी बना, जिसे उन्होंने हम सबसे भी अपने-अपने जीवन में अपनाने को कहा। हमने इसे अपनाया भी, परन्तु उनके द्वारा बताये गये अनुपात हमसे गड़बड़ हो गये। हमसे भूल यह हो गई कि हमने अपने जीवन को उच्च कर दिया और विचार हमारे सादा हो गये। हमने जीवन को हाइट दे दी और विचारों का मूल्य नहीं समझा। लिविंग का स्टैंडर्ड बढ़ा दिया और अपनी थिंकिंग को सिंपल कर दिया। फिर लाइफ का पूरा स्टाइल ही बदल गया और इस स्टाइलिश लाइफ में सोच और विचार की जैसे कोई जगह ही न रह गई हो। हर एक व्यक्ति की इतनी व्यस्ततम दिनचर्या हो गई कि उसमें सोचने और विचार करने का समय ही नहीं रह गया।
आदिकाल से अब तक मनुष्य को अपना तथा अपने परिवार का पेट पालने के लिए दो समय की रोटी का प्रबन्ध करना पड़ता था। आगे मनुष्य को रोटी, कपड़ा और मकान की व्यवस्था आवश्यक हो गई। जिसमें खाने को खाना, तन ढकने को कपड़ा तथा सर्दी-गर्मी व बरसात में सिर छिपाने के लिए छत का जुगाड़ करने में हर इंसान लग गया। समय के साथ ही जिंदगी में भी बदलाव आया और अब मनुष्य को घर की रोटी में स्वाद नहीं मिल पाता। घर का खाना हमेशा स्वादिष्ट नहीं लगता। वह खाने में नया स्वाद ढूंढऩे लगता है। इस प्रकार मनुष्य ने नये स्वाद की तलाश में बड़े व महंगे होटल तथा रेस्टोरेन्ट की खोज कर डाली, जहां पर उसे रोटी के अलावा पिज्जा व स्वाद के अतिरिक्त स्टेटस भी साथ मिल जाता है। अब आदमी का रुतबा अपने आप में बढऩे लगता है। पहले के समय में जहां कपड़े का इस्तेमाल केवल तन ढकने के लिए किया जाता था, अब यही कपड़े आदमी की पहचान बन गये। महंगे व ब्रांडेड कपड़े पहने लोग अलग से पहचाने जाने लगे। फैशनेबल व कीमती कपड़ों से लोगों की कीमत आंकी जाने लगी। अब सामने वाले व्यक्ति का हर एक व्यक्ति से व्यवहार करने का तथा मिलने-जुलने का तरीका भी बदल गया। बड़े लोग मकान की जगह महंगे-महंगे विदेशी पत्थरों से भव्य महल व कोठियों का निर्माण करने लगे। घूमने के लिए महंगी, लम्बी-लम्बी व आरामदायक चमचमाती गाडिय़ां सड़कों पर दौडऩे लगीं। खाना-पीना, घूमना-रहना सब कुछ अब स्टेटस सिंबल हो गया। इन सबसे हमारा पूरा लाइफ स्टाइल ही अलग हो गया। यहां से शुरू होती है आज के मानव की नयी कहानी। आज लगभग सभी लोग इस अन्धी प्रतियोगिता में शामिल हो गये। सभी लोग एक दूसरे से आगे निकलने की होड़ में शामिल होते जाते हैं। इन सभी की प्रतियोगिता अपने ही मित्र, रिश्तेदार या पड़ोसी से ही होती है एक दूसरे से अपने आपको कोई भी कम नहीं समझता है। ज्यादा खर्च करना, अब एक नया फैशन बन जाता है ज्यादा से ज्यादा खर्च कर अपने मित्रों, रिश्तेदारों तथा पड़ोसी को दिखाना, आकर्षित करना तथा उन पर अपना रौब बनाना ही शायद आज के आदमी के स्टेटस का एक अहम हिस्सा बन गया है। जिनके पास पैसा है, वाकई अमीर हैं उनके लिए कोई खास बात नहीं है। मुश्किल तो यह है कि जिनके पास पैसा नहीं है, वह इस प्रतियोगिता में हिस्सेदार बन गये हैं। दूसरे की बराबरी करने में अब उनको दिक्कत होने लगती है कि अब उनसे कैसे मुकाबला या बराबरी की जाए? फिर इन सबकी जिंदगी में इनके स्टेटस सिंबल को बचाने व बनाने के लिए बैंक का लोन दुबके पांव कब घुस आता है इस बात का पता ही नहीं चलता है। लोगों को अब अपना लाइफस्टाइल बढ़ाने के लिए लोन पर पैसा लेने की आदत पड़ जाती है। व्यक्ति अब उधार पैसे लेकर मकान बनाने लगता है, घूमने फिरने लगता है तथा सैर सपाटे के लिए चमचमाती गाडिय़ों का प्रयोग भी बेधड़क करता है। शुरुआती दौर तो ठीक होता है परन्तु कुछ ही समय बाद किस्तों की समय पर अदायगी उनके लिए एक नया सिर दर्द बन जाती है। अब किस्तें समय पर कैसे अदा करें इसलिए कभी-कभी दूसरा लोन लेना पड़ जाता है। जिंदगी की सारी खुशियां किस्तें अदा करने में लग जाती हैं। इस प्रकार हमारा सारा जीवन झूठे स्टेटस की बराबरी करने में लग जाता है। हमारी परेशानी की मूलवजह हमारे जीवन के दु:ख नहीं हैं बल्कि हमें ज्यादा दिक्कत सामने वाले की लाइफस्टाइल को देखकर होती है। इस कारण हम सबने अपने जीवन में असीमित फिजूलखर्च बढ़ा लिए हैं। इस कहावत पर भी ध्यान नहीं दिया कि जितनी चादर, उतने पांव। शायद हम आज के इस दौर में गांधी जी, लाल बहादुर शास्त्री, स्वामी विवेकानन्द, आचार्य बिनोवा भावे जैसी शख्सियतों के जीवन की सादगी को भूल गये, जिन्होंने अपने जीवन की रंगीनी तथा चकाचौंध से ज्यादा अपने विचारों को महत्व दिया। इसीलिए उनका सारा जीवन प्रसिद्धि के प्रकाश से जगमगा उठा। अगर सही मायनों में हम अपने जीवन का स्टाइल बदलना चाहते हैं तथा कुछ सिंबलिक काम करना चाहते हैं तो हमें निश्चित रूप से भौतिकवाद के साधनों से हटकर अपने अमूल्य विचारों को तरजीह देनी होगी।

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