Saturday, June 13, 2009

खुद की खुद से पहचान का साधन है ध्यान


जैसे-जैसे उम्र बढ़ती जाती है व्यक्ति का रुझान पूजा व आस्था में बढऩे लगता है, क्योंकि अब मनुष्य लगभग अपनी हर आवश्यक जिम्मेदारी को धीरे-धीरे पूरी करता जाता है। अब उसे अपने लिए पर्याप्त समय आराम से मिल जाता है। खाली समय में पूजन पाठ साथ-साथ ध्यान में बैठने से उसे इस उम्र में भी अपने अन्दर असीम ऊर्जा व शक्ति का आभास व अनुभव होता रहता है।


पहले के समय में ऋषि मुनि संन्यासी या तपस्वी घने जंगलों में पहाड़ों पर या नदी किनारे अपनी साधना, तपस्या या ध्यान तथा तप योग के बल से अपनी शरीर की ऊर्जा को जाग्रत करते थे। गृहस्थ अवस्था से निकल कर आश्रम की ओर रुख करने वाले अधिकतर लोग सूनसान क्षेत्र या जंगल आदि की ओर ही जाया करते थे। अब ध्यान की अवस्था को पाने के लिए संन्यस्त रूप धारण करने की कोई अनिवार्यता नहीं रही। कोई भी मनुष्य अपनी पारिवारिक जिंदगी जीने के साथ ही ध्यान को उपलब्ध हो सकता है। इसके लिए उसे अपने परिवार को छोड़कर पहाड़ या जंगल की ओर जाने की आवश्यकता नहीं है। अब परिवार के बीच रहते हुए तथा नियमित कामकाज को करते हुए भी ध्यान को पाया जा सकता है।
ध्यान अपने आपको जगाने की बहुत पुरानी विद्या है। ध्यान से ही हमें आध्यात्मिक, शारीरिक, मानसिक लाभ व अलौकिक दिव्य दृष्टि का आभास होता है। इसके आभास मात्र से ही शरीर में नई ऊर्जा का संचार होना शुरू हो जाता है। ध्यान एक-लाभ अनेक ध्यान की प्रक्रिया एक ही है सबको एक ही तरीके से करना है ध्यान करने वाला चाहे कोई भी, हो किसी भी आयु वर्ग का हो, ध्यान करने की विधि सभी के लिए एक समान ही है। विद्यार्थियों को, नौकरी पेशा लोगों के लिए, घरेलू महिलाओं के लिए व बड़े बुजुर्गों को ध्यान की अवस्था प्राप्त करने के लिए सभी लोगों को केवल एक ही काम करना है परन्तु इसके लाभ सबको अपने-अपने काम व आयु वर्ग के हिसाब से मिलने लगते हैं। विद्यार्थियों के लिए नियमित रूप से ध्यान की प्रक्रिया करते रहने से ही किसी भी विद्यार्थी का मन एकाग्रचित्त होना शुरू हो जाता है, उसकी चंचलता धीरे-धीरे नियन्त्रित होने लगती है। मन अपने वश में होने लगता है। जब कोई छात्र या छात्रा अपने किसी भी विषय को तैयार करता है तो उसका पूरा मन उस विषय पर केन्द्रित होने लगता है, अब उसे याद करने तथा स्मृति में बनाये रखने में कोई परेशानी नहीं होती और आवश्यकता पडऩे पर कुछ भी विस्मृत सा नहीं होता बल्कि पल भर में ही सब कुछ स्पष्ट हो जाता है
ध्यान करने से ही पढऩे में रुचि भी आने लगती है। किसी भी विषय का पूरा का पूरा पन्ना मस्तिष्क में फोटो की तरह कैद हो जाता है और परीक्षा आदि के समय पर एक मिनट में ही वही पूरा पन्ना आंखों के सामने आ जाता है। छोटी-छोटी चीजों व नाम आदि को भी आसानी से याद में रखा जा सकता है। रोजगार नौकरी पेशा के लिए विद्यार्थी जीवन के बाद हर एक की जिंदगी में कुछ करने का सपना होता है। हर एक के सामने उसका बनाया हुआ उसका लक्ष्य दिखाई पड़ता है उस लक्ष्य को हासिल करने के लिए अटूट मेहनत, धैर्य व साहस की अत्यन्त आवश्यकता होती है। ध्यान करने वाले व्यक्ति को इन सबसे निपटना अच्छी तरह आता है। उसमें लगन व मेहनत की कोई कमी नहीं होती और वह धैर्य व साहस का साथ कभी नहीं छोड़ता है क्योंकि ध्यान करने से ही सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा अपने आप बदलकर सकारात्मक होने लगती है। ऐसे में उसका लक्ष्य उसके पास आने लगता है चाहे कोई व्यक्ति नौकरी पाने के लिए प्रयास कर रहा हो या फिर व्यापार के किसी लक्ष्य पर उसका निशाना नहीं चूकता है क्योंकि ध्यान करने से ही किसी भी व्यक्ति के पास तमाम प्रकार की असीम शक्तियां एकीकृत होने लगती है। वह अपने अंदर से ही बलवान महसूस करने लगता है। उसके मन तथा कर्म के बीच में एक असीमित शक्तियों का संग्रह होता है और जब भी मन किसी भी कार्य के लिए सोचता है तो उसे शक्ति यहीं से मिलती है फिर मन आगे निर्भय होकर बढ़ता जाता है, किसी से नहीं डरता और जीत जाता है।
घरेलू महिलाओं के लिए घरेलू महिलाओं के काम काज पैसा कमाकर लाने वाले पुरुषों से कमतर नहीं आंके जा सकते हैं क्योंकि इन लोगों पर घर को संभालने की पूरी जिम्मेदारी होती है। परिवार की ऐसी बहुत सी स्थितियों में घर की औरतें ही निर्णय करती हैं और पुरुष इन पर विश्वास भी करते हैं। इनमें त्वरित निर्णय लेने की क्षमता का विकास भी ध्यान से ही आता है क्योंकि घर की एक महिला पर कई तरह की जिम्मेदारियां होती हैं, किसी की पत्नी है, किसी की मां है और किसी की बहू। इन सभी को अच्छी तरह से निभाने के लिए हमेशा सकारात्मक व अच्छी सोच के साथ पूरे परिवार की अच्छी तरह से देखभाल करनी होती है यह भी किसी चुनौती भरे काम से कम नहीं होता है तथा समूचे परिवार की उन्नति व प्रगति का आधार भी बनती है। ध्यान करने वाली महिलाओं को साहस व ऊर्जा की कोई कमी नहीं होती है तथा ध्यान उनके आध्यात्मिक विकास को तो बढ़ाता ही है तथा ध्यान से ही विकसित दिमाग के साथ-साथ शरीर भी स्वस्थ रहता है।
बड़े बुजुर्गों के लिए जैसे जैसे उम्र बढ़ती जाती है व्यक्ति का अपने आप रुझान ईश्वर की पूजा व आस्था में बढऩे लगता है क्योंकि अब मनुष्य लगभग अपनी हर आवश्यक जिम्मेदारी को धीरे-धीरे पूरी करता जाता है तथा अब उसे अपने लिए पर्याप्त समय आराम से मिलता जाता है। जिस पर ध्यान करने से मनुष्य आध्यात्म की ओर भी बढऩे लगता है। अब उसके खाली समय में पूजन पाठ के साथ साथ ध्यान में बैठने से उसे इस उम्र में भी अपने अन्दर असीम ऊर्जा व शक्ति का आभास व अनुभव होता रहता है। उम्र के बढऩे के साथ ही मनुष्य के अन्दर सक्रियता, चुस्ती व फुर्ती की कोई कमीं नहीं होती है। इस प्रक्रिया को लगातार करने से ही बढ़ती उम्र का दिमाग भी अच्छी तरह से सक्रिय रहने लगता है तथा किसी भी प्रकार की स्मरण शक्ति का नुकसान नहीं होता है। जैसा कि प्राय: देखा जाता है कि किसी भी व्यक्ति की उम्र बढऩे के साथ ही उसे याद रखने की क्षमता कम होती जाती है। अब ध्यान में बैठने से कोई भी समय बेकार नहीं जाता है हर पल आनन्द ही आनन्द, हर जगह रस ही रस क्योंकि यही जीवन का आखिरी पड़ाव है और यही जीवन का आखिरी चक्र है। ध्यान में मग्न होने से ही अब जीवन पूरा मस्ती में बीतता जाता है। ध्यान करने से अब वृद्धावस्था जीवन का बोझ नहीं बल्कि आनन्द का वो पड़ाव बन जाता है जिसमें हर पल मौज की लहरों में गुजरता है और कोई भी मनुष्य ध्यान करने से अपने जीवन के आखिरी हिस्से को पूरी तरह से सुखी, समृद्ध व सन्तुष्ट कर सकता है। ध्यान की अचूक प्रक्रिया को नियमित रूप से ही मनुष्य के किसी भी आयु वर्ग का जीवन सकारात्मक सरल व सफल बना सकता है। इसे हम घर, ऑफिस व दुकान कहीं पर भी, किसी भी समय कर सकते हैं, हम सब ध्यान की चाभी से ही वैभव के अनमोल खजाने को खोलकर अपना व्यक्तिगत तथा व्यावसायिक जीवन हर दृष्टि से महत्वपूर्ण बना सकते हैं।

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