Saturday, June 20, 2009

मेहनत की दौलत से सब कुछ पाएं

जीवन में कोई भी व्यक्ति परफेक्ट नहीं है। वह हर पल कुछ न कुछ सीखता रहता है। कभी जीवन की किसी स्थिति से या कभी किसी व्यक्ति से। हम सब यहां पर अपने हर कदम से सीखते रहते हैं, यह जीवन सीखने का ही नाम है। काम करते रहते हैं, आगें बढ़ते रहते हैं और परिश्रम करने से पीछे नहीं हटते। वैसे तो परिश्रम करने की आदत हमारे बचपन काल से ही पड़ जाती है। पहले तो पढ़ाई लिखाई के दौरान मेहनत, बाद में नौकरी या रोजगार में कड़ी मेहनत। इसी परिश्रम से ही हमारे दिमाग में अपने टारगेट या लक्ष्य को पूरा करने के लिए आइडियाज या रास्ता मिलते रहते हैं, जो आगे चलकर हमारी मेहनत को कम भी कर देते हैं, जिसको हम वर्किंग स्मार्ट कहते हैं।



तीन दोस्त थे बचपन के। तीनों एक गांव में ही रहते तथा एक साथ ही पढ़ते थे। भगवान में तीनों की बहुत आस्था थी। वे हमेशा भगवान से अपने लिए अलग-अलग चीजों की मनोकामना किया करते थे। एक कहता कि हे भगवान मुझे ऐसी दुकान वा काम करवा दो जिससे कि मेरा भविष्य बन जाये तथा जीवन यापन ठीक तरह से चल सके। दूसरा कहता कि हे भगवान मुझे ऐसी नौकरी दिलवा दो ताकि पूरी जिंदगी शान से चलती रहे, जिसमें बढिय़ा मकान व गाड़ी भी हो। तीसरा दोस्त भगवान से कहता कि हे भगवान मुझे ऐसा कुछ नहीं चाहिए मुझे केवल काम करने की ऐसी शक्ति देना व मुझसे इतना परिश्रम कराना कि अपनी मेहनत के बलबूते पर मैं अपनी पहचान खुद बना सकूं।
ऐसा ही हुआ, आगे चलकर एक दोस्त ने दुकान कर ली व उससे खुश व पूरी तरह से संतुष्ट हो गया। दूसरे को नौकरी भी मिल गयी और उसका मकान भी हो गया। तीसरे दोस्त ने कड़ी मेहनत करके बड़ी फैक्ट्री कर ली। वह बहुत परिश्रमी था तथा मेहनत करना चाहता था। परिश्रमी होने के कारण उसके पास बड़ा मकान, कई गाडिय़ां व नौकर-चाकर सब कुछ हो गया। उसका खूब नाम हो गया। सब लोग उसको जानने लगे और वह पूरी तरह से सुखी व सम्पन्न हो गया। हम ईश्वर से जो मांगते हैं वह हमें मिलता भी है तो हम ईश्वर से छोटी चीज क्यों मांगे? जब मांगना ही है तो बड़ी चीज मांगें, मतलब पूरा पैकेज। इन्दिरा गांधी जी ने भी कहा है कि 'देयर इज नो सबस्टीट्यूट टू हार्ड वर्कÓ। अर्थात हार्ड वर्क के बिना कुछ भी नहीं होता, कठिन परिश्रम ही सफलता की कुंजी है। किसी भी कार्य की सफलता किए गए परिश्रम पर ही निर्भर करती है। हमारा प्रयास तथा हमारी मेहनत सम्पूर्ण होनी चाहिए। उसमें किसी भी तरह की कमी की गुंजाइश न हो। दूसरी बात हमारे परिश्रम करने में किसी भी तरह का हमारे मन में प्रलोभन व लालच भी नहीं होना चाहिए। गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा भी है तुम केवल कर्म करो, फल की आशा न करो। यहां पर कर्म से उनका आशय परिश्रम से है। फल यानी लाभ की कोई अपेक्षा नहीं रखनी चाहिए। मतलब हमें केवल परिश्रम करते रहना है उसमें अपनी ओर से कोई शर्त नहीं होनी चाहिए, क्योंकि इसका जज या निर्णायक कोई और है। अगर तुम्हारी परफॉर्मेंस सौ प्रतिशत सही हुई तो ईश्वर के उपहार मिलना शुरू हो जाएंगे। एक तरह से देखा जाए तो पहले ईश्वर हम सबको मेहनत करना सिखाता है। कहीं हमसे कोई भूल-चूक व कसर न रह गयी हो, इसलिए समय-समय पर हमारी परीक्षा भी लेता रहता है। जब वह हर मामले में सन्तुष्ट हो जाता है तो हमें अपनी परीक्षा में पास कर देता है। शायद वह हर दशा व दिशा से निश्चिंत हो जाना चाहता है कि वह सफलता को जिन हाथों में सौंप रहा है वह वाकई इसके काबिल भी हैं या नहीं। कहीं सफलता किसी नौसिखिया के हाथ में तो नहीं जा रही है? क्या वह इसका पूरा रख-रखाव कर पायेगा? क्या वह इस सफलता को पचा पायेगा? हमारी पूरी मेहनत अर्थात यह पूरी प्रक्रिया केवल इन प्रश्नों के उत्तर का प्रमाण देने में ही लग रही है। केवल मात्र इच्छा होने से ही नहीं पहले सफलता के लिए काबिलियत भी होनी चाहिए, वह यह भी देखना चाहता है।
मान लिया जाए कि हम अगर किसी एक काम में असफल भी हुए तो इसका यह अर्थ नहीं कि हम पूरी तरह से असफल सिद्ध हो गए। वस्तुत: यह हमारा केवल एक प्रयास ही असफल हुआ है। हमारे तरीके में कोई कमी हो सकती है। हमको मालूम भी है कि निरंतर अभ्यास ही काम को सिखाता है। इस जीवन में कोई भी व्यक्ति परफेक्ट नहीं है। वह हर पल कुछ न कुछ सीखता रहता है। कभी जीवन की किसी स्थिति से या कभी किसी व्यक्ति से। हम सब यहां पर अपने हर कदम से सीखते रहते हैं, यह जीवन सीखने का ही नाम है। काम करते रहते हैं, आगें बढ़ते रहते हैं और परिश्रम करने से पीछे नहीं हटते। वैसे तो परिश्रम करने की आदत हमारे बचपन काल से ही पड़ जाती है। पहले तो पढ़ाई लिखाई के दौरान मेहनत, बाद में नौकरी या रोजगार में कड़ी मेहनत। इसी परिश्रम से ही हमारे दिमाग में अपने टारगेट या लक्ष्य को पूरा करने के लिए आइडियाज या रास्ता मिलते रहते हैं, जो आगे चलकर हमारी मेहनत को कम भी कर देते हैं, जिसको हम वर्किंग स्मार्ट कहते हैं। लक्ष्य प्राप्त करने के लिए वैसे हमारे पास हमेशा दो रास्ते होते हैं- एक तो परमानेंट होता है जिसमें हमारे मेहनत के स्टेमिना की पूरी परीक्षा देनी होती है। इसके बाद हमें जो सफलता मिलती है वह स्थायी होती है। यह रास्ता कठिन जरूर है, परन्तु पार कर जाने के बाद इससे आत्म विश्वास व आत्म गौरव की भी वृद्धि हेाती है, जबकि दूसरा रास्ता इसकी अपेक्षा आसान होता है, परन्तु उसमें स्थायित्व नहीं होता, क्योंकि यह केवल अपनी मेहनत के बल पर नहीं मिला होता है, इसलिए इसमें आत्म संन्तुष्टि का अनुभव नहीं होता है। कभी-कभी समय के साथ परिश्रम करते-करते बीच-बीच में हौसला टूटने सा लगता है। इसको भी हमें भरोसा देना होता है कि सफलता दूर सही पर हम अपनी मेहनत से उस तक जल्द पहुंच रहे हैं। यह हमारी मेहनत ही है कि यह पूरा रास्ता हम कितने समय में पूरा कर लें। मेहनत ही हमें मजबूत भी बनाती है तथा हमारी शारीरिक क्षमता भी इससे बढ़ती है। सफलता के मार्ग पर अनगिनत रोड़े, बाधाएं व रुकावटें भी मिलती हैं जो हमारी ताकत को आजमाती हैं। यानी सही मायनों में परिश्रम ही सच्ची दौलत है तथा इससे आत्मीय तथा भौतिक दोनों प्रकार के सुखों का अनुभव किया जा सकता है। इस दौलत को कमाकर हम इससे सब कुछ हासिल कर सकते हैं, फिर कुछ भी हमसे वंचित नहीं हेाता है। सब कुछ हमारी पकड़ में रहता है। जीवन के जिस क्षेत्र में हमने अपना लक्ष्य बनाया है, उसमें हमें नित्य ही नई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। फिर भी हम परिश्रम तथा इससे ही उपजे अदम्य साहस की बदौलत हंसते-हंसते इनका मुकाबला करते हुए जीत जाते हैं। परिश्रम से ही हम सफलता के शिखर पर बने रह सकते हैं क्योंकि सफलता के शिखर पर पहुंचना जितना मुश्किल है, उससे ज्यादा मुश्किल होता है उस शिखर पर बने रहना।

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