Monday, April 19, 2010

'लिव-इन रिलेशनशिप', विसंगतियों भरा रिश्ता



वास्तविकता में इस रिश्ते की उपज पश्चिम के देशों से हुई है। आज की ज्यादातर युवा पीढ़ी आधुनिकता का पीछा कर रही है। जिस पर फिल्मी दुनिया की चकाचौंध व ग्लैमर ने भी इसमें अपना रंग चढ़ाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। सैफ अली खान की सलाम नमस्ते फिल्म का असर अब देश के मेट्रो शहरों से लेकर छोटे शहरों के युवाओं की जिंदगी में भी देखा जाना संभव है।

फिल्म अभिनेत्री खुशबू के विवाह पूर्व शारीरिक संबंध बनाये जाने के पक्ष में दिये गये एक वक्तव्य के आधार पर सुप्रीम कोर्ट ने उसकी बात को जायज बताते हुए इसे अपराध की सीमा से बाहर रख दिया। शीर्ष कोर्ट की विशेष पीठ ने कहा कि लिव-इन रिलेशनशिप किसी भी दृष्टि से अपराध नहीं हो सकता है। मतलब वयस्क स्त्री-पुरुष बिना शादी के एक ही घर में पति-पत्नी की तरह रह सकते हैं और साथ ही उत्पन्न संतानें भी वैध होंगी। साथ ही इस तरह के रहन-सहन की विसंगतियों को भी भलीभांति देखना आवश्यक बन जाता है।
सन् २००५ में फिल्म अभिनेत्री खुशबू ने एक पत्रिका को दिये साक्षात्कार में शादी से पहले सेक्स संबंध बनाये जाने की पुरजोर वकालत की थी, जिसके विरोध में देशभर से तमाम याचिकाएं दाखिल हुईं। अंत में देश की शीर्ष अदालत ने समाज में इस नये रिश्ते के जन्म पर अपनी मुहर लगा दी, वहीं पर इस रिलेशनशिप को पहले से मानने वालों के रिश्तों को भी न्यायिक सुरक्षा मुहैया करा दी। लगभग दो दशक पहले जहां यह बात किसी के द्वारा सोची भी नहीं जा सकती थी कि समाज में कोई ऐसा भी रिश्ता हो सकता है जो केवल अपनी स्वतंत्रता, निजता व आपसी समझदारी से बिल्कुल किसी कॉन्टे्रक्ट की तरह से देखा व परखा जा सके। दुनिया में पति व पत्नी जितना करीबी रिश्ता दूसरा कोई नहीं है, जो आपसी समझबूझ व रजामंदी पर आधारित होता है। पहले के समय में विवाह के रिश्ते परिवार के बड़े-बूढ़े लोग आपस में ही देख व तय कर लिया करते थे। दूल्हे को दूल्हन का चेहरा शादी के मंडप पर ही दिखाई पड़ता था। फिर समय बदला, अपनी पसंद के लड़के या लड़की के साथ शादियां होने लगीं। अब अपने समाज में एक नया बदलाव आने जा रहा है, जो समाज के पारंपरिक विवाह की परिभाषा को पूरी तरह से बदल कर रख देगा। नये जमाने का वैवाहिक स्वरूप लिव-इन रिलेशनशिप के नाम से पहचाना जायेगा। जो पश्चिम के रंग में रंगा हुआ आधुनिक विवाह होगा। वास्तविकता में इस रिश्ते की उपज पश्चिम के देशों से हुई है। आज की ज्यादातर युवा पीढ़ी आधुनिकता का पीछा कर रही है। जिस पर फिल्मी दुनिया की चकाचौंध व ग्लैमर ने भी इसमें अपना रंग चढ़ाने में कोई कोर कसर नहीं छोड़ी है। इसी मुद्दे पर बनी सैफ अली खान की सलाम नमस्ते फिल्म का असर अब देश के मेट्रो शहरों से लेकर छोटे शहरों के युवाओं की जिंदगी में भी देखा जाना संभव है। इस रिश्ते को भरपूर बढ़ावा देने के लिए इंटरनेट पर लिव-इन रिलेशनशिप की ढेरों साइटें खुली हुई हैं। इसमें रजिस्टे्रशन के साथ सदस्यों के फोटो-बायोडाटा एलबम सहित तमाम सामग्री हर वक्त मौजूद है। इसमें दो राय नहीं है कि इंटरनेट 'लिविंग टुगेदर' के लिए परफेक्ट मैचिंग कराने का एक बड़ा अधिकृत बाजार बन जायेगा।
हमारे समाज में होने वाले पारंपरिक विवाह ऐसी सामाजिक व्यवस्था है जिसके अन्तर्गत एक स्त्री और पुरुष को विवाह के गठबंधन में बांधा जाता है। परंतु आज आधुनिक बदलाव के चलते बड़ी होती युवा पीढ़ी इतनी समझदार या मेच्योर हो गई है कि अब वह अपने भविष्य की अच्छाई के लिए अपने जीवन साथी का चुनाव विवाह पूर्व हुए आपसी समझौते के आधार पर करेगी। जिंदगी में आने वाले तमाम अनापेक्षित जोखिमों का पूर्व आकलन करने में ये लोग कितने सक्षम होंगे, इसका पता नहीं। इनमें से ज्यादातर साथी पार्टनर में लिविंग मैनर्स, एटीट्यूड व फाइनेंशियल सिक्योरिटी आदि को ही मुख्य रूप से तव्वजो दिया जायेगा। ये सब काम एक छत के नीचे एक साथ रह कर किया जायेगा। भावावेश, इन्हीं सब नजदीकियों के बीच आपसी शारीरिक सम्पर्क या संबंध हो जाने से भी इनकार नहीं किया जा सकता है। एक ओर जहां युवाओं में यौन उन्मुक्तता के प्रति स्वछंदता व स्वतंत्रता का विस्तार होगा, वहीं उनके सामाजिक स्तर में गिरावट आने की भी संभावना बढ़ जायेगी। इसी कॉन्ट्रेक्ट के बीच अगर गैर इरादतन किसी बच्चे की पैदाइश हो जाने या आपसी रजामंदी टूटने व अलगाव जैसी स्थिति में बच्चों के भविष्य के प्रति किसकी जवाबदेही सुनिश्चित करी जायेगी।
देखा जाये तो अभी तक अपने देश में होने वाले पारंपरिक विवाह से तलाक व बच्चों की परिवरिश जैसे मामलों का प्रतिशत न के बराबर है। फिर इस लिविंग टुगेदर से निकले हुए तलाकशुदा स्त्री या पुरुष अपने भविष्य के दूसरे जीवन साथी के लिए कितने भरोसेेमंद होंगे या फिर शादी के लिए दूसरा कॉन्ट्रेक्ट होगा। कुल मिलाकर लिव-इन रिलेशनशिप से बने इस नये वैवाहिक रिश्ते के फायदे और नुकसान की जांच-पड़ताल पूर्व में ही कर लेनी आवश्यक है। साथ ही यह भी देखना है कि ऐसे जोड़े अपनी जिंदगी और कॉन्ट्रेक्ट में अगर सफल भी हो गये तो क्या समाज से इन्हें विवाह जैसे पवित्र सामाजिक रिश्तों की बराबरी का दर्जा मिल पायेगा?

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