Friday, September 10, 2010

बातों में काम या काम में बातें



आज के समय में आदमी बहुत व्यस्त होता जा रहा है। उसको एक काम से फुर्सत नहीं मिलती। फिर उसी समय उसे दूसरे काम भी निपटाने की याद आ जाती है। समय सीमित है, और काम होते हैं ज्यादा। इसीलिए आज के मशीनी व तकनीकी युग में मनुष्य भी बिल्कुल मशीन की तरह नजर आता है। धर हो, आफिस हो या फिर सडकों पर दौड़ते लोग। हर आदमी दोहरा व्यस्त नजर आता है।
एक हाथ में फोन तो दूसरे हाथ से और जरुरी काम निपटाता दिखाई पड़ता है। इतनी जल्दबाजी व समय बचानें के चक्कर में अधिकतर लोग खतरे भी कम मोल नहीं लेते, और सबसे बेपरवाह बने रहते हैं। जब से मोबाइल क्रांति शहरों में आई है, लगभग तभी से फोन या मोबाइल पर बतियानें का एक अनूठा कांबिनेशन या सम्बन्ध दूसरे सभी कामों के बीच बन गया है। मसलन, एक कान पर फोन या मोबाइल लगाकर धर पर लोग रोजमर्रा के जरुरी काम निपटाते हैं। आफिसों में भी यह दृश्य काफी नजर आता है, जहां एक हाथ फोन या मोबाइल पर होता है, तो दूसरा हाथ कम्प्यूटर या लैपटाप पर होता है, या फिर पेपर वर्क निपटाया जाता है। सबसे भयावह सीन सड़कों पर देखा जाता है, लोग चलती गाड़ी में एक कान में मोबाइल को अपने एक कंधे के सहारे या हेल्मेट के अंदर धुसाकर बात करते हैं। इसी के साथ इनकी स्कूटर या मोटर साईकिल भी सड़कों पर फर्राटा मार के दौड़ती जाती है। चार
पहिया वाहनों में भी यही होता है। एक हाथ में गाड़ी का स्टीयरिंग है, और दूसरा हाथ मोबाइल में व्यस्त रहता है। सभी लोग अपनी जान व माल की चिंता फिक्र किये बगैर बड़ी बेपरवाही से बस चलते जाते हैं। इनमें से कुछ जागरुक मोबाइल धारक वाहन चलाते वक्त जब चलती गाड़ी में बात करनें के लिए ईयर फोन या ब्लूटूथ जैसे डिवाइस इस्तेमाल करते है, तब इनके गर्दन व कानों के पास लटकते हुए तारों से आदमी के हाई-टेक होने का अहसास होता है। आज का आदमी इतना व्यस्त होता जा रहा है कि जिस रोटी के लिए शख्स काम धंधा करता है, दिन भर मेहनत करता है। खाना खाते वक्त भी उसके एक हाथ में मोबाइल फोन होता है। उसका ध्यान खानें में ना होकर बातों में होता है। वह क्या खा रहा है और कैसे खा रहा है इसका उसको कुछ पता नहीं। काम धंधे की बातें हो या फिर दोस्तों सम्बंधियों से। फोन हर काम के साथ में रहता है। कारण भी है कि आदमी कभी खाली नहीं रहता, और फोन की धंटी कभी भी बज सकती है। अगर हम ध्यान से अपने दिमाग की स्थिति पर नजर डालें, तो पता चलता है कि हमारे दिमाग का एक अहम हिस्सा एक समय पर किसी एक काम के साथ सक्रिय रहता है। जबकि दूसरा हिस्सा निष्क्रिय रहकर काम करता है। फोन या मोबाइल पर बात करते हुए दिमाग बातों पर ही कंद्रित होता है। फिर बाकी के और काम जो बात करते हुए किये जाते हैं, ये काम दिमाग का निष्क्रिय हिस्सा शिथिलता के साथ निपटाता है। जाहिर है कि गाड़ी चलाते वक्त फोन पर बात करना धातक हो सकता है और उसका असर दूसरे अन्य कामों की गुणवत्ता पर भी पड़ता है। जैसे भोजन
करते वक्त बातें खानें के बहुमूल्य विटामिन व प्रोटीन को नष्ट कर देती है। क्योंकि बातों में संलिप्त
दिमाग पर्याप्त मात्रा में शरीर में पाये जाने वाले इंजाइम्स व रसासनों को भोजन में उस समय समाविष्ट
नहीं कर पाता है। एक काम तो ठीक होता है, परंतु दूसरे के परिणाम अनुकूल नहीं मिल पाते हैं।
पुराने समय की कहावत है- एक समय में एक ही काम, देता है अच्छा परिणाम। अब चरित्रार्थ नहीं दिखती। गुरुजन कहते थे-प्ले, व्हाइल यू प्ले। रीड, व्हाइल यू रीड। ईट, व्हाइल यू ईट। शायद मोबाइल युग के आ जाने से आदमी की व्यस्तता इतनी बढ़ गई है कि ये पुरानी कहावते जैसे अब नजरअंदाज व लुप्त होती नजर आती है। धर में, आफिस में, सड़क पर या भोजन के वक्त दूसरा कोई अन्य काम अचानक सुझाई दे जाता है। इतने में ही किसी का फोन आ जाता है या फिर किसी को फोन करने की याद ही आ जाती है, फिर भूल जाने के डर से तुरंत फोन मिलाना ही बेहतरी समझी
जाती है। आज की तकनीक के इस छोटे से खिलौनें के साथ लगभग हर कोई खेल रहा है। यह मोबाइल आम जिंदगी के हर पहलू में अपनी मजबूत पैठ बना चुका है। हर वक्त यह आदमी के साथ रहता है। कभी धर, आफिस या अन्य कहीं पर गलती से छूट जाने पर आदमी अपने आप को आधा महसूस करता है, और उसकी बेचैनी बढ़ जाती है। कुछ लोगों का कहना है कि एक बार जेब में पैसे न हों, जेब कट जाय। परंतु, मोबाइल साथ में होना बहुत जरुरी है। क्योंकि, यह मोबाइल किसी भी समस्या से निजात भी दिला देता है। कुछ ही क्षण में मित्रों, शुभचिंतकों को पास ले आता है। सुख या दुख
की धड़ी में मोबाइल एक अच्छे दोस्त की तरह साथ भी निभाता है।

No comments:

Post a Comment