Friday, September 3, 2010

विविध रूपों में बसा है कान्हा का विराट स्वरूप



जन्म के साथ ही कृष्ण को कई नाम मिले। कोई उन्हें देवकीनंदन कहता, तो कोई उन्हें यशोदा का नंद बुलाता है। कृष्ण ने बचपन से ही कई रूप धरे, उनके हर चरित्र को एक नया नाम मिला। उनके सभी रूपों में काफी विविधता के साथ ही एक बहुआयामी सामंजस्यता भी देखी जाती है। श्री कृष्ण अनेक रंगों में रंगे दिखते हैं व उनका हर रंग अपनी चटक छाप छोड़ मानव जीवन को यर्थाथ संदेश दे जाता है।

लगभग छह हजार साल पहले मथुरा नगरी के कारागार में भाद्र माह की अष्टमी को काली अंधियारी आधी रात में मूसलाधार बरसात हो रही थी, जब द्वापर युग में श्री कृष्ण ने अवतार लिया। जन्म के साथ ही कृष्ण को कई नाम मिले। कोई उन्हें देवकीनंदन कहता, तो कोई उन्हें यशोदा का नंद बुलाता। कृष्ण ने बचपन से ही कई रूप धरे, उनके हर चरित्र को एक नया नाम मिला। उनके सभी रूपों में काफी विविधता के साथ ही एक बहुआयामी सामंजस्यता भी देखी जाती है। श्री कृष्ण अनेक रंगों में रंगे दिखते हैं, व उनका हर रंग अपनी चटक छाप छोड़ मानव जीवन को यर्थाथ संदेश दे जाता है। अपने बाल्यकाल में ही नटखट गोपाल, किशन कन्हैया आस-पास के घरों में चुपके से जाकर माखन चुराकर खा जाते, लोगों को खूब चिढ़ाते व तंग करते। कृष्ण को माखन चोर कहा गया। यही कृष्ण खेल-खेल में गेंद निकालने के लिए शेषनाग की विषैली व उफनाती नदी में कूद गये। एकबार ब्रजवासियों को इन्द्र देव के भयंकर कोप से बचाने के लिए अपनी एक उंगली पर पूरे गोवर्धन पर्वत को उठाकर नगरवासियों की रक्षा की। गाय चराने वाले ग्वाले ने आतंतायी कंस का वध किया, ब्रजवासियों को आतंक से मुक्ति दिलाई व उन्हें पूरी निजता व स्वतंत्रता के साथ रहने का साम्राज्य मिल गया। गोपियों के नहाते वक्त उनके कपड़े उठाकर भाग जाने में तो कृष्ण की नटखट शरारत झलकती है, तो आगे चलकर जब दुष्ट दुर्योधन द्वारा भरे दरबार में द्रोपदी का चीर हरण करता है, तो इसी समय यही कृष्ण अपने चमत्कार से लाचार द्रोपदी की लाज बचाते हैं व नारी रक्षा का संदेश देते हैं। इसी बीच भगवान रूपी अवतार में श्री कृष्ण ने दोस्ती को निभाने का भी अद्भुत प्रसंग दिया जिसका उदाहरण है भगवान और दीन-दुर्बल व असहाय गरीब सुदामा की बचपन की दोस्ती। बचपन में उनके खूब बाल सखा व सखियां थीं। कृष्ण की मुरली ने लोगों को इस कदर मोहित किया कि लोग बांसुरी की धुनों पर झूमने लगते। गोपियां उनकी दीवानी हो गईं। मीरा तो श्री कृष्ण के प्रेम में इतनी दीवानी थीं कि उन्होंने अपने महलों को ही छोड़ दिया व गलियों में घूम-घूमकर उनके पे्रम भरे गीत गाती फिरतीं। कभी कृष्ण नें मुरली बजाई तो लोग मंत्रमुग्ध हो गये, और जब उन्होंने कुरुक्षेत्र के मैदान में पांचजन्य नामक महाभारत युद्ध के लिए शंख बजाया तो आश्चर्य होना स्वाभाविक था। इन दोनों के बीच कितना बड़ा आयाम है। बांसुरी से जहां उन्होंने प्रेम का संदेश दिया वहीं कुरुक्षेत्र मैदान के महाभारत युद्ध में धर्म का पाठ पढ़ाया। महाभारत युद्ध को धर्म को बचाने की खातिर सही ठहराया और धर्म की रक्षा को सर्वोपरि बताया। अर्जुन को अपराध बोध से बचाने के लिए श्री कृष्ण ने युद्ध के मैदान में उन्हें गीता का ज्ञान दिया। ब्रज की गलियों में सखियों संग रासलीला मनाने वाले किशन कन्हैया जब कुरुक्षेत्र के मैदान में खड़े होते हैंं तब बिल्कुल अलग दिखाई देते हैं। बाहर से उनके रूपों में बहुत असमानता है, परंतु अंदर से कृष्ण बिल्कुल एक ही हैं। दिखने में तो भिन्न हो सकते हैं लेकिन वास्तविक रूप से अभिन्न हैं। मुरलीवाले, किशन कन्हैया, श्याम, देवकी नंदन, गोपाल, मधूसूदन, केशव, माधव, गिरधारी, सुर्दशन चक्रधारी जैसे अनेक रूप व चरित्रों में रचे बसे कालजयी अवतार में हैं श्री कृष्ण भगवान। कृष्ण का स्वरूप इतना विराट है कि उसमें सभी कुछ एकसाथ समाया हुआ है। ग्वालों के संगी कृष्ण, सुदामा के साथ कृष्ण, राधा व मीरा के संग कृष्ण तो अर्जुन के साथ कृष्ण। कृष्ण सभी के साथ रहे।
महाभारत युद्ध में तो कृष्ण अर्जुन के सारथी बनें। श्री कृष्ण का जीवन तो पूरा अनूठा है, अद्भुत है व अलौकिक भी। कृष्ण के गीता में उपदेश धर्म और आध्यात्म की सीख के साथ पूरे व्यक्तित्व को निखारती है। जहां धर्म के सही मायने पता चलते हैं, वहीं उनके अनुसरण का रास्ता भी दिखता है। श्री कृष्ण द्वारा वर्णित गीता के सार से ही जीवन को व्यवस्थित किया जा सकता है। कृष्ण का हर रूप पूज्यनीय है, कोई बाल रूप को पूजता है, तो कोई युवा कृष्ण को। और महाभारत के कृष्ण की योग्यता व कौशल तो उनके स्वरूप को और विराट बना देता है।

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