Thursday, July 9, 2009

जिंदगी को बांटना संभव नहीं आदमी के लिए


अर्थयुग के आते और भौतिकवाद के चलते हमने अपने ही बीच अंतर खड़े करने शुरू कर दिये। जिनके पास पैसे थे, वह अमीर कहलाए जाने लगे और जिनके पास पैसे नहीं थे, वह गरीब कहलाए। अमीरों की कोठियां व बंगलों के इलाके अलग से पहचाने जाने लगे। गरीबों की अलग बस्तियां होने लगीं। सब कुछ बंट गया, दोनों वर्ग अलग-अलग बंट गये।

हम सबको ईश्वर ने एक समान जीवन दिया है। साथ ही प्रकृति ने भी हमसे कोई भेदभाव नहीं किया। सूरज की रोशनी हो या फिर चन्द्रमा की शीतलता व चांदनी, सभी अमीर गरीब, छोटे बड़े-सभी लोगों के लिए एक बराबर, किसी के साथ कोई पक्षपात नहीं। शुरू में सब कुछ ठीक था। परन्तु अर्थयुग के आते और भौतिकवाद के चलते हमने अपने ही बीच अंतर खड़े करने शुरू कर दिये। जिनके पास पैसे थे, वह अमीर कहलाए जाने लगे और जिनके पास पैसे नहीं थे, वह गरीब कहलाए। अमीर और गरीब की पहचान अलग की जाने लगी। अमीरों की कोठियां व बंगलों के इलाके अलग से पहचाने जाने लगे। गरीबों की अलग बस्तियां होने लगीं। सब कुछ बंट गया, दोनों वर्ग अलग-अलग बंट गये। दोनों की जीवन शैली भी अलग हो गई और धीरे-धीरे यह अंतर खाईं के रूप में बढ़ता गया।
आज किसी बच्चे के जन्म के साथ ही यह अंतर बनना शुरू हो जाता है। किसी अमीर व्यक्ति का बच्चा शहर के किसी बड़े अस्पताल में जन्म लेता है। वहीं गरीब परिवार का कोई बच्चा किसी छोटे या सरकारी अस्पताल या घर पर ही अपनी आंख खोलता है। बड़े घर के लड़के के पास खेलने के लिए महंगे व विदेशी खिलौने होते हंै पर गरीब बाप मुश्किल से खिलौने जुटा पाता हैै। अमीर व्यक्ति अच्छी शिक्षा-दीक्षा के लिए अपने बच्चों का एडमिशन शहर के किसी कान्वेन्ट स्कूल में कराता है जिससे बच्चे को अच्छे स्तर की शिक्षा प्राप्त हो। गरीब व छोटा आदमी अपने बच्चे को पढ़ाई के लिए पास के ही किसी स्कूल में दाखिला दिला देता है ताकि उसका बच्चा अनपढ़ न रहे और कभी-कभी किसी परिवार में यह भी नहीं हो पाता है। बड़ा होकर कोई कार या हवाई जहाज से चलता है तो कोई रिक्शा चलाता है। दोनों की लाइफ स्टाइल में बहुत अंतर हो गया है। अमीर आदमी के खाने के लिए होटल व रेस्टोरेन्ट अलग हो गये। ये लोग महंगे व पांच सितारा होटल में खाते व रहते हैं और गरीब आदमी सस्ती जगह ठहरते व खाते हैैं।
अमीर व गरीब वर्ग में बहुत फर्क हो गया है। दोनों के घूमने-फिरने, मौज करने के तरीके अलग हैं। किसी के महंगे शौक हैं तो कोई ऐसे ही काम चला लेता है। आज ये दो लोग अपना-अपना जीवन अलग तरह से जी रहे हंै। शुरूआत से लेकर आखिर तक, दोनों के पैदा होने के अस्पताल अलग, एक का महंगा और दूसरे का सस्ता, दोनों का स्कूल अलग, एक का पब्लिक कांवेन्ट और दूसरे का छोटा या प्राथमिक सरकारी विद्यालय और कहीं तो वह भी नहीं। दोनों के घूमने फिरने में बहुत अंतर, अमीर आदमी के पांच सितारा होटल का खर्च और गरीब आदमी के सस्ते होटल का खर्च। पूरी जिन्दगी दोनों के बीच एक बहुत बड़ी दूरी। जहां गरीब आदमी जाता, वहां अमीर आदमी कभी जाना नहीं पसंद करता। अमीरों के लिये अलग जगह बनाई गई और गरीब आदमियों के लिये अलग जगह। सभी अपनी जगह सीमित हो गये। यह तो जिन्दगी की एक बात हुई कि हम जिन्दगी को अपने-अपने स्तर से जीने लगे, क्योंकि अमीर व गरीब दोनों के जीवन जीने का स्तर अलग हो गया। हममें से ही एक अमीर टाइप हो गया और दूसरा गरीब टाइप। यह केवल जिन्दगी और मौत के बीच का आप्शन था, जो हमारी च्वॉइस बन गई। जो भी कुछ हमें अच्छा लगता हम उसे ही करते, लेकिन हमारी जिन्दगी की असलियत हमें नहीं मालूम। हम चाहे जितने अस्पताल अलग कर लें, स्कूल अलग कर लें, होटल अलग कर लें तथा अपनी बस्तियां अलग कर लें। जीते जी तो हमने सब कुछ अलग कर दिया परन्तु मरने के बाद का स्थान श्मशान घाट हम अलग नहीं कर पाए। हम सबके लिये यह स्थान एक समान बना हुआ है और न ही हमने इसमें अपनी दिलचस्पी दिखाई।
श्मशान घाट पर कोई फर्क नहीं पड़ता कि व्यक्ति अमीर हो चाहे गरीब, छोटा हो या बड़ा, घाट सबके लिए एक है। चिता सबकी एक ही जगह जलती है, कब्रिस्तान वही है। जिन्दगी में भले ही हमने अपना मकान अमीरों की बस्ती में बनाया हो, खाने में हमने जो कुछ खाया हो व हम कहीं भी घूमे हो। परन्तु, हम सबको पूरी दुनिया घूमकर भी आकर उसी श्मशान घाट की चिता पर लेटना होता है या कब्र में दफन होते हैं, जहां अमीर गरीब, छोटे-बड़े सब लेटते हैं। यहां पर कोई भेदभाव नहीं चलता, यहां पर किसी की काई फितरत काम नहीं करती। अब प्रश्न यह है कि जिसके लिये पूरी जिन्दगी हमने अमीरी गरीबी की दीवार बनाई और इसीलिए अमीर आदमी गरीब परिवार से ज्यादा सम्पर्क व सम्बन्ध नहीं बनाते तथा उनसे दूरी बनाये रखने में ही विश्वास रखते हैैं। उनका स्टेटस दूसरा होता है, दोनों के बीच स्टेटस का बहुत बड़ा फर्क है। इसी स्टेटस के चलते और दूरी बढ़ती जाती हैै, क्योंकि दोनों के रास्ते व साधन अलग हो जाते हंै। परन्तु अन्त में प्राकृतिक व ईश्वरीय रूप से दोनों का स्टेटस एक समान हो जाता है। एक ही घाट पर अमीर व गरीब दोनों की चिता, एक ही कब्रिस्तान में छोटा या बड़ा, दोनों आदमी एक साथ दफन किये जाते हैं। पूरी जिंदगी हम झंझट में जीते हंै। अमीर तथा बड़े लोग छोटे व गरीब लोगों के साथ उठना-बैठना पसन्द नहीं करते है तथा एक दूरी बनाकर चलते है, वही दूरी अन्तिम समय में खत्म हो जाती है। श्मशान घाट का एक ही पंडा अमीर व गरीब दोनों का अंतिम संस्कार एक ही स्थान पर कराता है। वहां पर हम कोई भेदभाव नहीं देखते। उम्र भर हम जिस झूठ के पुलिंदे को अपनी पीठ पर लादे रहते हैं फिर अन्तिम स्थान पर सब कुछ खत्म हो जाता है। सब एक समान हो जाता है तथा किसी के साथ कोई पक्षपात नहीं होता। यहां पर सब एक ही तराजू में तौले जाते हैं, चाहे जो कोई कितना बड़ा व्यापारी, अधिकारी व प्रतिष्ठित व्यक्ति हो या कोई जन साधारण अथवा गरीब तबके का छोटा आदमी, सभी एक ही जगह पर लिटाये जाते हैं। हम जिन्दगी भर अपने आपको अलग करके रखते हैं कि हम बहुत बड़े आदमी हंै। यह भेद हमारा बनाया हुआ है फिर अन्तिम यात्रा के आखिरी स्थल पर सबके भेद खुल जाते हंै। इसी स्थान पर सबको जीवन के सच का दर्शन होता है। क्योंकि यही जिन्दगी का शाश्वत सच भी है। इस सच के आगे जीवन में बनाये गये अनेक प्रकार के स्टैंडर्ड झूठे, बेईमान व बौने साबित होते जाते हंै। हमने जिन्दगी भर जितना कुछ कमाया खाया, घूमा फिरा, उससे कोई फर्क नहीं पड़ता, क्योंकि यहां पर व्यक्ति नहीं उसका मृत शरीर आता है। फिर जिन्दगी के आखिर में, अन्तिम सच के आगे, यह सब जिन्दगी का ढकोसला सा लगता है क्योंकि जिसको हमने सारी उम्र भर मेन्टेन किया, वह सब आखिरी समय पर बराबर हो जाता है। फिर भी आज मनुष्य की फितरत व मनोदशा बन चुकी है कि वह जिन्दगी को इसी चश्मे से देखता है और उसके देखने में बहुत बड़ा अंतर बना दिया गया इसी सोच की वजह से ही व्यक्ति दोनों वर्गों के बीच एक गैप बनाकर चलना चाहता है। इस प्रकार हम सबके सामने सबसे बड़ी बात यह है कि हम भी अच्छी तरह जान रहे हंै व मानते हैं कि यह हमारी पूरी जिन्दगी झूठ के पुलिंदे से कम नहीं फिर भी हम इस जीवन की सच्चाई को गले नहीं लगा पा रहे हैं। जीवन के आखिरी सच के आगे जिन्दगी भर अमीर गरीब, छोटे बड़े की संकीर्ण मानसिकता में ही हम सब अभी तक फंसे हुये हैं, आखिर क्यों?

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