Friday, July 3, 2009

तनाव से बचें, चिंता नहीं चिंतन करें


आज की इस भागमभाग लाइफस्टाइल में सब कुछ बहुत तेजी से हो रहा है। हर कोई भागता जा रहा है। हर एक के पास अपना लक्ष्य है, उसे पूरा करने के लिए और वहां तक पहुंचने के लिए किसी को कोई गुरेज नहीं, बस मंजिल तक पहुंचना भर है। इसी आपाधापी में वहां तक पहुंचते-पहुंचते हम अपने अंदर बहुत से बदलाव भी महसूस करते हैं और इसी के साथ बहुत से व्यक्ति चिंताग्रस्त होकर तनाव का भी शिकार हो रहे हैं। इनसे कई प्रकार की बीमारियां जैसे अवसाद, चिड़चिड़ापन, एकाकीपन तथा स्वभाव में अचानक परिवर्तन आदि मुख्य रूप से दिखाई पड़ रहे हैं।

आज हमारे सब के सामने रोजी-रोटी कमाने व खाने की इतनी बड़ी समस्या नहीं है, जितनी बड़ी समस्या हमने अपने जीवन के दिखावे को दे दी है। हम कर कुछ और रहे हैंं और दिखाना कुछ और चाहते हैं। इन्हीं सब के चलते अक्सर जिंदगी की कुछ स्थितियां हम पर भारी पड़ जाती हैं। एक तो नौकरी रोजगार में तथा व्यापार में अपने टारगेट को अचीव करने में आशातीत सफलता न मिल पाना तनाव का स्वाभाविक कारण बन जाता है, फिर हम जिंदगी में आये परिणामों से चिंताग्रस्त हो जाते हैं। इस अवस्था में आ जाने पर हमारा मानसिक तनाव और भी बढ़ जाता है कि हमारा जीवन तनाव का ढेर बन जाता है। इस प्रकार तनाव से चिंता और चिंता से और अधिक तनाव। इस तरह से ये दोनों चीजें रेसीप्रोकेटली बढ़ती जाती हैं। स्थिति ये हो जाती है कि ये दोनों हमें आगे से घसीटती हुई ले जाती हैं। जैसे-जैसे चिंता और तनाव बढ़ते जाते हैं, हम इसके आगे कमजोर होते जाते हैं। मुख्यतय: चिंता करना किसी भी समस्या से निकलने का रास्ता नहीं होता, केवल चिंता करने से कि यह काम क्यों नहीं हो रहा? यह व्यक्ति मेरी बात क्यों नहीं मान रहा? मेरे साथ यह सब क्या हो रहा है? केवल इसी एंगल से सोचने पर इसका कोई हल नहीं निकलता। इससे तो हम इसी के जाल में और फंसते चले जाएंगे, फिर निकलना बहुत दूभर हो जाएगा। जिंदगी आसान नहीं बोझ बन जाएगी। जो लोग केवल समस्या पर फोकस करते रहते हैं, वे इसी तरह बेबुनियादी चिंता के भंवर जाल में फंसते जाते हैं और धीरे-धीरे अपने अमूल्य जीवन के हर पल को चिंता की खाई में स्वयं ढकेलते जाते हैं और इस तरह से उनका जीवन समाप्ति की ओर बहुत तेजी से अग्रसर होता जाता है। वस्तुत: ये लोग 'चिंता चिता हैÓ कहावत को चरित्रार्थ करते हैं।
समस्या और हल ये दोनों अलग पहलू हैंं, क्वाइनसाइड्स हैं, एक तरफ समस्या, उसके दूसरी तरफ हल। केवल हमें अपना फोकस बदलना है, अपना ध्यान समस्या से हटाना है। किसी भी काम में आये परिणाम से हमें परेशान व उद्वेलित नहीं होना है बल्कि इसके कारणों का विश्लेषण करना होगा। किया गया प्रयास व जानकारी की व्याख्या का सूक्ष्म अवलोकन करना होगा। अब दूसरे व्यक्ति की मनोदशा का भी ज्ञान होना आवश्यक हो जाता है। इस तरह से हम अगर अपना फोकस बदलकर हर चीज को बहुत बारीकी से विश्लेषित करें कि फलां व्यक्ति मेरी बात क्यों नहीं मान रहा इसके पीछे क्या कारण हो सकते हैं? इसकी एक सूची बनायें, फिर सबको क्रमवार रखें, सबका उपयुक्त पक्ष रखें फिर उचित साक्ष्य ढूंढऩे की कोशिश करें कि आपके व उसके बीच की कौन सी दूरी है जो नहीं भर पा रही है। उसको ढांपने की कोशिश करें फिर देखें कि अब आपके पास समस्या नहीं इसका हल होगा। आपने अपनी समस्या को रिजाल्व कर लिया। यह पूरी प्रक्रिया मनन कहलाती है। यह चिन्तन है। हमारे रोजमर्रा के व्यवसायिक या निजी जिंदगी में कुछ न कुछ ऐसा होता है जो आपेक्षित नहीं होता, जिसकी हमने कल्पना भी नहीं की होती है। क्योंकि जिंदगी की अपनी अलग टेढ़ी-मेढ़ी लाइन होती है जिस पर हमारी जिंदगी की गाड़ी कभी चलती और कभी दौड़ती है। हम न ही इसकी लाइन ही बदल सकते हैं और न ही इसकी गति। जिंदगी अपने रास्ते स्वयं बना लेती है और हमारा उसमें कोई दखल भी नहीं होता। घरेलू रिश्ते भी बहुत नाजुक व कोमल धागे में पिरोये हुए होते हैंं, आपसी ज्यादा खींचतान में इनके टूटने का खतरा बढ़ जाता है। आपसी मन मुटाव होने पर तनाव नहीं बढ़ाना चाहिए बल्कि दूसरे व्यक्ति के प्रति चिंतन व मनन की प्रक्रिया करनी चाहिए। उस व्यक्ति का भी पूरा विश्लेषण करें, साथ ही उसके विचार व उसके सोचने की क्षमता का आकलन करें। बाद में किसी निर्णय पर पहुंच कर उक्त बात का हल निकालना संभव व निष्पक्ष होगा। इसी तरह अलग-अलग कार्यक्षेत्र में भी हमें नित्य नये-नये लोगों से मुलाकात करनी होती है चाहे वह बिजनेस डील हो या पब्लिक डील, हमें सदैव दूसरे व्यक्ति को समझने का भी प्रयास करना चाहिए न केवल अपनी बात समझाने का। कभी कभी विरोधाभास की स्थिति उत्पन्न होने पर हमें बहुत सरलता के साथ स्थिति का आकलन करना होता है। हमें दूसरे व्यक्ति की सोच को भी दरकिनार नहीं करना चाहिए बल्कि हम उसकी चाहत व इच्छा का पूरा ख्याल रखें।
पूरे जीवनकाल में कई ऐसे पड़ाव आते हैं जहां हमें बहुत गहन तरीके से जांच-पड़ताल करनी पड़ती है। बच्चों की शिक्षा-दीक्षा के दौरान हमें बहुत सजग होकर बच्चों को सिखाना पड़ता है कि ये छोटे बच्चे भी पढ़ाई व परीक्षा के समय किसी भी तरह की चिंता में न उलझें जिससे किसी भी तरह का इनमें मानसिक तनाव उत्पन्न हो। चिंता एक बहुत बड़ी समस्या है और चिंतन उसका स्वाभाविक व प्राकृतिक हल है। जब हम किसी भी बात पर चिन्तन कर रहे होते हैंं तब हमारा पूरा मस्तिष्क समस्याओं के सभी कोणों को बराबरी से देख रहा होता है उससे कोई भी दृष्टि व कोण अछूता नहीं रहता और फिर उससे जो समाधान निकलता है वह सन्तुलित होता है तथा सबके हित में भी होता है।

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