Friday, August 21, 2009

सच का कबूलनामा आखिर किसके हित में?



ऐसा लगता है कि इस गेम शो की पूरी पृष्ठभूमि केवल सेक्सुअल रिश्तों पर ही आधारित है। हो सकता है कि कभी जाने-अनजाने अगर किसी से गलती हुई हो, उसके परिवार वालों को इसकी जानकारी भी हो और उसे माफ भी कर दिया हो या स्वयं उसने पाश्चाताप कर लिया हो, फिर यह सच गुजरी जिंदगी का सच नहीं बल्कि गड़े मुर्दे उखाडऩे जैसा हुआ।

कहा गया है कि सत्य महान है, हमें सच बोलना चाहिए क्योंकि सत्य की ही जीत होती है, परन्तु आजकल टेलीविजन के एक चैनल पर अलग तरह का एक बिंदास गेम शो 'सच का सामना प्रसारित किया जा रहा है। यह गेम शो अमेरिका में प्रसारित 'मोमेन्ट ऑफ ट्रुथ पर आधारित है। इस गेम शो का एक सच यह भी है कि इसका कंटेन्ट काफी विवादास्पद है, जिससे कार्यक्रम के खिलाफ दिल्ली हाईकोर्ट में दो याचिकाएं भी दाखिल की गईं,परंतु कोर्ट ने इसकी सामाजिक, नैतिक जिम्मेदारी व पहरेदारी करने से इंकार कर दिया।
इस गेम शो की खास बात यह है कि इसमें प्रतिभागियों को एक करोड़ रुपये जीतने के लालच में अपने जीवन से जुड़े २१ प्रश्नों के उत्तर देने होते हैं। इस कार्यक्रम के प्रस्तुतकर्ता राजीव खंडेलवाल के अनुसार प्रतिभागियों को एक पॉलिग्राफिक टेस्ट से गुजरना पड़ता है, जिसमें प्रतिभागियों द्वारा दिए गए उत्तर के सच और झूठ का फैसला पॉलिग्राफिक टेस्ट में प्रतिभागियों के रिकॉर्ड किये गये ब्लड प्रेशर, हार्ट बीट, पल्स रेट तथा शरीर में होने वाली उथल-पुथल के आधार पर किया जाता है। इस दौरान प्रतिभागियों से ५० प्रश्न पूछे जाते हैं जिसमें से २१ प्रश्नों का सामना मुख्य गेम शो में करना होता है। अब देखने वाली बात यह है कि प्रतियोगिता के दौरान पूछे जाने वाले प्रश्न काफी हद तक प्रतिभागी के बेहद निजी जीवन से जुड़े होते हैं। जिसमें प्रतिभागी को सच का सामना करने की क्षमता, साहस व निर्भीकता का परिचय देना होता है। इस दौरान ज्यादातर सवाल सेक्सुअल रिलेशनशिप व शारीरिक संबंधों पर आधारित होते हैं। प्रतिभागियों को बन्द कमरे के सच का खुलासा इस गेम शो के माध्यम से अपने परिवार, सगे- सम्बंधियों के सामने करना होता है। जैसे-जैसे कार्यक्रम आगे बढ़ता है, प्रश्नों का स्तर भी सिमटकर काफी संवेदनशील होता जाता है।
ऐसा लगता है कि इस गेम शो की पूरी पृष्ठभूमि केवल सेक्सुअल रिश्तों पर ही आधारित है, जिंदगी का सच केवल एक ही पहलू पर समेट दिया गया है लेकिन सच यह भी है कि जिंदगी का केवल एक ही पहलू नहीं है। हो सकता है कि कभी जाने-अनजाने अगर किसी से गलती हुई हो, उसके परिवार वालों को इसकी जानकारी भी हो और उसे माफ भी कर दिया हो या स्वयं उसने पाश्चाताप कर लिया हो, फिर यह सच गुजरी जिंदगी का सच नहीं बल्कि गड़े मुर्दे उखाडऩे जैसा हुआ। कुल मिलाकर यह पूरा गेम शो जिंदगी के ऐसे सच का खुलासा करवाने तथा अपनी इज्जत की खुली नुमाइश का आमंत्रण है जो अत्यंत व्यक्तिगत होते हुये सार्वजनिक कर दिये जाते हंै, क्योंकि प्रतिभागी के साथ उसी के सगे-संबंधी, मित्र या रिश्तेदार ही होते हैं तथा टीवी पर व्यक्तिगत जिंदगी का पर्दाफाश करना पूरे परिवार की एकता व सामंजस्य के लिये बेहद खतरनाक है। शायद इसीलिए इस गेम शो को अन्य देशों में प्रतिबंधित कर दिया गया है। कार्यक्रम देखने वाले दर्शकों के परिवार के सदस्यों के बीच अक्सर ऐेसे सच के सामने की बात पर नोक-झोंक हो जाना कोई बड़ी बात नहीं। गंभीर सच खुलने से परिवार में कोई बड़ी घटना हो जाय तो भी कोई आश्चर्य नहीं। पिछले हफ्ते नोएडा में रहने वाले एक सिक्योरिटी गार्ड की जिंदगी पर इस रियलिटी गेम शो का इतना असर हुआ कि वह फांसी लगाकर आत्महत्या करने पर मजबूर हो गया। हुआ यूं कि उक्त सिक्योरिटी गार्ड अपनी पत्नी के साथ सच का सामना कार्यक्रम टीवी पर देख रहा था। कार्यक्रम के बाद उसने पत्नी से शादी के पहले का सच जानना चाहा, पहले तो उसकी पत्नी ने इंकार कर दिया, परंतु जब पति ने कसम देकर उस पर दबाव बनाया और उसे कुछ भी न कहने का आश्वासन दिया। इस पर उसकी पत्नी ने ऐसा सच कबूला कि गार्ड ने आत्महत्या करना ही मुनासिब समझा।
सच का सामना ऐसा गेम शो है जो अमेरिकी सोच व संस्कृति पर आधारित है जो कहीं से हमारी संस्कृति के साथ मेल नहीं खाता, क्योंकि गेम शो में पूछे जाने वाले प्रश्न वहां के वातावरण व कल्चर के आधार पर बनाये गये हैं जो यहां के परिवेश से मेल नहीं खाते। हम सब यहां पर पारिवारिक परिवेश में रहते हैं, भारत में जिंदगी का ऐसा खुलापन संयुक्त परिवार की धज्जियां उड़ा सकता है। इस प्रतियोगिता में होने वाले सभी प्रतिभागी जिंदगी के सच का सामना करने के लिये अपने परिवार के बड़े-बुजुर्ग तथा बड़े हो चुके बेटे-बेटियों के साथ एक करोड़ रुपये जीतने के लालच मे जाते हैं लेकिन लौटते वक्त इनामी राशि को तो छोड़ दीजिए, उनके परिवार का भी बिखराव हो जाय, इसमें भी कोई आश्चर्य नहीं होगा। ऐसे कार्यक्रमों का निर्माण निश्चित रूप से ज्यादा से ज्यादा दर्शकों को अपनी ओर खींचना, ढेरों विज्ञापन बटोरना महज चैनल की टीआरपी बढ़ाने से ज्यादा नहीं है। इस तरह के कार्यक्रम पेश करना दर्शकों के किस तरह से हित में है पता नहीं।

2 comments:

  1. आपका धन्यवाद कि इस विषय में आपने अपनी आपत्ति दर्ज की....आज आवश्यकता है कि समाज को अस्वस्थ कर देने वाले वाले ऐसे कार्यक्रमों के निर्माता तथा इसके प्रतिभागियों के खिलाफ हम एक व्यापक मुहिम छेड़ें....

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