Friday, August 28, 2009

सब कुछ बयां कर देती हैं आंखें


आंखें हमारे जीवन में एक बड़ी दौलत की तरह हैं। इन्हीं आंखों से हमें अपने जीवन में कोई प्यारा लगने लगता है तो कोई दुश्मन नजर आता है। कोई अच्छा लगता है तो कोई बुरा। प्रेम, पीड़ा, कष्ट, संयोग-वियोग, शृंगार, वीररस सभी तरह के उद्गार आंखों से ही कभी अश्रु बन कर तो कभी चमक बनकर सब कुछ बयां कर देते हैं।

अंधता या अंधापन, देख न सकने की दशा का नाम है। दृष्टिहीनता भी इसी का नाम है। प्रकाश का अनुभव ना कर सकने से लेकर जो कार्य देखे बिना नहीं किए जा सकते, उसे अंधता कहा जाता है। इसीलिए मरने से पहले अपनी आंख दान करने से आप किसी दूसरे की जिंदगी में रोशनी फैला सकते हैं।
आंखें हर किसी के जीवन की शोभा हैं। हम पैदा होते ही सबसे पहले अपनी आंखों से ही इस दुनिया को देखना शुरू करते हैं। हम अपने माता-पिता, भाई-बहनों व अन्य रिश्तों को भी अपनी नवजात अवस्था से ही इन्हीं आंखों से पहचानना शुरू कर देते हैं। रंगों की पहचान भी आंखों से ही करते हैं। हमारे जीवन में आंखों का बहुत ही महत्व है। हमारे शरीर की सुंदरता में भी आंखों का बहुत योगदान होता है। खासकर नारी की सुंदरता को कवि अपनी कलात्मक शैली के द्वारा वर्णन करते हैं जिसमें भिन्न-भिन्न प्रकार की आंखें नारी की सुंदरता को अलग-अलग तरीके से वर्णित व सुशोभित करती हं।
हमारा पूरा का पूरा व्यक्तित्व हमारी आंखों से दिखाई दे जाता है। हम अगर कभी कुछ छिपाना भी चाहें तो हमारी आंखें सब कुछ बयां कर देती हैं। हमारा आत्मविश्वास भी इन्हीं आंखों से ही झलकता हुआ दिखाई दे जाता है। अगर हम किसी दूसरे व्यक्ति पर अपना विश्वास जमाना चाहते हैं या उस पर अपना असर छोडऩा चाहते हैं तो हम उसकी आंखों में आंखें डालकर बात करते हैं, कमजोर व झूठा आदमी ऐसा नहीं कर सकता हैं। इसी प्रकार किसी भी प्रकार की खुशी या कोई गम हो, सब कुछ आंखों से ही प्रकट हो पड़ता है। जहां क्रोध के समय आंखें आग की तरह लाल हो जाती हैं, वहीं खुशी के समय आंखों में एक चमक देखी जाती है। हिंदी भाषा में कितने ही मुहावरे इन्हीं आंखों पर लिखे गये हैं। आंखों में शर्म आ जाना, आंखों द्वारा अपने क्रोध व प्यार को दर्शाना, गुस्से में अपनी आंखें लाल-पीली कर लेना, आंखें निकालना, आंखों में डर लाना, आंखों से किसी को डराना, आंखों को बन्द कर लेना, आंखें फेर लेना, आंखों में बिठाना, आंखों का तारा, आंखों में खटकना, आंखें सेंकना, आंखें चार हो जाना, आंखों में तस्वीर बसाना, आंखें चुराना न जाने कितनी ही तरह से हम अपनी भावनाओं को आंखों से व्यक्त करते हैं। जिस प्रकार से किसी व्यक्ति की आंखें उसके बारे में हमें बताती हैं, उसी प्रकार हमारी आंखें भी उसको पढऩे का काम करती हैंं। जिससे ही हम उसके बारे में सही-सही पता लगा सकते हैं क्योंकि किसी का अवलोकन व सूक्ष्म निरीक्षण भी हम अपनी इन्हीं आंखों से ही करते हैं। अब हम अपनी आंखों से ही व्यक्तियों की पहचान करने लगते हैं। अच्छे और बुरे का पता भी इन्हीं आंखों से करते हैं। कभी-कभी किसी से बात करने के लिये आंखों की मौन भाषा का प्रयोग किया जाता है। नयनों की इसी मौन भाषा से कितने ही वार्तालाप हो जाते हैं। किसी प्रेमी और प्रेमिका के जीवन में इसका कितना प्रयोग है, यह वह ही जानते हैं। आंखों की भाषा से ही मौन प्रेषण, मौन स्वीकृति तथा मौन सहमति भी हो जाती है, यहां पर बातें सिर्फ आंखें ही करती हैं। बाकी सब कुछ मौन रहते हुये एक दर्शक की ही भांति चश्मदीद गवाह बन कर रह जाता है। जिंदगी में आगे बढऩे का सपना भी सबसे पहले हमारी आंखें ही देखती हैं। हमारे आस-पास विभिन्न आकृतियों की आंखों वाले व्यक्ति रहते हैं। किसी की छोटी आंखें, किसी की बड़ी आंखें, किसी की काली आंखें, और किसी की भूरी आंखें। इन्हीं आंखों से ही कोई व्यक्ति मासूम, कोई निर्दयी और कोई धूर्त भी नजर आता हैं। जहां बच्चों की आंखों से उनका भोलापन झलकता है, किसी नवयुवक की आंखों में ऊर्जा व आगे बढऩे का सपना दिखाई पड़ता है। किसी बुजुर्ग की आंखों से उनकी जिंदगी के अनुभव का अहसास होता है। सबकी आंखें कुछ न कुछ कहती हैं। बॉडी लैंग्वेज के जानकार दूसरों की आंखों की बनावट के आधार पर उनके पूरे व्यक्तित्व का वर्णन कर देते हैं। यही आंखें हमारे मुख के आभामंडल को बढ़ाने का भी काम करती हैं। इन्हीं आंखों की बनावट से ही कोई व्यक्ति सुंदर कहा जाता है तो कोई कुरूप हो जाता है। नयनों की अलग-अलग बनावटों को ही अलग नाम दिये गये। जिसमें हिरनों जैसी आंखों वाली, कमल जैसी आंखों वाली, सागर की तरह आंखों वाली, नीली आंखों वाली, नशीली आंखों वाली तथा नशे की प्याली जैसी आंखें नारी के अपरिमित सौंदर्य के आकर्षण की साक्षी बनती हैं।
फिल्मी दुनिया में भी इन्हीं आंखों पर कई गीत लिखे गये। फिल्मी सुंदरियों के सौंदर्य को उनकी आंखों की सुंदरता से आंका गया। कई फिल्मों के टाइटल भी 'आंखें रखा गया। सरहद पर तैनात फौजी भी २४ घंटे सीमा की चौकसी के लिये हर वक्त अपनी आंखें चौकस व चौकन्ना रखते हैं। अदालतें भी किसी भी घटना में चश्मदीद गवाह की गवाही को अति महत्वपूर्ण मानती हैं। हममें से बहुत लोग अपनी मृत्यु के बाद अपनी आंखों को दान कर जाते हैं ताकि जिनके पास आंखें नहीं हैं वे लोग भी अब उनकी आंखों से इस दुनिया को देख सकें। इस धरती की प्राकृतिक सुंदरता को देखने व महसूस करने के लिये हम आंखों से ही काम लेते हैं। जीवन में आने वाले उतार-चढ़ाव को हम जीवन की आंख मिचौली भी कहते है। हमारी आंखों के ठीक बीच में माथे पर का स्थान त्रिनेत्र का स्थान कहा गया है। भगवान शिव ने जब अपना तीसरा नेत्र खोला तो दुनिया में प्रलय ही आ गई। इसी स्थान पर आज्ञा चक्र भी होता है। कुंडलिनी ध्यान में हम इसी स्थान को जाग्रत करते हैं तथा मस्तक के इसी स्थान पर हम टीका व रोचना आदि लगाते है जो माथे को तो सुशोभित करता ही है तथा इससे ऊर्जा भी मिलती है। आज्ञा चक्र सक्रिय होने तथा ज्ञान चक्षु खुल जाने से ही हमें अपने पूरे जीवन का वास्तविक दर्शन भी समझ में आने लगता है। इस प्रकार हम आत्मा और परमात्मा के बीच सेतु बनाने में भी सफल होते हैं। महाभारत काल में भी जहां धृतराष्ट्र की आंखों में रोशनी नहीं थी, वहीं उनकी पत्नी गंधारी भी सारे जीवन अपनी आंखों में पट्टी बांधे रही। इस तरह उन्होंने भी अपना सारा जीवन अंधत्व में ही जिया। अपने अंधेपन के कारण ही धृतराष्ट्र महाभारत के युद्ध मैदान कुरुक्षेत्र न जा सके और फिर युद्ध का आंखों देखा हाल संजय ने अपनी दिव्य दृष्टि से सुनाया। आज जो कुछ भी हम महाभारत के बारे में जानते है वह सब संजय की अलौकिक दिव्य दृष्टि की ही बदौलत है। आंखें हमारे जीवन में एक बड़ी दौलत की तरह हैं। इन्हीं आंखों से हमें अपने जीवन में कोई प्यारा लगने लगता है तो कोई दुश्मन नजर आता है। कोई अच्छा लगता है तो कोई बुरा। प्रेम, पीड़ा, कष्ट, संयोग-वियोग, श्रंगार, वीररस सभी तरह के उद्गार आंखों से ही कभी अश्रु बन कर तो कभी चमक बनकर सब कुछ बयां कर देते हैं। खुली आंखों से तो हम सब कुछ देखते हैं, हर एक व्यक्ति के बारे में और हर एक स्थान के बारे में जान लेते हैं, वहीं आंखों को बंद कर ध्यान में बैठने से हमें अपने बारे में सब कुछ मालूम हो जाता है।

2 comments:

  1. आंखें हमारे जीवन में एक बड़ी दौलत की तरह हैं।
    सच कहा आपने, अति सुन्दर लेख

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