Thursday, September 10, 2009

देश-दुनिया में हर जगह पहचान हैं बेटियां


बेटे की जगह जन्म लेती है बेटियां।
कोमल, सहज व सहृदय होती हैं बेटियां॥
अब बेटे से कहीं कम नहीं है बेटियां।
हर घर का सम्मान है बेटियां॥
देश दुनिया में हर जगह पहचान है बेटियां।
स्वर्णिम दिशा में उडऩे का अरमान है बेटियां॥
न रोके इन्हें कोई, न लगाएं इनपे बेडिय़ां।
क्योंकि अब देश का स्वाभिमान हैं बेटियां॥

ज हर जगह नारी सशक्तिकरण की बात हो रही है। महिलाओं को आगे लाने व उनको बढ़ावा देने की योजनाओं पर काम किया जा रहा है। हो भी क्यों न, क्योंकि देश की आजादी के समय से ही कितने ही आंदोलनों व स्वतंत्रता संग्राम में महिलाओं ने अपनी जान की परवाह न करते हुए पुरुषों के साथ कन्धा से कन्धा मिलाकर संघर्ष किया। आज के इस कॉरपोरेट युग में भी महिलाओं की हिस्सेदारी व भागीदारी कम नहीं आंकी जा सकती। देश के विकास में इनके सराहनीय योगदान की अपेक्षा करना बेमानी होगी। देश की तरक्की के लिए हर एक महिला का जागरूक होना बहुत आवश्यक हो गया है। हमें भी देश के भविष्य के लिए महिलाओं की तस्वीर को और मजबूती से पेश करना होगा।
अब महिलाएं केवल घर के कामकाज तक सीमित नहीं रहीं। ये महिलाएं अब अपने घरों से निकल कर बड़े-बड़े ऑफिस संभाल रही हंै। प्रशासनिक स्तर से लेकर खेल, व्यापार, नौकरी, अंतरिक्ष, मीडिया तथा देश-विदेश हर जगह महिला, नारी व बेटियां अपने दम पर अपनी व देश की अमिट छाप छोडऩे में सफल रहीं। साधारण व घरेलू महिलाओं के लिए ऐसी समर्पित महिलाएं सदैव प्रेरणास्रोत व मार्ग प्रशस्ति का भी कार्य करती हैं। साधारण महिलाएं या छात्रा इनसे सबक लेकर अपनी जिंदगी में कुछ बनकर देश के लिए कुछ कर दिखाने का हौसला भी रखती हैं। महिलाएं आज भारतीय राजनीति का एक अहम व सशक्त हिस्सा बनती जा रही हैं। इसका एक उदाहरण हमारे सामने श्रीमती प्रतिभा पाटिल हैं जो आज भारत की राजनीति के सर्वोच्च शिखर पर देश की प्रथम महिला राष्ट्रपति के रूप में हैं। महिलाओं की राजनीति में भागीदारी बढ़ाने तथा उन्हें आगे लाने के लिए अभी केंद्र सरकार के केंद्रीय मंत्रिमंडल ने एक महत्वपूर्ण फैसला लिया, जिसमेंं महिलाओं की हिस्सेदारी बढ़ाने के लिए पंचायती चुनाव में ५० फीसदी आरक्षण की व्यवस्था कर दी। इससे महिलाओं को राजनीति में आने के ज्यादा से ज्यादा अवसर मिल सकेंगे तथा महिलाओं की दावेदारी तथा समग्र विकास और सशक्त तरीके से हो सकेगा।
इतना सब होने के बावजूद कहीं न कहीं कन्या भ्रूण हत्या देश के गौरव व स्वाभिमान को कलंकित सा करता जा रहा है। एक तरफ हम महिलाओं के योगदान से अभिभूत होकर गौरांवित महसूस करते हैैं, वहीं दूसरी ओर गर्भ कन्या को उसके जन्म लेने से पहले ही एक नारी की कोख में मारे दे रहे हैं। यह कितनी विडम्बना है कि एक नारी ही अपनी ही कुल के साथ कैसी दुश्मनी निकाल रही है? इतना ही नहीं एक पुरुष, जिसको एक नारी ने ही जन्म दिया है, केवल एक पुत्र की चाहत में उसी नारी के कन्या भ्रूण की हत्या उसके जन्म लेने से पहले कर दे रहे हंै। केवल एक बेटे की ललक आज समाज को देश के विकास में अपनी भागीदारी निभाने वाली बेटी का हत्यारा बना रही है। सच यह भी है कि आज की बेटी किसी बेटे से कम नहीं है। इसका मुख्य कारण वैचारिक संकीर्णता कहा जाए या फिर इसके पीछे और कोई खास वजह? इन सबके पीछे क्या कारण हैं? ये हमें देखने होंगे। यह हमारी सबकी सामाजिक जिम्मेदारी बन जाती है कि हम इस समस्या की मूल वजह को तलाशें व इसका हल खोजें। आज यह कन्या भ्रूण हत्या समाज में इतना संवेदनशील व वीभत्स रूप ले चुका है कि इसे संगीन अपराध की धाराओं में गिना जा रहा है। आज मनुष्य किसी कन्या को जन्म देने से इतना क्यों घबरा रहा है? क्यों इतना सहमा हुआ है? उसका डर समाज में बढ़ती हुई लड़कियों व महिलाओं के प्रति सामाजिक असुरक्षा की भावना से भी हो सकता है। क्योंकि आये दिन महिलाओं के साथ छेड़छाड़, शारीरिक शोषण, मार-पीट व बलात्कार जैसे क्रूर व जघन्य अपराध आम होते जा रहे हैं। कन्या भ्रूण हत्या का दूसरा बड़ा कारण लड़कियों के विवाह में दिए जाने वाले दान-दहेज की सामाजिक कुप्रथा भी कुछ कम जिम्मेदार नहीं है। समाज में उपजे इस वर्ग विशेष के बीच के अंतर की खाई, आपसी प्रतिद्वंद्विता तथा हीन भावना के डर से बचने के लिए भी मनुष्य ऐसे कठोर फैसले लेने पर कभी-कभी मजबूर हो जाता है।
ऐसा लगता है कि शायद अभी तक हमारी सरकारें ऐसे माता व पिता को अपने विश्वास में नहीं ले पाई हैं। उनको सामाजिक सुरक्षा व अधिकार का भरोसा नहीं दिला पाई हैं जिसके ही परिणामस्वरूप लोग सांसत में रहकर अभी तक अपनी धारणाओं में परिवर्तन लाने में सक्षम नहीं हो पा रहे हैं। जब तक हमारे समाज में व्याप्त इन बुराइयों का खात्मा नहीं होगा, लोग आश्वस्त नहीं होंगे। महिला सशक्तिकरण के बुनियादी पहलू पर हमारा प्रयास और मजबूत तब हो सकता है, जब हम महिलाओं को उन पर होने वाले किसी भी तरह के सामाजिक व घरेलू अत्याचार से मुक्त करवा दें। किसी भी नारी का जीवन एक बेटी से ही आरंभ होता है, इसलिए हर एक बेटी को जन्म लेने दें, उसे पलने दें तथा उसे आगे बढऩे से न रोकें। कहा गया है कि नारी दुर्गा का ही रूप है। नारी के कई रूप हैं। नारी के रूप में ही मॉ है, बहन है, पत्नी है व बेटी है। इनके रहने से ही हमारे घर का सम्मान है तथा इनकी उन्नति, प्रगति व सशक्त उपस्थिति हमारे देश का स्वाभिमान है।
बेटे की जगह जन्म लेती हं बेटियां।
कोमल, सहज व सहृदय होती हैं बेटियां॥
अब बेटे से कहीं कम नहीं है बेटियां।
हर घर का सम्मान है बेटियां॥
देश दुनिया में हर जगह पहचान है बेटियां।
स्वर्णिम दिशा में उडऩे का अरमान है बेटियां॥
न रोके इन्हें कोई, न लगाएं इनपे बेडिय़ां।
क्योंकि अब देश का स्वाभिमान हैं बेटियां॥

2 comments:

  1. बहुत खुब, शानदार रचना। बधाई

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  2. क्योंकि अब स्वाभिमान हैं बेटियां॥

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