Saturday, September 19, 2009

मस्ती की पाठशाला है पूरा मानव जीवन



जिंदगी हर एक बात पर हमें कुछ ना कुछ सिखाती है तथा आने वाला हर एक पल हमारे लिए एक नया अनुभव बन जाता है। आज के इस अर्थयुग में पैसा कमाने के लिये हमें अपने नौकरी-रोजगार में कई तरह की मुश्किलों आदि का सामना करना पड़ता है। व्यवसायिक प्रतियोगिता व प्रतिद्वंद्विता के दौर में अपनी क्षमता का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने का दबाव भी हम पर बना होता है, जिससे ही हम अपनी पहचान बना सकते हैं।

अपने स्कूल के दिनों में तो मौज-मस्ती सभी ने की होगी। उस समय न कोई चिंता और न कोई फिकर। उन दिनों न कोई भूतकाल होता है, और न ही कोई भविष्य। बस जो भी चल रहा होता है वही बच्चे जाते हैं। प्रत्येक बच्चा हर एक पल व हर एक क्षण को पूरी मस्ती के साथ जीता है। स्कूल में तो क ख ग का ज्ञान किताब से मिलता है, परंतु जिंदगी का क ख ग सीखने के लिये हमे जिंदगी की पाठशाला से रू ब रू होना पड़ता है। यह हमारे जीवन की ऐसी पाठशाला है जो कभी खत्म नहीं होती। इसमें हमें नित्य नये अध्याय सीखने को मिलते हैं। हम सब यहां स्टूडेंट की तरह होते हैं। आवश्यकता यहां पर भी वही है कि हम इस पाठशाला में भी पूरा मस्त होकर सीखें तो हमारी जिंदगी पूरी मस्ती की पाठशााला से कम नहीं लगेगी। हम सभी नेे स्कूल में मौज-मस्ती के साथ पढ़ाई की, फिर नौकरी-रोजगार की बात हो या घर-गृहस्थी का कोई भी पड़ाव, जिंदगी के हर कदम पर एक अलग तरह की मौज है तथा अनोखी मस्ती। अब सब कुछ हम पर निर्भर करता है कि हम इस जिंदगी की पाठशाला से कितना सीखकर उसका आनंद उठा पाते हैं। अगर हम अपने बचपन की ही बात करें तो आज भी हम अपने बचपन को याद कर प्रसन्न हो जाते हैं। उस जीवन में किसी भी तरह की कोई टेंशन नहीं और किसी भी बात का कोई झंझट नहीं दिखता था। यह शुरुआती फेज़ कितना आनंदमयी होता है, जिसमें हम सब बच्चे पूरी मस्ती में होकर अपने बचपन का लुत्फ उठाते हैं। स्कूली जीवन की पढ़ाई-लिखाई छूटने के बाद में हम नौकरी-पेशे आदि में आ जाते हैं। स्कूल के किताबी पाठ के बाद में अब हमें जिंदगी के वास्तविक व यर्थाथ अध्याय पढऩे पड़ते हैं। अभी तक हमने स्कूल में पढऩा-लिखना, लोक व्यवहार व नैतिकता आदि जो कुछ भी सीखा, वह सब कुछ हमें अपने जीवन में उतारना व ढालना होता है। एक तरह से देखा जाय तो स्कूल के बाद का हमारा यह जीवन बिल्कुल एक प्रायोगिक शिक्षा की तरह से है। जिस प्रकार कोई छात्र या छात्रा जब किसी प्रोफेशनल कोर्स की पढ़ाई पूरी कर लेने के बाद उसे कुछ समय इन्टर्नशिप करनी होती है। अगर हम ध्यान से अपने जीवन को देखें व जियें तो हमारे जीवन का यह पड़ाव भी पूरी मौज-मस्ती में जिया जा सकता है तथा बिना एक पल भी गंवाये हम इसका पूरा आनंद ले सकते हैं। जिंदगी हर एक बात पर हमें कुछ ना कुछ सिखाती है तथा आने वाला हर एक पल हमारे लिए एक नया अनुभव बन जाता है। आज के इस अर्थयुग में पैसा कमाने के लिये हमें अपने नौकरी-रोजगार में कई तरह की मुश्किलों आदि का सामना करना पड़ता है। व्यवसायिक प्रतियोगिता व प्रतिद्वंद्विता के दौर में अपनी क्षमता का सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन करने का दबाव भी हम पर बना होता है, जिससे ही हम अपनी पहचान बना सकते हैं। ऐसे में एक बात का ध्यान रखना बहुत आवश्यक हो जाता है कि हम किसी भी काम को तनाव में रहकर नहीं कर सकते हैं। नौकरी व्यापार में कई तरह का दबाव, वर्क लोड व बॉस का प्रेशर इतना सब होने के बावजूद हमें खुद अपने काम में सौ प्रतिशत परिणाम की अपेक्षा होती है, क्योंकि अब सवाल हमारी परफॉर्मेन्स का बन जाता है। ऐसे में केवल एक ही रास्ता दिखाई देता है कि हम अपने काम में ही एन्जॉयमेंट ढूढ़े। आनंदमग्न होकर अपने काम में तल्लीन हो जाना ही सफलता की गारंटी बन जाता है। इसको इस उदाहरण से समझें कि कि अगर हम किसी तनाव में हैं या किसी समस्या से ग्रस्त हैं, और हम उससे निकलनें का हल खोज रहे हैं। परिणाम यह होता है कि अक्सर हल तो मिलता नहीं और इसके विपरीत हम अपना तनाव और बढ़ा लेते हैं। इसी समस्या पर किसी दूसरे व्यक्ति से राय या सलाह लेनें पर वह व्यक्ति हमको इसका हल तुरंत बता देता है, क्योंकि उसका दिमाग उस वक्त किसी तनाव में नही रहता। इसका अर्थ यही है कि जब हम कहीं पर उलझे हुए होते हैं तो हमारा दिमाग भी इसी भटकाव में धूमता रहता है तथा किसी भी स्थिति का बारीकी से विश्लेषण व आकलन नहीं कर पाता है। अगर हम भी ऐसी किसी स्थिति में किसी भी प्रकार का तनाव व दबाव का अनुभव न करें तो हम भी इसका हल व तरीका ढूढऩें में समर्थ व सफल हो सकेंगे। वैसे हमारी जिंदगी के भी कई रूप है क्योंकि हमारी जिंदगी कई स्टेप्स में चलती है बचपन से किशोरावस्था, युवावस्था व फिर वृद्धावस्था। इन सभी स्टेज में क्रमश: बहुत बदलाव देखा जाता है। देखते ही देखते कल का बच्चा युवा हो जाता है और फिर प्रबुद्ध व्यक्ति बन जाता है। जिंदगी के बीच रहकर तथा उसके बीच हॅसखेल कर हम सब कुछ सीखते चले जाते है। जीवन के हर दौर में अगर हम नाचते-गाते चलें तो फिर हमें जिंदगी का सही अर्थ मिल जाता है। बच्चों की पढ़ाई- लिखाई हो या घर-गृहस्थी की जिम्मेदारी, ऑफिस का काम हो या फिर नौकरी-रोजगार में परेशानी। सब कुछ केवल पार्ट ऑफ दि लाइफ है। यह सब केवल हिस्सा मात्र है, यही सब कुछ नहीं हो जाता है। परंतु हम अपनी समझ से इन्हीं को सबकुछ मानकर बेवजह ही परेशान हुआ करते हैं। जब कि यह हमने भी देखा है कि कोई भी परेशानी हमेशा नहीं रहती, कोई झंझट सदैव नहीं चलता। चलता है तो बस जीवन। हम किसी भी चीज को अपने सिर पर बोझ की तरह न लें। अगर हम इसे बोझ मान बैठे तो फिर जल्द ही थकने की संभावना हो जायेगी। जीवन यात्रा का रस कम हो सकता है। हम ऐसा समझें की यह सब ऐसी जिम्मेंदारियां है कि बस हमसे बन पड़ रही है, और हम करते जा रहे है। जो कुछ किया उसका कोई गुमान नहीं, जो भी नहीं कर पाये उसका भी कोई क्षोभ नहीं। फिकर केवल एक बात की होनी चाहिए कि हम अपनें जीवन के हर पड़ाव में कितना ज्यादा मस्त हो सकते हैं। जिस प्रकार बचपन की प्रारंभिक शिक्षा की बात करें तो आजकल बच्चों को पढ़ाई के तनाव से बचानें के लिये स्कूलों में प्ले ग्रुप सेशन होता है। जिसमें बच्चों में खेल की मस्ती के साथ पढऩे-लिखने की आदत डाली जाती है जिससे कि बच्चा पढ़ाई में एन्जॉय करे, बोझ समझ कर बोर न हो जाय। हमें चाहिए कि बाकी की जिंदगी को भी हम इसी तरह से जियें, जिंदगी की हर खुशी को हम सब साथ मिलकर सेलेबे्रट करें। जीवन को एक आनंद के उत्सव के रूप में समझे व जिंदगी के हर सबक को एन्जाय के साथ सीखते चलें।
ईश्वर नें हमें जो जीवन दिया है वह मस्त होकर जीने के लिये ही दिया है। उसमें झूम जाने व डूब जाने के लिये दिया है। अगर हम मस्त होकर जियें तो उसकी हर एक बात, जिंदगी के हर पल व रिश्ते का सही अर्थ आसानी से समझ सकते हैं। उसकी दी हुई हर सॉस में उसका अनुभव कर सकते हैं। फिर हमारा पूरा जीवन आनंद की मौजों से भरा-पूरा लगने लगता है। चाहे वह हमारा परिवार हो, रिश्ते हों या लोक व्यवहार सभी में हमें आनंद दिखेगा व असीम रस की फुहार भी दिखाई देंगी।

No comments:

Post a Comment