Wednesday, November 25, 2009

मन पसंद हो ध्यान का साधन



ध्यान की अवस्था को पाने के लिए हम तरह-तरह की वीधियों में से ही कोई एक विधि चुन लेते हैं। कोई मौन होकर ध्यान को पाता है, तो कोई भक्ति रस में डूबकर, गीत गा कर, संगीत या अन्य किसी भी विधि से वह अपनी अन्तरात्मा को जागृत करने की विधि आजमाता है।

अपने गंतव्य तक पहुंचने के लिए हम अपनी पसंद का साधन व मार्ग ही चुनते हैं, जिससे रास्ता किसी भी तरह कष्टïदायी न हो बल्कि, आराम व आनंद से मंजिल तक पहुंचा जा सके और पूरे रास्ते यात्रा का भरपूर लुत्फ उठाया जाए। ध्यान को उपलब्ध होने के लिए भी अपने मन को अच्छा लगने वाले विषय को ही मुख्य माध्यम बनाया जाय। जिससे ध्यान के निर्मित होने में किसी प्रकार की रुकावट न हो, बल्कि इसमें एक अलग तरह का निमंत्रण व आकर्षण हो जिसे करने के लिए हमारा मन हमेशा लालायित हो और इस तरह से पूरी क्रिया आनंद से सराबोर हो जाए। हमारी उस काम में दिलचस्पी ज्यादा होती है जो हमें अधिक आनंददायक व रुचिकर लगता है। यह बात ध्यान को साधने में भी बहुत मायने रखती है। ध्यान की अवस्था को पाने के लिए हम तरह-तरह की विधियों में से ही कोई एक विधि चुन लेते हैं। कोई मौन होकर ध्यान को पाता है, तो कोई भक्ति रस में डूबकर, गीत गा कर, संगीत या अन्य किसी भी विधि से वह अपनी अन्तरात्मा को जागृत करने की विधि आजमाता है।
यहां पर मुख्य बात हमारी रुचि की है। वस्तुत: हम उस चीज को ज्यादा पसंद करते हैं। पहले से ही हमें जिस काम को करने में ज्यादा आनंद मिलता है और हमें जो हमेशा आकर्षित करता है। नि:संदेह हमें उसे अपनाने में ज्यादा समस्या नहीं होगी। पतंजलि कहते हैं कि जो तुम्हें ज्यादा आकर्षित करता हो उसे ध्यान का विषय बनाओ। सही भी है क्योंकि उस मार्ग से ध्यान को पाने की संभावना जल्दी बन जाती है। उदाहरण के तौर पर किसी बच्चे का भविष्य संवारने के लिए भी उसे उसकी पसंद का विषय पढऩे पर ही ज्यादा जोर दिया जाता है और इस तरह से उसके सफल होने की संभावना ज्यादा प्रबल हो जाती है। मन को जबरदस्ती किसी एक विषय पर टिकाया नहीं जा सकता है। मन को एकाग्रचित्त किया जा सकता है। ध्यान अपने आप अकस्मात ही अवघटित हो जाता है। एकाग्रचित्त व ध्यान की अवस्था को उपलब्ध होने के लिए किसी भी तरह का संघर्ष या विरोध नहीं किया जा सकता। मन की एक स्वाभाविक दौड़ है। वह एक बिंदु से दूसरे बिंदु तक बिना सेकेंड गंवाए जाता है। मन को अपने प्रयत्न से रोक कर नहीं रखा जा सकता है। परंतु अपने पसंदीदा मार्ग पर उसके साथ चलते हुए, सब कुछ ध्यान उन्मुक्त होते हुए अनुभव किया जा सकता है और सब कुछ बदल जाता है। सब दौड़ खत्म हो जाती है। हमारा प्रवेश एक नई दिशा में होने लगता है। यह बिल्कुल वैसे ही होगा जैसे कोई व्यक्ति लेटे हुए सोने की कोशिश में लगा हुआ हो और अपनी ओर से सोने की पूरी कोशिश कर रहा है। उसका हर प्रयास बेकार हो जाएगा, क्योंकि वह जितनी कोशिश करेगा, नींद उससे उतनी ही दूर होती जाएगी। वह अपनी आंख जोर से बंद करेगा, नींद लाने का हर प्रयास करेगा, फिर भी सफल नहीं हो सकेगा। यह तभी हो सकता है जब हम अपने आप बिना किसी प्रयास के केवल लेट जाते हैं, फिर जो भी विचार आते-जाते हैं वह सब नींद लाने की ही प्रक्रिया है। एक समय सब सोचना बंद हो जाएगा और अकस्मात ही हम नींद में चले जाते हंै। वह भी बिना किसी प्रयत्न के।
इसी तरह हमारे कुछ करने से भी ध्यान उत्पन्न नहीं होगा। ध्यान के समय हमें किसी भी तरह के द्वंद्व या झंझट में भी नहीं पडऩा है, बल्कि इन सबसे पार होकर निकल जाना है। ध्यान करते समय विचारों की एक बड़ी भीड़ दिखाई देती है। इन पर जबरदस्ती दबाव बनाने का प्रयत्न भी नहीं करना चाहिए। ध्यान में विचार तो पानी की लहरों के तेज झोंके की तरह आते हैं। इस समय अपने किसी भी प्रयास से विचारों के प्रवाह या लहरों से संघर्ष और प्रतिरोध ठीक नहीं होगा। बल्कि अपने मन को बिना किसी दबाव के इस बहाव में बह जाने दें। इन सबसे सीख व अनुभव लेते चलें। एक समय पर हमारे सब विचार बिना किसी प्रयत्न के आने बंद हो जाएंगे। मन शांत होता चला जाता है और धीरे-धीरे ध्यान की गति बढ़ती चली जाती है। हालांकि ऐसी स्थिति में कभी-कभी किसी बाहरी गतिविधि के कारण हमारे ध्यान की बढ़ती हुई दिशा में कोई अवरोध या रुकावट भी आ सकती है, जिससे हमारे मन में अमुक माध्यम से ध्यान टूटने का अंदेशा भी हो जाता है। मान लिया जाय कि हम ध्यान में हैं, बाहर कोई आपस में तेज बातें कर रहा है, कहीं पर गाना बज रहा है, लाउड स्पीकर की आवाज सुनाई पड़ रही है या किसी के फोन अथवा मोबाइल पर बात करने की अचानक आवाज आने लगती है। ऐसे में हम किसी की आवाज को नहीं बंद कर सकते हैं और इन्हें हम अपने ध्यान में अवरोध मान लेते हैं। इस समय एक काम किया जाय फिर हमारे ध्यान में इससे कोई समस्या न होगी । अगर हम अपना ध्यान बिंदु ही तुरंत उसी आवाज पर कर दें। जैसे ही हम उन पर ध्यान देना शुरू करेंगे वैसे ही धीरे-धीरे हम उन आवाजों से दूर होते जाएंगे। फिर हमें कोई आवाज परेशान नहीं करेगी और हम इन आवाजों को चीरते हुए ध्यान की ओर प्रशस्त होते जाएंगे। ध्यान करने का माध्यम कुछ भी हो सकता है। जिस तरह से मंजिल मिल जाने के बाद रास्ते का कोई मतलब नहीं रह जाता है, उसी तरह ध्यान का विषय भी है। आकर्षण और विरोध सबकुछ ध्यान की उपलब्धि होने पर अंत में अपने आप छूट जाता है और मिलता है- स्व अनुभव व अनंत आनंद की रसबेला।

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