Friday, November 6, 2009

तोल-मोल फिर बोल, यही है वाणी का उचित रोल


हमारे कुछ भी बोलने से पहले उससे पडऩे वाले प्रभाव व परिणाम का पूर्व आकलन करना बेहद आवश्यक हो जाता है क्योंकि हमारे कुछ भी कह देने से सब कुछ वैसा ही नहीं रहता बल्कि लोगों के हावभाव व व्यवहार हर एक में तुरंत से ही अचानक परिवर्तन देखा जाने लगता है। बोलने के बाद सोचने से हम कुछ नहीं संभाल सकते हैं, तब तक बहुत कुछ बिगड़ चुका होता है। इसलिए किसी भी निष्कर्ष तक पहुंचने से पहले थोड़ा समय अपने आप में लें।


तोलना मतलब किसी भी चीज का वजन देखना, मोल का अर्थ उसकी कीमत। इसके बाद बोल का तात्पर्य ही है कि किसी भी चीज के बारे में हर तरीके से सूक्ष्म विश्लेषण करने के बाद ही अपनी कोई टिप्पणी या राय देना। क्योंकि हमारी किसी बात का वजन होने से ही उसके ग्राही को उस बात की अच्छी कीमत या वैल्यू दी जाती है, अन्यथा हमारी बात कमजोर व तत्वहीन होने से उसका असर बेकार तथा निरर्थक भी हो सकता है। हमारी कोई भी सलाह इसलिए भी महत्वपूर्ण हो जाती है कि इसके आने वाले परिणाम भी हमारी बात पर ही निर्भर करते हैं। कई जगह इस तरह का एक गेम शो भी देखा जाता है जो तोल-मोल के बोल पर ही आधारित होता है। इस शो में हिस्सा लेने वाले प्रतिभागियों को पैक किए हुए कई तरह के उत्पाद दिखाए जाते हैं, और लोगों से इन पैक्ड डिब्बों में बंद चीजों की सही कीमत लगाने को बोला जाता है। जिस भी प्रतिभागी की सबसे नजदीकी कीमत उस वस्तु की कीमत से मेल खा जाती है, वह व्यक्ति उस वस्तु का इनाम हो जाती है। यहां पर भी हमारा आइडिया ही काम करता है। परिणाम सामने आने पर ही हमें अपनी लगाई हुई कीमत व वस्तु के असली दाम में अंतर समझ में आता है। इसी तरह से जब हम अपनी रुटीन लाइफ मे किसी वस्तु के बारे में, किसी व्यक्ति के विषय में या किसी भी स्थिति के संदर्भ में अपना वक्तव्य रखते हैं तो वह हमारे पूरे विश्लेषण और आकलन का परिणाम होता है। यहां पर ध्यान देने वाली बात यह भी होनी चाहिए कि जब कभी भी हम अपना मत या राय किसी के लिए भी रखें तो हमारा पूरा मन किसी व्यक्तिविशेष के प्रति पूर्वाग्रहित भी नहीं होना चाहिए। हर एक बात का निरीक्षण व त्वरित समीक्षा पूर्व के आधार पर नहीं बल्कि नये बिंदू से ही शुरू करनी चाहिए, तब ही हमारी बात निष्पक्ष और निर्विवाद होगी। थिंक बिफोर स्पीक, हमारे किसी भी संवाद में बहुत महत्वपूर्ण है। हमारे कुछ भी बोलने से पहले उससे पडऩे वाले प्रभाव व परिणाम का पूर्व आकलन करना बेहद आवश्यक हो जाता है क्योंकि हमारे कुछ भी कह देने से सब कुछ वैसा ही नहीं रहता बल्कि लोगों के हावभाव व व्यवहार हर एक में तुरंत से ही अचानक परिवर्तन देखा जाने लगता है। बोलने के बाद में सोचने से हम कुछ नहीं संभाल सकते हैं, तब तक बहुत कुछ बिगड़ चुका होता है। इसलिए जरूरी यह है कि हम किसी भी निष्कर्ष तक पहुंचने से पहले थोड़ा समय अपने आप में लें। साथ ही हमारी कही जाने वाली बात का असर व बाद में हाने वाली स्थिति को पहले ही अच्छी तरह से भांप कर किसी के बारे में अपना स्पष्टïीकरण देना उचित है। इस तरह से करने पर हमारा विचार व बात सार्थक हो पाएगी और इसका किसी के अपने जीवन में अमल करने पर लाभकारी हो सकता है। अक्सर हमारे जीवन में यह भी होता है कि अंतर्मन में किसी की एक इमेज कैद होकर रह जाती है, इस तरह से भविष्य के सारे निर्णय हम उसी के आधार पर किया करते हैं, जो कि न्याय संगत व उचित नहीं होता है। हम उसे हमेशा एक ही नजर से देखा करते हैं और उसके बारे में एक राय पहले से ही बना लेते हैं। हमें एक व्यक्ति को हर एक बार पूरी तरह से जज करना पड़ेगा, प्री-जज से काम नहीं चलेगा। यह एक तरह से बायस्ड फीलिंग की तरह से हो जाएगा। हमें इसे पूरी समझदारी से अच्छी तरह समझ कर किसी भी प्रकार की जल्दबाजी से बचते हुए न्यायपूर्ण तरीके से अपना पक्ष रखना है ताकि किसी के भी साथ न तो पक्षपात हो और न ही कोई हताहत ही हो। जीवन में कभी ऐसी भी स्थिति आती है कि हमको बोलने से पहले सोचने का तनिक भी समय नहीं मिल पाता है, परंतु हमारे बोलने के अनुकूल या प्रतिकूल परिणाम तुरंत देखे जाते है। जिस तरह से किसी परीक्षार्थी का किसी साक्षात्कार के दौरान पूछे गये प्रश्नों के उत्तर का एक-एक शब्द बहुत अर्थ व महत्व रखता है और उसका चयन भी उसके उत्तरों में ही होता है। जल्दबाजी या बिना सोचे समझे बोले गए उत्तरों का जवाब उसको उसी समय साक्षात्कार से बाहर भी कर सकता है। किसी के साथ वार्तालाप में भी अक्सर हम देखते हैं कि हम जो कुछ भी बोलते हैं, बोलने के बाद हम यह महसूस करते हैं कि अपनी वाकशैली को कैसे और प्रभावशाली बनाया जा सके। कभी-कभी हम जीवन की ऐसी उलझन में फंस जाते हैं कि हम अपने इष्टï मित्रों या सगे संबंधियों से राय-मशविरे की आवश्यकता आ पड़ती है या फिर कभी हमें दूसरों के लिए भी यही काम करना पड़ता है। दोनों ही स्थितियों में हर चीज का पूर्वानुमान लगाना व भली-भांति सोचना बहुत आवश्यक हो जाता है। बोलने के बाद की समस्या का समाधान है बोलने के पहले सोचा जाए। शुरुआत में तो कुछ अतिरिक्त समय अवश्य लगेगा, परंतु जैसे-जैसे इस पूरी प्रक्रिया में हमारा मस्तिष्क अभ्यस्त होता जाता है, फिर क्षण भर में ही हमारा दिमाग तेज और सही निष्कर्ष पर भी पहुंच जाता है। इससे हमारे बोलने से न ही किसी को ऐतराज ही होगा और न ही कोई प्रतिकूल असर पड़ेगा। इसलिए जरूरी यह है कि आवश्यक जांच-पड़ताल या बात की माप-तौल पहले ही कर ली जाये।

3 comments:

  1. बहुत सही लिखा है।विचारणीय पोस्ट है।आभार।

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  2. बहुत ही उम्दा सटीक....

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  3. बिल्कुल सही कहा आपने, सहमत हूँ।

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