Friday, November 27, 2009

शान-शौकत ही नहीं संस्कारों को भी दें तवज्जो



वर वधू का भविष्य किसी योग्य पुरोहित द्वारा सही उच्चारित वेद मंत्रों, शुद्ध श्लोकों व विधिवत पाठ-पूजन से शादी कराये जाने पर ही आधारित होता है। समारोह को आलीशान व बनाने के लिए लोग कोई कोर-कसर नहीं छोडऩा चाहते और इसी बात ने समाज में दिखावे की प्रतियोगिता को भी जन्म दे दिया है।

सहालगें आ चुकी हैं। आजकल शादी-ब्याह का मौसम जोरों पर चल रहा है। भरे-भरे बाजार, घरों में चलती जोर-शोर से तैयारियां, गली-सड़कों में बैण्ड-बाजे की धूम, सजी बारातें व होटल-गेस्ट हाउस में आलीशान व्यवस्था का माहौल है। कुल मिलाकर हर तरफ मौज और मस्ती का माहौल छाया हुआ है। शादी-ब्याह तो हमारे यहां की सामाजिक व्यवस्था है, जिसके अंतर्गत लड़का-लड़की को एक सूत्र में पिरोया जाता है। इस शुभ अवसर पर हम सब एक बड़ा समारोह भी आयोजित करते हैं, जो अब एक परम्परा की तरह है। जिसमें अनाप-शनाप पैसा भी खर्च किया जाता है। उद्देश्य यह होता है कि हमारे स्टेटस में किसी भी प्रकार की कमी न रह जाय। लेकिन इसके साथ देखने वाली मुख्य बात यह है कि विवाह जैसे संस्कार जिसमें दो अंजान व्यक्ति अपनी जिंदगी की बागडोर एक दूसरे को सौंपते हैं। यहां पर इस बात पर ध्यान देना ज्यादा जरूरी हो जाता है क्योंकि इन दोनों का भविष्य एवं मांगलिक वैवाहिक जीवन किसी योग्य पुरोहित द्वारा सही उच्चारित वेद मंत्रों, शुद्ध श्लोकों व विधिवत पाठ-पूजन से शादी कराये जाने पर ही आधारित होता है तथा ये दोनों अपने वैवाहिक जीवन की शुरुआत यहीं से करते हैं।
शुभ विवाह की रस्में किसी लड़का-लड़की के वैवाहिक जीवन के लिए अति महत्वपूर्ण हैं। विवाह की इस पावन घड़ी में हम पूरे आयोजन को एक भव्य रूप देना चाहते हैं। बड़े-बड़े पंडाल, महंगे-आलीशान होटल, गेस्ट हाउस में चकाचौंध रंगबिरंगी रोशनियों के बीच शादी-पार्टी का आयोजन किया जाता है। खाने-पीने के एक से एक लजीज व्यंजनों के अनेक स्टाल सजाए जाते हैं। लोगों के खाने-पीने व मौज-मस्ती का पूरा ख्याल रखा जाता है। सजे-धजे आने वाले सभी मेहमान भी खूब मौज-मस्ती करते हैं। बच्चों के साथ बड़ों के लिए भी मनोरंजन के साधन जुटाए जाते हैं। जिसमें आजकल आर्केस्टा, डांस ग्रुप व डीजे मुख्य रूप से होते हैं। पहले होता था कि जयमाल के समय घर की महिलाएं मंगलगीत गाया करती थीं, अब प्राय: देखा यह जाता है कि इस समय दोनों पक्षों द्वारा जयमाल स्टेज पर ऊल-जलूल हरकतें, अशोभनीय कृत्य या वार्तालाप पूरे गरिमामयी माहौल को बिगाड़ देते हैं। आज की मॉर्डन शादियों में अब मधुर गीतों की जगह शोर-शराबे वाले डीजे के हुड़दंग ने ले ली है। आधुनिकता के इस दौर में शादी ब्याह के दौरान पुराने रीति-रिवाज अब बहुत ही कम दिखाई पड़ते हैं। इनकी जगह बहुत कुछ बदलाव देखा जाता है। इस नई सदी में विवाह के समय पर आध्यात्मिक माहौल की जगह ज्यादातर आधुनिकता का ग्लैमर ही पसंद किया जाता है। पाणिग्रहण संस्कार एवं फेरों के समय का माहौल पूरी तरह से आध्यात्मिक व आत्मीय बेला होती है। जिसमें वर व वधू दोनों पक्षों की ओर से इस विवाह को मांगलिक रूप देने के लिए शुभ गीतों व भजनों आदि के गाने की रस्म हुआ करती थी, परंतु इस दौर के लोगों में इस बात की दिलचस्पी खत्म मालूम पड़ती है। यहां तक पंडित- पुरोहित के मंत्रों, श्लोकों व विवाह के नियम कानून की जरूरी शिक्षा को एक उबाऊ कार्यक्रम की तरह देखा जाता है, तथा यह महत्वपूर्ण समय बेकार व निरर्थक हंसी ठिठोली में निकाल दिया जाता है। इस कार्यक्रम की महत्ता को अच्छी तरह न समझने और लोगों की ज्यादा रुचि न होने के कारण ही कभी-कभी पंडित-पुरोहित पर इस कार्यक्रम को जल्दी निपटाने के लिए भी दबाव बनाया जाता है।
हिंदू संस्कृति व रीति-रिवाजों के अनुसार विवाह दो व्यक्तियों का मिलन होता है। जिसको हम वैवाहिक गठबंधन भी कहते हैं। इस गठबंधन में लड़का-लड़की को वेद मंत्रों व श्लोकों के माध्यम से वैवाहिक जीवन के नियम कानून बताए और सिखाए जाते हैं। इस संस्कार में योग्य पुरोहित द्वारा वर एवं वधू को परस्पर हर स्थिति में साथ निभाने व सुख-दुख के साथी जैसे सात वचन एक दूसरे को दिलाते हैं। अपनी जीवन की नई यात्रा का शुुभारंभ करने वाले नए युगल को विवाह की मर्यादा भली-भांति समझाई जाती हैं। जिस तरह हम अपने घर-व्यापार के लिए अन्य पूजन-पाठ या जाप किसी योग्य व प्रशिक्षित पुरोहित द्वारा ही कराते हैं ताकि हमारा अनुष्ठान सफल व सार्थक हो सके। उसी प्रकार इस विवाह की मांगलिक बेला पर भी पूरे विधि-विधान के साथ किसी शुभ मुहूर्त में वैवाहिक संस्कार का क्रियान्वयन ही नव दंपत्ति के जीवन को हर तरीके से सुखमय, सफल व सार्थक कर देता है। आज समाज में विवाह के अवसर पर आयोजित समारोह को आलीशान व यादगार बनाने के लिए लोग कोई कोर-कसर नहीं छोडऩा चाहते और इसी बात ने समाज में दिखावे की प्रतियोगिता को भी जन्म दे दिया है। शादी के इंतजाम में लाखों रुपया खर्च कर दिया जाता है ताकि आने वाले किसी भी मेहमान की किसी भी तरह का कष्टï न हो बल्कि सभी पूरी तरह से एन्ज्वाय कर सकें। आज शादी समारोह लोगों की सामाजिक प्रतिष्ठा और शान-शौकत का भी प्र्रतीक बन गए हैं। ऐसे में वैवाहिक संस्कारों, रस्मों व रीति- रिवाज की उपेक्षा व नजरंदाजी क्या नव युगल के वैवाहिक जीवन के लिए मंगलकारी व हितकारी होगी ? आज यह हम सबके लिए चिंतन का विषय है कि शादी के अवसर पर वैवाहिक संस्कार व रीति-रिवाज मात्र रस्म अदायगी या औपचारिकता बन कर न रह जाएं।

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