Friday, October 30, 2009

अपने अंदर ही है ध्यान प्रशिक्षण केंद्र

जिस प्रकार हम अपने दैनिक जीवन के काम-काज निपटाने के लिए समय निकाल लेते हैं उसी प्रकार लगातार इसको करते रहने से हमारे अंदर इसकी प्रवृति भी बन जायेगी। अच्छी शिक्षा किसी भी व्यक्ति को आभूषण से कहीं अधिक सुशोभित करती है। वहीं ध्यान की शिक्षा को पाकर कोई व्यक्ति अद्वितीय व्यक्तित्व का स्वामी व प्रेरणादायक स्रोत का भी जनक हो जाता है।

अच्छी शिक्षा का हमारे जीवन में बहुत महत्व है। इसी से जीवन सुधरता है। शिक्षा से जहां हमारा मस्तिष्क तेज होता है वहीं अच्छे और बुरे का पाठ भी पढऩे को मिलता है। पढ़-लिख कर हम बड़े भी हो जाते हैं और अपने-अपने काम-धंधे व नौकरी-रोजगार में लग जाते हैं। लेकिन हमने एक बात का ध्यान बिल्कुल नहीं दिया कि दिमाग के साथ अंतरआत्मा की शिक्षा पाना भी बहुत आवश्यक है, इसके लिए किसी स्कूल, कॉलेज या विश्व विद्यालय में दाखिला लेने की जरूरत नहीं है, क्योंकि अपने ही अंदर छिपा है पूरा ध्यान प्रशिक्षण केंद्र। अच्छे स्कूल में दाखिला दिलाने का मतलब ही यही होता है कि बच्चा पढ़-लिखकर एक अच्छा इंसान बन सके और जिसके अंदर अच्छे और बुरे की समझ भी पैदा हो सके। अच्छी शिक्षा का सबसे बड़ा उद्देश्य ही यही है। यही सब हमारे साथ हुआ और इसी उद्देश्य की पूर्ति के लिए हम अपने बच्चों की पढ़ाई-लिखाई अच्छे स्कूलों में कराते हैं। जैसा हमारे साथ हुआ, वैसे ही हमारे बच्चों के साथ भी हो रहा है। बस अंतर जरा आधुनिकता का हो गया। आज शिक्षा कंप्यूटरीकृत हो गई। स्कूल, कॉलेज सब हाईटेक हो गए। बच्चे पढऩा-लिखना अच्छी तरह से सीख कर प्रोफेशनल बन गये। देखने वाली बात है कि दिमाग से तो सभी शार्प माइंड हैं, परंतु आभास यह होता है कि मन और अंतरआत्मा के प्रति भावशून्य हैं। इसकी निश्चित ही यह वजह हो सकती है कि इस विषय की अब तक इनको जानकारी ही नहीं हो पाई है। इसको जानने का उनके पास कोई विषय ही नहीं रहा। इसकी किसी ने पढ़ाई ही नहीं की और न ही हमने इनको सिखाया ही। सबसे बड़ी बात यह भी है कि ध्यान हमारा भी कभी विषय नहीं रहा और न ही हमने कभी इसे अलग से पढऩे व सीखने की कोशिश की। जबकि स्वयं को जानने व अपनी अंतरआत्मा को पहचानने का ही विषय है ध्यान। अभी भी ज्यादा देर नहीं हुई है। जब जागो, तब सबेरा। आज हमारे जीवन की सबसे बड़ी प्राथमिकता यही होनी चाहिए कि सबसे पहले हम इस ध्यान के विषय को अपने जीवन में एक बार आजमाने के लिए ही अपनाना शुरू करें। इसके लिए हमें कहीं और जाने की कोई जरूरत नहीं, और न ही किसी स्कूल, कॉलेज में अलग से कोई कोर्स करने की आवश्यकता है। जरूरत है केवल इसे नियमित रूप से अपने जीवन में उतारने व ढालने की। सर्वप्रथम हम यह प्रयास करें। फिर धीरे-धीरे हम अपने बच्चों को भी ध्यान की ओर बढ़ाने व इसे पढ़ाने की दिशा दें। जिस तरह से मां-बाप ही अपने बच्चों को अच्छे संस्कार व सद्गुण सिखाने का काम करते हैं, उसी तरह ध्यान का नियमित अध्ययन व इसे सीखने का संस्कार भी शुरुआत से ही उनमे डालना प्रारंभ कर दें। ध्यान का नियमित पाठ पढऩे व सीखने से धीरे-धीरे पूरे मन में तथा अन्त:स्थल में एक प्रशिक्षण केन्द्र बनना आरंभ हो जाता है। इस समय हमारी आत्मा एक ध्यानस्थली की तरह बन जाती है, जिससे हर क्षण सुंदर व अच्छे विचार जन्म लेना शुरू कर देत हैं। आत्मीय शांति के साथ ही असीमित ऊर्जा और क्षमता का स्रोत भी यहीं से फूटता है जो हमें पूरे दिन स्फूर्तिवान बनाये रखने में सहायक होता है। इस समय हमारा पूरा शरीर साक्षी मात्र होकर सब कुछ महसूस करता रहता है। जिस प्रकार किसी कॉलेज के एक कमरे में क्लास चलती है और पूरी बिल्डिंग में स्कूली माहौल नजर आता है, उसी तरह हमारा पूरा शरीर ऊर्जावान होकर तरोताजा हो जाता है। ध्यान के नियमित अभ्यास से हमारे ारीर की सभी नकारात्मक ऊर्जा का नाश होता रहता है और ध्यान से ही यही ऊर्जा बदल कर सकारात्मक में रूपांतरित हो जाती है। जीवन की नई से नई चुनौतियों का भी तुरंत हल ध्यान से ही मिलता है। कठिन से कठिन परिस्थितियों व नये लक्ष्यों को हासिल करने तथा इनमे सफलता प्राप्त करने का अदम्य साहस भी ध्यान के स्वयं के प्रशिक्षण केंद्र से ही प्राप्त होता है। आज जीवन की आपाधापी में जूझते फिरते किसी के पास ज्यादा अतिरिक्त समय नहीं रहा। फिर भी ध्यान को अपने जीवन में शामिल करने तरीका हमें किसी भी समय निकालना होगा और इसी नियमित अभ्यास की आदत हमें अपने बच्चों में अभी से डालनी होगी, जिससे हमारे अंदर ध्यान को सीखने की नींव जल्द से जन्द पड़ सके। जिस प्रकार हम अपने दैनिक जीवन के काम-काज निपटाने के लिए समय निकाल लेते हैं उसी प्रकार लगातार इसको करते रहने से हमारे अंदर इसकी प्रवृति भी बन जायेगी। अच्छी शिक्षा किसी भी व्यक्ति को आभूषण से कहीं अधिक सुशोभित करती है। वहीं ध्यान की शिक्षा को पाकर कोई व्यक्ति अद्वितीय व्यक्तित्व का स्वामी व प्रेरणादायक स्रोत का भी जनक हो जाता है। इसलिए आज समय की यही आवश्कता है कि हम अपने साथ बढ़ते हुए किशोर वर्ग व युवा पीढ़ी को भी ध्यान की धरोहर का स्वामी बना दें ताकि देश के बढऩे वाले हर एक बच्चे की हर मायनों में शिक्षा पूरी हो सके। इस प्रकार हर कोई बच्चा सुसंस्कारवान, सुशिक्षित व सच्चे अर्थों में सम्माननीय हो सकेगा।

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