Monday, October 5, 2009

अमूल्य है गांधी जी का जीवन दर्शन



गांधी जी ने अपने जीवन में सभी धर्मों को बराबरी से सम्मान दिया क्योंकि वह भारत को सर्व धार्मिक राष्ट्र बनाने का सपना देखते थे। इसी के साथ उन्होंने सारे जीवन केवल सत्य का मार्ग अपनाया।
दे दी हमे आजादी बिना खड्ग बिना ढाल, साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल। गांधी का मतलब- महान व्यक्ति, एक विचार धारा व सत्य-अहिंसा का पुजारी। एक साधारण से दिखने वाले पुरुष में अनेक असाधारण प्रतिभाओं का समिश्रण ही है- मोहनदास करमचन्द गांधी। जो आगे चलकर शांति के मसीहा के रूप में विख्यात हुए तथा अपनी जान की आहूति देकर भारत की आजादी का अपना लक्ष्य पा लिया। हिंदुस्तान की आजादी का सपना देखने वाले मोहनदास करमचन्द गांधी जी का जन्म पोरबंदर में 2 अक्टूबर 1869 को हुआ था। बनिया परिवार में जन्म लेने वाले इस बालक की आगे चलकर क्या हस्ती होगी, इस बात का किसी को तनिक भी अंदाजा नहीं था। गांधी जी अपने बाल्यकाल में बेहद शर्मीले व अन्तर्मुखी स्वभाव के थे। उनके असली संगी-साथी उनकी किताबें ही थीं। मात्र 13 वर्ष की आयु में ही गांधी जी का बाल-विवाह कस्तूरबाई के साथ हो गया था। उनकी पत्नी पढ़ी-लिखी नहीं थीं। स्कूल के दिनों में जिमनास्टिक विषय में रुचि न होने के कारण उस समय वह अपने बीमार पिता की सेवा करना ज्यादा पसंद करते थे। एक बार उन्हें जिमनास्टिक पीरियड में गैरहाजिर रहने के कारण दो आना का जुर्माना भी भरना पड़ा। अपनी सुलेख व हैंड राइटिंग से वह बहुत असंतुष्ट व शर्मिंदा रहते थे क्योंकि वह सुलेख को अच्छी शिक्षा का हिस्सा मानते थे। गांधी जी को अपने बचपन के मित्रों द्वारा मांसाहारी भोजन के लिए प्ररित किये जाते थे। उनके एक मित्र ने उनको बताया कि हम लोग मांसाहारी भोजन न करने के कारण ही कमजोर हैं, और अंग्रेज लोग मांसाहारी होते हैं। इसीलिए वे हम पर अपना शासन चलाने के लिए योग्य व सक्षम होते हैं। इन सब बातों से गांधी जी को बहुत पीड़ा पहुंचती थी। गांधी जी का परिवार वैश्णव था। उन्हें सच से बेहद लगाव था तथा इस बात का डर था कि उनके मांसाहारी होने की बात पता चलने पर परिवारजनों को बहुत आघात लगेगा। जबकि वह चाहते थे कि सभी लोग मजबूत व साहसी हो, जिससे कि अंगे्रजों को हराकर भारत को स्वतंत्र कराया जा सके। जब वह 16 साल के थे तभी उनके पिता का देहान्त हो गया। उन्हें इस बात का अत्यंत दु:ख व आघात लगा तथा अपने आप में शर्मिंदा भी थे कि अपने पिता के अन्तिम क्षणों में उनके पास क्यों नहीं रह पाये? 1887 में गांधी जी के मेट्रीकुलेशन पास करने के बाद इंग्लैंड रवानगी से पहले उन्हें शराब, मांस और औरत से दूर रहने की कसम दिलाई गई। उस समय अंग्रेजी भाषा में ज्यादा अभ्यस्त न होने के कारण वह अंग्रेजों की बातों का मुश्किल से जवाब दे पाते थे। कुछ समय बाद गांधी जी इंग्लैंड की एक्जीक्यूटिव कमेटी ऑफ वेजिटेरियन में चुन लिये गये। इंग्लैंड से वापस आने पर गांधी जी को मां की मृत्यु का समाचार मिला। इस समय उन्हें पिता की मृत्यु से भी ज्यादा आघात पहुंचा। बंबई आकर उन्होंने अपनी वकालत शुरू की, लेकिन उनका मन वकालत करने में नहीं लगा तथा कुछ ही समय में बंबई छोड़कर राजकोट में अपना ऑफिस बनाया। जहां पर उन्होंने लोगों के लिए एप्लीकेशन व लेटर आदि ड्राफ्ट करने का काम शुरू किया। एक दिन एक ब्रिटिश अधिकारी, एक पॉलिटिकल एजेन्ट, जो साहिब कहे जाते थे के द्वारा अपमान तथा चपरासी द्वारा बाहर निकालने की घटना ने उनको हिला कर रख दिया। इसी बीच गांधी जी को पोरबंदर से एक कम्पनी का प्रस्ताव आया। जिसमें गांधी जी को साउथ अफ्रीका की कोर्ट में कम्पनी के एक केस के तहत वकीलों को सलाह देने के लिए लगभग एक वर्ष के पूरे खर्चे के साथ 105 पौंड देने की पेशकश की गई। गांधी जी इस प्रस्ताव से बिल्कुल संतुष्ट नहीं थे, परंतु देश छोडऩे व नये अनुभव के लिए साउथ अफ्रीका रवाना हुए। गांधी जी का सामाजिक व राजनैतिक जीवन-विदेशों मे रहते हुए गांधी जी को वहां पर रहने वाले हिंदुस्तानियों के बारे में बहुत हमदर्दी थी। गांधी जी ने प्रेटोरिया में रहने वाले भारतीयों के बारे में जानना चाहा तथा उन्होंने सभी भारतीय नागरिकों को अपने काम में सच्चाई को पहचानने की पहली मीटिंग करी। वहां पर काम करने वाले भारतीय व्यापारियों को पूरी सच्चाई के साथ अपने कर्तव्यों के प्रति हमेशा सजग रहने के लिए प्रेरित किया। अपने तीन साल के साउथ अफ्रीका दौरे के दौरान गांधी जी ने विभिन्न धर्म, सम्प्रदायों एवं जातियों का तुलनात्मक रूप से गहन अध्ययन किया, और हर धर्म व जाति के प्रति उनमें विशेष आस्था बनी। गांधी जी ने अपने जीवन में सभी धर्मों को बराबरी से सम्मान दिया क्योंकि वह भारत को सर्व धार्मिक राष्ट्र बनाने का सपना देखते थे। इसी के साथ उन्होंने सारे जीवन केवल सत्य का मार्ग अपनाया तथा सभी से सत्य का अनुपालन करने का आह्वान भी किया। गांधी जी ने सत्य को कभी नहीं छोड़ा। गांधी जी कहते थे कि सत्य का मार्ग बहुत कठिन है। उस पर आसानी से नहीं चला जा सकता, चलने में अनेक दिक्कतें भी आती हैं, परन्तु अन्त में जीत सच की ही होती है। भारत की आजादी तथा हिंदुस्तान का भाग्य विधाता कोई राजा महाराजा, रण क्षेत्र का योद्धा, या साधू संत नहीं बल्कि दुबला-पतला एक बूढ़ा आदमी था। इस व्यक्ति का नाम मोहनदास करमचन्द गांधी था। आजादी के इस रचयिता के पास अंगे्रजों से मुकाबला करने के लिए न कोई हथियार था, और न ही अपने बचाव के लिए कोई ढाल। गांधी जी के पास था केवल सत्य का साथ व अदम्य साहस। वैसे गांधी जी के पास अपने आप को भोजन से वंचित रखने का अर्थात अनशन पर बैठने का ऐसा ब्रम्हास्त्र था, जो बड़े-बड़े ब्रितानियों को उनके आगे घुटने टेकने पर मजबूर कर देता था। गांधी जी इतने सादगी पसंद व्यक्ति थे कि वह अपनी बात को कहने के लिए हाथ से लिखकर पत्र व्यवहार करते थे। उनमें इतना चुम्बकीय आकर्षण था कि जो कोई भी उन्हें निकट से जानता, उनसे प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता था। किंग मार्टिन लूथर गांधी जी से बहुत प्रभावित रहा। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर गांधी जी बहुत पसंद किये जाते रहे तथा हिंदुस्तान की इस हस्ती ने पूरे विश्व में अपना डंका बजाया। गांधी जी लोगों के बीच में शांति व न्याय प्रिय मसीहा के रूप में पहचाने गये। गांधी जी ने देश को आजादी दिलाई परंतु एक बड़ा डर भी उनको सताता था। और वह था, धार्मिक आधार पर आजाद हिंदुस्तान का बंटवारा। अंगे्रज शासक भी भारत छोडऩे से पहले हिंदुस्तान को बांट देना चाहते थे। जब कि गांधी जी ने बार-बार कहा था कि भारत के टुकड़े करने से पहले मेरे शरीर के टुकड़े करने होंगे। गांधी जी का अंतिम जीवन-गांधी जी जीवन की अंतिम अवस्था में निरंतर अनशन पर बैठने से शारीरिक रूप से काफी कमजोर हो गये थे। इस समय गांधी जी को बुरी तरह खांसी भी होने लगी थी। गांधी जी की शिष्या मनु गांधी जी के कमजोर व हांफते हुए शरीर को देखकर दुख से भर गईं। गांधी जी से खांसी की गोली खानेे को कहने से मनु डर भी रही थीं। परंतु उनकी हालत को देखकर उससे न रहा गया और मनु ने गोली खिलाने की बात कही। गांधी जी ने उत्तर दिया कि तुम्हें राम पर भरोसा नहीं रह गया है? खांसते हुए उन्होंने कहा कि यदि मैं किसी बीमारी से मर जाऊं, तो तुम्हारा कर्तव्य होगा कि सारी दुनिया से कहो कि मैं ढोंगी महात्मा था। अगर कोई मुझे गोली मार दे, और मैं गोली खाने के बाद आह किये बिना, होठों पर बस राम का नाम लिये हुए परलोक चला जाऊं, तब तुम कहना कि मैं सच्चा महात्मा था। शायद गांधी जी को अपने अंतिम समय का आभास हो गया था, इसीलिए उन्होंने मनु से वही प्रार्थना गीत गाने को कहा- न थको न हारो, आगे बढऩा स्वीकारो। रुकने का नही काम, बढ़ते जाओ प्यारों।
दे

1 comment:

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    जयराम "विप्लव"

    Editor
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