Monday, December 14, 2009

जिंदगी में जीतने की जिद जरूरी



किसी भी काम में सफलता का संकल्प ले लेना और उसको अपने मन ही मन ठान लेना कि मैं इस काम को करूंगा और करके ही रहूंगा, यही हमारा स्वभाव किसी भी काम में सफलता या जीत के प्रति हमारे जिद्दीपन को दर्शाता है और इसी के सहारे हम कहीं पर भी अपनी जीत को दर्ज करा सकते हैं।
जीत किसको पसंद नहीं? कौन जीतना नहीं चाहता? चाहे खेल का मैदान हो या जंग का या फिर हो व्यवसायिक दुनिया की जंग, प्रतियोगिता या मुकाबला हर तरफ है। जीत के प्रयास में तो सभी होते हैं। लेकिन जीत उसी की होती है जिसमें जीतने की जिद होती है। जीत हासिल करने के लिए कोई भी व्यक्ति किसी भी प्रकार की कोर-कसर नहीं छोडऩा चाहता, लेकिन अंत में जीतता वही है जो जीत की सच्ची लगन से हमेशा ओत-प्रोत रहता है। किसी भी काम में जीत का और उस व्यक्ति में जीतने की जिद का आपस में गहरा संबंध होता है।
अगर हमारे मन में जीतने की लगन केवल एक बार लग गई, तो फिर इस लगन का मन में तब तक लगे रहना जरूरी हो जाता है जब तक जीत हासिल न कर ली जाय। यानी पूरा किला फतह न कर लिया जाय। खेल में, जंग में या फिर किसी भी मुकाबले में जो कोई भी शामिल होता है, उद्देश्य सभी का होता है उसको जीत जाना। देखने वाली बात यह भी है कि सिर्फ सोचने या चाहने मात्र से ही जीत हासिल नहीं हो जाती। इसके लिए बहुत कुछ कर गुजरना पड़ता है। इसमें जीत की लगन रूपी आग हमेशा अपने अंदर लगाये रखनी पड़ती है। निगाह यह भी रखनी पड़ती है कि किसी भी तरह से जीत मिलने तक इसकी लौ धीमी न पडऩे पाये। कभी-कभी जीत या सफलता का सफर लंबा होने के कारण हमारे जोश या उत्साह में कमी आने की संभावना तो हो जाती है, परंतु आत्मविश्वास की बुलंदी व मौजूदगी के कारण यह हमारे जीत के हौसले को नुकसान नहीं पहुंचा सकती है।
जीत जाना या सफल हो जाना किसी भी काम का सुखद परिणाम होता है। लेकिन, इसके लिए सबसे पहली आवश्यक बात यह हो जाती है कि इस ओर कदम बढ़ाना। केवल एक कदम रख देने से ही किसी काम की यात्रा प्रारंभ हो जाती है, और फिर हमारा हर एक कदम हमें सफलता के नजदीक ले जाता है। जब भी कभी हम किसी काम में आगे बढ़ते हैं तो एकाएक हमारे दिमाग में आशातीत सफलता की खुशी व कभी हार का डर भी डराने लगता है। आशान्वित सफलता की खुशी तो हमारा मनोबल व उत्साह बढ़ा देती है, परंतु हार का डर हमारे मन में बैठने मात्र से पूरे मन को हताश व निराश होने का खतरा बढ़ जाता है। इस कारण हमारे बढ़ते हुए कदम पीछे होना शुरू हो सकते हैं। इसलिए हमें हमेशा इस बात से सचेत रहते हुए अपने मन को सकारात्मक व मजबूत करना है। जीत और हार किसी भी काम के दो परिणाम होते हैं। हममें से बहुत लोग किसी भी काम की शुरुआत केवल हार के डर से नहीं कर पाते हैं। उनमें हार का डर इस कदर हावी हो जाता है कि यह कोई भी काम शुरू करने नहीं देता है। देखा जाय तो अगर केवल एक बार हमारा मन जीत के प्रति आश्वस्त हो जाय और हार को अपने ख्याल से हटा दें, कुल मिलाकर हार या असफल हो जाने को अपने ध्यान में से ही निकाल दिया जाय। तो फिर निश्चित ही एक स्थिति ऐसी आ जाएगी जब हम हार के डर की इस डरावनी स्टेज को पूरी तरह से पार कर चुके होते हैं। एक बार इस स्थिति से निकल जाने के बाद फिर हमें इसका डर दोबारा नहीं सताता है। क्योंकि अब हम जीत की ओर काफी आगे बढ़ चुके होते हैं। इसी तरह आजकल एक उत्पाद के विज्ञापन की पंचलाइन भी यही कहती है कि डर के आगे जीत है।
जिस तरह से हमारे अंदर और भी कई तरह की जिद पलती हैं और हम उन्हें पूरा करने के लिए हमेशा तैयार रहते हैं। उसी तरह अपने जेहन में जीत की जिद को भी पालना बहुत जरूरी है। देखा जाए तो जैसे कोई बच्चा किसी भी चीज या खिलौने को लेने की अचानक जिद पकड़ लेता है। उसे लेने के लिए रोता है, अपने हाथ-पैर जमीन पर पटकना शुरू कर देता है और यहां तक जमीन पर लेट जाता है। वह अपनी जिद पूरी करवाने के लिए सब कुछ करता है और अंत में उसकी जिद पूरी की भी जाती है। कहा जाता है कि यह बहुत जिद्दी है, जिसकी भी जिद कर लेता है उसको आखिर लेकर ही रहता है। फलस्वरूप बच्चों की बचपन जैसी जिद हमें अपनी जिंदगी या करियर में भी रखनी आवश्यक होती है। जीत के लिए इसी जिद को अपना स्वभाव भी बनाना होगा। यही जिद हमको हमारे जीवन के कार्यों के सफलता के लिए ऊर्जा भी देती है तथा सफलता की ललक को भी दर्शाती है। हमारी व्यक्तिगत जिंदगी से लेकर कारोबार तक हर जगह हमेशा एक प्रतियोगिता का माहौल देखा जाता है। अब केवल साधारण तरीके से सफलता के प्रति उत्साहित रहने से सफलता की प्राप्ति सुनिश्चित नहीं की जा सकती है, जब तक जीत की चाहत दीवानगी की हद तक न चली जाय। हमारी हालत पूरी दीवानों की तरह से ही हो जानी चाहिए।
किसी काम में मिली आंशिक असफलता को कभी पूरी हार की संज्ञा नहीं देनी चाहिए क्योंकि यहीं पूरी बात खत्म नहीं हो गई। बल्कि इसको अपने रास्ते का एक अनुभव मानकर आगे और ज्यादा उत्साह के साथ प्रयास किया जाय। किसी भी काम में सफलता का संकल्प ले लेना और उसको अपने मन ही मन ठान लेना कि मैं इस काम को करूंगा और करके ही रहूंगा, यही हमारा स्वभाव किसी भी काम में सफलता या जीत के प्रति हमारे जिद्दीपन को दर्शाता है और इसी के सहारे हम कहीं पर भी अपनी जीत को दर्ज करा सकते हैं।

2 comments:

  1. बहुत बढ़िया प्रेरक पोस्ट है। धन्यवाद।

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  2. सत्य वचन..प्रेरणास्पद!!

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