Saturday, December 19, 2009

सहभागिता से होगा समाज का विकास



समाज सेवा के लिए क्षेत्रीय स्तर पर भी बहुत सी सामाजिक व बिरादरी की संस्थाओं का गठन किया जाता है। इनमें से ही कुछ सामाजिक संस्थाएं निर्धन व असहाय गरीब परिवार की कन्याओं का सामूहिक विवाह, गरीब बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, स्वास्थ्य या उनके लिए वृद्धाश्रम बनवाने तथा दुखी व जरूरतमंदों को पैसे की मदद करने जैसे सराहनीय कार्यों के सदैव तत्पर रहते हैं।

कई लोगों के आपस में मिलने या जुडऩे पर ही समाज का निर्माण होता है। देश के इस वृहद व संपूर्ण समाज में विभिन्न सम्प्रदाय व जाति-बिरादरियों का सबका अपना अलग-अलग छोटा बड़ा समाज बना हुआ है। और इस तरह से अपने देश में कई प्रकार के छोटे या बड़े समाज पाए जाते हैं। इन सभी समाज को आपस में जोड़े रखने तथा महत्वपूर्ण कार्यों व दायित्वों का निर्वहन भी समाज की इन्हीं सामाजिक व बिरादरी की निजी संस्थाएं मिलकर बखूबी निभाती हैं। लगभग हर बिरादरी की अपनी संस्था कार्य कर रही है। जो सीधे तौर पर व्यक्तिगत रूप से लोगों से जुड़ाव का कार्य करती है। देश के विकास के लिए इन्हीं बिरादरी की या सामाजिक संस्थाओं की भागीदारी व योगदान आपेक्षित होता है।
कोई भी सामाजिक या बिरादरी का संगठन लोगों के लिए कुछ हितकर उद्देश्य लेकर ही अवतरित होता है। जिसकी आधारशिला मुख्यरूप से ज्यादा से ज्यादा लोगों को अपनी संस्था से जोड़े रखने में होती है, ताकि जरूरत के वक्त एक-दूसरे की हर संभव सहायता या लाभ पहुंचाया जा सके। समाज सेवा या बिरादरी के लोगों के हितार्थ काम करने के लिए क्षेत्रीय स्तर पर भी बहुत सी सामाजिक व बिरादरी की संस्थाओं का गठन किया जाता है। इनमें से ही कुछ सामाजिक संस्थाएं निर्धन व असहाय गरीब परिवार की कन्याओं का सामूहिक विवाह, गरीब बच्चों की पढ़ाई-लिखाई, इनका पालन-पोषण, वृद्ध व असहाय लोगों के लिए दवा, स्वास्थ्य या उनके लिए वृद्धाश्रम बनवाने तथा दुखी व जरूरतमंद परिवारों को पैसे की मदद करने जैसे महत्वपूर्ण व सराहनीय कार्यों के सदैव तत्पर रहते हैं। अचानक किसी महामारी फैलने, अकाल या भयानक आपदा जैसी स्थितियों में सरकारी संगठनों के अलावा गैर सरकारी सामाजिक संगठन (एनजीओ) पीडि़तों की मदद के लिए क्रियाशील रहते हैं। इन सब कार्यों को संचालित करने व सबको लाभ पहुंचाने के लिए कुछ गैर सरकारी संगठनों को विदेशों से अनुदान भी मिल जाता है। वहीं पर क्षेत्रीय सामाजिक या बिरादरी की संस्थाओं को जनहितार्थ उद्देश्यों को फलीभूत करने के लिए अपने जानने वाले, व्यापारियों व उद्यमियों से मिलने वाले दान पर निर्भर रहना पड़ता है। ऐसी संस्थाओं को लोगों के बीच काम करने के लिए फंड इकट्ïठा करना, लाभप्रद कार्यक्रम चलाना औैर भारी भीड़ जमा करने के लिए कड़ी मशक्कत करनी पड़ती है। फिर भी इन सबके ऊपर इन संस्थाओं के लिए काम करने वालों का उत्साह व जज्बा काबिल-ए-तारीफ होता है।
अब देखने वाली बात यह है कि अगर देश की जनसंख्या के आधार पर सामाजिक संगठन या संस्थाओं से जुड़े लोगों के आंकड़ों का प्रतिशत निकाला जाए तो यह निराशाजनक से बिल्कुल कम नहीं होगा कि अभी तक बढ़ी आबादी के लोग न तो किसी भी सामाजिक संगठन से जुड़े हैं और न ही अपनी बिरादरी की संस्था के ही सदस्य हैं। इनको अपनी या किसी अन्य सामाजिक संगठन से जुडऩा या सहभागिता करने में कोई रुचि नहीं दिखाई देती है। या फिर ऐसे लोग किसी भी संस्था से जुडऩे या उसके सदस्य बनने को कोई महत्व नहीं देते। इसका कारण यह भी हो सकता है कि आज के इतने व्यस्ततम माहौल में किसी भी व्यक्ति के पास मुश्किल से ही खाली समय मिल पाता है। किसी सामाजिक संस्था द्वारा आयोजित आपसी एकता, सामंजस्य व जनहित उद्देश्य के लिए किसी कार्यक्रम में अपनी सहभागिता हेतु समय अवश्य ही निकाला जाना चाहिए। ऐसे अवसर पर सम्मिलित होने से सबको एक सूत्र में पिरोने के साथ साथ सामाजिक एकता का संदेश भी दिया जाता है। जिसका सीधा लक्ष्य समाज के विकास के साथ देश को विकास की ओर ले जाना होता है। यह सच है कि समाज के विकास से ही देश का विकास हो सकता है। महात्मा गांधी ने भी कहा है कि किसी देश का विकास समाज के विकास पर ही निर्भर करता है। इसलिए सबसे पहले हमको अपने समाज को मजबूत करना होगा।
हमारे देश के अलग-अलग समाज छोटी-बड़ी नदियों की तरह हैं और इन समाज के जन साधारण व्यक्ति बिल्कुल किसी तालाब या पोखर की तरह होते हैं। फिर जब इन छोटे तालाबों का मिलन नदियों से होता है, और यही सब नदियां एक साथ मिलकर एक जगह समाहित होकर एक विशाल समुंदर के रूप में एक समृद्ध देश का निर्माण करती हंै। इसलिए यह जरूरी हो जाता है कि सभी व्यक्तियों का समाज से और समाज का देश से आवश्यक तालमेल बनाया जाए। क्योंकि एक अकेले पोखर या नदी का अस्तित्व ज्यादा दिन तक नहीं रह पाता है। एक दिन ये सभी सूख जाते हैं।
किसी भी सामाजिक संस्था का गठन कई लोगों के द्वारा व कई लोगों के लाभ के लिए ही होता है। इन जनहितार्थ कार्यक्रम व सम्मेलन में लोगों की नि:स्वार्थ सेवा भावना व सहभागिता नितांत आवश्यक होती है। ऐसे में सरकार द्वारा मिलने वाला अनुदान व अन्य सहायता भी संस्था द्वारा किए गए जनहितार्थ व जन-उपयोगी कार्यक्रम पर आधारित होती है। सरकारी विभाग द्वारा जारी किए जाने वाले अनुदान व अनुशंसा भी ओर व्यापक तरीके से की जाय ताकि ऐसी संस्थाओं को और बढ़ावा मिल सके और अधिक से अधिक लोग इनसे जुड़कर लाभान्वित हों तथा देश व समाज की समृद्धि में अपनी भागीदारी सुनिश्चित कर सकें।

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