Friday, January 8, 2010

आत्मसम्मान व स्वाभिमान के नाम पर अहं से बचें


आपसी अलगाव बढऩे व नजदीकी रिश्तों में दूरियां होने के साथ पूरा परिवार तो बिखरता ही है, साथ ही मन के अंदर भी कहीं न कहीं खालीपन व एकाकीपन महसूस किया जा सकता है। आत्म सम्मान व स्वाभिमान की बनाई गई सीमा रेखा एक समय ज्वलंत दरार के रूप में बन जाती है और अहंकार का दीपक प्रेम के जीवन को पूरी तरह से खोखला करता जाता है।
कभी खुशी कभी गम फिल्म के आखिर के एक सीन में अमिताभ बच्चन और शाहरुख खान एक दूसरे के गले लग कर खूब रोते हैं। पाश्चाताप के खूब आंसू बहाते हैं। बाप-बेटे का यह प्रेम-मिलाप हमें जीवन का अद्ïभुत संदेश देता है। पूर्व जीवन के किसी मोड़ में कुछ ऐसी स्थिति बन जाती है कि अपने स्वाभिमान को बनाए रखने के लिए अपनी कही हुई बात न मानने के लिए इन दोनों के रिश्तों के बीच बड़ी खाई अथवा दूरी बन जाती है और इस प्रकार बेटे को अपना घर मजबूरन छोडऩा पड़ जाता है। आज समाज में कई ऐसे उदाहरण सामने आ जाते है, जहां पर कुछ परिवारिक रिश्ते ऐसे ही आत्म सम्मान व स्वाभिमान की बलिदेवी पर न्योछावर हो जाते हैं तथा परिणाम स्वरूप नजदीकी रिश्तों के बीच बढ़ती हुई दूरियां तथा अकेलापन देखा जा सकता है। इस धरती पर जन्म के साथ हमें कई अनमोल रिश्ते भी मिलते हैं, जिनसे हमारा नजदीकी संबंध होता है। इन्हीं रिश्तों से ही मिलकर एक परिवार की नींव पड़ती है। समय के बदले हुए चक्र में एक आम आदमी का अधिकाधिक समय घर-ग्रहस्थी के लिए पैसा कमाने या रोजी-रोटी के बंदोबस्त में ही निकल जाता है। आज के ऐसे प्रतियोगी एवं व्यस्ततम दिनचर्या भरे माहौल में अपने परिवार के बीच व्यक्ति समय नहीं दे पाता है। जिस कारण भी कभी-कभी पारिवारिक एकता व मेल-मिलाप की समस्या बनती जाती है। आमतौर पर घर-परिवार के बीच किसी छोटी-बड़ी बात का हो जाना ज्यादा मायने नहीं रखती, परंतु किसी एक बात पर दृढ़ हो जाना किसी परिवार की सांमजस्यता के लिए बेहद खतरनाक है, वहीं पर आपसी रिश्तों में दूरी एवं दरार की भी संभावना अत्यधिक हो जाती है। नजदीकी व करीबी रिश्तों के बीच दूरियां बढऩे का कारण जरूरत से अधिक आत्म सम्मान व स्वाभिमान बचाने की आड़ में कब हम अहंकार की परिधि में जा पहुंचते हैं, इसका पता ही नहीं चल पाता है। एक समय का यही प्यारा लगने वाला आत्म सम्मान कब इन्हीं रिश्तों के बीच में कांटे की तरह चुभने लगता है तथा अहंकार के रूप में हमारे सामने आ खड़ा होता है। जब कि पारिवारिक रिश्ते आपसी प्रेम व सौहार्द की एक डोर से बंधे होते हैं, ऐसे रिश्ते प्यार की बौछार से सिंचित होकर मजबूत होते हैं और अगर इन्हें कहीं से स्वाभिमान के रूप में अहंकार का झूठा कीड़ा लग जाता है तो यह रिश्ते के पौधे को मुरझाने व कुम्हालने में ज्यादा वक्त भी नहीं लगता है। वस्तुत: परिवार की इमारत के मजबूत स्तंभ परिवार के सदस्य ही होते हैं। इनका आपसी मेल मजबूत होना आवश्यक इसलिए भी है क्योंकि पूरे परिवार की मान-मर्यादा भी इन रिश्तों की एकता पर ही निर्भर करती है। सिर्फ अहं के नाम पर रिश्तों में बिखराव व परस्पर टकराव देखा जाता है। रिश्तों के बीच बनती दूरियां एक साथ रह कर भी सभी लोग किसी एक बात पर एकमत व एकसाथ नहीं हो पाते हैं। घर परिवार के सबसे प्रमुख रिश्तों में सर्वप्रथम बाप-बेटे के रिश्ते के बीच एक जैसी सोच व विचारधारा का न हो पाना जेनरेशन गेप के नाम से जाना जाता है, परंतु आज अपनी ही जेनरेशन के रिश्तों के बीच उपजे विरोधाभास को क्या कहा जाय। पारिवारिक रिश्तों में पड़ती दरार को क्या नाम व संज्ञा दी जाए। इन रिश्तों में आपसी टकराव की मुख्य वजह को तलाशना व दुरस्त करना बहुत आवश्यक हो जाता है। अक्सर किसी की कही हुई बात को व्यक्ति अपने अहंकार के साथ जोड़ कर देखता है तथा अपने आत्मसम्मान व स्वाभिमान के खातिर कभी-कभी व्यक्ति उक्त बात को अपने पूरे जीवन गांठ की तरह बांध कर रखता है। फिर स्थिति यह हो जाती है कि सारे फैसले व निर्णय उसी बात के आधार पर होते जाते हैं। परिणाम स्वरूप एक दूसरे के बीच आपसी खिंचाव व दूरी बढऩा शुरू हो जाती है और दोनों के बीच सहजता भी खत्म होने लगती है। आपसी संपर्क व संबंध टूटने सा हो जाता है फिर प्रेम व सौहार्द की जगह केवल औपचारिकताएं मात्र ही शेष रह जाती हैं। आपसी अलगाव बढऩे व नजदीकी रिश्तों में दूरियां होने के साथ पूरा परिवार तो बिखरता ही है, साथ ही मन के अंदर भी कहीं न कहीं खालीपन व एकाकीपन महसूस किया जा सकता है। आत्म सम्मान व स्वाभिमान की बनाई गई सीमा रेखा एक समय ज्वलंत दरार के रूप में बन जाती है और अहंकार का दीमक प्रेम के जीवन को पूरी तरह से खोखला करता जाता है। अहंकारी व्यक्ति एक सख्त पेड़ की तरह खड़ा रहता है, जबकि अहंकार का अपना कोई अस्तित्व नहीं रहता है। यह केवल आत्मसम्मान व स्वाभिमान का प्रतिवर्तित व बदला हुआ नाम है, क्योंकि जब भी अपने सम्मान व स्वाभिमान की चाहत इस कदर बढ़ जाती है कि वहां से उसके अहंकार की झलक दिखाई देनी लगती है। परिवार में हर एक का मान-सम्मान बना रहना भी बहुत आवश्यक है इसके लिए जरूरी यह है कि हम अपने सामने ऐसी किसी भी स्थिति में केवल प्रेम को पकड़ कर रखें और अपने सम्मान व स्वाभिमान को अहंकार तक पहुंचने से हर हाल में रोकें। जीवन की किसी विषम स्थिति में भी अगर हम पूरे समर्पण के साथ एक बार अपने व्यवहार व सोच में नरमी व लचीलापन रखते हैं जो यहां पर बिल्कुल जादुई परिणाम मिलने की अपार संभावना हो जाती है कि सामने वाला भी तुरंत अपना सख्त रुख छोड़कर लचीला बन जाता है यहां पर सम्मान भी बना रहता है और अहंकार का बोध भी नहीं होता है। पारिवारिक बिखराव, मन मुटाव व नजदीकी रिश्तों में सबका आत्मसम्मान व स्वाभिमान सब कुछ अहंकार के तराजू में तौले जाने से बच जाएंगे।

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