Friday, January 22, 2010

सबसे बड़ा है मां-बाप का समर्पण



बच्चों की परवरिश से लेकर इनकी नौकरी, रोजगार में सफल होने तक अभिभावक अपना सर्वस्व जीवन बच्चों के भविष्य बनाने में हंसते-हंसते न्योछावर कर देते हैं। उद्देश्य केवल एक ही होता है कि किसी भी तरह बच्चे को मन वांछित सफलता मिल जाये तथा बच्चा किसी अच्छे काम-धंधे में लग जाये। पूरे परिवार की मेहनत रंग भी लाती है।

हर मां-बाप का सपना होता है कि बच्चा पढ़ लिख, बड़ा हो कर ऐसा काम करे कि उनका नाम हो। इसके लिए हर एक मां-बाप को भी बहुत मेहनत करनी पड़ती है तथा बड़ा कष्ट उठाना पड़ता है। तब जाकर कहीं वह स्थिति आती है कि बच्चा अपनी पढ़ाई-लिखाई अच्छी तरह से पूरी कर किसी अच्छी नौकरी व काम पाने के काबिल बन पाता है। लेकिन, अच्छे कॅरियर व तरक्की के लिए अक्सर लोगों को अपना शहर या घर मजबूरन छोडऩा भी पड़ जाता है।
नतीजन, घर से दूर जाकर बच्चा नाम तो खूब कर लेता है और पैसा भी ठीक-ठाक कमा लेता है, पर उम्र के इस पड़ाव में मां-बाप अकेले छूट जाते हैं तथा इस स्थिति में कभी-कभी बूढ़े हो चले माता-पिता एक-पर-एक एकाकी जीवन बिताने को भी मजबूर हो जाते हैं। यह भी मां-बाप की जिंदगी का ऐसा सच होता है कि अपने ऐश और आराम की परवाह किये बिना अपने बच्चों का भविष्य संवारना ही इनकी जिंदगी की सर्वोपरि प्राथमिकता होती है। इसके लिए माता-पिता अपने बच्चों के लिए क्या कुछ नहीं करते हैं। बच्चों की परवरिश से लेकर इनकी नौकरी, रोजगार में सफल होने तक अपना सर्वस्व जीवन बच्चों के भविष्य बनाने में हंसते-हंसते न्योछावर कर देते हैं। उद्देश्य केवल एक ही होता है कि किसी भी तरह बच्चे को मन वांछित सफलता मिल जाये तथा बच्चा किसी अच्छे काम-धंधे में लग जाये। पूरे परिवार की मेहनत रंग भी लाती है। लेकिन, संयोगवश ही कोई अपनी चाहत व पसंद का काम-धंंधा करके अपने माता-पिता व परिवार के साथ रह पाता है। नहीं तो, अक्सर यही होता है कि छोटे-छोटे शहरों में रहने वाले लोग अपने कॅरियर की बढ़त व तरक्की की ऊंची उड़ान के लिए बड़े शहरों का चुनाव करते हैं। क्योंकि छोटे शहरों में प्रतियोगात्मक सुविधाएं कम देखी जाती हैं। कभी-कभी परिस्थितिवश पोस्टिंग ही अपने घर से दूर शहर हो जाया करती है।
इस कारण माता-पिता घर में अकेले पड़ जाते हैं। पहले के समय में जब संयुक्त परिवार एक साथ रहा करते थे तब यह समस्या ज्यादा नहीं जान पड़ती थी। परंतु, अब एकल परिवार हो जाने तथा उसके बाद छोटे-छोटे परिवार होने के साथ इस बात का एहसास बढ़ता जा रहा है। आज जब किसी परिवार में एक या दो बच्चे ही हैं, लड़की की शादी हो जाने से वह अपने घर चली गई और लड़का घर से दूर शहर में नौकरी कर रहा है, ऐसी स्थिति में इन परिवारों के माता-पिता का अकेलापन देखने को मिलता है। कोई भी माता-पिता अपने बच्चे के सुंदर भविष्य के लिए शुरू से ही सपना देखने लगते हैं। इसकी पूरी तैयारी भी करते हैं तथा इस ओर कोई भी कोर-कसर छोडऩा नहीं चाहते। बच्चे के एक बार अच्छी तरह सेटल या किसी नौकरी में स्थापित होने के साथ राहत व संतुष्टि की सांस लेते हंै। तब जाकर माता-पिता अपनी जिम्मेदारी का पूरा निर्वहन समझते हैं। बच्चों का भविष्य संवारने में तो ये माता-पिता सफल हो जाते हैं व इनके बच्चे अच्छी तनख्वाह व पैसे बनाने में कामयाब भी हो जाते हैं लेकिन, मलाल केवल इस बात का होता है कि अपने बच्चे साथ में नहीं रह पाते हैं। अपने घरों से दूर शहर या विदेशों में रहने वाले ऐसे बच्चे बड़ी मुश्किल से अपने परिवार के संग रहकर खुशियां बांट पाते हैं।
आज के ऐसे प्रतिस्पर्धात्मक एवं गलाकाट प्रतियोगिता भरे दौर में अपने काम से ज्यादा समय तक छुट्टियां लेना संभव नहीं हो पाता है। यहां तक की बड़े-बड़े त्योहार की छुट्टियां इनके आवागमन या सफर में ही निकल जाने से पारंपरिक पर्वों या शुभ अवसरों पर भी अपने परिवार के संग होने में लाचार होते हैं। कभी-कभी साल दो साल बाद ही एक दूसरे के चेहरे को देख पाते हैं। ऐसी स्थितियों में चाह कर भी आने-जाने में लाचार बच्चे व असहाय मां-बाप एक दूसरे से अपनी खुशी फोन या मोबाइल पर बात कर बांट लेते हैं। मोबाइल या इंटरनेट से मैसेज भेजकर, नये साल, होली, या दीवाली जैसे बड़े त्योहारों पर ग्रीटिंग कार्ड भेजकर अपनी-अपनी खुशियां जाहिर कर लेते हैं। मां-बाप के अकेले रहने पर इनकी देखभाल, खाना-पीना, जरूरत का सामान, दवा या स्वास्थ्य सब कुछ कहीं हद तक घर के नौकरों पर ही टिका होता है। दोनों में से किसी के बीमार हो जाने पर दवा वगैरह का इंतजाम भी किसी तरह होता है। दोनों का एकाकी जीवन किसी तरह एक दूसरे के सहारे चला करता है। अपने तन्हां जीवन में अपने बच्चों की याद आने पर फोन या मोबाइल पर बतियाने के अलावा और कोई सहारा नहीं होता। इतना सब होने पर भी बच्चों की खुशी में ही इनकी खुशी देखी जाती है।
अपनी पूरी जिंदगी अपने बच्चों के नाम समर्पित कर देते हैं तथा उनसे सुख की कोई चाह भी नहीं देखी जाती है। बुढ़ापे में भी इनके चेहरे पर संतुष्टि का अहसास देखा जाता है। इन्हें किसी भी तरह का कोई मलाल नहीं व बच्चों के साथ न रह पाने का गम बच्चों की खुशी के आगे कोई मायने नहीं रखता। माता-पिता का पूरा समर्पण बच्चों के स्वर्णिम भविष्य में ही निहित होता है तथा ऐसा करके ही ये अपना जीवन सफल समझते हैं। ऐसे बच्चों को भी अपने मां-बाप को भूलने की भूल कतई नहीं करनी चाहिए।

2 comments:

  1. "माता-पिता का पूरा समर्पण बच्चों के स्वर्णिम भविष्य में ही निहित होता है तथा ऐसा करके ही ये अपना जीवन सफल समझते हैं। ऐसे बच्चों को भी अपने मां-बाप को भूलने की भूल कतई नहीं करनी चाहिए।"
    ऐसी सोच - विचार और आलेख के लिए आभार और धन्यवाद्.

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  2. काश बच्‍चे भी ऐसा सोचे समझें।

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