Monday, March 22, 2010

आसमानी सोच ही है सचिन का करिश्मा



सचिन अपनी उपलब्धि पर जिस बल्ले से रन जुटाते हैं, उसको देख सकते थे, उसे चूम सकते थे। जिस पिच पर वह रनों का पहाड़ खड़ा करते हैं, उस मिट्टी को छू सकते थे। लेकिन, उन्होंने ऐसा नहीं किया, इसके लिए उन्होंने आसमान ही क्यों चुना? निश्चित रूप से उनमें आसमान जैसी बड़ी सोच का नजरिया ही उन्हें इतना महान व संकल्पवान बना देता है।

चिन जब भी पिच पर कोई इतिहास रचते हैं तो आसमान की तरफ जरूर देखते हैं। जिससे आभास होता है कि वह भगवान का शुक्रिया अदा कर रहे हैं। किसी रिकॉर्ड की बराबरी करने या अपनी ही उपलब्धियों को और बड़ा करने और सफलता की नई ऊंचाइयों को छूने के लिए ही शायद सचिन हर बार खुले आसमान की तरफ देखकर और ऊंचा उठने की कोशिश करते हैं। यकीनन सचिन की सफलता की जो सीमा है वह स्काई इज लिमिट की तरह है। आज सचिन सफलता के ऐसे शिखर पर विराजमान हैं जहां से बड़े से बड़ा रिकॉर्ड भी उनके सामने बौना दिखाई पड़ता है। इन दो दशकों में सचिन का खेला हुआ हर मैच सफलता के नए सोपान गढ़ता हुआ उनकी सच्ची सफलता के पीछे छुपी हुई सकारात्मक सोच के राज को भी खोल देता है।
१६ साल की किशोर उम्र में बल्लेबाजी को उतरे मास्टर ब्लास्टर ने पहले ही अतर्राष्टï्रीय मैच में क्रिकेटपे्रमियों को अपना मुरीद बना लिया था, लेकिन तब किसी ने भी उनके इस बुलंदी पर पहुंचने की कल्पना नहीं की होगी। बीते 20 सालों में क्रिकेट खेलने के दौरान सचिन तेंदुलकर ने कितने ही पुराने रिकॉर्ड तोड़े व नये स्थापित किए। उनके द्वारा बनाए गए कीर्तिमान क्रिकेट इतिहास में एक बड़ी लकीर की तरह हैं। कहा जाता है कि युगों के बाद किसी खास चमत्कारिक महात्मा का जन्म होता है, उसी तरह सचिन रमेश तेंदुलकर भी आज क्रिकेट की दुनिया के किसी बड़े चमत्कारिक महात्मा से कम नहीं है। निश्चित रूप से क्रिकेट में इतने बड़े चमत्कार देखकर ऐसा लगता है कि सचिन ने पूरी दुनिया में क्रिकेट को चमकाने के लिए ही जन्म लिया है। सचिन आज समूची दुनिया में गौरव का नाम है, और अपने भारत देश के हर नागरिक को अपने इस सपूत पर गर्व करना अपने आप को सम्मान देने जैसा है। सचिन सचमुच भारत के अमूल्य रत्न हैं। अगर इस स्थिति में उनको भारत रत्न से सम्मानित करने की बात कही जा रही है तो सचिन इसके सच्चे पात्र भी हैं।
दो दशक के इतने बड़े क्रिकेट कैरियर के दौरान सचिन के बल्ले ने कितने ही बड़े से बड़े गेंदबाजों का सामना डटकर किया और हर बार रिकॉर्ड पर रिकॉर्ड और रनों का अंबार लगाने में उनका बल्ला कहीं भी नहीं चूका। इतना भर नहीं, सचिन आज भी बिना थकान व तनाव के नए से नए कीर्तिमान गढऩे के लिए मैदान में डटे हुए हैं। इन सबके पीछे छिपी हुई असली ताकत व ऊर्जा की बात करें तो पता चलता है कि सचिन के अंदर हर एक स्थिति को सकारात्मक ऊर्जा में बदलने की जादुई काबिलियत भी है। खुद सचिन कहते है कि मैं निराशा को सकारात्मक ऊर्जा में बदल देना चाहता हूं और पहले से ज्यादा संकल्पवान बनने में इसका इस्तेमाल करता हूं। जब सचिन हर बार अपनी उपलब्धि पर आसमान की और देखते हैं तो वह यही करते हैं। अपने संकल्प को पूरा करने के लिए ईश्ववर का धन्यवाद देते हैं तथा इसी के साथ एक और संकल्प भी लेते हैं। यह सब उनकी सकारात्मक सोच व क्रिकेट के प्रति सच्ची लगन का ही जादू है। सचिन अपने हर नायाब कारनामे के बाद आसमान की ओर देखते हैं। सचिन अपनी उपलब्धि पर जिस बल्ले से रन जुटाते हैं, उसको देख सकते थे, उसे चूम सकते थे। जिस पिच पर वह रनों का पहाड़ खड़ा करते हैं, उस मिट्टी को छू सकते थे। लेकिन, उन्होंने ऐसा नहीं किया, इसके लिए उन्होंने आसमान ही क्यों चुना ? निश्चित रूप से उनमें आसमान जैसी बड़ी सोच का नजरिया ही उन्हें इतना महान व संकल्पवान बना देता है। किताबें तो किसी पर भी लिखी जा सकती हैं, परंतु जिस तरह मर्यादा पुरुषोत्तम राम के लिए रामायण लिखी गई, उसी तरह आज सचिन क्रिकेट के राम से कम नहीं हैं। इसलिए अगर भविष्य में क्रिकेट की रामायण उन पर लिखी जाए तो यह भी कोई अचरज की बात नहीं होगी। आज क्रिकेट के एवरेस्ट पर खड़े सचिन का जादू उनके फैन्स के साथ धुरंधर खिलाडिय़ों के भी सिर चढ़कर बोल रहा है। कोई भी उनकी जादुई बल्लेबाजी का लुत्फ उठाने में पीछे नहीं रहना चाहता। ब्रायन लारा कहते हैं कि अगर उनके एक बेटा हो, तो वह उसे सचिन की तरह बनाना चाहते हैं। रिचड्र्स नि:संकोच कहते हैं कि क्रिकेट के खेल को नित नई ऊंचाइयों तक ले जाने वाले सचिन का खेल मैं पैसे खर्च करके भी देखना चाहूंगा। क्रिकेट के सबसे नौजवान महानायक सचिन की सकारात्मक सोच आज समाज में एक बहुत बड़ा संदेश देने का भी काम करती है। जहां पर अमूमन लोग थोड़ी सी मिली कामयाबी से ही संतुष्टï हो जाते हैं। एक या दो बड़ी सफलताओं तक ही सोच पाते हैं। फिर उनका एनर्जी लेवल कम होने लगता है क्योंकि बुद्धि और शरीर को आरामतलब बना देते हैं तथा बाकी की जिंदगी उन्हीं सफलताओं के सहारे चलाना चाहते है। ऐसी स्थिति में सचिन आज सबके सामने एक मिशाल की तरह से हैं। अपने बीस साला क्रिकेट कैरियर में सचिन हर साल व हर मैच में और ज्यादा तरोताजा व ऊर्जा से लबालब दिखते हैं। उन पर किसी भी तरह का तनाव व थकान का कोई नामो-निशान नहीं दिखाई पड़ता है।

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