Saturday, March 13, 2010

लालच जैसी बला से बचना जरूरी



अंगे्रजी में एक कहावत भी है, 'इल गॉट, इल स्पेंड। पैसा जैसे आता है, वैसे ही चला जाता है। किसी भी चीज की आवश्यकता से अधिक चाहत लालच बन जाती है और मन स्वार्थी बन जाता है। फिर किसी भी तरह से उसको हथियाने की मन में लालसा उठने लगती है। किसी के फायदे-नुकसान की किसी को कोई चिंता ही नहीं होती।

कहा गया है कि लालच बुरी बला है। किसी भी चीज का ज्यादा लालच अच्छा नहीं होता है। वैसे, जरूरत तो हर चीज की होती है। लेकिन काम चलाने के लिए। इसलिए नहीं कि पूरा फोकस ही उस ओर कर दिया जाए। आज पैसा कमाने की अंधी दौड़ में मनुष्य अपना पूरा जीवन पैसा इकट्ठा करने में लगा रहा है। जितना पैसा आता जा रहा है, उससे अधिक की चाहत बढ़ती जाती है। कभी-कभी पैसा तो पास में हो जाता है लेकिन अपने दूर हो जाते हैं। इसके अलावा, कम समय में अधिक पैसा कमाने की चाह भी कभी-कभी गलत रास्ते पर ले जाती है। पैसे के लिए आपसी छीना-झपटी, धोखाधड़ी व जालसाजी जैसे कृत्य लोगों को अपराध की ओर भी ले जाते हैं। यह सब जल्दी से जल्दी अमीर बन जाने की चाहत में होता जाता है।
इंसान को मानव जीवन की जो ईश्वरीय सौगात मिली है, उसमें पेट भरने को रोटी, तन ढंकने को कपड़ा और सिर छिपाने के लिए एक छत की जरूरत होती है। परंतु इन सबसे अलग हमने अपने आपको पैसे के मोह में इस कदर घेर लिया है कि पैसे की जरूरत दिन-प्रतिदिन बढ़ती ही जा रही है। जहां तक इसका दूसरा रुख यह भी है कि इस आर्थिक युग में यही सब हमारी पहचान के चिह्नï जैसे भी बनते जा रहे हैंं। इसी कारण आज सारी भीड़ पैसे को पकडऩे के लिए एक तरफ भागी जा रही है। लगभग हर एक व्यक्ति इस दौड़ का हिस्सा बनता जा रहा है। सबके मन में अधिक से अधिक पैसा कमाने की चाहत ही लालच की पराकाष्ठा तक ले जाती है। आज सब रिश्ते-नाते व संबंधों में पैसे की ही सर्वोपरि प्रमुखता देखी जाती है तथा पैसा ही सर्वश्रेष्ठ समझा जा रहा है। इसी उद्देश्य के लिए ही लोग आज अपनों से दूर, घर को छोड़कर दूर-दराज शहरों में रहकर मशीन की तरह काम कर रहे हैं। देखा यह भी जाता है कि पैसा कमाने के चक्कर में लोग आपसी रिश्तों से दूर होते जाते हैं। उनके पास अपने परिवार के बीच रहने का समय ही नहीं मिल पाता है। परिवार के सभी सदस्यों का एक साथ हो पाना बहुत मुश्किल सा लगता है। अक्सर पैसा कमाने के अलावा और कुछ दिखाई ही नहीं देता है। किसी को भूख प्यास का कोई ख्याल ही नहीं रहता, रहता है तो सिर्फ पैसा इकट्ठा करने का। इसी तरह की एक प्रचलित एवं प्रेरक कहानी है राजा मिडास की। जिसको सोने का बहुत मोह था। वह अधिक से अधिक सोना इकट्ठा करना चाहता था। एक दिन उसकी इच्छा हुई कि काश! ऐसा हो जाए। वह जिसे छुए वही सोने का हो जाए, तो कितना अच्छा हो। आगे चलकर ऐसा ही हुआ। वह जिस किसी चीज को भी छूता, वह सोना बन जाता। वह यह सब देखकर बड़ा प्रसन्न हुआ। अब उसके चारो ओर सोना ही सोना इकट्ठा होने लगा। उसको भूख लगी। जैसे ही उसने रोटी को छुआ। वह भी सोने की हो गई। पानी पीना चाहा। वह भी सोना हो गया। मिडास थोड़ा हैरान हुआ और परेशान होने लगा। इतने में उसे अपनी लड़की दिखाई दी। उसने उसे उठा कर गले लगाना चाहा। जैसे ही मिडास ने उसे छुआ वह भी सोने की हो गई। इस तरह से उसकी ज्यादा से ज्यादा सोना पाने की इच्छा पूरी हुई। अब उसके चारो ओर सोना ही सोना था। नहीं था तो रिश्ते-नाते, खाने को रोटी व पीने को पानी। लालची मिडास का तो यह हाल हुआ। पैसा कमाने की अपार लालसा में कहीं ऐसा न हो कि हमारे पास भी केवल पैसा ही रह जाए।
कम समय में अधिक से अधिक पैसा कमाने की होड़ में अक्सर गलत रास्ता भी अख्तियार कर लिया जाता है। अधिक पैसे का लालच अपराध की ओर भी ले जा सकता है। दूसरों को धोखा व चकमा देकर पैसा ऐंठ कर अपना काम बना लेने में भी लोगों का यह ध्येय भी रहता है कि पैसा किसी भी तरह से आना चाहिए। जल्दी से जल्दी अमीर बनने की ललक में अक्सर गुमराह हो जाते हैं, जहां पर संपदा तो तमाम होती है, लेकिन मन में शांति नहीं होती और न ही सुख का आनंद ही देखने को मिलता है। आजकल छोटे-बड़े शहरों में बढ़ती हुई लूट व चेन स्नेचिंग जैसी अपराधिक घटनाएं इस बात की गवाह हैं कि किशोर उम्र के लड़के इसमें आसानी सेे लिप्त हो जाते हैं फिर धीरे-धीरे यही बच्चे प्रोफेशनल क्रिमिनल बन जाते हैं। दूसरों से चालबाजी व दगाबाजी से कमाया गया धन भी ज्यादा समय तक रह नहीं पाता है। कहते हैं कि इस तरह से इकट्ठे किए गए पैसे के पांव भी बहुत तेज होते हैं। अंगे्रजी में एक कहावत भी है, 'इल गॉट, इल स्पेंड। पैसा जैसे आता है, वैसे ही चला जाता है। किसी भी चीज की आवश्यकता से अधिक चाहत लालच बन जाती है और इस तरह से मन में पैसे का लालच घर बनाता चला जाता है, तो मन भी स्वार्थी बन जाता है। फिर किसी भी तरह से उसको हथियाने की मन में लालसा उठने लगती है। किसी के फायदे-नुकसान की किसी को कोई चिंता ही नहीं होती। यही पैसे का लालची एवं लोभीपन किसी को कहां से कहां ले जाता है। वहां सब कुछ होता है, संपदा व वैभव के सभी साधन। नहीं होता है तो सिर्फ अपने लोग व अपनापन। लालच एक बीमारी की तरह से हमारे मन पर हावी होना शुरू हो जाता है, और मन पर अपना पूरा अतिक्रमण कर लेता है। हमें मिडास जैसा मन नहीं चाहिए। क्योंकि जिंदगी जीने के लिए रुपए पैसों के साथ रिश्ते-नाते व सगे संबंधियों का भी होना अति आवश्यक है।

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