Saturday, April 24, 2010

जिंदगी में जरूरी है सच्चे साथियों का साथ




यूं तो जिंदगी के हर दौर में मित्रों का साथ मिलता है। स्कूल-कॉलेज के समय की दोस्ती, फिर कॅरियर व नौकरी-रोजगार के समय सहकर्मियों का साथ या पास-पड़ोस में रहने वाले हम उम्र साथियों के साथ मित्रता। इसी तरह एक दूसरे के साथ अपने सुख-दुख के अनुभव को साझा किया जाता है। इसी रास्ते हम अपनी दुख तकलीफें भी कम कर सकते हैं।


अच्छे मित्र बनाना जीवन में किसी कला से कम नहीं। कभी-कभी मित्रों के बिना जिंदगी बिल्कुल नीरस लगने लगती है। आपस में सहयोग लेने और देने का नाम भी दोस्ती है, जहां पर हम आपस में अपने दिल व मन की बात कर सकें। कहा जाता है कि अपना दुख-दर्द बांटने से हल्का हो जाता है। लेकिन, इसके लिए जरूरत होती है कुछ संगी-साथियों की। यूं तो जिंदगी के हर दौर में मित्रों का साथ मिलता है। स्कूल-कॉलेज के समय की दोस्ती, फिर कॅरियर व नौकरी-रोजगार के समय सहकर्मियों का साथ या पास-पड़ोस में रहने वाले हम उम्र साथियों के साथ मित्रता। इसी तरह एक दूसरे के साथ अपने सुख-दुख के अनुभव को साझा किया जाता है। इसी रास्ते हम अपनी दुख तकलीफें भी कम कर सकते हैं। किसी की मुसीबत के समय पर कंधे से कंधा मिलाकर खड़े रहने को तैयार रहते हैं। हर उम्र में दोस्ती के साथ वृद्धावस्था के समय भी दोस्ती महत्वपूर्ण होती है। जैसे-जैसे उम्र के साथ जिंदगी चलती जाती है-दोस्त भी मिलते व बदलते जाते हैं, लेकिन मित्रों की आवश्यकता पूरी जिंदगी होती है।
हमारी जिंदगी में पारिवारिक रिश्तों के अलावा दोस्ती का रिश्ता भी अहम होता हैै। इस रिश्ते को हम अपनी पसंद व आपसी आधार पर चुनते हैं। जिस पर किसी का कोई जोर, प्रभाव व दबाव नहीं होता है। नि:स्वार्थ भाव से करी गई दोस्ती ज्यादा लंबे समय तक चलती हैै। सच्ची दोस्ती का रिश्ता आपसी वैचारिक सामंजस्यता पर टिका होता है। यही व्यक्तिगत रिश्ता गहरा होने पर एक-दूसरे के दु:ख दर्द को बांट कर कम करने के काम आता है। सच्ची मित्रता का अर्थ ही है कि एक-दूसरे की वक्त जरूरत पडऩे पर खड़े होना। अंग्रेजी में एक कहावत भी है-'व्हेन फ्रेंड इन नीड, फ्रेंड इनडीड। प्राकृत रूप से भी यही पाया जाता है कि असली दोस्त की पहचान मुसीबत के समय पर ही होती है। समय बिताने के लिए, साथ में घूमने-फिरने, खाने-पीने व मौज उड़ाने के लिए दोस्तों की तो बड़ी फौज हो सकती है, परंतु सच्चे मित्र बहुत कम ही हो पाते हैं। क्योंकि मित्रता एक दूसरे को अच्छी तरह से समझने का भी नाम है। जिसमें सहनशीलता के साथ पारस्परिक समझदारी का होना भी अति आवश्यक होता है। बचपन के दोस्त, नौकरी या काम-धंधे के समय की दोस्ती के बीच से ही कोई हमसे इतना करीबी व दिली रिश्ता बन जाता है कि जिसके साथ हर पल बिताने का मन करता है। लेकिन समय के साथ कभी-कभी इन्हीं करीबी दोस्ती के रिश्ते नौकरी-रोजगार के चलते बिछुड़ भी जाते हैं। अक्सर व रोज मिलने वाले दोस्त अब कभी-कभी मिल पाते हैं। जिंदगी के साथ दोस्त भी बदलते जाते हैं, लेकिन दोस्ती होती रहती है।
आम पहचान के साथ कभी-कभी कोई व्यक्ति बहुत जल्दी ही करीबी हो जाता है, जिससे दिल जुडऩे लगता है। और एक समय यही अपना सच्चा मित्र कहलाता है। जब कभी मन में किसी तरह की दुविधा होने पर दिल पर एक बोझ की तरह से होता है मित्रों के बीच बात करने से मन हल्का हो जाता है। ऐसे में ही सच्चे दोस्त की दरकार पूरी होती है। जो आपकी बात को गहराई से समझ कर लोगों के बीच उपहास न उड़ाकर स्थितिवश उचित राय व सलाह भी दे। अक्सर जिंदगी के किसी मोड़ पर हम जब कभी दिग्भ्रमित से हो जाते हैं, इतना परेशान हो जाते हैं कि आगे का रास्ता तनिक भी नहीं सुझाई देता। फिर हमें एक ऐसे मित्र की जरूरत होती है जो हमें सही रास्ता दिखाए। यहां पर भी यही मित्र काम आता है जो अपने राय-मशवरे से समस्या का समाधान कर देता है। इसका मनोवैज्ञानिक कारण भी है कि जो व्यक्ति किसी समस्या से घिरा होता है, उसका मस्तिष्क हल खोजने में असहज व असमर्थ हो जाता है। वहीं मित्रों का तरीका किसी समस्या से ग्रसित न होने के कारण सहजता से तुरंत समाधान या हल करने का रास्ता भी ढ़ूंढ़ लेता है। दोस्तों व साथियों के सहयोग व सलाह से जिंदगी की तमाम अड़चनें व छोटी-बड़ी समस्याएं हल हुआ करती हैं। मौका सुख का हो या फिर दु:ख का सबसे पहले साझीदार पास के दोस्त ही होते हैं। जिनसे अक्सर का मिलना-जुलना होता है इन मित्रों को आपस की दिनचर्या से लेकर घर की छोटी-बड़ी बातों का पता रहता है। ऐसे सच्चे मित्रों के सहयोग व सलाह से जीवन की किसी परिस्थिति का सामना करना अपेक्षाकृत आसान हो जाता है। बचपन से शुरू हुई दोस्ती का सफर बुढ़ापे तक ताउम्र चलता रहता है। बुजुर्गियत की दोस्ती भी जीवन में बहुत महत्वपूर्ण हो जाती है। क्योंकि इस समय अक्सर लोग अपनी व्यस्ततम दिनचर्या व जिम्मेदारी से स्वतंत्र हो चुके होते हैं और गली-मोहल्ले के लोग सुबह-शाम एक दूसरे के हाल व खबर लिया करते हैं, व नित्य-प्रतिदिन के क्रिया-कलाप आपस में साझा किया करते हैं। खाली समय बिताने के साथ एक तरह से यही लोग सबसे करीबी सुख व दु:ख के साथी होते हैं। कुल मिलाकर दोस्ती में दूसरे के गम का ख्याल आते ही अपना गम कम मालूम पडऩे लगता है। क्योंकि एक गाने के प्रमुख भी बोल थे- दुनिया में कितना गम है, मेरा गम कितना कम है। औरों का गम देखा तो मैं अपना गम भूल गया।

1 comment:

  1. सच में जिन्‍दगी में दोस्‍ती की बहुत आवश्‍यकता होती है। आपका आलेख अच्‍छा है लेकिन संक्षिप्तिकरण की आवश्‍यकता है। इसे दोस्‍ती की सलाह ही मानिए, गुस्‍सा मत होना।

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