Tuesday, August 3, 2010

दुनिया में दुर्लभ व अमूल्य है ईश्वरीय खजाना





हममें से अधिकतर लोग आज जिंदगी के मूल्यवान ढेर से कूड़ा बीनने ही जैसा काम कर रहे हैं। इनको जिंदगी गुजारने के लिए पैसे तो मिल रहे हैं, परंतु उनकी आवश्यकताओं की लम्बी-चौड़ी फेहरिस्त होने से सच्ची भांति नहीं महसूस हो पाती। और इस तरह आदमी हर समय और अमीर बनने के तरीके खोजा करता है। नतीजन, लोग भौतिक वादी रूप से अधिक महात्वाकांक्षी होते जा रहे हैं।


एक बार की बात है कि एक आदमी कूड़े से रद्दी-कागज व प्लास्टिक आदि बीनता व कबाड़ी को बेचकर अपने परिवार का पालन-पोषण किया करता था। एक दिन वह कूड़े से कागज आदि बीन रहा था, उसी समय एक संन्यासी उसके पास आया और उससे पूछने लगा-यह तुम क्या कर रहे हो? कूड़ा बीनने वाले ने संन्यासी से कहा कि वह कबाड़ी को चीजें बेचता है, जिससे उसके घर का गुजारा चलता है। संन्यासी ने कहा कि यहां से कुछ ही दूर पर कई कीमती वस्तुएं जैसे लोहा व एल्युमीनियम आदि पड़े रहते हैं, तुम उन्हें उठाकर क्यों नहीं बेचते! उससे तुम्हें ज्यादा पैसे मिल सकते हैं। इसके बाद से कूड़ा बीनने वाले की जिंदगी ही बदल गई। क्योंकि जहां वह एक दिन में बड़ी मुश्किल से कुछ ही पैसे कमा पाता था, वहां कीमती चीजें बेचने से उसे अच्छे पैसे मिल जाते थे। इस प्रकार उसकी जिंदगी अच्छी तरह चलने लगी व उसका परिवार भी अब पहले से कहीं अधिक खुशहाल था। देखा जाए तो हममें से अधिकतर लोग आज जिंदगी के मूल्यवान ढेर से कूड़ा बीनने ही जैसा काम कर रहे हैं। इनको जिंदगी गुजारने के लिए पैसे तो मिल रहे हैं, परंतु उनकी आवश्यकताओं की लम्बी-चौड़ी फेहरिस्त होने से सच्ची भांति नहीं महसूस हो पाती। और इस तरह आदमी हर समय और अमीर बनने के तरीके खोजा करता है। नतीजन, लोग भौतिक वादी रूप से अधिक महात्वाकांक्षी होते जा रहे हैं। कूड़ा बीनने वाले की कहानी भी बिल्कुल ऐसी ही है। कीमती चीजों को बेचने से उसका भी स्तर ठीक हो गया था। वह पहले से अधिक धनवान भी हो गया। पंरतु, उसे पैसे की भूख और अधिक बढ़ गई थी। उसे भी इतने से संतुष्टि नहीं हुई। एक दिन फिर वही संन्यासी उस व्यक्ति से मिला। उसकी संपन्नता देखते हुए उसका हालचाल पूछा-कि अब तो आप खुश हैं, आपका काम ठीक से चल रहा है! अब तो आप बड़े व्यापारी हो गये हैं। व्यापारी नें कहा कि महाराज! आप तो बड़े जानकार हैं, जल्दी से मुझे करोड़पति बनने का और कोई रास्ता बताइये। इस समय मैं संतुष्टि व भांति का अनुभव नहीं कर पा रहा हंू। संन्यासी ने कहा कि कोई बात नहीं, मैं तुम्हें अब उस जगह का पता बताता हंू, जहां पर सबसे मूल्यवान व कीमती चीजें मिलती हैं। सोना, चांदी, हीरा व मोती का खजाना है वहां। जिससे तुम बहुत जल्दी अमीर व करोड़पति बन सकते हो। उस व्यापारी की खुशी का तो ठिकाना ही न रहा। उसने जल्दी ही उस जगह का पता लगाकर काम चालू कर दिया। धीरे-धीरे करके वह अब सोने व कीमती आभूषणों का बहुत बड़ा सेठ हो गया। अब तो उसके पास कई बड़े-बड़े बंगले व आलीशान गाडिय़ां व दर्जनों नौकर हमेशा उसके आगे-पीछे घूमते रहते। इस तरह से सेठ के पास करोड़ों रुपये की संपदा इकट्ठा हो गई थी। परंतु, उसकी मानसिक स्थिति पहले से कहीं अधिक खराब हो चुकी थी। इतनी बड़ी संपदा का रखरखाव करना उसे बड़ा मुश्किल लग रहा था। चोरों का भी डर था उसे, व्यापार में भी नुकसान होने का भय लगा रहता था। उसके पास पैसे की कोई कमी नहीं थी, और न ही अब कोई चाहत भी। लेकिन, मन हमेशा अशांत व परेशान रहता। मन की दशा भी यही है कि धनवान बन जाने की अपार इच्छा व धन संचय के लिए हम प्रयासरत रहते हैं। कितना भी धन मिल जाने या हो जाने पर भी मन नहीं मानता। मन और ज्यादा की मांग हमेशा करता है, जल्दी से जल्दी अमीर या करोड़पति हो जाना चाहता है। उसे लगता है कि खूब, भरपूर पैसा व संपदा के मालिक होने पर ज्यादा सुख व शांति मिलती है। परंतु, ऐसा नहीं होता, अगर ऐसा होता तो कूड़ा बीनने वाला व्यापारी बना, फिर बड़ा सेठ हो जाता है। अब उसके पास सब कुछ है, लेकिन असली शांति की तलाश उसकी अब भी बाकी है। नियति व संयोग से कई वर्षों के बाद एक दिन फिर वही संन्यासी उसी व्यापारी सेठ से अचानक टकरा जाता है। सेठ तुरंत उसके पैरों पर गिरकर कहता है- महाराज! कुछ करिये, मुझे शांति नहीं मिल पा रही। मैं बहुत परेशान हो चुका हंू। संन्यासी ने झट कहा-चलो, अब मैं तुम्हें दुनिया के सबसे बहुमूल्य व अमूल्य खजाने का पता बताता हूं। व्यापारी सेठ बोला-महाराज! नहीं, मुझे अब कोई खजाना नहीं चाहिए, मैं इन सबसे तंग आ गया हंू। संन्यासी नें कहा कि मैं तुम्हारी स्थिति समझ चुका हूं। अभी तक मैंने तुम्हें सभी भौतिक खजानों के पते बताये हैं। अब मैं तुम्हें ईश्वरीय खजाने का पता बताता हूं, जो असली खजाना है। जहां पर ही तुम्हें सच्ची शांति व संतुष्टि का अनुभव होगा। उस खजाने को पाने के लिए तुम्हें कहीं और जाने की भी आवश्यकता नहीं क्योंकि वह अमूल्य खजाना तुम्हारे अंदर ही छिपा है, और उस खजाने का लुट जाने का भी डर नहीं। इससे बड़ी दौलत व खजाना पूरी दुनिया में नहीं है। सेठ ने संन्यासी को दंडवत प्रणाम किया व नये खजाने की खोज के लिए चल दिया।

1 comment:

  1. ज्ञानवर्द्धक कहानी है ....बढ़िया प्रस्तुति

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