Thursday, August 26, 2010

भारत की राजनीति में अब दिखे युवा तस्वीर


नेहरु जी का सपना सच करने के लिए नेहरु-गांधी परिवार के युवराज कहे जाने वाले युवा सोच के मालिक राहुल गांधी ने इसकी एक झलक दिखला दी है। पूरे देश में एकसाथ जमीन से जुड़े बिल्कुल नये चेहरों को राजनीति में प्रवेश दिला लोकतंत्र में एक नई व युवा नजीर पेश की। राहुल गांधी का मिशन २०१२ फतेह करने की यह नई युवा सेना होगी। जिसकी बागडोर युवा राहुल खुद संभालेंगे।

आजाद भारत के पहले प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरु बच्चों के चाचा नेहरु कहे जाते हैं। नेहरु जी को बच्चे बहुत प्रिय थे, उन्हें बच्चों के प्रति बेहद लगाव था। इसीलिए बच्चों के उज्ज्वल भविष्य के प्रति वह दृढ़ संकल्पित थे। उनकी नजर में आज के बच्चे ही कल के युवा व भारत का भविष्य है। इसी कड़ी में एक फिल्म का गीत भी कहता है- इंसाफ की डगर पे बच्चों दिखाओ चलके, यह देश है तुम्हारा नेता तुम्ही हो कल के। परंतु आज अपने देश में युवाओं की तस्वीर ज्यादा अच्छी नहीं कही जा सकती है। देश की युवा जनता का हाल बहुत बेहाल है। देश के भविष्य की चिंता करने वाले जिम्मेदार राजनीतिज्ञों को युवाओं के लिए हर क्षेत्र में अवसर सुलभ कराने के साथ राजनीति को भी आम युवा वर्ग के बीच लोकप्रिय बनाना होगा। देश के विकास में सबसे बड़ी भूमिका लोकतंत्र की होती है, जिसमें देश की जनता अपना प्रत्याशी चुनकर भेजती है। उद्देश्य होता है कि संबंधित लोकसभा व विधानसभा क्षेत्र का समुचित विकास करवाना। अपने क्षेत्र का प्रतिनिधित्व करने वाले नेता या मंत्री विकासोन्मुखी योजनाओं की सिफारिश व लागू करवाते हंै। क्षेत्र का विकास इन्हीं लोगों पर निर्भर करता है। लेकिन ज्यादातर देखने में यह आता है कि आजकल की अधिकतर गठबंधन सरकारें जमीनी सुधार व विकास कराने के बजाय सरकार व अपनी सीट बचाने के काम में लगे रहते हैं। सत्ता लोलुपता के लिए शीर्ष स्तर के नेता व मंत्री भी अपनी सरकार बनाये रखने के लिए किसी भी दल या प्रत्याशी से गठजोड़ करने से भी गुरेज नहीं करते। सत्ता को हथियानें के लिए लगभग सभी छोटे-बड़े दल कुर्सी दौड़ में दिखते हैं। सत्ता पक्ष अपनी कुर्सी बचाने में लगी रहती है तो विपक्ष व अन्य दल सरकार गिराने के पक्ष में रहते हैं। जमीनी आधार पर लोक कल्याण के विकास का मुद्दा कम एक दूसरे को नीचा दिखाने की होड़ ज्यादा होती है। संसद का प्रश्नकाल तो कम ही होता है, इस बीच यहां पर आपसी उठापटक, खींचातानी व संसद के अंदर ही मारपीट व झगड़ा फसाद कर संसद का सम्मान भी कलंकित किया जाता है। देश की जनता की सुध लेने में ज्यादा कोई दिलचस्पी नहीं दिखाता, इन्हें केवल रुचि अपने निजी फायदे व पार्टी हित की होती है। देश हित की बातें अंदरूनी तौर पर कम लोगों में ही देखी जाती हैं। अक्सर टीवी पर संसद में बहस की जगह बवाल देखकर देश की जनता ठगी सी व बेचारी हो जाती है। देश के सम्मानित कर्णधार नेता लोकहित के मुद्दे छोड़कर आपसी छींटाकशी में समय जाया कर देते हंै। देश की हर छोटी-बड़ी राजनीतिक पार्टी हमेशा दूसरे दल की कमजोरी व कमी ढंूढ़ा करती है ताकि मौका मिलते ही किसी को भी घसीट दिया जाये। ज्यादातर सभी दलों के बीच यही खेल चला करता है। देश के वास्तविक विकास को कोई महत्व नहीं देता। होना तो यह चाहिए कि अगर कोई दल अच्छा काम या योजना लागू करता है तो सकारात्मक तौर पर उससे अच्छी जनसेवा की भावना रखी जाये, नाकि उसकी केवल कमियां ही निकाली जाएं। अपने दल को लोकसेवा में बीस साबित करने के बजाय अक्सर पार्टियां दूसरे दल को छोटा दिखाने में ही अपनी ऊर्जा व समय नष्ट कर देते हैं। स्थिति यह है कि एक या दो सीट हासिल करने वाले तथा अपने आपको राष्ट्रीय दल कहने वाले भी इस काम में लगे रहते हैं, वो भी सत्ता पाने के जुगाड़ में लगे रहते हैं। हालत यह होती है कि मौका पड़ते ही अपनी पार्टी छोड़कर दूसरे सत्ता पक्ष के दल में जा घुसते व समर्थन दे देते हैं। एक दल का घंघोर विरोधी कब उस पार्टी का हितैषी हो जाये, इसमें भी बहुत आश्चर्य नहीं होता। आज के मौजूदा राजनीतिक माहौल में देश के राजनेता, मंत्रियों व दलों की छवि कैसे लोकप्रिय हो? यह एक अहम विषय है। जनप्रिय नेता व मंत्रियों का स्वरूप कैसा हो, कैसे ये सभी जनता व देश हित के बारे में सोचे व काम करें? इसके लिए इनके चयन में ही जमीनी बदलाव की आवश्यकता महसूस की जा सकती है। अब बारी है कि हर एक राजनीतिक दल युवाओं के बारे में गंभीरता से विचार करे तथा अपना जनाधार बढ़ाने के लिए युवाशक्ति को बागडोर सौंपे। इसकी एक अच्छी पहल हो चुकी है। नेहरु जी का सपना सच करने के लिए नेहरु-गांधी परिवार के युवराज कहे जाने वाले युवा सोच के मालिक राहुल गांधी ने इसकी एक झलक दिखला दी है। पूरे देश में एकसाथ जमीन से जुड़े बिल्कुल नये चेहरों को प्रवेश दिला लोकतंत्र में एक नई व युवा नजीर पेश की। राहुल गांधी का मिशन २०१२ फतेह करने की यह नई युवा सेना होगी। जिसकी बागडोर युवा राहुल खुद संभालेंगे। युवाओं को राजनीति में लाने के इस कार्यक्रम में सबसे अहम बात यह है कि नई पीढ़ी के जमीन से जुड़े लोगों को इसमें तरजीह दी गई है। जमीन से जुड़े साधारण लोगों को राजनीति में लाया जा रहा है। राहुल गांधी की पहल बेशक रंग लाएगी।

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