Thursday, June 3, 2010

स्वस्थ दिमाग, तंदरुस्त शरीर व संतुलित रसायन


शारीरिक बीमारियों की मूल जड़ हमारा पेट है, इसमें किसी रसायन की अवस्था ठीक न होने से कई बीमारियों का जन्म होता है। वहीं, मानसिक बीमारियों की खास वजह हमारा मस्तिष्क व दिमाग होता है। यहां के रसायनों की असंतुलित अवस्था से ही मन घबराने लगता है, मन किसी काम में नहीं लगता है, एकाएक मन चिड़चिड़ा होता जाता है।

हमारा शरीर तमाम प्रकार के रसायनों से भरा पड़ा है। शरीर पूरी तरह से एक रासायनिक प्रयोगशाला की तरह से काम करता है। जिसमें हर वक्त कुछ न कुछ रासायनिक समीकरण बना व बदला करते हैं। इन्हीं रसायनों के बदलने व मिश्रण से ही होने वाले परिवर्तन हमारे भारीर, दिल व दिमाग में भी दिखलाई पड़ते हैं। इनके होने से ही हमारा शरीर मुस्कराता है, रोता है व दिल गुदगुदाता है। और इनमें किसी भी प्रकार का असंतुलन होने पर ही शरीर व दिमाग की तमाम बीमारियां जैसे तनाव, अवसाद, चिड़चिड़ापन, शारीरिक निष्क्रियता व वैचारिक नकारात्मकता शरीर पर हावी होना शुरू हो जाती है। ध्यान की नियमित क्रिया तथा योग व प्राणायाम के निरंतर अभ्यास से ही इन रासायनिक गड़बडिय़ों को संतुलित व दुरस्त रखा जा सकता है। जिस प्रकार से शरीर में किसी भी प्रकार की खून की अशुद्धता होने पर शरीर पर तमाम प्रकार के दाने, फोड़े-फुंसी या चर्म रोग जैसी बीमारियां देखी जाती हैं। किसी रसायन की गड़बड़ी से ही रक्त में अशुद्धता हो जाती है। फिर ब्लड को प्योरीफाई करने के लिए दवाओं व सिरप आदि का प्रयोग किया जाता है। वैसे भी शरीर में होने वाली और भी बीमारियां इस बात की द्योतक होती हैं कि शरीर में फलां केमिकल का रियेक्शन सही नहीं है। अर्थात असंतुलित रसायनों की क्रियाओं से ही तमाम बीमारियों के लक्षण दिखाई देते हैं, फिर दवाओं, इंजेक्शन या टॉनिक से इन गड़बड़ रसायनों को दुरस्त किया जाता है। इसी प्रकार से दिमाग के रसायनों के गड़बड़ाने से ही कई प्रकार की मानसिक बीमारियां घेर लेती हैं। शारीरिक बीमारियों की मूल जड़ हमारा पेट या उदर होता है, इसमें किसी रसायन की अवस्था ठीक न होने से कई बीमारियों का जन्म होता है। वहीं, मानसिक बीमारियों की खास वजह हमारा मस्तिष्क व दिमाग होता है। यहां के रसायनों की असंतुलित अवस्था से ही मन घबराने लगता है, मन किसी काम में नहीं लगता है, एकाएक मन चिड़चिड़ा होता जाता है। इसी के साथ शरीर में थकावट व नकारात्मक विचार आने शुरू हो जाते हैं। ये सभी वस्तुत: बीमारी नहीं बल्कि बीमार या कमजोर रसायन के लक्षण मात्र होते हैं। जिसको दवाओं या थेरेपी से ठीक किया जाता है, इनका उपचार होता जिसकी रोकथाम के लिए एंटीबायटिक भी दी जाती है। यह तो इन सब असंतुलित रसायनों का इलाज हुआ। इन सबसे बचने के लिए परहेज भी आवश्यक होता है। कहा गया है कि 'प्रिवेंशन इज बेटर दैन क्योरÓ। अगर इस पर भरोसा किया जाय तो हमारे पास ऐसी चमत्कारिक व अद्भुत शक्तियां भी हैं जिनके प्रयोग से इन व्याधियों से दूर रहा जा सकता है। योग और प्राणायाम का नियमित अभ्यास शरीर में होने वाली तमाम रासायनिक गड़बडिय़ों से बचाव तो करता ही है तथा साथ ही आने वाली अनेक बीमारियों व परेशानियों को हमसे दूर रखता है। वहीं ध्यान का निरंतर अभ्यास हमें मानसिक बीमारियों से बचाता है। ध्यान व योग हमारे देश की प्राकृतिक व पुरातन विधियां हैं जो आज के समय में भी बहुत कारगर हैं। इन दोनों के रोजाना अभ्यास से हम शरीर व मस्तिष्क दोनों को असीमित लाभ पहुंचा सकते हैं। ध्यान व योग हर उम्र के लिए फायदेमंद हैं। जरूरी नहीं है कि इनका उपयोग केवल बीमारी अवस्था में ही किया जाय। ये बीमारियों का बहुत लाजवाब परहेज है, इनसे भारीर व मस्तिष्क की सभी रासायनिक क्रियाएं सामान्य रूप से काम करती है। आजकल जहां इनका उपयोग बढ़ती उम्र के लोगों में देखा जा रहा है, वहीं छोटे बच्चों क मस्तिष्क व शरीर के विकास में इनका अहम व आधारभूत योगदान हो सकता है। बशर्ते, हम इन पर पूरा भरोसा करके अपनी दैनिक दिनचर्या में शामिल करें। आज डिप्रेशन बढ़ती उम्र के लोगों के साथ छोटी उम्र के बच्चे, विद्यार्थी, घरेलू व कामकाजी महिलाएं या पुरुष लगभग सभी हैं। कारण भी है क्योंकि आज की भागमभाग लाइफ स्टाइल में बच्चों को पढ़ाई या कॅरियर का दबाव, नौकरी या रोजगार में बढ़ती प्रतिद्वंद्विता से होता तनाव, घर का कामकाज व सभी प्रकार की जिम्मेदारियों के निर्वहन में शरीर व मस्तिष्क दोनों का प्रयोग एकसाथ करते हैं। और देखा जाता है कि हम शरीर की देखभाल के लिए तो खाने-पीने की स्वास्थ्यवर्धक पोशक तत्वों का उपभोग करते हैं, अपने खानपान में किसी प्रकार की कोताही नहीं बरतते, तो फिर अपने दिमाग के साथ इतना सौतेलापन आखिर क्यों दिखाते हैं? हम गाड़ी में पेट्रोल भर देते हैं, तो गाड़ी चलती है। इसके मैकेनिकल पाट्र्स भी अपना सही काम करते रहें इसके लिए जरूरी है कि समय-समय पर चेक-अप व सर्विस भी हो।

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