Thursday, June 17, 2010

कितना मासूम बनकर आता है आदमी



बच्चे का सबसे नजदीकी रिश्ता अपनी मां से होता है और सबसे ज्यादा प्यार भी मां से ही मिलता है। फिर बच्चा अपने पिता की उंगली थामकर जमीन पर पैर रखकर चलना सीखता है। जैसे-जैसे वह अपने पैरों पर खड़ा होने लगता है व जिंदगी के पाठ सीखता है। फिर देखने वाली बात यह है कि जिंदगी से सीखकर कल का मासूम बच्चा अपने मां-बाप को भी पाठ पढ़ाने लगता है।

एक बात सच है कि हर एक व्यक्ति अपने जन्म के समय कितना मासूम व अबोध होता है! उसके पैदा होने पर उसकी जिंदगी का अंदाजा लगाना बड़ा मुश्किल होता है कि बच्चा बड़ा होकर क्या बनेगा व कितना नाम पैदा करेगा! कोई भी नाम के साथ जन्म नहीं लेता है, जन्मता केवल शरीर है। परिवार से उसको नाम मिलता है, कर्मों से ही किसी की पहचान बनती है। अच्छे कर्मों से व्यक्ति महान कहलाता है, और उसका नाम फैलता है। वहीं बुरे कर्मों से बदनाम कहा जाता है। अक्सर व्यक्ति की मासूमियत धीरे-धीरे खत्म होती जाती है व जिंदगी के अनेक रंग उस पर चढ़ते जाते हैं। जन्म तो सभी एक जैसे लेते हैं लेकिन जिंदगी के रूप सभी के अलग हो जाते हैं। मनुष्य का शुरुआती जीवन बहुत सरल व अबोध होता है। निश्छल व मासूमियत भरी जिंदगी हरतरह की चालाकी व चालबाजी से अंजान अपना सच्चा जीवन जीती जाती है। कहते हैं कि बच्चे का सबसे नजदीकी रिश्ता अपनी मां से होता है और सबसे ज्यादा प्यार भी मां से ही मिलता है। फिर बच्चा अपने पिता की उंगली थामकर जमीन पर पैर रखकर चलना सीखता है। जैसे-जैसे वह अपने पैरों पर खड़ा होने लगता है व जिंदगी के पाठ सीखता है। फिर देखने वाली बात यह है कि जिंदगी से सीखकर कल का मासूम बच्चा अपने मां-बाप को भी पाठ पढ़ाने लगता है। अब धीरे-धीरे बच्चे की मासूमियत रंग बदलती है और आज के आदमी का रंग उसपर चढऩे लगता है। इस आदमी की एक फितरत और भी है कि यह ही आदमियों का दुश्मन भी बन जाता है। खुद तो सब कुछ हासिल कर लेना चाहता है, परंतु किसी और को वहां पहुंचने से भी यही रोकता है। एक शाश्वत सत्य यह भी है कि कोई भी यहां हमेशा के लिए अमर होकर नहीं आता, हर कोई जानता है कि जिंदगी का कोई भी पल आखिरी हो सकता है, फिर भी जमीन, मकान, दुकान व रुपये-पैसे के लिए एक दूसरे की जान का दुश्मन हो जाता है। आपसी छीना-झपटी व धोखेबाजी भी आदमी की नीयत देखी जाती है। इस दुनिया में ज्यादा दिन का मेहमान न होने के बावजूद भी आदमी गाड़ी, बंगला और क्या-क्या सामान के यत्नों में लगा रहता है। मासूमियत भरी जिंदगी के सफर में भी रास्तों की तरह से दो मोड़ आते हैं। एक मोड़ हमें सही रास्ते पर ले जाता है तो दूसरा गलत दिशा में। कोई व्यक्ति अपने अच्छे आचरण व कर्मों के बल पर सही रास्ते पर चलते हुए अच्छा इंसान बन जाता है तथा अपने घर-परिवार का नाम रोशन करता है। दूसरी ओर एक व्यक्ति गलत रास्ते पर निकल जाता है जिससे उसका आचरण अमानवीय हो जाता है, उस पर हैवानियत सवार हो जाती है। इसी रास्ते से आदमी आपराधिक दिशा में भी बढ़ जाता है, जो अपने लोगों के बीच एक बदनुमा दाग की तरह से जाना जाता है। जैसे-जैसे जीवन में कई प्रकार की चालबाजियों व चालाकियों से आदमी रूबरू होता जाता है उसके अंदर की मासूमियत व सीधापन धीरे-धीरे खत्म होने लगता है। फिर वही अबोध बच्चा कब हर फन में माहिर होकर हमारे सामने आ जाता है, हमें इसका पता नहीं चलता। कोई डॉन, गैंगेस्टर या माफिया बन जाता है तो कोई अच्छा इंसान, मसीहा व लोगों के बीच लोकप्रिय हस्ती बनकर तमाम उपाधियों से नवाजा जाता है। जन्म के समय कोई महान नहीं होता, जीवन के कर्म ही उसे महानता का दर्जा दिलाते हैं। व्यक्ति के लिए जन्म से बढ़कर जिंदगी का रिश्ता होता है। मनुष्य अपने जन्म के समय पर योग्य नहीं होता है, उसे काबिलियत इसी दुनिया से सीखनी पड़ती है। बगैर नाम के पैदा हुए व्यक्ति को अपना नाम यहीं पर बनाना पड़ता है। नीति विशेषज्ञ चाणक्य ने कहा है कि पैदा होने पर हमारे साथ कुछ भी नहीं होता, जब हम मरते हैं तो अपना नाम छोड़ जाते हैं। सभी को मालूम है कि भारत को आजादी दिलाने वाला व्यक्ति भी अपने जन्म के समय में बहुत साधारण व अबोध था, परिवार वालो ने उसे मोहनदास नाम दिया। मोहनदास के कर्मों व विचारों ने पूरे विश्व में अपनी छाप छोड़ी। मासूम पैदा होने वाले बालक का नाम मोहनदास जरूर था, परंतु मरने के बाद उनके नाम में गांधी जी, राष्ट्रपिता, महात्मा व बापू सरीखी उपाधियां शामिल हो चुकीं थीं।
कितना मासूम बनकर जन्म लेता है आदमी,
जिंदगी में कितने गुल खिलाकर जाता है आदमी।
कोई देता जख्म; कोई आराम आदमी,
क्योंकि इंसानियत और हैवानियत का नाम है
आदमी।
कुछ तो रोशन करते हैं जिंदगी को आदमी,
बदनुमा भी बनाते हैं जिंदगी को आदमी।
हिटलर, डॉन, माफिया डाकू हैं आदमी,
तो आजाद, बापू और कलाम भी हैं आदमी।

4 comments:

  1. sundar aalekh ek katu saty saamne rakha

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  2. वैसे बच्चा मासूम ही पैदा होता है यह हम (मां बाप और समाज) उसको अपने जैसा बना देते हैं. जैसे परवरिश मां बाप की और जैसे समाज में परवरिश पाई, बच्चा बड़ा हो के वैसा ही बन जाता है.

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