Thursday, June 3, 2010

पैसा-पैसा करते हैं, सब पैसे पर ही मरते हैं


हर व्यक्ति केवल पैसा ही पैसा मांग रहा है, जिसमें पारिवारिक रिश्ते, सगे-संबंधी व दोस्ती-यारी सभी रिश्तों पर पैसा शुरू से ही भारी रहा है। परंतु, अब रिश्ते खासतौर पर पैसे के तराजू से ही तोले जाते हैं। जिसके पास पैसा है, उसके पास व साथ लोगों की भीड़ होती है। जिसके पास पैसे की कमी है, वह अकेला व तन्हा देखा जाता है।

पैसे की जरूरत हर एक को है, और पैसे की आवश्यकता भी हर जगह है। बगैर पैसे के कोई भी काम लगभग नामुमकिन है। इस बात का प्रभाव हर जगह दिखाई देता है। आज के इस अर्थयुग व गलाकाट प्रतियोगी माहौल में पैसा कमाना आसान नहीं रहा। पैसा कमाने में आज तमाम जोखिम हैं। परंतु फिर भी ज्यादातर लोग अधिक से अधिक पैसा इकट्ठा करना चाहते हैं। इसी उद्देश्य के लिए व पैसे की ही खातिर दिनरात मेहनत करते तथा पैसे के पीछे भागते नजर आते हैं या फिर पैसे का अत्यधिक मोह इन्हें अपने पीछे भगाता रहता है। आज पैसा जिंदगी की बुनियादी जरूरतों के लिए सर्वप्रमुख देखा जाता है। मनुष्य के पास आय के साधन सीमित हैं, परंतु व्यय में बहुत अधिक असीमितता दिखाई पड़ती है। आय की तुलना में खर्च का प्रतिशत काफी बढ़ता जा रहा है। जिसका कारण निश्चित रूप से आपसी दिखावे की प्रतियोगिता भी है। अक्सर असीमित खर्च करने की प्रवृत्ति दूसरे को दिखाने के लिए विशेष तौर पर होती है। और इस तरह अपना स्टेटस सिंबल बनाने व दिखाने के लिए काफी हद तक फिजूलखर्च व अपव्यय भी किया जाता है। जो कि किसी सामान्य आय वाले परिवार के मासिक बजट को गड़बड़ा देता है। सीधी बात यह है कि इस दिखावे की दुनिया में लोग 'पॉम्प एंड शो' की प्रवृत्ति इस कदर अपनाते हैं कि अपनी असली हैसियत से कहीं आगे बढ़ चढ़कर खर्च करते हैं, जिसका असर यह होता है कि लोगों के पांव चादर के बाहर देखे जाते हैं। फिर बात इतने पर नहीं रुकती, और आवश्यकताओं की पूर्ति के लिए लोन व ब्याज पर पैसे लेकर आदमी कर्जदार होने पर मजबूर हो जाता है। पूरे मसले की जड़ है आमदनी अठ्ठनी, खर्चा रुपया। एक सर्वे की रिपोर्ट यह बताती है कि एक आम आदमी के खर्च करने की सीमा बढ़ गई है। इसी के तहत अब खरीदारी भी फैशन का रूप ले चुकी है। आम आदमी की जेब में अब पैसे कम क्रेडिट कार्ड ज्यादा मिलते हैं। अपनी जेब के अलावा लोन, ब्याज व क्रेडिट कार्ड आदि से खरीदारी करने को रुतबे की तरह से देखा जाता है। पैसे को कैसे भी हथियाना आज लोगों का परम लक्ष्य बन चुका है। वहीं कुछ लोग जल्दी से जल्दी अमीर व पैसा बनाने के लिए गलत काम करने में भी नहीं हिचकिचाते हैं। किसी को नुकसान पहुंचा कर भी अपना काम बनाना या पैसा ऐंठना ही एक मात्र मकसद होता है। पैसा ही कहीं-कहीं झगड़े व फसाद की जड़ भी बन जाता है। जिसके लिए लोग एक दूसरे को मरने-मारने पर भी मजबूर हो जाते हैं। पैसे की मोह माया लोगों पर इस कदर हावी है कि अच्छा-बुरा कुछ दिखाई नहीं देता है, उद्देश्य केवल एक होता है कि किसी भी तरह पैसा आना चाहिए। पैसे का बोलबाला हर तरफ नजर आता है। हर व्यक्ति केवल पैसा ही पैसा मांग रहा है, जिसमें पारिवारिक रिश्ते, सगे-संबंधी व दोस्ती-यारी सभी रिश्तों पर पैसा शुरू से ही भारी रहा है। परंतु, अब रिश्ते खासतौर पर पैसे के तराजू से ही तोले जाते हैं। जिसके पास पैसा है, उसके पास व साथ लोगों की भीड़ होती है। जिसके पास पैसे की कमी है, वह अकेला व तन्हा देखा जाता है, उसको खास तव्वजो नहीं मिल पाती। शायद इसीलिए लोग अपनी पहचान बनाने को पैसा कमाने के लिए बहुत मेहनत-मशक्कत करते हैं। बहुत से लोग दिन के १८-१८ घंटे तक फील्ड व ऑफिस में काम करते हैं ताकि अधिक से अधिक पैसा कमाया जा सके। जिसका सीधे तौर पर प्रतिफल यह होता है कि अपने परिवार के लिए बड़ी मुश्किल से समय दे पाते हैं। यह पैसा ही है कि जिसको कमाने के लिए लोग अपना घर, गांव व देश से दूर हो जाते हैं, या अपने घर-परिवार व लोगों की याद आने पर भी नहीं पहुंच पाते या साथ में रह पाते हैं। कुल मिलाकर पैसे का चुम्बकीय आकर्षण ही लोगों को इस कदर अपनी ओर खींचता है कि वह अपनों से दूर होता जाता है। पैसा दोस्ती बनाता भी है, और आपस में दुश्मनी भी पैसा ही कराता है। शेक्सपियर नें एक जगह लिखा भी है 'मनी लूजेज इटसेल्फ, एंड फ्रेंडशिप ऑल्सो।Ó मतलब पैसा और दोस्ती दोनों एक साथ खत्म हो जाती है जब पैसे को अधिक महत्व दिया जाता है। किसी को जरूरत के समय पर आर्थिक मदद करना मानव स्वभाव व नैतिकता भी बताई गई है। परंतु देखने में कम ही दिखाई पड़ती है। पैसा बहुत तेज भागता है, उसकी चाल बहुत तेज होती है। इसलिए पैसे को पकडऩे के लिए आदमी पैसे की चाल से अधिक तेज भागना चाह रहा है। आज देश में प्रतिव्यक्ति आय का औसत ग्राफ बढ़ा है। यह सच है कि आम आदमी की आय बढ़ी है, परंतु खर्च उससे कई गुना अधिक है। बजट से बाहर का खर्च पूरे आय-व्यय का संतुलन बिगाड़ देता है, जो आगे चलकर जिंदगी के लिए काफी जोखिम भरा होता है।

3 comments:

  1. बहुत सही विवेचन ...हर इंसान पैसे की ओर दौड रहा है पर क्या पीछे छूट रहा है नहीं समझ पाता

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  2. sahab ab paise ki baarish karne wala to koi hai nahi...haan paise ki nadiya beh jaati hai ek roti ki khatir...

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  3. इतना पैसा पैसा क्‍यूं करते हैं लोग .. सचमुच समझ में नहीं आता !!

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